एक पुराना मगर दिलचस्प किस्सा सुना रहा हूं।हम दोस्तों के बीच होने वाले हंसी- मज़ाक और आपस की छेड़खानी का नमूना है।सब के सब उस समय काम धंदे से लगना शुरु हुये थे लेकिन बेरोज़गारी के दौर के मीटिंग पाईंट रूपकला(कपड़े की दुकान) के सामने खड़ा होना बंद नही हुआ था।शाम होते ही मंडली जमा हो जाती थी और फ़िर शुरू हो जाता था हा-हा,ही-ही का ना थमने वाला दौर।रोज़ मिलना,रोज़ जी भर कर हंसना,चिंता किस चिड़िया का नाम है कोई जानता ही नही था।
ऐसा कोई नही था हमारे ग्रुप मे जिसे घर मे सड़क पर खड़े होकर मस्ती करने पर डांट ना पड़ी हो। हमारे मित्र और परिवार के सदस्य दिलीप क्षत्रे की वो दुकान है। उसके पिता (अब स्व)उस समय कभी-कभार कह दिया करते थे अंदर वाला आफ़िस खाली पड़ा है उसका उपयोग कर लिया करो।पर सड़क पर आते जारे लोगों को गिनने का मज़ा भला अंदर बैठ कर कंहा आता सो कोई अंदर कभी बैठा ही नही,रोड़ इंस्पेक्टरी करते रहे।
एक शाम ऐसे ही मस्ती का दौर चल रहा था कि उस समय का महान खबरी बाबा (प्यार का नाम) आ टपका।वो मेरे साथ कालेज मे पढने के अलावा उस समय दैनिक भास्कर मे काम भी करता था।उसे वाईल्ड कार्ड एंट्री मिली हुई थी और उसका पूरा ध्यान उस समय किसका चक्कर किसके साथ चल रहा है और शहर की खूबसुरत लड़कियों की अपनी डायरेक्ट्री को समृद्ध करने मे लगा रह्ता था।अच्छे भले टापिक पर चल रही बकर(बहस) को वो अबे ये कंहा रह्ती है?अबे उसका नाम क्या है?अबे इसका चक्कर उससे है क्या जैसे टिपिकल सवालो से निपटा देता था।इस बात से दीलिप और बल्लू यानी बलबीर खासे नाराज़ रहते थे।उसे कई बार वार्निंग भी दे चुके थे और उसके बहाने मुझे भी टारगेट कर चुके थे।मैने भी एक दिन उनसे कह दिया,दम है तो निपटा दो उसको।मुझसे क्यों कहते हो।मामला उलझता देख दोनो उस समय खामोश रह गये और बात आई गई हो गई।
एक दिन शाम को बाबा हांफ़ते हुये वंहा पंहुचा और पंहुचते ही मुझसे बोला देख तो बे ये साला गुमनाम लैटर आज घर आया है।गनिमत है कि घर मे किसी के हाथ नही लग गया वरना बाज़ा बज़ जाता।इससे पहले कि वो लैटर बाबा के हाथो से मेरे हाथ पंहुचता बीच मे ही एलन नाट और रोड मार्श से भी ज्यादा तेज़ी दिखाते हुये दीलिप और बल्लू ने वो लैटर बीच मे ही लपक लिया और दोनो एक साथ शेयर कर उसे पढने लगे।पल-दो-पल नही गुज़रे होंगे दीलिप ने बाबा का हाथ पकड़ कर बधाई देना शुरू किया।छा गया भाई तू तो।ग्रुप का पहला मेम्बर है जिसे किसी लड़की ने लैटर लिखा है।देख बल्लू है न किसी लड़की की राईटिंग्।सेम भाई सेम।हर बात पर मेरी मुर्गी की एक टांग भी नही,बोल कर अड़ने वाले बल्लू को बिना शर्त दीलिप को समर्थन देख मेरा माथा ठनका।मैने कहा दिखा तो।तब तक़ दोनो भाई बाबा यार पार्टी बनती है,कह कर उसे दूर ले जाने लगे।वो बोला अबे उसको तो दिखाने दे।अबे छोड़ न साले बजरंगी को।वो क्या जानेगा लडकी की राईटिंग कैसी होती है?जबरन उसमे खोट निकालेगा।अब मेरी समझ मे आ गया था कि दोनो उसको निपटाने मे लग गये हैं।मैने एक बार फ़िर ट्राई किया बाबा सुन तो बे।उसने पलट कर कहा चल रहा है क्या?कुछ खा पी के आते हैं।मैने अपना सिर पकड़ लिया और प्रेस की प्र निकल लिया।
अब रोज़ शाम को बाबा आता और उसके आते ही दीलिप बल्लू और वो तीनो कंही निकल जाते।बाकी लोगो से मै पूछता तो जवाब मिलता पता नही किसी लफ़ड़े मे है लगता है,ये जवाब मिल जाता।एक दिन दफ़्तर मे मेरे हरीराम यानी शोले के केश्टो ने मुझसे कहा भैया ये आपका दोस्त बीमार है लगता है।मैने पूछा तुझे कैसे पता चला।वो बोला कि ये हर आधा घंटे मे बाथरूम जाता है और बहुत देर तक़ घुसा रहता है।मैने हरीराम से कहा साले तेरा दिमाग तो सही है ना।वो बोला आप खुद चेक कर लो।जैसे वो जायेगा मै आपको बता दूंगा।उस उसकी बात सही निकली।
मै चिंता मे पड़ गया।दूसरे दिन भी वही हुआ तो मै बाबा को साथ लेकर बाहर निकला और उससे बार-बार बाथरूम जाने का राज़ पूछा।शुरू मे वो भड़का मगर जैसे ही स्बको बताने की मैने उसे धमकी दी तो उसने सरेंडर कर दिया।उसने बताया कि वो लैटर पढने बाथरूम जाता है।मैने हैरान होकर पूछा कैसा लैटर्।तो उसने बताया एक लड़की ने मुझे लिखा है। अब मेरी खोपड़ी मे बात घुस गई।मैने उससे कहा तुझे कैसे पता कि वो लड़की ने ही लिखा है।तो वो बोला उस दिन तेरे सामने बल्लू और दीलिप ने नही बताया था कि वो किसी लडकी की राईटिंग का है।इससे पहले मै उसे कुछ कह पाता वो शूरू हो गया।क्या बताऊं भाई रे जब से लैटर मिला है ज़िंदगी संवर गई है।दिन मे सौ बार उसे पढ ना लूं तो चैन नही मिलता।रात को ऊठ ऊठ कर उस पढता हूं।प्रेस मे भी चैन नही मिलता तो बाथरूम मे छिप कर पढता हूं।क्या बताऊ भाई दो बार मेरा एक्सिडेंट होते होते बचा है। हैं,मैने आश्च्र्य व्यक्त किया तो उसने बताया कि लैटर मे तेरी भाभी ने लिखा है कि वो मेरे घर और प्रेस के बीच मे कंही रह्ती है और बाल्कनी मे खड़ी होकर मुझे प्रेस जाते ह्ये देखकर ही अंदर जाती है।उसे डांट भी पडती है बे।मैने उसासे पूछा तुझे कैसे पता।तेरी भाभी ने सब डिटेल मे लिखा है बे।भाभी कौन भाभी बे।अबे आज नही तो कल तो होगी ना।गुस्से से मेरा दिमाग खराब हो रहा था मगर बाबा की हालत देख कर मुझे डर भी लग रहा था।
दुसरे दिन शाम को मै रूपकला पंहुचा और सीधे दीलिप और बल्लू को बोला तुम लोग साले मरवाओगे।दोनो ने एक साथ् पूछा क्या हो गया?मैने दोनो को बाबा की स्थिति बता दी।दोनो सन्न रह गय्रे।दोनो बोले यार हम तो मज़ाक कर रहे थे,तू एक दिन गुस्से मे बोला था निपटा दो उसको तो………मै बोला मै तो उसी दिन समझ गया था जिस दिन तू राईटिंद एक्स्पर्ट बन गया था और तू बिना बोले इसक सपोर्ट कर रहा था।तब दोनो बोले यार ये मज़ाक तो साला महंगा पड़ जायेगा लगता है।मैने कहा हां लग तो रहा है।तब दोनो ने मुझसे कहा तू बाबा को सच बता दे।मैने कहा तुम लोगों का आईडिया था तुम लोग बताओ।उन लोगो ने कहा कि वो अब हमारी बात पर विश्वास करेगा या नही ये भी समस्या है,इसलिये तू भी साथ मे रहना और बात को संभाल लेना।मैने कहा ठीक है।उतने मे बाबा आ गया।मैने ईशारा करना शूरू किया और ले देकर दीलिप ने हिम्मत दिखाई और कहा बाबा वो लैटर फ़र्ज़ी था,वो हम लोगो ने लिखवा कर तुझे पोस्ट किया था।बाबा के मुंह से निकला क्या बकवास कर रहे हो बे।नही भाई सच कह रहे हैं सारी यार्।अब बाबा का गुस्सा देखने लाय्क था।अनाप-शनाप गालियां बक कर जब वो थक गया और उसके बाद ये कह कर कि आज के बाद साले तुम लोगों की सूरत नही देखूंगा कह कर चला गया।उसे समझाने की बहुत कोशिश की गई मगर उसका गुस्सा साल भर तक़ ठंडा नही हुआ।साल भर वो रुपकला के सामने से भी नही गुज़रा दफ़्तर मे भी वो मुझे देख कर मुंह मोड लेता था।मेरे लाख सम्झाने पर भी वो मुझे भी षड़यंत्र मे शामिल मानता था।साल भर बाद जब उसका गुस्सा ठंडा हुआ तो उसने फ़िर आना शुरू किया और फ़िर उसके साथ दीलिप और बल्लू ने मज़ाक क दिया।क्या किया बताऊंगा किसी दिन फ़ुरस्त में।
25 comments:
hahahahaha........bahut achcha laga yeh sansmaran........... maZa aa gaya padh ke....
बढिया संस्मर्ण
बहुत ही सुंदर यादे,मजे दार.. दिन जो पखेरू होते पिंजरे मै रख लेता,पालता उन को जतन से मोती के दाने देता...
Aise hi sansmaran to logon ko aapka fan banate hain.... :)
मजेदार भाषा में मजेदार संस्मरण
फणीश्वर नाथ रेणुजी का वाकया याद आ गया है। रेणुजी ने भी अपने एक लेखकीय मित्र को एक महिला प्रशंसक के रूप में पत्र लिखा करते थे। उस जमाने में महिला प्रशंसक होना बडी बात माना जाता था।
जब भी पत्र मिलता वह लेखक मित्र रेणु जी को बताता कि देखिये मेरी महिला प्रशंसक ने क्या लिखा है और खूब मुदित होते। ईधर रेणु उनकी चहक का मजा लेते।
काफी समय बाद सभी दोस्तों के सामने ही रेणु जी ने खुलासा किया कि वह महिला प्रशंसक के रूप में पत्र उन्होने ही मजे लेने के लिये लिखा है। उसके बाद तो हंसी का गुबार मित्रों के बीच छूटा था।
रोचक संस्मरण।
संस्मरण रोचक है जी!
आपकी कलम बढ़िया चल रही है।
"किसका चक्कर किसके साथ चल रहा है"
एक दम सही ...बहुत से महानुभावों का यही फुल टाइम धंधा रहता है :)
लगी बहुत बुरी होती है। फिर हवा में लग जाए तो ....
बेचारे को मामु बना दिया, अच्छा किया भेद खोल दिया नही तो "बाथरुम"आज तक भी बुक रहता। हा हा हा और आज पता चला वो रुपकला की वाट....
अनिल भाई,
आज समझ आया कि कुछ ब्लॉगर भाई कुछ खास पोस्ट ही बार-बार क्यों पढ़ते रहते हैं...बेचारे खबरी बाबा से ही कुछ सबक ले लेते...
जय हिंद...
किस्सा मस्त है बहुत रोचक लिखा है, आखिर तक बांधकर रखा।
अनिल जी, आपने तो हमें भी अपने गधा पचीसी वाले उम्र के समय की बहुत सी बातें याद दिला दिया।
वो भी क्या दिन होते थे!
बी एस पाबला
मजेदार संस्मरण :)
जाने कहाँ गए वो दिन ......... :)
वाह छा गये गुरु। क्या जमाना याद दिलाया है? गब्बर और सांभा कुर्बान हुये इस पोस्ट पर।
जय भवानी।
एक महिला अच्छे से अच्छे आदमी को पागल बना देती है। तभी तो सब डरते हैं और उसे मुठ्टी में रखने का जतन करते हैं। बढिया पोस्ट है।
ऐसा ही कुछ गेम मै भी कर चुका हु अपने दोस्तों के साथ ...जयपुर में था तो एक मोटे लडके को खुद लड़की की आवाज में बात करके खूब ढेर सारी बाते रिकार्ड कर लिया था और १ अप्रैल को कालेज में सबके सामने मेरे दोस्तोने रख दिया ...आज तक सोचने पर तरस आता है उस बेचारे पर ...काश मै ऐसी बात ना करता और ना तो मेरे दोस्त लोग उसे फसाते
सही है.. अभी तक हंस रहे हैं.. :)
किस्सा सुनकर हंस हंस कर लोट पोट हुआ जा रहा हूँ :)
हा हा ! मस्त.
बाद मे वो बोला नही अभी कर लिया तो कर लिया मजाक अब देखो करके..वाह अनिल भाई अलेन नॉट और मार्श को बढिया लपेटा । इसे थोड़ा शॉर्ट करना था स्कूल मे प्रेसिस राइटिंग नही किये क्या ?
ओह, हमें तो किसी छद्म लड़की ने भी नहीं लिखा छद्म पत्र! :(
" haaaaa ...haa ..ha bahut hi badhiya maza aagaya ."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
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