एक ज़िम्मेदार पत्रकार होने के नाते मुझे मालूम है क्या लिखना चाहिये और क्या लिखने से बचना चाहिये।जिस अयोध्या को लेकर उन्होने टिपण्णी की है उस समय मै दैनिक भास्कर मे महत्वपू्र्ण स्थान पर था और उस समय हम लोगो ने ऐसा कुछ भी नही लिखा जिससे रायपुर कानपुर बन जाता। हमे ये कहने मे गर्व होता है कि उस समय फ़िज़ा मे ज़हर को घुलने से पहले ही रोकने की तमाम कोशिशो मे हम लोग शामिल थे,और उअ समय भी छत्तीसगढ अमन और चैन का टापू बना रहा।
सलीम भाई मै आपको बता दूं की मेरा बचपन से लेकर जवानी तक़ का समय रायपुर के मौदहापारा नामक मुहल्ले मे बीता है,जो आपके यूपी के बांदा ज़िले के मौदहा इलाके के नाम पर है।यंहा सारे लोग मौधईया कहलाते हैं और वंहा रहने के कारण मुझे भी मौधईया कहा जाता था।मैने कभी इस बात पर ऐतराज़ नही किया ।मेरा बचपन का मित्र सत्तार खान आज भी वंहा रहता है उसे मै राजेन्द्र कह कर बुलाता था,बुलाता हूं और रहूंगा।उसे कोई ऐतराज़ नही है उसके घर वालो को कोई ऐतराज़ नही है,पूरे मुहल्ले वालो को कोई ऐतराज़ नही है।वो मेरे परिवार का सदस्य है और मै उसके परिवार का।
ये सब बताने की ज़रूरत नही है और मुझे धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफ़िकेट किसी की मुहर लगा हुआ चाहिये भी नही।सारा ईलाका मुझे जानता है कि मै कैसा इंसान हूं।रहा सवाल गणेश जी की मूर्तियों के उपहास का तो इस पर टोकना ज़रूरी हो गया था।सलीम भाईजान ने फ़िर कुछ फ़िल्मो के उदाहरण देकर टिपण्णी की है कि अमिताभ ने ये किया,फ़लाने ने वो किया,इस फ़िल्म मे वो हुआ,उस फ़िल्म मे वो हुआ?तो मेरा सलीम भाई से ये सवाल है कि जो कूछ् गलत हुआ तो उस गलती को जारी रखने की इज़ाज़त दिया जाना सही है या उस गलती को सुधारने की कोशिश करना?दुसरा सवाल ये है कि क्या एक फ़िल्म के गाने के बोल को लेकर मुसलमानो ने उस गीत को इस्लाम के खिलाफ़ करार देकर बोल बदलवाये थे,तो क्या वो सही था?अगर वो सही था तो मै क्यों गलत हूं?
अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्या वज़ह थी कि मैने ऐसे विषय प लिखना ज़रूरी समझा जो किसी विवाद को जन्म दे सकती है?मुझे इस ब्लाग की दुनिया मे आये ज्यादा नही डेढ साल तो हो ही गये हैं।मैने इस दौरान कभी विवाद मे पडने की बजाय,चुपचाप अपनी बात सामने रखना ज़रूरी समझा और अभी तक़ वही करता आ रहा हूं।गंणेश जी को ग़ज़नी के आमिर खान का रुप देना उतना महत्व्पूर्ण सवाल नही था जितना उसकी आड़ मे आग लगाने वालो के मंसूबों को रोकने का था।
छत्तीसग़ढ मूल रूप से शांति का टापू कहलाता है और यंहा की शांति भंग करने की कई बार कोशिश हूई है।हर बार असफ़ल रहने के बावज़ूद विघ्नसंतोषी लोग फ़िर सक्रिय हैं और इस बार भी काफ़ी समय से यंहा की साम्प्रदायिक सद्भाव की हवा को ज़हरीली करने की साजिश रची जा रही है।कुछ समय पहले एक थियेटर के पास तालाब के किनारे बेंच के नीचे सुतली बम फ़ोडकर हवा खराब करने की कोशिश हुई थी।अभी इसी सप्ताह भाजपा कार्यालय के पास खड़ी एक बस मे सुतली बम फ़ोड़कर फ़िर कोशिश की गई।उसके बाद गणेश जी निशाने पर थे और उनकी आड लेकर फ़साद फ़ैलाने की कोशिश हुई।और अब टाटीबंध ईलाके के काशी विश्वनाथ मंदिर मे एक बछ्ड़े का सिर और टांग काट कर फ़ेका गया।ये भी उसी साजिश का हिस्सा है सलीम भाई।
अगर मेरे शहर मे आग लगेगी तो जलूंगा मै और मेरे भाई लोग्।सबकी चिता की राख पर रोने वाले रूदाली लोग उसकी आंच पर अपनी राजनैतिक रोटी सेकेंगे।उस समय किसी को बचाने के लिये कथित धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार और कथित मानवाधिकारवादी नही होंगे।बाद मे हम अपने हाथ देखेंगे तो उस पर लगे खून के निशान हम तमाम उम्र जीने नही देंगे।तब मुझे सत्तार उर्फ़ रज़्ज़ू जो हमारे लिये राजेन्द्र है माफ़ नही करेगा?उसकी बहन मेरी कलाई पर राखी बांधने से पहले मेरा हाथ काट लेने को सोचेगी।मै ये सब कहानी किस्से नही गढ रहा हूं।कभी भी आना रायपुर की मौधापारा मस्ज़िद के ठीक सामने रहता है आप लोगो का सत्तार।उसके घर जाकर आवाज़ लगाना राजेन्द्र ,राजेन्द्र। अगर अम्मा घर पर हुई तो अन्दर से ही कहेगी नही है बेटा राजेन्द्र घर पर्।सभी पाठको से क्षमा चाह्ते हुये कि इस घटिया मामले पर मैने पोस्ट क्यो लिख दी।दरअसल लिखना ज़रूरी था।सलीम भाई,उस मंदिर की तस्वीरे भी मेरे पास है लेकिन मै पोस्ट पर नही लगा रहा हूं,आपको विश्वास न आये तो कमेण्ट कर देना मै आपको मेल कर दूंगा।फ़िर से एक बार मुझको यारो माफ़ करना,मै गुस्से मे हूं।
52 comments:
कुछ नहीं होता कि यार गुस्से में हो। पर ठंडे दिमाग से भई सही किया जो आपने। आज मैंने भी जब ऑफिस में ये बात छेड़ी तो लोगों को लगा कि गलत था। आपने जो किया वो सब सही है और इसमें गलत नहीं था और दुनिया कहे भी तो मैं नहीं मानता।
वहीं दूसरी बात किसी भी गलत चीज जो एक बार चल चुकी उसको जारी रखने की इजाजत नहीं है।
अनिल भाई, सच बोलने के लिए किसी के सर्टिफिकेट की ज़रुरत नहीं है वैसे भी ऐसी खबरें हैं कि आजकल आई एस आई का एक पूरा ग्रुप छद्म नामों से हिन्दी ब्लोगिंग में लगा हुआ है अधिकाँश अपने को पत्रकार बताते हैं और उनमें से कई महिला बनकर भी पेश आ रहे हैं. आप सच लिखते रहिये, भारतीय पाठक बहुत समझदार हैं और उन्हें सब समझ में आता है, जन्मभूमि भी, अयोध्या भी, बाबर भी, मंदिर में फेंका गया मांस भी और अमरीकी भीख से खरीदे गए हार्पूनों में किये गए बदलाव भी.
अनिल जी ऐसे लोगो को क्या जबाब देना ?
ye post zaroori bhi thi aur saarthak bhi hai........
abhinandan !
मैं आपसे सहमत हूँ साम्प्रदायिकता भावना भडका कर फैलाई जाती है।
अनिल जी आप भी ना... कीचड़ में पत्थर मारेंगे तो अपने ऊपर ही आयेगा। छोडिये न नासमझ है पर है तो हिन्दोस्तानी बस अमन अच्छा नहीं लगता है उसे तो उसकी बातों को संग्यान में मत लीजिये।
कुतर तो भोंकत है पर हाथी पर असर नहीं पड़त है, कुतर काहे न समझ है कि हाथी का पैर गल्ती से भी पर गया तो वह कहीं का न रहेगा, बस हाथी संयम से काम ले रहा है।
अनिल भाई हिन्दू को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता या पड़ना चाहिए की बछडे का सर मंदिर में फेक दिया गया है ! अंगार सुअ़र का मस्जिद में घुस जाना ही बवाल का कारण बन जाता है -कारण ? धार्मिक जाहिलता है बस !
इसे लेकर अपना खून मत जलाईये -गजनी गणेश तो मुझे बहुत जमे थे -आप उस पर भी बेवजह गुस्सा हुए थे ! कलाकार की अभिवयक्ति को ही हम आखिर क्योकर रोकें -उस बिचारे का कोई प्रवक्ता भी नहीं है !
कृपाकर मुद्दे को इस पहलू से सोचें ! आप इस्लामी कट्टरता का लोहा नहीं ले सकते ! लेना भी नहीं चाहिए !
अपने ध्येय में सफल रहे सलीम मियां! :)
आपका भी जवाब नहीं.. जिनको कोई सीरयसली नहीं लेता.. आपने तो उनको भी सीरयसली ले लिया..
अनिल भाई आप किस सलीब भाई को जवाब दे रहे है ? जवाब देने से पहले उनके साईट (ब्लॉग) पे जा कर देखा की वो क्या लिखते हैं? भाई साहब हमने भी कई जवाब दिए (सुरेश चिपलूनकर की साईट पे जाकर देख लें | अभी तक कोई असर नहीं हुआ और होगा भी कैसे सलीब भाई ने गधे की खल जो चढा रखी है |
भाई सलीब भाई के बारे मैं बस दो पंगती मैं बोलूंगा :
१. भैंस के आगे बीन बजाये भैंस रहे पगुराय
२. उनको एक ही चीज दिखता है - सबको इस्लाम काबुल करवाना | अंध धर्म परिवर्तन के अलावा इनको कुछ भी नहीं दिखता |
सलीम भाई जैसे लोगों की बात को दिल पे ना लें , सलीम कुत्ते की दम है |
आप अपने मौधइया साथी सत्तार खान को राजेन्द्र कह कर बुलाते हैं किसी को ऐतराज नहीं, होना भी नहीं चाहिए। आप को लोग मौधइया बुलाते हैं, यह शब्द यह बताता है कि आप का मूल कहाँ है।
बछड़े का सर काट कर मंदिर में फेंक कर अपवित्रता फैलाना और सुअर से मस्जिद को गंदा कर देने का किसी धार्मिकता से कोई लेना देना नहीं है। धार्मिक व्यक्ति कभी समाज में वैमनस्य नहीं फैलाने के करतब नहीं करता। असल में इस तरह के लोगों का धर्म, खुदा, ईश्वर और समाज से कोई लेना देना नहीं होता। वे नकाब के पीछे भेड़िए होते हैं,इंन्सान नहीं। हम भेड़िया पहचानने के स्थान पर सारी नकाबों पर टूट पड़ते हैं। भेड़िया तब तक भाग छूटा होता है। उसे अपना मकसद मिल जाता है। प्रतिवाद को झेलता है इंसान, आम इंसान। असल में सभी धर्मावलम्बियों को अपने बीच छुपे इन भेड़ियों की नकाबें उतार कर उन का असली स्थान दिखाना चाहिए। पर लोगों के राजनीतिक, आर्थिक स्वार्थ इस में बाधा बनते हैं।
हम सांप्रदायिकता की समस्या को धर्म से जोड़ देते हैं। यह गलत है। जो सांप्रदायिक हैं वे तो धार्मिक हो ही नहीं सकते। वे विधर्मी हैं। हम भारत में इस समस्या को इसी तरह हल कर सकते हैं। गणपति स्वरूप को विकृत करना केवल हिन्दू समस्या नहीं है, यह एक सामाजिक समस्या और विकृति है। इस से केवल हिन्दुओं को ही चोट पहुँचे, ऐसा नहीं प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति को चोट पहुँचेगी। आप चाहें तो आजमा कर देख लें। हम तमाम सामाजिक लोग, पत्रकार, लेखक और अन्य सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता इस दृष्टिकोण से काम करें तो समाज को क्षतियों से बचा सकते हैं।
अनिल भाई , आपके पास टिप्पणी माडरेशन और डिलीट करने की जो सुविधा है ना ...उसे इस्तेमाल करिये !
आपसी भाईचारा और सहिष्णुता ही साम्प्रदायिकता का सही जबाब है..
अनिल जी उस मंदिर की तस्वीरें हमारा फोटोग्राफर भी खींच कर लाया था। पर यह छत्तीसगढ़ के मीडिया की महानता है कि वह जानता है क्या छापना है और क्या नहीं। अगर ऐसी तस्वीरें छप जातीं तो यह बात तय है कि छत्तीसगढ़ में भी दंगों की आग भड़क सकती है। यही वजह रही है कि हर विकट परिस्थितियों में भी कम से कम छत्तीसगढ़ के मीडिया ने अपना आपा नहीं खोया है और न कभी ऐसा कुछ लिखा है और न छापा है जिससे वातावरण में साम्प्रदायिकता का जहर फैले। आपको छत्तीसगढ़ की नहीं पूरे देश का मीडिया और ब्लाग जगत जानता है। आप जो लिखते है काफी सोच समझ कर लिखते हैं। वास्तव में छत्तीसगढ़ में गणेशजी की प्रतिमाओं के साथ खिलवाड़ हुआ है। सारे अखबार इसके खिलाफ लिख रहे हैं। आस्था के साथ ऐसे खिलवाड़ की खिलाफत हर किसी को करनी चाहिए, फिर चाहे वह हिन्दु हो या फिर मुस्लमान। क्या मुस्लमान गणपति में शामिल नहीं होते हंै। होते हैं। हमने तो शामिल होते देखा है।
अनिल जी, एक विशिष्ट लेख के लिए बधाई ! आपने बहुत सही कहा की हम क्या है, हम जानते है ! इसलिए किसी के द्वारा हमें साम्प्रदायिक अथवा तथाकथित धर्म निरपेक्षता का सर्टिफिकेट नहीं चाहिये! अगर शायद आपने पढी हो तो मैंने भी एक लेख लिखकर इस सलीम भाई ( शायद अब इनके लिए हम लोगो को इस "भाई" शब्द का इस्तेमाल भी दूसरे अर्थो में करना पड़े ) को समझाने की कोशिश की थी मगर लगता है कि इसका और इसके कुछ विरादारो का यहाँ पर सिर्फ एक ही एजेंडा है, "नफरत पैदा करो" ! मैंने इनको समझाया था कि पत्थर फेंकना हम भी जानते है, नहीं फ़ेंक रहे है तो उसे हमारी कमजोरी ना समझा जाए, लेकिन लगता है सीधी उंगली से घी नहीं निकलेगा !
let us all with a true heart pray for His mercy for only He can save this country .This country survives only because God wishes so . There is no other logic or reason or excuse .
बिल्कुल सच्ची बात..हम सब को मिल कर इस सांप्रदायिकता के जहर को समाज से हटाना होगा इसमे कोई एक व्यक्ति या कोई एक वर्ग समुदाय कुछ नही कर सकता है..
anilji, aapne jo likha hai sahi likha hai.aapki ab tak jitni bhi post maine padhi hain, paya hai ki aap ek jimmedar lekhak aur patrakar hain.aap agar hindu samaj ke bare men poora such bhi likhenge aur usmen yah dikhega ki vah is samuday ke paksh men hai to log aapko galiyan dene wale bahut mil jayenge kyonki yah fashion ho gaya hai.aap dunia ki chinta chhodiye, likhiye, achha likhte hain. sambhav ho to apna phone aur add mujhe sms karen- shreekant parashar 09945488004
रायपुर के जितने पुराने रहने वाले हैं उनमे कोई धर्मान्धता नहीं है . सही कहा यहाँ कई ऐसे मित्र हैं जो बिना किसी जाति या धर्म के बंधन के रोज बेलाग मिलते हैं . पुराने कई संस्थानों में बिजनेस पार्टनरशिप भी है . जोर जोर से गर्जना करते हुए धार्मिक नारे लगाने वालों ने एक नया धंदा खोल लिया है उनको भी धर्म से कोई मतलब नई केवल चंद रुपयों के लिए अपना इमान बेच दिया है .
ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की टिप्पणी को दोबारा पढा जाये
प्रणाम
अनैतिक तत्वों का मकसद ही होता है अनैतिकता फैलाना...ये समाज और जनता की बुद्धि पर निर्भर करता है की वो क्या सोचते हैं और क्या करते हैं
गैर जिम्मेदार और दुषित दिमाग वालों की बातों का जिम्मेदार लोग जवाब नहीं दिया करते ...
ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की टिप्पणी को दोबारा पढा जाये
प्रणाम
Saleem naam ka mansik rogi in dino blog jagat pat active hai, wo muslim vicharon ka pratinidhitav nahi karta. Wo jaan boojhkar bhadkaau lekh likh raha hai aur apne maksad me kaamyaab ho raha hai
भाऊ, मेरी सलाह को आपने इतने सटीक ढंग से "पानी में भिगोकर" मारा है कि शायद अगला ठीक से उठ नहीं पायेगा अब। जो लोग तथ्यों और तर्कों से नहीं मानते उन्हें आप जैसे लोग ही ठीक कर सकते हैं… मजे की बात तो यह कि हिन्दू सिर्फ़ दो ही बार ठीक से जागा, उसी में हाहाकार मच गया? यदि सदैव जागरूक बन जाये तो क्या होगा? अनिल भाऊ धन्य हो आप… शानदार पोस्ट…
@ अली - टिप्पणी मोडरेशन करना कतई आवश्यक नहीं है, बल्कि टिप्पणीकार के असली चेहरे को सामने लाना आवश्यक है…
अनिल जी,
आपके पोस्ट का किसी भी प्रकार से कोई सम्बन्ध अयोध्या और गुजरात से नहीं था, न प्रत्यक्ष रूप से और न ही परोक्ष रूप से। पर विघ्नसंतोषियों को तो केवल बहाना चाहिए।
मेरा भी जन्म रायपुर में हुआ है और, नौकरी के कुछ सालों को छोड़कर, जीवनपर्यन्त मैं रायपुर में ही रहा हूँ। रायपुर और छत्तीसगढ़ की यह विशेषता है कि यहाँ पर लोगों के आपसी प्रेम के बीच कभी भी धर्म या सम्प्रदाय दीवार नहीं बन पाता। एक दूसरे के सुख-दुख में भागीदार बनना यहाँ की परम्परा रही है और रहेगी। मैं अपने मुस्लिम मित्रों के यहाँ प्रतिवर्ष ईद, बकरीद में जाता हूँ और वे सेवइयाँ पेश करके मेरा सम्मान करते हैं। इसी प्रकार होली दीवाली में वे भी मुझे कभी नहीं भूलते। इस सौहार्द्र के पीछे आपसी प्रेम तो है ही साथ ही साथ आप जैसे जिम्मेदार पत्रकारों का योगदान भी है।
आपने जो कुछ भी लिखा है वह बिल्कुल सही लिखा है और उसे लिखना जरूरी भी था।
अनिल जी,
आपके पोस्ट का किसी भी प्रकार से कोई सम्बन्ध अयोध्या और गुजरात से नहीं था, न प्रत्यक्ष रूप से और न ही परोक्ष रूप से। पर विघ्नसंतोषियों को तो केवल बहाना चाहिए।
मेरा भी जन्म रायपुर में हुआ है और, नौकरी के कुछ सालों को छोड़कर, जीवनपर्यन्त मैं रायपुर में ही रहा हूँ। रायपुर और छत्तीसगढ़ की यह विशेषता है कि यहाँ पर लोगों के आपसी प्रेम के बीच कभी भी धर्म या सम्प्रदाय दीवार नहीं बन पाता। एक दूसरे के सुख-दुख में भागीदार बनना यहाँ की परम्परा रही है और रहेगी। मैं अपने मुस्लिम मित्रों के यहाँ प्रतिवर्ष ईद, बकरीद में जाता हूँ और वे सेवइयाँ पेश करके मेरा सम्मान करते हैं। इसी प्रकार होली दीवाली में वे भी मुझे कभी नहीं भूलते। इस सौहार्द्र के पीछे आपसी प्रेम तो है ही साथ ही साथ आप जैसे जिम्मेदार पत्रकारों का योगदान भी है।
आपने जो कुछ भी लिखा है वह बिल्कुल सही लिखा है और उसे लिखना जरूरी भी था।
चाचा ने चुटकुला सुनाया भतीजे, भांजे वाह-वाह किये जा रहे हैं, खान को तो आने दो, हम इस पूरे महीने भूख से परिचित होते हैं, इसलिये देर सवेर हो जाती है, मैं भेजता हूँ उसको, उससे सवाल है वही जवाब देगा, अपन से होता तो अब तक ब्लागवाणी ने टाप से गायब भी कर दिया होता, तब तक निम्नलिखित ब्लागों पर विचार करो,
signature:
मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध् मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? या यह big Game against Islam है?
antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog)
छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें
islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
SALIM JAISE LOGON KO AISA LIKHTE HUVE SHARM AANI CHAAHIYE ...... BEHTAR HO YADI VE MUSLIM SAMAAJ KE UTTHAAN KE BARE MEIN SOCHEN N KI AISE PACHDON MEIN PADHE.......
बिलकुल खामोश रहना चाहिए... क्यूंकि ये सब काम वास्तव करने के लिए हमारा या आपका धर्म बिलुकुल भी इजाज़त नहीं देता.. ये सब काम उन हरामी नेताओं की करतूत होती है जिनके जाल में आप और हम जैसा हर आम हिन्दू या मुसलमान आ जाता है. फ़िर सवाल पैदा होता है कि ये तो बुजदिली हुई... तो मैं कहता हूँ कि कानून को अपना काम अच्छे से और इमानदारी से करना चाहिए... जैसा कि गज़नी गणेश में किया...और हम आपको अपने अपने मुख्य धर्म ग्रन्थों (वेद-कुर'आन) के बाते रास्ते पर चल इन सब बातों को पीछे छोड़ देना चाहिए...
खैर, अब जवाब भी सुन लीजिये;
मेरी बातों को तोड़-मरोड़ कर आपने पेश किया है...
जिसे 'आउट ऑफ़ कांटेक्स्ट' बोलते हैं...
मैंने जो बातें कहीं वो थीं
------
मैंने "The return of hanuman" देखी है उसमें एक बिल्ली हनुमान जी पर फ्लर्ट कर रही थी और हनुमान जी कह रहे थे "अपनी साइज़ देखी है" {भगवान् (हिन्दुओं के ही सही)} को किस तरह से पेश किया जाता है मीडिया में वहां कोई बवाल नहीं होता... कोई हिन्दू नहीं जागता....
एक और फिल्म देखी थी (फिल्म का नाम भूल गया) उसमें अनारी फिल्म का हीरो था और कादर खान था, कादर खान यमराज बनता है और असरानी चित्रगुप्त) इसमें भी यमराज की किताब को गलती से ज़मीन पर गिरते दिखाया गया था.....बाकी बताने की ज़रूरत नहीं...
मीडिया और फिल्म वाले लगातार भगवानों को ज़लील करते हैं....
खासकर अमिताभ बच्चन की हर फिल्म में भगवान् से दो दो हाथ करते दिखाया जाता है जैसे "खुश तो बहुत होगे तुम..."
और अदालत फिल्म में भी अमित भैया ने भगवान् शंकर की तस्वीर को उठा कर पठ्खने की गुस्ताखी की है... तब हिन्दू नहीं जागा... ऐसे कई उदहारण हैं...
हाँ हिन्दू जागा वहां जहाँ मुसलमान सामने होता है, चाहे वो विभाजन की बात हो, अयोध्या की बात हो, गुजरात की बात हो......यह नादानी है...
हिन्दू और मुसलमान को समझना चाहिए कि वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.... जिन वेदों को हिन्दू धर्म में प्रतिष्ठा प्राप्त है अगर हिन्दू वेदों की शिक्षाओं को आत्मसात कर ले तो कहीं भी कोई प्रॉब्लम नहि आएगी....
क्यूंकि वेदों में कहीं नहीं लिखा है कि मूर्ति पूजा करनी चाहिए... उसमें लिखा है न तस्य प्रतिमा अस्ति...
और एकम् ब्रह्म द्वितियों नास्ति, नेहंये नास्ति, नास्ति किंचन"
यानि भगवान् एक ही है दूसरा नहीं है. नहीं है, नहीं है, ज़रा भी नहीं है"
-----
मैंने अपनी टिपण्णी में समस्या कही और समाधान कहा....
उम्र के लिहाज़ से अनिल बाबू मुझसे ज़्यादा अनुभवी हो सकते है, ज़िन्दगी के कई पहलूवों में उनका अनुभव हो सकता है मायने रखता हो... लेकिन उन्होंने पता नहीं क्यूँ और वर्तमान मीडिया की भेंड-चाल की ही तरह (या पश्चिमीकृत मीडिया की मानसिकता की ही तरह) केवल मुसलमान होने के नाते इसे इश्यु बनाया, और जैसा होता आया है उन्होंने लिखा... और पाठकगण बिना मेरी टिपण्णी पढ़े या उसका निष्कर्ष निकाले अपना अंध-मत फटा-फट पोस्ट कर दिया...
अल्हम्दुलिल्लाह, एक साहब ने टिपण्णी की थी राज भाटिया साहब ने, आप जाकर पिछली पोस्ट में पढ़ सकते हैं, उन्हें मेरी बात समझ आ गयी थी ...
pliz remove the moderartion, you have the power of delete the comments after-all.
kya kar sakte hai ........
भाई ये कुंठित और लुंठित है इनके लिये क्युं खून जलाना? ये ऐसे ही रहेंगे.
रामराम.
http://hamarianjuman.blogspot.com/2009/09/blog-post_01.html
अनुराग जी ने बिल्कुल सही कहा कि यहाँ छदम रूप में पाकिस्तान के आई.एस.आई के एजेन्टों की टोली अपना खेल खेल रही है!!
बातें करेंगे वेद-पुराण,देशप्रेम और हिन्दु-मुस्लिम एकता की,लेकिन समझ एक धेले की भी नहीं। इन लोगों का तो कोई तवज्जो देने ही नहीं चाहिए।
ताऊ का कहना सही है कि इन कुंठित और लुंठित लोगों के कारण अपना खून क्यूं जलाना।
मैं " स्मार्ट इंडियन '' अनुराग भाई के बातों से पूर्ण सहमत हूँ और उसे ही दुहराना चाहती हूँ...
आपने बहुतों के मन की बात कह दी है अपने इस पोस्ट के माध्यम से...लेकिन अफ़सोस यह है कि जो यह सब सुनना समझना नहीं चाहते उनपर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा..
ॐ शांति शांति शांति
अनिल भाई देखिये वो फिर आ गए | एक नया ब्लॉग लेकर, और उस ब्लॉग मैं भी वही जहर उगल रहे हैं | जैसा की मैंने पहले भी बताया सलीम मियां का एक ही उद्देश्य है की लोगों को गलत सलत बता कर किसी तरह इस्लाम की तरफ आकर्षित करो | और हम हिन्दू लोग भी उनके झंशे मैं आकर खूब तिप्पनियाते है !!! हंशी आती हैं हमें अपने हिन्दुओं पर ही |
सलीम भाई इश्वर तो एक ही है | हम तो अल्लाह .... बोलते हैं आप भी जरा जय श्री राम कह दो एक ही बार सही क्यों ? सलीम मियां आप इस बात पे चुप रह जाओगे |
@suresh chiplunkarji.
saleem khan jaise andh-muslim ke liye wakayee yeh khushi ki baat hai ki hindu abhi tak utna kattar ya dharmandh nahi huwa hai, jitna ye kathmulle hote hain. yeh alag baat hai ki hindu vaise ho bhi nahi sakte, kyoki we JAHIL nahi hai.
lekin ab waqt aa gaya hai ki hinduvo ko kattar hona padega. bhale log use jahil ya kuchh aur kahe. ALLAH MIYA ka ek kartoon bana tha denmark me aur yaha hindustan me musalmano ne kaisa bakheda khada kiya, wo sabne dekha. lekin jab hindu devi-davtao ka apmaan kiya jata hai to hindu khamosh rahte hai.
Aye Ganpat, chal daru la....
iss gane me kisi aur dharm ke devta ya bhagwan ka naam hota to kya wo gana market me aa sakta tha?
ek Advertisement par gaur kijiye :
HARI SADU..
H for Hitler...
A for Arrogant...
R for Rascal...
I for Idiot....
ye sab kuchh soch-samajhkar hi kiya jata hai.
--------
Allah ke cartoon par mulle bhadke.
Da Vincci Code par christian bhadke.
Guru Gobindsinghji ke jaisi dress pahan lene par sikh samaj dera baba ram-rahim ka dushman ban gaya.
jab har dharm apne ko kattar dikha raha hai to hinduvo me secular dikhne ki khujli kyo machi huyee hai?
Satik post ....
Satik mantan....
aur uspe satik tippaniya....
bus itna hi kahoonga ki agar hindu kisi hindu ke hiton ki raksha karna chahta hai to log use samprdayikta kehte hai....
...aur alpsankhako ke anuchit ko bhi sahi tehrana sauhadrta kehlata hai....
.saala Pseudo sauhadra.
Desh ke bahusankhaykon (?) ko atmmanthan ki zararoot hai....
आप को यह बतलाने कि जरूरत नहीं है कि यह आदमी जिसका नाम सलीम है, कितना कट्टर और तालिबानी है..,
जब से ये आया है, ब्लॉग पढने वाले दो भाग में बंट गए है...
इसकी बातों का जवाब देना बहुत बड़ी बेवकूफी है..
सही कहा पंडित जी ने
अनिल भाई क्या यह सच नही है कि समाज में अच्छे लोगों की संख्या बुरे लोगो की संख्या से ज़्यादा है ? धर्मनिरपेक्ष लोगों की संख्या कट्टर लोगों की संख्या से ज़्यादा है? मूर्ख लोगो की अपेक्षा समझदार लोगों की संख्या ज़्यादा है? फिर भी बुराई अच्छाई पर हावी क्यों हो जाती है ? यह सच है कि छत्तीसगढ़ मे साम्प्रदायिक सद्भाव है और इस अमन चैन को कायम रखने मे आप जैसे बुद्धीजीवियों ,पत्रकारों, और आम नागरिकों का भरपूर योगदान है लेकिन इसे आगे भी कायम रखना है । मै जब भी दंगों पर लिखी अपनी कविताओं का पाठ करता हूँ तो यह अवश्य कहता हूँ कि यह स्थितियाँ हमारे यहाँ कभी न हों । वैमनस्यता फैलाने वाले किसी धर्म के नहीं होते न वे इंसान होते है न पशु । मौदहापारा से याद आई एक कविता जो आप सभी की नज़्र है..
दंगे के बाद
करीम ढूंढता है करीमगंज में
रामदीन के बिछड़े हुए बच्चों को
रामदीन ढूंढता है रामटोले मे
करीम के बिछड़े हुए बच्चों को
आँखों में वहशत और कत्ल का इरादा लिये
उन्हे ढूंढते हैं वे
जो नहीं रहते करीमगंज में
न ही रामटोले में
--शरद कोकास
इनको इनसे अधिक कठोरता और कट्टरता के साथ जबाव देना चाहिये. शठ के साथ शठता का व्यवहार ही वांछनीय है. जहर की दवाई जहर ही से बनती है.
@ शरद जी कटु सत्य कहा आपने . सम्प्रदाय की बात छोड़ दीजिये तो भी मुट्ठी बहर लोग ही तो इस देश को चला हाँ चला रहे हैं
यह तुम्हें कैसे पता चला की मंदिर में बछडे की मुंडी फैंकने वाले दुसरे धर्म के ही लोग थे? मालेगांव वाले मामले में भी पहले उन्हें ही घेरा गया था और साध्वी के छोले में छुपने वाली की कल्पना ही नहीं थी. हिन्दू आतंकवादियों के डेरे से नकली दाढी मूंछें भी बरामद हुयी थीं पहले असली आदमी को पकडिये और फिर उसे कानून के हवाले कीजिए . क्या पता सलीम नाम का कोई वास्तव में है भी या इसके पीछे भी कोई प्रज्ञा छुपी है
यह तुम्हें कैसे पता चला की मंदिर में बछडे की मुंडी फैंकने वाले दुसरे धर्म के ही लोग थे? मालेगांव वाले मामले में भी पहले उन्हें ही घेरा गया था और साध्वी के छोले में छुपने वाली की कल्पना ही नहीं थी. हिन्दू आतंकवादियों के डेरे से नकली दाढी मूंछें भी बरामद हुयी थीं पहले असली आदमी को पकडिये और फिर उसे कानून के हवाले कीजिए . क्या पता सलीम नाम का कोई वास्तव में है भी या इसके पीछे भी कोई प्रज्ञा छुपी है
अनिल जी लीजिये हमलोग स्वच्छता (सलीम खान ) वाले को ही नहीं झेल पा रहे थे | अब एक उनके सेकुलर भाई वीरेंदर जी भी आ गए | अब हर चीज का उतार तो हमें सेकुलार्स को देना ही पडेगा ... | और हिंदी ब्लॉग मैं एक सेकुलर ठेकेदार सवाल ले की आये हैं |
वीरेंदर जी आप तो पत्रकार हैं पता लगाईये की ये सलीम खान कौन है | आपकी नजर मैं तो शायद RSS का आदमी ही होगा , क्यों? लीजिये अब एक और सलीम खान (वीरेंदर जी ) को भी देख रहे हैं |
वीरेन्द्र जैन साहब आपके हिसाब से हिन्दू वादी संगठन मतलब मुसलमान विरोधी क्यों सही कहा ना ? फिर हिंदूवादी संगठन मस्जिद मैं सूअर मार कर फेक सकता है | phir ... chalo आज सेकुलर से एक naya gyan mila |
आ[ने कहा है सलीम खान के पीछे भी कोई प्रज्ञा छिपी है | आप शायद अब तक तो पता लगा लिया होगा , अब देर किस्बात की ... जाइये मैडम जी के पास मैडम जी पहले तो आपको पुरस्कार जरुर देगी फिर इस नए प्रज्ञा ..(सलीम भाई) को पकड़ कर जेल मैं डालेगी .... क्यों देर किस बात की ???
आज ही इस पोस्ट पर आना हुआ, बहुत अच्छा लगा।
आपकी बातो से पूरी तरह सहमत हूँ, हिन्दुओ को हमेशा कुरेदने का प्रयास किया जाता है किन्तु वे लोग भूल जाते है कि हिन्दुओ को कुरेदने का परिणाम उनके लिये बहुत बुरा होता है।
आपको आपके ब्लाग के साईडबार ब्लागरोल में राष्ट्रवादी स्वर नाम से शामिल कर रहा हूँ।
Post a Comment