जिन्होने ये विज्ञापन नही देखा उन्हे मै बता दूं कि विज्ञापन मे बस स्टाप पर खड़ी एक महिला का पर्स छीन कर एक लफ़ंगा भागता है और तभी एक गाड़ी रूकती है उसका दरवाज़ा खुलता है लफ़ंगा दरवाज़े से टकरा जाता है पर्स हवा मे उछलता है जिसे गाड़ी से उतरता एक गबरू हवा मे ही कैच करता है और शान से अकड़ता हुआ सीधे महिला के पास जाता है और उसे पर्स लौटा कर ब्रेक लगाने से गाड़ी से गिरे भारी सामान को खुद उठाकर वापस लादता है।तब तक़ उसकी सुपरमैन स्टाईल हरक़तो को देख रही महिला मुस्कुराती है,फ़िर शरमा कर चुन्नी नीचे खींच कर मंगलसूत्र को छीपाने लगती है।
इस देश मे जंहा महिला को देवी माना जाता है,जंहा उसे सुहाग की रक्षा के लिये यमराज तक़ से लड़ने वाली माना गया है।जंहा उसे मां-बहन जैसे पवित्र रिश्तों से नवाज़ा गया है।जंहा उसके सद्चरित्र को लेकर कहानी किस्सों की भरमार है,वंहा उसी देश मे एक शादी-शुदा महिला को पराये मर्द को देख कर मंगलसूत्र छिपाते दिखाकर विज्ञापन बनाने वाले ने ये कैसे सोचा होगा कि इसे देख कर लोग गाड़ी खरीद ही लेंगे।अफ़सोस की बात तो ये है कि ये विज्ञापन शायद रोज़ दिखाया जा रहा है और इसका कंही कोई विरोध नही हो रहा है।विज्ञापनो मे अश्लीलता रोकने के लिये बीच मे कुछ प्रयास ज़रूर हुये थे और कुछ अश्लील विज्ञापनो का प्रदर्शन रोका भी गया था।इस विज्ञापन को लोग ये कह सकते हैं कि ये अश्लील नही है मगर ये भारतीय नारी का घोर अपमान हैं केवल ये विज्ञापन बल्कि अन्य विज्ञापनो मे भी उसकी भारतीय छबि को ऐसा लगता है कि खराब करने का षडयंत्र चल रहा है।
जंहा तक़ मै समझता हूं ऐसे फ़ुहड़ और भारतीय संस्कृति पर हमला करने वाले ऐसे सभी विज्ञापनो का विरोध होना चाहिये। हो सकता है कुछ प्रगतिशील लोगो को गंदगी उस विज्ञापन मे नही मेरी नज़र मे नज़र आये,तो ऐसे लोगो से मै एडवांस मे क्षमा मांग लेता हूं।मै स्त्री के आधुनिक होने का विरोधी नही हूं लेकिन इस बात का समर्थक भी नही सकता कि स्त्री किसी गैर मर्द के सामने सुहाग चिन्ह छिपाये।
46 comments:
जब छिपाना ही हो तो कोई पहने ही क्यों?
सब मीडिया की करनी है.जो ना दिखा दे..संस्कृति तो पता नही कहाँ गुम होती जा रही हैं..और कुछ हमारे ही बीच में से है जो मज़े से देख रहे है..
शर्म आनी चाहिए ऐसे विज्ञापन का कंसेप्ट सोचने वालों को.. हैपी ब्लॉगिंग
अनिलजी जहां पुरुषों के शेविंग प्रोडक्ट को बेचने के लिए भी महिला मॉ़डल्स का सहारा लिया जाता है..ये तो बड़ा टॉइंग है जैसे विज्ञापन धड़ल्ले से दिखाए जाते हैं, वहां बस रिमोट कंट्रोल से स्विच ऑफ करना ही सबसे बेहतर विकल्प है
रापकी बात शत प्रति शत सही है और औरतों को इसका विरोश जरूर करना चाहिये । ये कैसी प्रगतिशीलता है? जब तक औरत अपना इस्तेमाल करवाती रहेगी तब तक ये सब चलता रहेगा। औरत को भी चाहिये कि ऐसे विग्यापनों से दूर रहें मगर इस पश्चिमी आन्धी को कैसे रोकें जब बच्चे अपनी संस्कृति ही भूल रहे हैं आभार्
First of all anilji i think this is advertisers way of promoting. why some people have problem with others creativity? that too in the name of 'bharatiya sanskriti'? i think this whole concept of 'suhag chinha' is ridicules... why only woman has to wear mangalutra and sidoor? while man is free to sleep around! see how many (if anot all) drool over beautiful girls....what is wrong if woman is shown to do so? if you dont like dont watch, you are free to do so. who are you to conduct moral policing?
आधुनिक वैश्विय सभ्यता में प्राचीन काल में नारी की दशा एवम् स्तिथियों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप नारी की गतिशीलता अतिवादी के हत्थे चढ़ गयी.
"कारपोरेट बिज़नेस और सामान्य व्यापारियों/उत्पादकों द्वारा संचालित विज्ञापन प्रणाली में औरत का बिकाऊ नारीत्व"
Read My article "नारी का व्यापक अपमान और भारतीय नपुंसकता"
and think...
समाधान:
नारी के मूल अस्तित्व के बचाव में 'स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़' की इस पहल में आईये, हम सब साथ हो और समाधान की ओर अग्रसर हों.
नारी कि उपरोक्त दशा हमें सोचने पर मजबूर करती है और आत्म-ग्लानी होती है कि हम मूक-दर्शक बने बैठे हैं. यह ग्लानिपूर्ण दुखद चर्चा हमारे भारतीय समाज और आधुनिक तहज़ीब को अपनी अक्ल से तौलने के लिए तो है ही साथ ही नारी को स्वयं यह चुनना होगा कि गरीमा पूर्ण जीवन जीना है या जिल्लत से.
नारी जाति की उपरोक्त दयनीय, शोचनीय, दर्दनाक व भयावह स्थिति के किसी सफल समाधान तथा मौजूदा संस्कृति सभ्यता की मूलभूत कमजोरियों के निवारण पर गंभीरता, सूझबूझ और इमानदारी के साथ सोच-विचार और अमल करने के आव्हान के भूमिका-स्वरुप है.
लेकिन इस आव्हान से पहले संक्षेप में यह देखते चले कि नारी दुर्गति, नारी-अपमान, नारी-शोषण के समाधान अब तक किये जा रहे हैं वे क्या हैं? मौजूदा भौतिकवादी, विलास्वादी, सेकुलर (धर्म-उदासीन व ईश्वर विमुख) जीवन-व्यवस्था ने उन्हें सफल होने दिया है या असफल. क्या वास्तव में इस तहज़ीब के मूल-तत्वों में इतना दम, सामर्थ्य व सक्षमता है कि चमकते उजालों और रंग-बिरंगी तेज़ रोशनियों की बारीक परतों में लिपटे गहरे, भयावह, व्यापक और जालिम अंधेरों से नारी जाति को मुक्त करा सकें???
आईये आज हम नारी को उसका वास्तविक सम्मान दिलाने की क़सम खाएं!
जरूर होना चाहिए कुछ महिलाए मिलकर सारे देश की महिलाओं का मान हानि कर रहे है .
अगर ऐसा दिखाया जा रहा है तो ये गलत है .
हे भगवान ये दिन भी देखने पडेंगे?
रामराम.
एसा दिखाना बहुत गलत है !
ये तो कुछ भी नहीं अनिल जी एक स्प्रे का विज्ञापन भी आ रहा है.स्प्रे कर लो दुनिया की सारी लड़कियां आप की पीछे दौड़ेंगी. ऐसे विज्ञापन बनाने वालों की बुद्धि पर तरस आता है. इन लोगों में रचनात्मकता का आभाव है और जमीन से जुड़ाव नहीं हैं शायद ये कान्वेंट में पढ़े हुऐ, संस्कारहीन, मौजमजे को ही जीवन समझने वाले, अंग्रेजियत(जहां अपने पति को छोड़ दूसरे के पास जाना कोई शर्म की बात नहीं) के गुलाम हैं. जहां परिवारों में तलाक पुनर्विवाह होना आम बात है. यानी जो इन्होने देखा है भोगा है उसी को दिखा रहे हैं. आप अगर स्त्रियों का आदर या भारतीयता या संस्कृति की बात करेंगे तो इन्हे समझ नहीं आयेगी, ये संवेदना शून्य हो चुके हैं और ऐसे लोगों के समर्थकों का एक बड़ा वर्ग तैयार हो चुका है.
हम सभी को ऐसे विज्ञापनों का विरोध करना चाहिये.
आप जैसे लोग साधुवाद के पात्र हैं जो अपना समय जनता को जागरूक करने में लगा रहे हैं.
विजयप्रकाश
ये तो कुछ भी नहीं अनिल जी एक स्प्रे का विज्ञापन भी आ रहा है.स्प्रे कर लो दुनिया की सारी लड़कियां आप की पीछे दौड़ेंगी. ऐसे विज्ञापन बनाने वालों की बुद्धि पर तरस आता है. इन लोगों में रचनात्मकता का आभाव है और जमीन से जुड़ाव नहीं हैं शायद ये कान्वेंट में पढ़े हुऐ, संस्कारहीन, मौजमजे को ही जीवन समझने वाले, अंग्रेजियत(जहां अपने पति को छोड़ दूसरे के पास जाना कोई शर्म की बात नहीं) के गुलाम हैं. जहां परिवारों में तलाक पुनर्विवाह होना आम बात है. यानी जो इन्होने देखा है भोगा है उसी को दिखा रहे हैं. आप अगर स्त्रियों का आदर या भारतीयता या संस्कृति की बात करेंगे तो इन्हे समझ नहीं आयेगी, ये संवेदना शून्य हो चुके हैं और ऐसे लोगों के समर्थकों का एक बड़ा वर्ग तैयार हो चुका है. हम सभी को ऐसे विज्ञापनों का विरोध करना चाहिये.
आप जैसे लोग साधुवाद के पात्र हैं जो अपना समय जनता को जागरूक करने में लगा रहे हैं.
विजयप्रकाश
ये तो कुछ भी नहीं अनिल जी एक स्प्रे का विज्ञापन भी आ रहा है.स्प्रे कर लो दुनिया की सारी लड़कियां आप की पीछे दौड़ेंगी. ऐसे विज्ञापन बनाने वालों की बुद्धि पर तरस आता है. इन लोगों में रचनात्मकता का आभाव है और जमीन से जुड़ाव नहीं हैं शायद ये कान्वेंट में पढ़े हुऐ, संस्कारहीन, मौजमजे को ही जीवन समझने वाले, अंग्रेजियत(जहां अपने पति को छोड़ दूसरे के पास जाना कोई शर्म की बात नहीं) के गुलाम हैं. जहां परिवारों में तलाक पुनर्विवाह होना आम बात है. यानी जो इन्होने देखा है भोगा है उसी को दिखा रहे हैं. आप अगर स्त्रियों का आदर या भारतीयता या संस्कृति की बात करेंगे तो इन्हे समझ नहीं आयेगी, ये संवेदना शून्य हो चुके हैं और ऐसे लोगों के समर्थकों का एक बड़ा वर्ग तैयार हो चुका है. हम सभी को ऐसे विज्ञापनों का विरोध करना चाहिये.
आप जैसे लोग साधुवाद के पात्र हैं जो अपना समय जनता को जागरूक करने में लगा रहे हैं.
विजयप्रकाश
दुखद और बेहद चिन्ताजन, कोई उपाय नही है?
बहुत ही बेढगे, बेहूदे और आपतिजनक विग्यापन आ रहे है बडी चिन्ताजनक बात है
पता नहीं यह विज्ञापन वाला छिपा रहा है मंगल सूत्र या नारी खुद। मुझे लगता है कि दिग्भ्रमित नारी खुद भी कुछ अण्टशण्ट भूमिका तलाश रही है अपने लिये।
बाकी, जो नारी को अंधेरे से मुक्त कराने की बात कह रहे हैं, खुद तो जड़ता से मुक्त हो लें!
यह तो बहुत गम्भीर मसला है।
Think Scientific Act Scientific
एक उपाय है - हम ऐसे चैनल्स को देखें ही नहीं... जो हमारी संस्कृति के खिलाफ हैं... जैसे ही उनकी वियुवरशिप कम होगी उनकी अकल ठिकाने आ जायेगी...
तो तैयार हैं असहयोग आन्दोलन के लिए.....
इस विषय में ज्ञानदत्त जी के कथन से पूर्णत: सहमति है!! वास्तव में यही हो रहा है कि जो लोग नारी मुक्ति के पैरोकार बने घूम रहे हैं,वो मुक्ति नहीं बल्कि उसे एक पतन के रास्ते पर धकेलने में लगे हुए हैं....
अब रही बात विज्ञापन की तो हमने तो इसी दुख में बहुत समय से टेलीवीजन देखना ही छोड दिया है...ऎसी अश्लीलता देखने से तो न देखना भला!!
मैंने तो विज्ञापन को देखा ही नहीं है किन्तु जैसा आपने बताया है उस हिसाब से तो बहुत ही शर्मनाक विज्ञापन है और इसका विरोध होना ही चाहिए।
यह तो बड़ा टोइंग है से कुछ बेहतर है गाड़ी वाला विज्ञापन . इन सब के लिए तो एक चीज है किस किस को याद कीजिये किस किस पे रोइए .
इस विज्ञापन को लिखने वाले से पूछना होगा कि वो क्या चाहता है . वैसे एक कोई काउंसिल है जिसमे इसकी रिपोर्ट की जा सकती है
कल जो विज्ञापन आएगा, उसमें तो मंगलसूत्र ही नहीं होगा!!
परसों तक समस्त वर्जनाएँ टूट जाएँगी।
फिर इतिहास दोहराया जाएगा,
घूँघट, सिंदूर, मंगलसूत्र, झांझर जैसे औडियो-विज़्युल सिगनल ज़रुरी किए जाएंगे स्त्री के सम्मान के लिए
जहाँ से चले थे, वहीं पहुँच जाएँगे
लोग कहेंगे सतयुग आ गया
बी एस पाबला
मै भी ज्ञानदत्त जी के कथन से सहमत हुं, आज नारी को स्वत्रंता का लाली पोप थमा कर उसे किस ओर ढ्केला जा रहा है, घर नारी से होता है....
इस बात का विरोध सब से पहले नारियो को ही करना चाहिये,
bhaiya, aajkal ki nariya (bhi) hain muft ki bimariya.........
ye creativity aur professional liberty ki baat karti hain. kehti hain ki aurato'n par hi paabandi kio? sahi hai. inka bass chale to mardo se hi bachcha paida karvaye.
kya daleel hai: ya kaam mard kar sakte hain to aurat kio nahi? wo ek kahawat hai na ki saare garib, ameer se nafarat karte hain, lekin khud bhi ameer hi ban-na chahte hain. usi tarah, har aurat mard (ki satta) ko pasand nahi karti, lekin aakhirkar ban-na mard hi chah-ti hai. kya kare, har kisi ke saath aisi hi problem hai.
jaha tak media ka sawal hai, to wo aisi chhichhori cheeje dikhakar hi aaj loktantra ka swayambhoo chautha stambh, pragativadi, naarivadi, maanvadhikarvadi aur na jaane kaun-kaun sa vadi bana huwa hai. use to bas ab door se hi pranam karna chahiye.
तो क्या मंगल का सूत्र भी अब अमंगल हो गया जो अब नारी छुपाना चाहती है? यह भारतीय नारी तो नहीं न हो सकती॥
विज्ञापनों ने तो हद मचा रखी है
ये गलत है
हम सभी को ऐसे विज्ञापनों का विरोध करना चाहिये
C.M. is waiting for the - 'चैम्पियन'
प्रत्येक बुधवार
सुबह 9.00 बजे C.M. Quiz
********************************
क्रियेटिव मंच
*********************************
अनिलजी यह बोलोरो गाड़ी का विज्ञापन है तीन चार दिनों से यह मुझे भी खटक रहा था, वैसे तो मैं टीवी बहुत कम देखता हूँ पर घर पर सबके साथ बैठते हैं तो देखने में आ ही जाता है।
शायद यही हमारी आधुनिक नारी है जिसके लिये ये सबसे लड़ाई कर रही हैं।
TRP ka khel hai saara .......
समझ में नहीं आता .. हम आगे बढ रहे हैं या पीछे जा रहे हैं ?
नारी की sawtantarta पर हमला ? कल ही आप के खिलाफ मोर्चा निकलेगा , ? धरा ४९८अ , के साथ अब एक नए धारा बनेगी 0000000007 झा आप को गिरफ्तार कर के ,आप से आप की बेघुनाही का सबूत मग जायेगा , / नारी का मामला है , घम्भीर मामला है , ........................:)
अनिल भाई ऐसे सैकड़ो विज्ञापन है जहाँ स्त्री का अपमान हो रहा है उनके खिलाफ आवाज़ उठानी ही चाहिये । पाबला जी हम लोग सतयुग से भी पीछे पाषाणयुग मे जा रहे है ।
अनिल जी आपने जिस विषय को उठाया है, वह ज्वलंत तो है पर जनता और हमारे बुद्धिजीवी लोग मौन हैं | ये विज्ञापन मैंने नहीं देखि है और शायद देखना भी नहीं चाहूँगा | आज के समय मैं टीवी कम से कम भारत मैं एक IDIOT BOX से ज्यादा कुछ रह नहीं गया है | IDIOT BOX से दूर रहने का प्रयास हम सबों को करना है | लेकिन इसका ये मतलब कदापि नहीं निकालना चाहिए की गलत चीजों का विरोध नहीं करना है हमें | जहाँ तक संभव हो हमें इन गन्दी शक्तियों से लड़नी है | सरकार से कुछ भी आशा करना बेकार है | सच कहता हूँ, १००-२०० लोग भी यदि दिल से विरोध करें तो बहुत है | सबसे पहले तो आपसे यही पूछना चाहता हूँ की आपने उस कार निर्माता कम्पनी का नाम क्यों नहीं लिखा ? यदि आपने नाम लिखा होता तो उस कंपनी के CEO, President etc.... को मेल लिख कर अपना विरोध प्रर्दशित कर सकते थे ना .... | विश्वास कीजिये, कुछ ना कुछ तो कंपनी वाले करते ही, क्योंकि हम तो ग्राहक हैं | ग्राहकों का समूह जैसे ही ये कहेगा की आपके products का बहिस्कार किया जाएगा .... कंपनी अपने आप लाइन पे आ जायेगी |
अनिल जी हम इस विरोध मैं आपके साथ हैं और आप कंपनी का नाम दीजिये ... उसका मेल ID और फ़ोन नंबर निकाल कर विरोध किया जाएगा | आपसे सहयोग की आवश्यकता है |
अनिल जी,
ये लोग ऐसे नकटे हैं कि शर्म ख़ुद शर्माती है
ऐसे लोगों को भला शर्म कहाँ आती है........
इनके तो जूते मारो
वो भी देसी...........
aise channels aur in vigyapano ke products par pabandi lagni hi chahiye. kask comment likhne ke liye anonymous option na hota to kuchh hinzde jo mare dar ke myaoon myaaoon karte hue galat baat kar jate hain wo na kar pate. aise log ise creativity kahte hain , ye log apni maa, bahin aur biwi ko aisa kate dekh ke nishchay hi bahut khush hote honge, ya fir bechron ke ghar me aise hadse pahle hi ho chuke honge..... :)
यही अपसंस्कृति है -मगर राहत यही की विज्ञापन अब देखता ही कौन है ?
सही कहा भाऊ, लेकिन इसका इलाज इन्हें "इग्नोर" करना नहीं है, बल्कि आलोचना, भर्त्सना और आवश्यकता पड़े तो ठुकाई करके देना चाहिये। शिक्षक दिवस पर निजी एफ़एम रेडियो पर दिन भर सवाल पूछा जाता रहा कि "क्या आपने अपनी टीचर को प्रपोज़ किया है?" शायद राखी के दिन वह रेडियो जॉकी पूछेगा, क्या आपने अपनी बहन के साथ सेक्स किया है? ऐसे छिछोरों को इग्नोर करने से काम नहीं चलेगा, इन्हें यथायोग्य "प्रसाद" मिलना ही चाहिये… कई बार लगता है कि श्रीराम सेना सही थी… :)
सही कहा , हर बात की एक सीमा होती है, विज्ञापन बनावो क्रेअटिविटी दिखावो मगर सीमा में रहकर ! मगर अफोस की हमें तो यहाँ हर चीज़ बेचनी है, विकसित होने हेतु !
महिला एक उत्पाद है जिसे उत्पाद बेचने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।
मनोविज्ञान की दृष्टि से देखिये
क्या अगर कोई पुरुष कोई ऐसा काम
करता हैं जिसको देख कर लगता हैं की
काश ये पुरुष मेरा पति होता ?? क्या
विवाहित स्त्री का मन , उसके मन मे आने
वाले भाव केवल इस लिये ना दिखाये
जाये क्युकी उसके गले मे मंगल सूत्र हैं ?
क्या उस मॉडल का मंगल सूत्र छुपना
मात्र एक "कामना " नहीं हैं ? या आप
उस को "वासना " की दृष्टि से देख रहे
हैं . और फिर आप की पोस्ट
साफ़ पूर्वाग्रह ग्रसित हैं की विवाहित स्त्री
का "मन" नहीं होता . विवाह की एक सीमा
रेखा हैं जो पुरुष और स्त्री दोनों के लिये
हैं पर विवाह हो चूका हैं ये केवल स्त्री
के आभूषण बताते हैं . सो वो मॉडल
नहीं चाहती की पता लगे की वो विवाहित
हैं ? एक विवाहित स्त्री को मॉडल ना बनया
जाए शायद आप ये कहना चाहते हैं
It has been two years since i stopped watching t.v. ! last month i refused to renew the Dish connection as well . For recreation i luv to travel and for information i rely on papers and net. TV news is dead in Australia also. ppl surf the net for news.
चाकलेट,क्रीम,पाउडर,अंडरवियर से लेकर कोई उत्पाद नहीं जिसे बेचने के लिए विज्ञापन कंपनियों को स्त्रियों और नग्नता की आवश्यकता न दीखती हो...
मैंने भी टी वी देखना लगभग बंद ही कर दिया था...पर मुझे लगा समाधान यह नहीं है....इसलिए हमेशा तो नहीं पर कभी कभार देखती अवश्य हूँ और खूब ध्यान से देखती हूँ क्योंकि इससे मेरा क्षोभ परिपुष्ट होता है ..क्रोधाग्नि में आहुति सी पड़ती है....
बहुत बहुत आवश्यक है,इसपर मुखर विरोध प्रर्दशित करना.....जितनी मात्रा में संस्कृति के विघटन के लिए ये प्रयास रत हैं,हमें उससे अधिक सक्रिय होना होगा अपने संस्कृति की रक्षा के लिए....
आपको मैं साधुवाद देती हूँ..
एक कमेंट आया कि महिला उत्पाद है मैं पूरी तरह सहमत हूं। वर्ना क्या जरूरत है ब्लेड के एड में महिलाओं की पर फिर भी आती हैं।
जहां तक बेनामी टिप्पणी की बात है तो शादी के बाद भी औरत का मन होता है। काश वो मेरा पति होता इस विचार पर अपनी शादी की निशानी को छुपाना मुझे तो बेतुकी बात लगती है। इसका साफ साफ मतलब कुछ और समझ में आता है।
बहुत हीं कष्ट का विषय है यह्………………………विरोध तो होना ही चाहिये ।
वह विज्ञापन महेंद्रा जीप का है पर कल एक और विज्ञापन चालू हुआ है पियर सोप का जिसमे आधुनिक स्नान घरः में स्त्री को पारदर्शी कांच के पीछे लगभग नगन ही दिखया गया है अब कहा गए वो सभी ठेकेदार जिन्होंने सच का सामना को लेकर टीवि से संसद तक हल्ला बोला
Post a Comment