Sunday, October 4, 2009
ये बढिया है बलात्कार करो और हिट हो जाओ
माईक्रो पोस्ट के जरिये कुछ सवाल सामने रख रहा हूं।शाईनी आहूजा।अपनी नौकरानी से बलात्कार के पहले फ़िल्मो मे ज्यादा ही रूची लेने के अलावा उन्हे शायद ही कोई जानता होगा,मगर आज?आज तो ऐसा लग रहा है कि वे देश की जानी-मानी हस्ती हैं।किसी भी वीवीआईपी से भी वीआईपी।हवाई जहाज से मुम्बई से दिल्ली जाने के निकले तो साथ मे जाने-माने न्यूज़ चैनलों के फ़ाड़ेखां टाईप के रिपोर्टरो और कैमरामैनो का जुलूस।और तो और हवाई जहाज मे भी कव्हरेज के लिये टीम का साथ मे सफ़र।हवाई जहाज से उतरते ही संवाददाता से जानकारी।उनकी बाड़ी-लेंग्वेज कैसी है?कम्फ़र्टेबल है नही?नर्वस तो नही है? ऐसे पूछा जा रहा था शाईनी के बारे मे जैसे देश का कोई महान व्यक्ति परेशान हो या देश के लिये महत्वपूर्ण फ़ैसला लेने जा रहा हो।क्या यही पत्रकारिता है?क्या यही खबर है?इससे पहले ऐसा ही तमाशा संजय दत्त की जेल यात्रा के समय भी देख चुके हैं।आखिर दिखाना क्या चाह्ते हैं?आखिर बताना क्या चाह्ते हैं?यही कि अपराध करो,बलात्कार करो और हिट हो जाओ
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30 comments:
सही कहा अनिल भाई, यह तो हमें भी समझ में नहीं आया कि हमारा मीडिया समाज को क्या परोसना चाहता है ?
टी आर पी की भुख ने कितना गिरा दिया
टीवी चैनलों ने ब्लात्कारी को हीरो बना दिया
मुह फ़ाड़े खड़े है लाईव के लिए
बधाई हो महाराज
इस ख्याति के साथ जो अपयश झेलना पड़ता है उसे तो शायद भोक्ता ही जानता होगा!!
मीडिया सच में इन लोगों को वी आई पी बना देता है।
Sir..... bahut sahi likha hai apne...... Yeh sabse zyada INDIA TV wale hi karte hain.....
लोगों बुराई अधिक आकर्षित करती है बनिस्बत अच्छाई के और मीडिया को लोगों का आकर्षण चाहिए। बुराई करने वालों को सु्र्खी में नहीं रखेंगे तो उनकी दूकान कैसे चलेगी?
बिल्कुल सही कहा आपने। आजकल अच्छे काम करने वाले लोग पिछे ही रह जाते है और बुरा करने वाले लोग मिडिया के सहयोग से जल्दी आगे बढ़ जाते है।
जल्दी ही पत्रकार शाइनी नामक उस छिछोरे से ये भी पूछेंगे -
1) आपको बलात्कार करते वक्त कैसा लगा?
2) भविष्य में मौका मिले तो क्या आप फ़िर से बलात्कार करना चाहेंगे?
3) इस कार्य से आप युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं? आदि-आदि-आदि…
असल में शाइनी से बड़े कमीने हैं ये न्यूज़ चैनलों के पत्रकार…
क्या कहा जाये अनिल भाई..ये वो चौथा खंभा है..जिस पर घुन लगता जा रहा है...अफ़सोस कि इतने सजग और सक्रिय देश में भी ..मीडिया की ये दिशा है...
क्या कहें मीडिया के इस रुख के बारे में . मीडिया घटिया समाचार परोसकर समाज में गन्दा वातावरण फैला रही है .....
यदि आपको अपने सेहत का ख्याल है तो हमारा सुझाव है की आप एक महीने कोंकण के किसी गाँव में चले जाएँ. न टी वी देखें न अखबार पढें. बड़ा सुकून मिलेगा. लौटकर केवल आकाशवाणी में खबरें सुनते रहें. आजकल के मीडिया के बारे में आप जितना सोचेंगे उतना ही बी.पी बढेगा. कर कुछ नहीं पाएंगे.
क्या यही है जिम्मेदार मीडिया !
खूब पकड़ते हैं आप अपने बिरादरों को।
खूब पकड़ते हैं आप अपने बिरादरों को।
anil
thanks for this post
we keep writing such things no naari blog and for a change its good that a blogger brought up the issue here
mediya balo ne desh ka nash kar diya
सभी कुओं में भांग घुली है - पहला हो या चौथा! :)
अनिल जी अब क्या कहे... यहां सब तरफ़ यही हाल है, जंगल राज है.
सही कहा बलात्कार करो और फ़ेमस हो जाओ …… फ़िल्मी दूनिया ही नही पत्रकारिता जगत में भी ऐसे लोग हैं । एक तथाकथित बलात्कारी तो इधर भी रह कर आजकल वेबसाइत चला रहा है । आप लोग शयद भुल गये होन्गे !
पत्रकारिता के नैतिक पतन की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है ।
haa bhai tumne sahi kaha , ye sabhi cheese publicity hi to deti hai , but hame aur tumhe sochna hai ki naam too bhagwan ram ka bhi hai aur ravan ko bhi sabhi jaante hai, lekin hume aur tumhe ban-na kya hai ram jaisa adarswadi or ravan jaisa ahankari, durachari.
वत्स जी, दिनेश जी, और महेंद्र मिश्र जी से हम भी सहमत हैं सर। और हाँ आप से भी।
लेकिन इसी बंबई में कुत्ते का बलात्कारी न जाने क्यों पीछे रह गया !
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अनिल जी,
आप स्वयं को पत्रकार कहते हैं अत: यह सवाल सिर्फ आपसे...क्या मीडिया को खुद ही ट्रायल कर सजा सुनाने का हक होना चाहिये...बिना न्यायालय के फैसले का इंतजार किये...आखिर आरुषि के मामले में मीडिया ने किस किस को गुनहगार नहीं बताया... और नतीजा क्या निकला... जहां तक यह मामला है...बिना तथ्य जाने कोई कैसे कह सकता है कि मजलूम कौन है और मुजरिम कौन...जुर्म साबित होने तक तो शाइनी बेकसूर ही माना जायेगा... यही नियम है...
ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा पर यह बताउंगा कि जिंदगी में ऐसे या इस जैसे बहुत से मामले देखे हैं मैंने...and sometimes truth is stranger than fiction.
प्रवीण शाह जी मै खुद को पत्रकार कहता ही नही हूं,बल्कि पत्रकार हूं भी।मैने दसियों साल से भी ज्यादा पत्रकारिता को जिया है।खासकर क्राईम की रिपोर्टिंग मैने की है।एक नही दस उदाहरण मै भी गिना दूंगा जिसमे सबके सामने कत्ल हुआ और सबूत व गवाहों के बयानो के आधार पर कातिल बरी हो गये।क्या उन्हे निर्दोष मान लेना चाहिये?एक और बात बलात्कार के मामले मे कंहा से मिलेगा सबूत और कौन देगा गवाही?वैसे एक सबूत मिल चुका है मेडिकल रिपोर्ट।और जब खुद शाईनी ने भी कबूल लिया फ़िर?क्या सिर्फ़ इस्लिये कि आपको कोई पसंद ना आये तो उसकी हर बात को गलत कहो?क्या सिर्फ़ किसी की आलोचना ही किसी को बड़ा बना देती है?क्या किसी के कुछ होने पर बिना कुछ जाने सवाल खड़े करना जायज है?
अनिल जी पत्रकारिता नहीं व्यवसायिकता रह गई है...शाईनी आहूजा निर्दोष या अपराधी... इस तरह की कवरेज क्षोभनीय है
अनिल भाई इसे ही तो कहते हैं इंडिया शाइनिंग...
जय हिंद...
यह तो महान पत्रकार जाने जो इस देश दुनिया के पहरेदार बने फिरते है. बाकी सारे तो मूर्ख है.
सही है इंनके कान उमेठने वाला भी तो चाहिये
यह एक नया राष्ट्रीय सम्मान है " दस्यु सम्मान"
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