बहुत कुछ नही कहूंगा मगर एक बात हैरान कर देने वाली रही।ज़रा ज़रा सी बात पर दौड़ कर टिपण्णी करने वाले विद्वानों ने मेरे सवालो का जवाब देना ज़रूरी नही समझा।मै इसे उनकी कायरता नही समझदारी ही कहूंगा और जब वे समझदार हो गये है तो मुझे भी समझदार होना पड़ेगा।शायद उनकी समझ मे ये आ गया है किसी की ओर एक ऊंगली उठाते ही बाकी की ऊंगलियों का निशाना खुद ब खुद अपनी ओर हो जाता है।मुझे अफ़सोस भी है इस बात का कि मैने आखिर ये क्या किया और फ़िर लगता है कि ये ज़रूरी भी था वरना धर्म के नाम पर तमाशा चलता रहता।
मेरी कोई मंशा नही थी कि मैं किसी धर्म विशेष की विसंगतियों पर ऊंगली उठाऊं मगर गुस्सा विनाश का कारण होता है ये जानते हुये भी गुस्से मे वो काम कर बैठा जिस काम का मै विरोध करना चाह्ता था।जब वो गलत था तो स्वाभाविक है कि मै भी गलत ही हुआ।मगर मेरा सवाल अभी भी एक ही है कि क्या कारण है कि उसने मुझे जवाब नही दिया?क्या मेरे सवालों का उसके पास कोई जवाब नही है?या उसे अनुमान हो गया था कि मेरा तरकश भी सवालो से भरा हुआ?या फ़िर उन सवालो का जवाब देकर वो खुद ही अपनो के ही बीच विवाद का कारण बन जाता?और भी बहुत से सवाल हैं?
मेरा किसी का दिल दुखाने का इरादा भी नही था मगर मै जानता हूं कि तरकश से निकला तीर किसी न किसी को तो चोट पहुंचाता ही है।मै तो बस ये कहना चाह्ता था कि सभी धर्म समान है और यदी आप दूसरे धर्म का सम्मान करेंगे तो आप को भी उतना ही सम्मान मिलेगा।आप अपने धर्म का प्रचार करिये हमारा भी ज्ञान बढेगा और जिसे जो ग्रहण करना हो वो करेगा लेकिन इसका मतलब ये नही है कि आप दूसरे धर्म को नीचा दिखायें।सब लोग समझदार है।सब अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से तय कर लेते हैं उन्हे क्या करना है क्या नही?आप ये मत बताईये कि हम क्या करें क्या नही तो ठीक रहेगा।
एक बात और मेरे इस तरह के लेखन से पता नही जिसके लिये लिखा उसे असर हुआ या नही लेकिन मेरे अपने ही लोगो को ज़रुर पीड़ा हुई जिसका मुझे बहुत ही अफ़सोस है।मैं अपने चाहने वालों की भावनाओं की कदर करता हूं और उन्हे विश्वास दिलाता हूं कि अपनी उर्ज़ा का सही दिशा मे प्रयोग करूंगा।इस विवाद का पर्दा मै अपनी तरफ़ से गिरा रहा हूं और उम्मीद करता हूं कि इस नाटक मे शामिल और लोग भी पर्दे के पीछे चले जायेंगे।पुनश्चः मेरे लिखे से किसी को दुःख पहुंचा हो तो क्षमाप्रार्थी हूं।मुझे कांटे से कांटा निकालने की अपनी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की शुरूआत करने के लिये आप सभी लोगों की ओर से की गई पहल को मैं जीवनपर्यंत याद रखने की कोशीश करुंगा।
24 comments:
याने कि
मेरा जनाजा बड़े धूम से निकला
उसे देखने सारा जहाँ निकला
पर वो नहीं निकला
जिसके लिए मेरा जनाजा निकला
पहाड़ खोदा पर चुहिया भी नहीं निकली :)
अजी किसी को भी पीड़ा नहीं हुई जी, आप तो बस लिखते रहिए।
हमसे जो प्यार से बातें करेगा उसके लिए जान भी हाजिर करेंगे। पर हमसे गलत पेश आने वाले को हम छोड़ेंगे भी नहीं।
आपकी पहली पोस्ट भी पढी थी, टिप्पणी की थी या नहीं ध्यान नहीं। आज एक समाचार था कि दुनिया में प्रत्येक चार मनुष्यों में से एक मुस्लिम है। जनसंख्या का इतना बडा आंकडा देखकर और ऐसे धर्म प्रचारकों का जुनून देखकर डर सा लगता है। कही यह तालीबानी सोच सभी को निगल तो नहीं जाएंगी? सभी को अधिकार है अपनी मर्जी की पूजा पद्धति मानने का या नैतिक सिद्धान्तों को मानने का। लेकिन दूसरों पर अनावश्यक अंगुली उठाना उचित नहीं लगता। मैं नही जानती कि यह सलीम भाई कौन है लेकिन यदि आज मुस्लिम महिलाओं के मध्य आप जाएंगे तब वे ही बताएंगी कि वे कितनी तकलीफ में हैं। दुनिया का कोई ऐसा धर्म नहीं है जो महिलाओं को पूर्ण आजादी देता है, केवल हिन्दू ही हैं जिनके सिद्धान्त में अर्धनर नारीश्वर की कल्पना है। आपने प्रतिक्रिया स्वरूप जो कुछ भी लिखा था वह जायज था। क्योंकि कभी-कभी प्रतिक्रिया भी करनी पडती है।
बंधु वो गये है ज़ाकिर नायक की शरण मे यह पूछने की हुज़ूर जहाँ देखो लोग जूते लिए तय्यार खड़े है मैं कहीं मूह दिखाने का नही रहा तुम्हारे इस्लाम प्रचार के कारण ही मेरी यह हालत हुई है अच्छा होगा आप भी समय रहते सही हो जाए सुधार जाए नही तो यह हिन्दुस्तानी बहुत बुरी तरह से भीगा भीगा के जूते मारते है सलीम भाई की कोई ग़लती नही है इसमे वो बेचारा तो केबल प्रचारक है असली बुराई बाला आदमी तो ज़ाकिर नायक है उसे सुधारना है उसका उद्देश् इस्लाम को ही सर्वसरएष्ठ घोषित करना है इन सीधे साढ़े मूर्ख मुस्लिम लड़को को ग़लत राह पर डालने वाला वोही है
अनिल जी, आपने पता नहीं धर्मेंद्र की फिल्म गुलामी देखी है या नहीं...उसमें एक डॉयलाग था...तपती धरती पर बरसात की पहली बूंद को फ़ना होना ही पड़ता है...
किसलिए फ़ना होना पड़ता है...ताकि दूसरों को शीतलता मिले...
जय हिंद...
सभी धर्म समान है और यदी आप दूसरे धर्म का सम्मान करेंगे तो आप को भी उतना ही सम्मान मिलेगा।आप अपने धर्म का प्रचार करिये हमारा भी ज्ञान बढेगा और जिसे जो ग्रहण करना हो वो करेगा लेकिन इसका मतलब ये नही है कि आप दूसरे धर्म को नीचा दिखायें।
अनिल भाई, यह सब से महत्वपूर्ण अंश है। लेकिन मैं इसे इस तरह पढ़ना चाहूँगा.....
सभी धर्म समान है और यदि आप दूसरों के धर्मों का सम्मान करेंगे तो आप को भी उतना ही सम्मान मिलेगा। आप अपने धर्म का प्रचार करिये हमारा भी ज्ञान बढेगा और जिसे जो ग्रहण करना हो वो करेगा लेकिन इसका मतलब ये नही है कि आप दूसरों के धर्मों को नीचा दिखायें।
मेरा मानना है कि इंसान महत्वपूर्ण है, धर्म या कोई दूसरी चीज नहीं। हर इंसान की धर्म के बारे में एक सोच है, समझ है। हर इंसान का अपना धर्म है। उसे वह व्यवहार में लाता है। हम उस की सोच से असहमत हो सकते हैं लेकिन हमें उस की सोच का सम्मान करना ही चाहिए।
सभी धर्म समान है और यदी आप दूसरे धर्म का सम्मान करेंगे तो आप को भी उतना ही सम्मान मिलेगा।आप अपने धर्म का प्रचार करिये हमारा भी ज्ञान बढेगा और जिसे जो ग्रहण करना हो वो करेगा लेकिन इसका मतलब ये नही है कि आप दूसरे धर्म को नीचा दिखायें।
अनिल भाई, यह सब से महत्वपूर्ण अंश है। लेकिन मैं इसे इस तरह पढ़ना चाहूँगा.....
सभी धर्म समान है और यदि आप दूसरों के धर्मों का सम्मान करेंगे तो आप को भी उतना ही सम्मान मिलेगा। आप अपने धर्म का प्रचार करिये हमारा भी ज्ञान बढेगा और जिसे जो ग्रहण करना हो वो करेगा लेकिन इसका मतलब ये नही है कि आप दूसरों के धर्मों को नीचा दिखायें।
मेरा मानना है कि इंसान महत्वपूर्ण है, धर्म या कोई दूसरी चीज नहीं। हर इंसान की धर्म के बारे में एक सोच है, समझ है। हर इंसान का अपना धर्म है। उसे वह व्यवहार में लाता है। हम उस की सोच से असहमत हो सकते हैं लेकिन हमें उस की सोच का सम्मान करना ही चाहिए।
बुरा लगता अगर न लिखते.
शेष डॉ. अजीत की टिप्पणी में कहा गया है.
आपने जो लिखा उससे सौ फीसदी सहमति थी मगर टिप्पणी नहीं कर सका शायद !
अपने ब्लाग पर लिख लो कैरानवी यहां सांकल लगी है, सांकल लगा के सवाल करते हो, अपने घर में कुछ भी कहते रहो हम क्यूं दे जवाब, उस चिपलूनकर महान ने लगवाई है कुंडी जो अपने दरवाजे खिडकी खुला रखता है वह इसलिये लगाता है वह जानगया इसके लाभ, उससे कहो पहले खुदके लगाये फिर हमसे कहे,
मेरा कहना है कुंडी लगाये रखो, जवाब देने वाले उधर आते ही नहीं जिधर सांकल लगी हो, केसी रही
"सभी धर्म समान है और यदी आप दूसरे धर्म का सम्मान करेंगे तो आप को भी उतना ही सम्मान मिलेगा।आप अपने धर्म का प्रचार करिये हमारा भी ज्ञान बढेगा और जिसे जो ग्रहण करना हो वो करेगा लेकिन इसका मतलब ये नही है कि आप दूसरे धर्म को नीचा दिखायें"
बहुत अच्छी बात की है जी आपने
मगर मुझे नही लगता कि वो इस बात को समझ पायेंगें या जानबूझ कर समझना नहीं चाहेंगें
संजय बेंगाणी जी से सहमति
प्रणाम स्वीकार करें
डा.ाजीत गुपता जी की टिप्पणी से सहमत हूँ । वो लोग जान बूझ कर सब को भडकाने का काम कर रहे हैं आपने जवाब दे दिया अच्छा किया और आज जो लिखा वो भी भी अच्छा किया।िअगर उन मे इन्सानियत होगी तो समझ जायेंगे। धन्यवाद्
" sir aapki baato se hum sahmat hai "
----- eksacchai { aawaz }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
आप ने एक जागरूक और संवेदनशील पत्रकार aur जिम्मेदार भारतीय नागरिक होने का कर्तव्य निभाया है.
अनिल जी आप ने कल भी ओर आज भी सच ओर सही लिखा है, ओर Dr. Smt. ajit gupta जी की टिपण्णी से भी सहमत है, अब जिन के पास दिमाग ही नही उन्हे कोन क्या समझा सकता है, आप का धन्यवाद
नफरत का कोई भगवान नहीं होता . डॉ गुप्ता मान लीजिये किसीके बहकावे दबाव या प्रलोभन में सारी दुनिया के लोग एक धर्म के मानने वाले हो जाते हैं फिर ऐसे विघ्नसंतोषी क्या करेंगे ? धर्म का लोगों को मतलब ही नहीं मालूम "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, धरती के हैं हम वतन ब्रह्माण्ड हमारा " . धर्म का अर्थ होता है मन वचन या कर्म से किसी को कष्ट नहीं देना.
साहब जी आपके ब्लाग पर नहीं आये ये तो समझदारी दिखाई लेकिन और जगह अब भी टिपण्णी युद्ध मचाये हुए है ये महानुभाव
धर्म की बातें धर्माचार्यों पर छोडें- शायद ब्लागजगत में अभी वो सलाहियत नहीं पैदा हुई कि इस विषय पर संयम से बात करें। हमारे पास साहित्य के बहुत से विषय है जिन पर च्रर्चा हो सकती है:)
एक सज्जन ने कहा कि कहीं तालिबानी सोच निगल न जाए...सच पूछो तो एक बात कहूं। मौत के सिवाए कोई किसी को निगल नहीं सकता..लोग कहते हैं कि धर्म इस तरफ लेकर जाता है उस तरफ लेकर आता है। लेकिन सच तो ये है कि अंत मौत का दरवाजा ही आपको नसीब होता है। मौत किसी को नहीं छोड़ती चाहे वो सिकंदर हो या फिर रंक। धर्म तो दुकानदारी है...जब तक चलती है चलाते रहो
पुतलों की तरह धर्म के नाम पर मनुष्य जलाते रहो।
अनील भैया बने केहेस,तोला कोनो अल्हन नई ये, लेकिन रद्दा मा कुकुर हाँ भुंकथे ओला ठेंगा घला देखाये ला लागथे काटे ता नही फ़ेर हाँव-हाँव करके अड़-बड़ दुरिया ले कुदाथे, बने करेस,तोर आघु के गोठ बर फ़ेर बधई देवत हँब गाड़ा-गाड़ा झोंक ले,
कब आपके साथ नहीं हैं अनिल भाई हम सोचकर तो बतलाइए ज़रा। हा हा। आप वाजिब हैं यहाँ पर।
इसके साथ ही होता है ..यवनिका पतन यानि curtain drop .. |
रोज रोज ये सब देख कर तो मन में ब्लागिंग के प्रति वितृ्ष्णा सी होने लगी है । जो लोग कह्ते हैं कि हिन्दी ब्लागिंग अभी शैशवावस्था में है--वो लोग शायद किसी बडे भारी भ्रम में जी रहे हैं । वर्तमान के हालातों को देखते हुए तो कोई भी बुद्धिसम्पन् इन्सान झट से बता देगा कि ये शैशवावस्था नहीं बल्कि "मृ्तावस्था" है ओर जो लोग इसकी ऎसी हालत के दोषी हैं,उन्होने तो शायद इसे कब्र तक पहुँचाने की ही ठान रखी है।
चाहे कोई लाख समझा ले,लेकिन इनके कानों पर जूँ नहीं रेंगने वाली.....लगता है कि शायद अभी हम लोगों के सब्र का ओर इम्तेहान लिया जाना बाकी है !
अनिल जी अब तो विश्वास हो गया की आपके लिखने का बुरा किसी को नहीं लगा .... संजय जी से सहमत हूँ की ना लिखते तो शायद बुरा लगता |
"जब वे समझदार हो गये है तो मुझे भी समझदार होना पड़ेगा।" --> आप यदि इस खुसफहमी मैं हैं की - "वे समझदार हो गए हैं?" तो आपकी ख़ुशी मैं विघ्न नहीं डालना चाहता पर आपकी खुसफहमी तभी तक है जब तक आप उनकी अगली पोस्ट या अन्य टिप्पणी की और आँख मूंदे हैं |
मै तो बस ये कहना चाह्ता था कि सभी धर्म समान है और यदी आप दूसरे धर्म का सम्मान करेंगे तो आप को भी उतना ही सम्मान मिलेगा।आप अपने धर्म का प्रचार करिये हमारा भी ज्ञान बढेगा और जिसे जो ग्रहण करना हो वो करेगा लेकिन इसका मतलब ये नही है कि आप दूसरे धर्म को नीचा दिखायें।
bilkul sahi kaha aapne.........
yahi to main bhi kahta hoon.......
JAI HIND........
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