यंहा राजधानी रायपुर मे सार्वजनिक गणेशोत्सव मे भगवान श्रीगणेश की जो प्रतिमा स्थापित की गई है वो आमिर खान के गज़नी स्टाईल की है।सिक्स एब्स वाले जीन्स मे गणेश जी का दर्शन करने के बाद भी कोई बहुत ज्यादा बवाल नही हुआ मगर बवाल होने की आशंका मे गणेशोत्सव समिति के लोगो ने गणेश जी को जीन्स के ऊपर ही पितांबर पहना कर मामला निपटाने की कोशिश की है मगर लम्बोदर को सिक्स एब्स वाले पीठ से चिपके पेट मे देखो तो ऐसा लगता है जितना मज़ाक हिंदू देवी-देवताओ का इस देश मे उडाया जाता है उतना और कंही किसी धर्म का नही उडाया जाता होगा।हैरानी की बात तो ये है कि इसके बावज़ूद स्थापित किया जा रहा है कि इस देश मे हिंदू कट्टरवाद हावी हो रहा है।
लोकमान्य तिलक जी ने सपने मे नही सोचा होगा कि आज़ादी के मतवालों को इकट्ठा करने के उद्देश्य से शुरू किये गये सार्वजनिक गणेशोत्सवो मे गणेश जी की ये दुर्गति होगी।कंही गणेश जी गज़नी बने है तो कंही गिटार बज़ा रहे हैं।इससे पहले उन्हे क्रिकेटर बना कर बल्ला तक़ पकडा दिया गया था।कंही उन्हे साईं बाबा के रूप मे दिखाया जा रहा है तो कंही कुछ बना दिया गया है।कहने का मतलब ये है गणेश जी गणेश न होकर मज़ाक बन गये हैं।इतना सब होने के बाद भी,वो भी खुले आम,सार्वजनिक तौर पर,मगर शांति बनी हुई है।यदी किसी अन्य धर्म का कोई शब्द भी आपत्तिजनक लगता है तो उस पर बवाल मच जाता है।फ़िल्मो के प्रदर्शन तक़ रुकवा दिये जाते है।गाने के बोल तक़ बदले गये हैं।मेरा उद्देश्य उन लोगो को धर्मांध बताना नही है बल्कि ये बताना है कि हिंदू धर्म के लोग कितने सहिष्णु है और इस्लिये उन पर सांप्रदायिकता का या कट्टरवाद का इल्ज़ाम कतई नही लगाया जाना चाहिये।
न केवल गणेशोत्सव मे बल्कि टी वी पर नन्हे-नन्हे कलाकार जिस तरीके से द्रौपदी के चीरहरण के द्रष्य का माखौल उडाते है या जिस तरीके से बजरंगबली के चुटकुले बनाये जाते है वे कंही से धर्म का सम्मान नही करते।मगर ऐसा हो रहा है और शायद चलता रहेगा।इसके बावज़ूद कुछ लोगो का हिंदुओं पर कट्टरवादी होने के आरोप लगाने का सिलसिला एक राजनैतिक षड़यंत्र के अलावा कुछ और नज़र नही आता।
हो सकता है कि भगवान श्री गणेश जी को गज़नी बना कर उनका मज़ाक उडाने वाले लोगो ने उद्देश्यपूर्ण ढंग से ऐसा नही किया हो मगर ऐसा हुआ तो है।इसके बावज़ूद किसी ने उसका व इरोध नही किया और धीरे-धीरे इस बात का प्रसार शहर भर मे होता देख उन्होने गणेश जी की प्रतिमा को पितांबर पहना दिया।क्या सार्वजनिक गणेशोत्सवो मे प्रतिमाओ मे इस तरह की छेडछाड जायज है?क्या ये सिलसिला जारी रहना चाहिये?क्या इस तरह के अपमानजनक कार्य का विरोध करना कट्टरवाद कहलायेगा?क्या इसका विरोध करना सांप्रदायिकता की श्रेणी मे आयेगा ?अगर आता है तो आये।जिसे जो कहना है कहे।इसका विरोध होना ही चाहिये।किसी भी धर्म का मज़ाक उड़ाने की इज़ाजत किसी को नही दी जानी चाहिये।धर्म सभी समान है और उनका सम्मान ही होना चाहिये।
31 comments:
हर साल गणेशजी की प्रतिमाओं से खिलवाड किया जाता है। भक्ति कम अपने को उजागर करने की प्रवृत्ति ज्यादा रहती है।
और किसी से अपेक्षा ना कर उसी ईलाके के लोगों को इस तरह की हरकतों पर रोक लगाने के लिये आगे आना चाहिये।
शर्मनाक, कहते है कि हिन्दु धर्म सब ग्राह क लेता है।
आपसे सवाल पूछा जायेगा, कि क्या आप राज ठाकरे के समर्थक हैं? नहीं, तो फ़िर "सेकुलर" बनिये, हिन्दुओं को गरियाईये, और जो हिन्दू हित की बात करे उस पर मिल-जुलकर हमले कीजिये… जय हो…
हां भाई, हम सेक्युलर [नपुंसक] जो है!
ये कैसा खिलवाड़ है?
पहले तो होलिका जी को ही जिन्स वगैरह पहनाई जा रही थी और अब यह!! हद है!!
हम हर युग मै इसी लिये पिटते रहे है,हमारे देवी देवता युही मजाक बनते रहेगे क्या ???
ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद. ये न तो भक्ति है और न ही धार्मिकता. यह तो बस एक ओछा दिखावा है. और इसके लिए पैसा भी लठैतों ने ज़बरदस्ती पर्चियां काटकर ही इकट्ठा किया होगा.
लोगों की धार्मिक आस्थाओं के साथ इस तरह खिलवाड़ करनेवाले वस्तुत: असामाजिक तत्व होते हैं और उनके साथ उसी तरह का व्यवहार होना चाहिए। सबसे बड़ी जरूरत है कि हमें खुद अपनी जिम्मेवारियों का अहसास होना चाहिए। लेकिन यहां भी दिक्कत यह है कि यदि हम अपनी जिम्मेवारी निभाएंगे तो वे हमें धर्म और समाज के स्वयंभू ठेकेदार घोषित कर देंगे।
खबरों का देसी अंदाज : देसी एडीटर
मन बहुत आहत है, हमने भी पिछले दिनों इसी बात की चिंता आपने एक पोस्ट में जाहिर की थी. बिना लाग लपेट के यदि मुझसे पूछा जाए तो मैं एक झटके में उत्तर दूंगा कि 'मारो सालों को, जो ऐसा कर रहे हैं.' भले ही आप मेरी आस्था को कुछ भी परिभाषित कर लें.
कहने वाले क्या कहते हैं और वे क्या स्थापित करना चाह्ते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है. क्योंकि हर आदमी अपने-अपने चश्मे से देखता है और कुछ लोगों के चश्मे की मजबूरी यह है कि उस पर कोई राजनैतिक ब्रैंड लगा हुआ है. ऐसे बैंडेड चश्मों से हमेशा उलटा ही दिखता है. लेकिन सच यह कि यही उदारता हिन्दू धर्म की जीवंतता का रहस्य भी है.
हम हिन्दुस्तानियों के साथ हमारे भगवान भी तो पश्चिम का अंधानुकरण करना तो नहीं सीख लिया .. कहीं सपने में ही गणेशजी ने किसी भक्त को गजनी का ड्रेस पहनाने को कहा हो .. यदि नहीं तो ऐसा करनेवालों के हिम्मत की दाद देनी होगी !!
महान है हिन्दू धर्म !
हिन्दू धर्म ये किस चिडिया का नाम है . जहाँ न कोई संवाद है न कोई फसाद है न कोई जेहाद है वो धर्म कैसे हुआ . मुझे तो आजतक समझ नहीं आया कि क्या बीजेपी हिन्दुओं की पार्टी है और हिन्दू बहुसंख्यक हैं तो फिर ये पार्टी क्यों नहीं जीतती . गणित का कोई बहुत बड़ा खेल है ?
वैसे मैंने सुना है महाराष्ट्र में मसखरा गणेश बैठाने की परंपरा है न जाने कितना सच है
सही कहा पर क्या करें हम हिंदू हैं हम कुछ नहीं करेंगे। पर यदि ये ही मूर्ती किसी चित्रकार या यूं कहूं कि फिदा साहब ने बनाई होती तो उनके ऊपर बजरंग दल वालों ने फतवा निकाल दिया होता। पर आपसे इस बात पर पूरा सहमत कि किसी भी धर्म का मजाक नहीं उडा़ना चाहिए और साथ ही ये हमारा धर्म है जिसमें इतनी आजादी है वर्ना....दुनिया जानती है दूसरे धर्मों के बारे में।
अब कहाँ हैं हिन्दू धरम के रक्षक?कथित कट्टरवादी??मुझे चित्र देख कर ही गुस्सा आ रहा है तो कैसे वहां के लोग इसे सहन कर रहे हैं?
इस तरह धरम का मज़ाक बनाना बेहद शर्मनाक हैं.
समझ नहीं आता ki इन तत्वों को जो भी फूहड़ प्रयोग करने होते हैं वे हिन्दू धरम के साथ ही होते हैं.हाल ही की फिल्में 'कमबख्त इश्क' आदि इस बात की गवाह हैं और तो और कॉमेडी शो में भी इस तरह के प्रयोगों की छूट मिल जाती है..न कोई सेंसर रोकता है न कोई कट्टरवादी.
कुछ समय पहले भगवान कृष्ण को भी जींस शर्ट में दिखाया गया था--याद होगा?अपने ही धरम के लोग अपना मज़ाक बनवाए तो किसी दूसरे को क्या कहीये.
इस्लामिक मुल्क में इतने साल रह कर मुझे यह कहने में कोई आपत्ति नहीं की जिस तरह ईसाई और मुस्लिम अपने धरम के प्रति समर्पित हैं उसका अगर आधा [dedicate apne dharam ke prati ]भी अगर हम हो जाएँ तो ऐसे दृश्य न देखने पड़ें.
ऐसा प्रतीत होता है कि अब सार्वजनिक रूप से लोग भगवान गणेश की स्थापना मात्र मनोरंजन के लिए करते हैं, उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति या धार्मिक, सामाजिक और साथ ही राष्ट्रीय भावना से प्रेरित हो कर नहीं।
अनिल भाई...बहुत सटीक मुद्दा उठाया है आपने..और ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ़ गनेश जी की पूजा में हुआ है, या होता है..ये आजकल हरेक पूजा में ही हो रहा है...अफ़सोस होता है ये सब देख कर ..
सटीक मुद्दा
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : ये चिठ्ठी शानदार तो नहीं है पर सबको साथ लेकर चलने वाली है .
ये तो होने ही था क्योकि अधिकतर मूर्ति निर्माता ......मुस्लिम ही है ...........जिनका विश्वास ही नहीं है मूर्ति पूजा में ........
गलती हमारी ही है, अपनी मुर्तिया लेने से पहले पूछ लीजियेगा की उसको बनाया किसने है (हलाकि इससे आप सेकुलर नहीं दिखेंगे) ? जिसके मूर्ति निर्माण में भाव / श्रद्धा ही नहीं है उससे मूर्ति लेने का फायदा ??
आजकल प्रतिमाएँ बैठना , भकित और श्रद्धा नहीं रह गयी है यह तो सब मस्ती और प्रदर्शन का माध्यम बन गया है . और अपने ही पूज्य देवता को फूहड़ता के साथ प्रदर्शन कर अपमानित करने का कार्य स्वयं हिन्दुओं द्वारा किया जाता है दूसरों की क्या कहें .
"आस्था और श्रद्धा" ... लगता है "के" माइने और तरीके बदल गए है .
कित्ते सेकुलरहे आये और चले गये! हिन्दू धर्म जिन्दा रहा!
सांकृत्यायन जी की बात से आंशिक सहमति रखते हुये कहना चाहता हूं कि यही सहनशीलता हिन्दुओं के पतन और पुन: गुलामी का कारण बनेगी. हिन्दुओं को इसी चरित्र के चलते इस्लामी शासन स्वीकार करना पड़ेगा. दूसरा यह कि अगर स्वतन्त्रता संग्राम के समय हिन्दू इतना पढ़े-लिखे और धर्मनिरपेक्ष होते तो न तो मुगलों से आजादी मिलती और न ही अंग्रेजों से. यह बात अलग है कि शूद्रों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया और अभी भी कई जगह किया जा रहा है जिसकी भी पूरी जिम्मेवारी शासन की है, लेकिन फिर भी मैं यही कहूंगा कि यह हिन्दू धर्म के मानने वाले अनपढों तथा तथाकथित साम्प्रदायिक हिन्दुओं के बलिदानों का ही फल है कि स्वतन्त्रता मिल सकी. विश्वास न हो तो पिछले सात-आठ सौ सालों का इतिहास उठाकर देख लीजिये.
शेम... शेम.....
ये लोग कौन हैं ? ...और इन्हें ये सब करने का अधिकार कौन देता है ?
कहीं ऐसा तो नहीं की ये लोग बाबा तुलसीदास के,
भगवान को भक्त की भावना के अनुरूप देखने , वाले तर्क का दुरूपयोग कर रहे हों ?
मेरा व्यक्तिगत मत है की भगवान की छवियाँ गढ़ते समय शास्त्रोक्त , संकेतों और प्रतीकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए ! ...विषय चिंतनपरक है किन्तु ये बात समझ नहीं पाया की इसमें धर्म निरपेक्षता वाली टिप्पणिया क्यों की गई हैं !
अनिल भाई मुझे याद आ रहा है महाराष्ट्र मे गणेशोत्सव के बाद एक "मस्कर्या गणपति " रखा जाता था । मस्करया मतलब मसखरी से है । इसमे गणेश जी को इसी तरह वेषभूषा पहनाई जाती थी नेता इत्यादि की लेकिन उसका उद्देशय व्यवस्था का मजाक उड़ाना होता था । पता नही अब यह प्रथा चल रही है या बन्द हो गई ।
MAIN SAHMAT HUN ALPANA JI KI BAAT SE ........ JITNI AASTHA MUSLIM AUR KRISHCHAN MEIN HAI APNE DHARM KO LE KAR AGAR US SE AADHI BHI HINDUON MEIN HOTI TO BHAARAT KA NAKSHAA KUCH OR HI HOTAA .........
AISE SHARMNAK KISSE HOTE RAHENGE JAB TK HUM APNE AAPKO, APNI BHAVNA KO KHUD NAHI BADLENGE ....
इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा...अनिलजी मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए दिल से शुक्रिया
बहुत देर से आया पर टिप्पणी दिए बिना जाने का मन नहीं किया |
कहना तो बहुत कुछ छठा हूँ पर .... आँखें नम हो गई है इस चित्र को देख कर | हिन्दुओं का अपमान हिन्दू ही कर रहा है ...
We need Global Vedic Authority Organization to control such nonsenses. The anti-vedics are well organized and funded to kill our dharma (all mankind's dharma) and the Vedic culture right in the Vedic desh.
Post a Comment