मैं जीतना चाहता था आदत से मज़बूर होकर्।दोपहर को मैने पहली फ़ुरसत मे घर फ़ोन लगाया और पूछा युती की तबियत कैसी है?जवाब मिला सो रही है।सोने के मामले मे वो अपने बाबा यानी मुझ पर ही गई है।कोई उठाये न तो शाम तक़ भी सो सकती है।मैने सोचा चलो थोड़ी देर बात पूछ लेंगे।शाम को पूछा तो जवाब मिला अभी ठीक है।बस मैं खुश हो गया।अब रात को उसको चिढाने का प्रोग्राम फ़िक्स था और अपनी जीत का जश्न भी।
रात को मैं घर थोड़ा देर से पंहुचा तो आवाज़ सुनकर युती नीच्रे आई और उसे देखते ही मैने कहा क्यों बेटा था ना बहाना।वो कुछ नही बोली और आकर मुझसे रोज़ की तरह लिपट गई।तब मैने महसूस किया कि उसका शरीर तप रहा था।मै हड़बड़ा कर बोला बेटा आपको तो बुखार है।वो बोली हां बाबा।मैं जैसे आसमान से गिरा था।मुझे खुद पे बहुत शर्म आई।मैने उससे कहा कि बेटा तो आराम करना था ना,नीचे क्यों आये?वो बोली बाबा आपको गुड़नाईट करना था,इसिलिये।
मुझे लगा कि मैं शायद अपने से ज्यादा सोच ही नही पाता हूं।मुझे खुद पर शर्म आने लगी।मैं जीतना था किससे?मैने युती से पूछा बेटा ये बताओ जब आपको बुखार था तो आपने सुबह झूट क्यों बोला की आपको उल्टी जैसा लग रहा है?उसका जवाब और ज्यादा हैरान करने वाला था।उसने कहा कि बाबा मैने अपने माथे को छूकर देखा था,वो गरम नही था।मुझे लगा कि मम्मी वैसे भी समझती है कि मुझे बस खेलना और कार्टून देखना अच्छा लगता है इसलिये वो मेरी बात मानेगी नही,इसलिये मैने उल्टी जैसा लगने की बात कही और मुझे सच मे उल्टी जैसा भी लग रहा था।और आप भी बाबा आजकल मुझ पर विश्वास नही करते।मैने कहा नही बेटा ऐसी बात नही है।वो फ़िर बोली तो फ़िर आप क्यों बोले मैं बहाना बना रही हूं।तब शायद मुझसे रहा नही गया और मैने कहा कि बेटा जो जैसा होता है ना वो दुसरों को भी वैसा ही समझता है।वो बोली इसका मतलब बाबा आप स्कूल जाते समय बहाना बनाते थे।मैने गहरी सांस लेकर कहा हां बेटा।और उसके बुखार से मुरझाये चेहरे पर हंसी तैर गई।वो बोली बाबा आप भी,अब मैं मम्मी को बताऊंगी।मैने कहा बता देना बेटा लेकिन झूठ कभी नही बोलना चाहिये।वो बोली बाबा हम लोग कभी झूठ नही बोलते।चाहे कितनी भी पीट्टी पड़े मै और हर्षू(ओम)कभी झूठ नही बोलते।मैने कहा अच्छी बात है बेटा जाओ सो जाओ,गुड़नाईट्।
गुडनाईट कह कर वो सोने चली गई मगर मेरी नाईट गुड नही रही।मैं रात भर सोचता रहा कि हम लोगों ने जितनी मस्ति की,शरारते की,अब अपने बच्चों को वो सब करने मे पूरी ताक़त लगा रहे हैं।पहले बस्ते इतने भारी नही होते थे और न होमवर्क और प्रोजेक्ट।तब बचपन खुल कर खिलखिलाता था उसपर जाने कितना बोझ लाद दिया है हमने और बचपन की हंसी छीन कर उसे अच्छे नम्बरों से पास होने के तनाव मे डबाने के अपराधी शायद हम ही हैं,कोई दूसरा नही।पता नही सोचते-सोचते नींद लग गई।सुबह उठा तो पता चला की युती सो रही है रात को उसका बुखार बढ गया था और नींद मे बड़ाबड़ाती भी रही,बाबा भी बहाना बनाते हैं।मुझे लगा आज जैसी हार मैने कभी नही देखी है,कभी नही।मेरा हमेशा जीतने का घमण्ड चूर-चूर हो चुका था।पता नही आंखों के कोनों से दो मोती चुपके से कब निकल आये,शायद वो एक फ़ुल से बच्चे पर विश्वास नही करने ले पाप का प्रायश्चित थे।
(पहली युती,दूसरी युती ओम और मेरा भांजा आयुष,और तीसरा हर्षू उर्फ़ ओम,रोज़ यही काम तो पीट्टी कैसे नही पड़ेगी बेटा?)
कल की पोस्ट पर महफ़ूज़ भाई,बालकृष्ण अय्यर,पी सी गोदियाल,जी के अवधिया,ललित शर्मा,अभिषेक ओझा,अरविंद मिश्रा,सगीता पुरी,अलबेला खत्री,अनिल कान्त,दिनेश राय द्विवेदी,डा कुमारेन्द्र सेंगर,अजीत वडनेरकर,संजीव तिवारी,चंद्र मौलेश्वर प्रसाद,अल्पना वर्मा,श्रीकांत पाराशर,शरद कोकास,संजय बेंगाणी,एम वर्मा,डा अनुराग,रमेश शर्मा,बी एस पाब्ला,विजय अरोरा,राज भाटिया,उड़न तश्तरी,स्मार्ट इंडियन,विवेक रस्तोगी और खुशदीप सहगल आये और आपने अपने विचार बताये।मै आभारी हूं आप सबका।आप सभी का और जिन्होने पढा मगर कमेण्ट नही कर पाये उन सभी का हमेशा ऐसा ही प्यार चाहूंगा।
26 comments:
beby yuti ke liye hazaaron aashish aur snehil shubh kaamnaayen
swasth raho
mast raho
___________skool se dandi maarni ho to bahaanaa mujhse poochho
MUFT SEVA...HA HA HA
-Kal main ne aap se kaha tha na..us ki baat ko gambhirta se lijeeye...
-auron ke liye bhi ab yah baat ek lesson hai ki apne bachchon ko Kabhi GALAT na samjhen...please ...aur na kabhi unhen UNDERESTIMATE karen...
-Agar kabhi wo koi shikayat ya problem discuss karte hain to khud ko khushnaseeb manNa chaheeye ki aap se kah paa rahe hain....
-Warna to Bacche ..Parents ki strictness ke karan ya Hesitation ke karan ..sach batate bhi nahin hain.
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***Get well soon dear Yuti!***
युति अब स्वस्थ होगी!
पोस्ट ने भावुक कर दिया और आँखे पनीली।
बहुत सुन्दर पोस्ट और मर्मस्पर्शी। ब्लॉगिंग की विधा है ही इस अभिव्यक्ति के लिये!
बहुत सुन्दर आत्म विश्लेषण अनिल जी ! इसी लिए तो कहा जाता है कि बच्चे दी ग्रेट ! बहुत कुछ सिखा देते है बडो को ! ज़रा कल्पना कीजिये कि मेरे जैसे गर्म मिजाज माँ-बाप अगर उसके इस तर्क कर कि आपको कैसे मालूम कि "मै बहाना कर रही हूँ" दांत डपट देते और एक थप्पड़ मार कर स्कूल भेज देते ( जैसा कि अक्सर घरो में होता है ) तो बाद में कितनी आत्मग्लानि होती ?
संवेदनशील रचना। बधाई।
ये बात सही है की माँ बाप को हमेशा यही लगता है की बच्चे स्कूल से बचने के लिए बहाने बनते हैं....पर इस घटना के बाद आप कम से कम युति और ओम पर भरोसा करेंगे! युति के अच्चे स्वास्थय की कामना करती हूँ और हाँ उसका पानी में भीगा फोटो .....बुखार तो आना ही था!
आशा है कि युति अब स्वस्थ हो गई होगा। भैया, आजकल एक नया वायरल फ़ीवर का दौर चल रहा है जो डेंगु और चिकनगुनिया का मिक्स है। मेरे पोत्रे को ठीक होने में १५-२० दिन लग गये॥
अक्सर भावुक कर ही कर देते हैं आप।
ये बात सच है कि पहले बचपन खुल कर खिलखिलाता था, अब उसे तनाव मे डुबाने के अपराधी शायद हम ही हैं।
बी एस पाबला
मर्मस्पर्शी पोस्ट.आपने सच कहा,बहुत हद तक हमने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है उनपर अपेक्षाओ का बोझ लादकर.
युती बिटिया से मिलकर अच्छा लगा। हमारी ढ़ेर सारी दुआएं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भावुकता से ओतप्रोत
युती के माध्यम से अनेक दृष्टिकोण दिये है आपने
युती स्वस्थ हो गयी होगी और फिर चहक रही होगी
युती को प्यार
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अनिल जी,
४ वर्ष के बच्चे का पिता हूँ और अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि बच्चे बीमारी के मामले में कभी झूठ नहीं बोलते,अत: यदि वे कोई शारिरिक कष्ट की शिकायत करते हैं तो पूरी गंभीरता से लें।
युति को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ...
मैने तो कल ही कह दिया था कि आजकल के अभिभावक बच्चों पर विश्वास नहीं करते .. आपके पोस्ट के माध्यम से उनमें कुछ जागृति आए !!
सचमुच ये एक सबक ही है हमारे लिए... बेहद मर्मस्पर्शी पोस्ट... भावुक कर दिया आपने..
हम लोगों ने जितनी मस्ति की,शरारते की,अब अपने बच्चों को वो सब करने मे पूरी ताक़त लगा रहे हैं।पहले बस्ते इतने भारी नही होते थे और न होमवर्क और प्रोजेक्ट।तब बचपन खुल कर खिलखिलाता था उसपर जाने कितना बोझ लाद दिया है हमने और बचपन की हंसी छीन कर उसे अच्छे नम्बरों से पास होने के तनाव मे डबाने के अपराधी शायद हम ही हैं,
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आज बच्चों पर पढाई का इतना ज्यादा बोझ है ,की हमारे वक़्त में तो कुछ भी पढाई का बोझ था ही नहीं .
सच कहा आपने बच्चों पर सारा बोझ लाद कर हमने उनका बचपन और भोलापॅन छीन लिया है तभी उनको कभी कभी झूठ बोलना पड़ जाता है
युती बिटिया अब तो बिलकुल ठीक हो गई होगी, भाई हम ने तो सोचा कि हमारी तरह से बहाने वाजी कर रही होगी? आप के इस लेख ने सच मै भावूक कर दिया.
धन्यवाद
मामला वहीं निकला, जो हमें लग रहा था।
आपने पूरा हाल, पत्रकारों वाली पारदर्शिता से सामने रख दिया। यह ब्लागिंग का चमत्कार है।
बढ़िया पोस्ट।
युति को प्यार
गुडिया स्वस्थ हो गई होगी ..उसे स्नेहाशीष दें । आपने पूरी बात सामने रख दी और हमने भी अपना अपना चेहरा उसमें देख लिया.सच तो ये है कि आज के बच्चों पर सही में ही बहुत दबाव है ..और ये सब हमारा ही किया धरा है ।
देखिये एक दिन नहीं टीप पाए तो आपने लिस्ट से हमारा नाम ही उडा दिया ..पोस्ट डेटेड चेक की तरह डाल देते ...हम टीप देने तो आते ही ..। अब कल वाली में न छूटे ध्यान रखियेगा ।
सरजी ।दीपावली पर आपका बधाई संदेश प्राप्त हुआ था ,इस से पूर्व नव वर्ष पर भी ,अब धन्यबाद दे रहा हूं ,बहुत दिन से गैर हाजिर रहना मेरी मजबूरी थी ।आज के बच्चे बहुत समझदार और सम्वेदन शील है ,यदि उनको कोई तकलीफ़ हो और हम उसे वहाना समझे इससे वे आहत हो ते है यह सही है कि हम भी वहाना बनाया करते थे ।बस्तों ने जरूर उनका बचपन छीन लिया है ।अच्छे नमबरों से पास होने को प्रेरित करना तो अच्छा है क्योंकि आज के माहौल मे यह आवश्यक भी हो गया है किन्तु अच्छे नम्बर न आने पर डाटना और उलाहना देना अच्छा नही न ही दूसरे बच्चों से तुलना करना अच्छा होता है । पोस्ट बहुत अच्छी लगी ,बाल मनोविग्यान पर
अनिल जी,
काल की पोस्ट पढ़ी पर कमेन्ट न दे पाया क्योंकि सबके भांति हमने भी अपने अतीत में उत्तर तलाशने की कोशिश की और खुद को एक सच और बहाने के दुराहे पर ही पाया. वास्तव में युति का प्रश्न साधारण शब्दों में भी जटिल था या यूँ कहें कि अपने अनुभवों ने जटिल कर दिया था (कनफुजिया दिया था)....
आज पोस्ट पढ़कर और भी मर्मस्पर्शी अनुभव हुआ...हृदय के गर्भ में कहीं कुछ तो हिल गया. ऊपर से कल दोराहे पर होने के अनुभव ने खुद को छोटा भी महसूस कराया...
युकी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ,
सुधीर
बिल्कुल सही लिखा आपने। हम बच्चों को भी अपने ही जैसा समझते हैं। मार्मिक।
Bachche man ke sachche... sare jag ke aankh ke tare....
देर आयद दुरुस्त आयद. कोई भी किसी का दिमाग नहीं पढ़ सकता है, और जो भी इस क्षमता के भ्रम में रहता है, कभी-न-कभी (या अक्सर) धोखा खाता है. हम सब को इस घटना से कुछ सीखना चाहिए.
I Hope she iz fine now.. :-)
Sir baachon ki soch sbse badi hoti kyunki unka dil saaf hota hai...
Kitne safai se ur daughter said mumma ko toh bus yahi lagta mjhe khelna aur cartoon dekhna pasand hai... Mostly parents aaisaa sochte hain baache bahana kar rahe.. But kitne aache se aapki soch ko yeh baache samne rakh k shock kar dete.. :)
Kaam ke bojha ke tale dabe har Parents ki haalat aise hi hoti hai....magar mein sochata hun yeh unhein bhi Samasyaaon se jujhane mein madad saabit hogi...magar hamein unki baat par Viswas karana jaruri hai...aap bhagyashali hain jo we bataate hain aap se...kuchh bache to kuchh bolte bhi nahin....khud hi bhugatte rahate hain....Bhagavaan Unhein Shakti aur Badon ko Budhhi Dein...
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