Saturday, November 21, 2009

बाबा! पप्पा ना, यंही छुपा के अंडा खिलाते हैं मुझे!

बहुत दिनों बाद कांकेर रोड़वेज़ के दफ़्तर गया।वंहा राज्य के सबसे बड़े ट्रांसपोर्टर प्रीतम सिग गरचा से मिला और इसी बीच उनका पुत्र नैबी आ गया।नैबी हाय हलो के बाद अपने काम मे लग गया और मुझे याद दिला गया अपने भतीजे हर्षू और उसके साथ हुआ एक बेहद मज़ेदार किस्सा।

कुछ दिनो पहले मै जब रात को घर से निकला तो मेरा भतीजा हर्षू उर्फ़ ओम साथ मे लटक लिया।बहुत समझाने के बाद भी जब वो नही माना तो मै उसे साथ लेकर घूमने लगा।तभी कांकेर रोड़वेज़ के प्रीतम सिंग जी का फ़ोन आया।उन्होने पूछा कंहा हो और मैने जवाब मे उनके दफ़्तर आने की बात कही। मै वंहा पहुंचा और काम की बात करके वापस जाने के लिये निकला ओ उनका छोटा पुत्र नैबी वंहा आ गया।वो कैनेड़ा से पढाई करके लौटा है और गाड़ियों का बहुत शौकिन है।वो टाटा की एक नई गाड़ी मे आया था। मैने इससे पहले वो माडल देखा नही था।

ज़ेनन नाम की गाड़ी बहुत बढिया लग रही थी।मैने उससे पूछा चलने मे कैसी है। इतना सुनते ही उसने चाबी मेरी ओर बढाई और कहा आप खुद चला कर देख लिजिये।मैने कहा कि फ़िर कभी तो हर्षू मचल गया।वो बोला चलो ना बाबा मस्त गाड़ी है।मेरा साढे तीन साल का भतीजा हर्षू गाडियों का दीवाना है और खिलौने भी उसे गाड़ियां ही चाहिये।अब ये दूसरी बात है कि दूसरे ही दिन वो गाड़ी सिर्फ़ कबाड़ी के लायक ही बचती है।

हर्षू की ज़िद के कारण मैने गाड़ी की चाबी ली और टेस्ट ड्राईव पर निकल गये मै हर्षू और नैबी।इधर-उधर घूमने के बाद एक सड़क से जब गुज़रे तो अचानक़ हर्षू बोला,बाबा,बाबा।मेरे पप्पा ना मुझे यंही छुपा के अंडा खिलाते हैं।मैने कहा बेटा गंदी बात नही करते।अपन लोग अंडा नही खाते।हर्षू तो फ़िर हर्षू ठहरा।वो बोला नई बाबा मैं झूठ नही बोल रहा हूं।आजी(दादी)मना करती है ना इसलिये पप्पा यंहा छुपा के अंडा खिलाते हैं।मेरी हालत खराब हो रही थी।मैने आखिरी ट्राई मारा और कहा बेटा पप्पा ने मज़ाक किया होगा।वो कंहा मानने वाला था।वो पूरी ताकत से बोला नई बाबा मज़ाक मे नई सच मे मुझे यंहा अंडा खिलाते हैं।अब तक़ नैबी सब समझ चुका था।वो हंसते हुये बोला जाने दो भैया बच्चों को क्या कहना है पहले से बताना पड़ता है वरना पोजिशन खराब हो ही जाती है।और वो ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा।फ़िर मुझसे बोला फ़िकर मत करो मै किससे कहने लगा कि आपका भतीजा अंडा खाता है।

अब मै भी हंसा और उसे बताने लगा कि हर्षू अस्थमैटिक है और सर्दियों मे डाक्टर ने उसे अंडा खिलाने के लिये कहा था।अब घर मे तो अंडा खाना मना है।सुशील(छोटा भाई)ने आई(माता जी)से पूछा था तो उन्होने साफ़-साफ़ कह दिया था तुम लोग बाहर खाना खाने जाते ही हो तो वंहा खिला देना घर मे अंडा नही आयेगा,बस्।तभी हर्षू बोला इसिलिये तो पप्पा मुझे छुपा के अंडा खिलाते हैं और बोले भी है कि आजी(दादी) को मत बताना।अब ये बात नैबी को तो पता चल गई है,वो तो हंस दिया मगर मै सोचता हूं कि जब आई को पता लगेगी तब क्या होगा?

20 comments:

Udan Tashtari said...

बच्चे तो बच्चे होते हैं.

शायद उसे छिपाने के लिए नहीं कहा होता तो न भी बताता. :)

चलता है और फिर आई बोल भी चुकी हैं कि बाहर खिला दिया करो तो फिकर नॉट!!

दीपक 'मशाल' said...

Are bhaia darte kyon hain? Aai ne hi to kaha hai ki--
उन्होने साफ़-साफ़ कह दिया था तुम लोग बाहर खाना खाने जाते ही हो तो वंहा खिला देना घर मे अंडा नही आयेगा,
fir fikra kis baat ki.. :)
Jai Hind...

योगेन्द्र मौदगिल said...

सोचना क्या... जो भी होगा देखा जायेगा..

उम्मतें said...

परमीशन तो वे पहले ही दे चुकी हैं !

विवेक रस्तोगी said...

पर अब तो हमको भी पता चल गई है कि हर्षू अंडा खाता है वो भी छिपकर...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बच्चे तो बच्चे ही ठहरे...

Unknown said...

यहाँ तो बच्चे के भलाई के लिये ही अंडा खिलाया जा रहा है किन्तु आजकल हम लोग अपने स्वार्थ के लिये ही बच्चों से झूठ भी बोलवा लेते हैं, मोबाइल में नंबर देखने के बाद यदि किसी से बात नहीं करनी रहते हैं तो अपने बच्चे से कहते हैं कह दे "पापा घर में मोबाइल छोड़ कर बाहर गये हैं"।

(अब बच्चा तो बच्चा ही है यदि वह कह दे कि "पापा कह कह रहे हैं कि वे घर पर नहीं हैं" तो .....)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अंडा का फ़ंडा यह है कि अब वो तो शाकहारी है.... कौन सा मुर्गे की मेहनत का है :)

राज भाटिय़ा said...

बच्चे मन के सचे होते है, मां भी माफ़ कर देगी, बहुत अच्छा लगा पढ कर

दिनेशराय द्विवेदी said...

आई तो ब्लाग पढ़ती हैं या नहीं? हमें नहीं पता। पर हमें तो पता चल चुका है। अब जब भी आई से मिलेंगे तो जरूर बता देंगे कि आप क्या क्या लिखते हैं?

मसिजीवी said...

हमने बचपन में सारे अंडा भक्षण कार्यक्रम छिपकर ही निपटाए हैं...कई ब्राह्मण दोस्‍तों को भी भ्रष्‍ट किया है। रेहड़ी पर खाए अंडों के स्‍वाद और सफाई की चर्चा तो नहीं करेंगे पर एडवेंचर का अपना मजा था।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bachche waaqai mein man ke sachche hote hain.... aai maaf kar dengi....

bahut achchi lagi yeh post...

प्रवीण said...

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आदरणीय अनिल जी,
मैं तो हिन्दुस्तान के हर बच्चे से यही कहूंगा...
सन्डे हो या मन्डे, रोज खाओ अन्डे।
सच ! अन्डे से बेहतर प्रोटीन नहीं बनाया कुदरत ने...

आओ 'शाश्वत सत्य' को अंगीकार करें........प्रवीण शाह

Mithilesh dubey said...

बच्चो के लिए सब माफ है ।

शरद कोकास said...

अंडे का फंडा तो बच्चे की समझ मे आ गया ..उसे क्या पता बड़े लोग छुप छुप कर क्या कया करते है .. अरे बच्चा है भाई ।

Khushdeep Sehgal said...

अनिल भाई,
तीन साल पहले अंडा, मीट खाना सब छोड़ दिया...पत्नी भी नहीं खाती...लेकिन दोनों बच्चों- सृजन और पूजन को
हफ्ते में एक बार ज़रूर केएफसी का चिकन छका देता हूं...दरअसल बढ़ते बच्चों के लिए प्रोटीन जितना आवश्यक होता है...चालीस की उम्र पार कर जाने के बाद हमारे लिए उतना हानिकारक होना शुरू हो जाता है...वैसे भी बाज़ार में जो अंड़े मिलते हैं उनसे कोई जीव नहीं बन सकता, इसलिए वो शाकाहारी ही होते हैं...हर्षू को पापा के साथ मस्त रहने दीजिए...रही बात आई की तो उन्हें संभालने के लिए आप हैं न...

जय हिंद...

Anil Pusadkar said...

शरद भाई मैं सब समझ रहा हूं,रहा सवाल रात्रिकालीन सत्संग का तो सांप भी जमाने मे कितना भी लहरा के चले मे बिल मे तो सीधा ही जाता है ना।बस यही एक काम सत्संग मै सिर्फ़ घरवालों से छिपा कर करता हूं,वो भी इस्लिये की माताजी को पसंद नही है,वरना अपना तो हर खेल खुल्ला फ़र्रूक्खाबादी होता है।अच्छी याद दिला दी इस मामले मे हमारे दोस्तों की राय पर ही एक पोस्ट लिख मारता हूं।

अजय कुमार झा said...

अनिल जी ,
आपने तो हर्षू की बात बताई...हम तो खुद गांव में एक बार छुप के अंडे खाते पकडे गये....अगले दिन बवाल होना तय था तो उपाय ये निकाला कि ....रातोंरात इतने अंडाकारियों को इकट्ठा कर लिया ..कि अगले दिन से छुपना छुपाना बंद और वही खुल्ला खेल ..बिल्लन वाला

अजय कुमार झा

Alpana Verma said...

egg --wasie to non-veg mein aaj kal maana hi kahan jata hai---

-bacche ko pasand hai aur sehat ke liye zaruri bataya hai..to khilane mein harz nahin aur...'aayi 'bhi man jayenge...
Baat 'pote ki hai--'Dadi' kuchh nahin kahengee..Sure!:)

डॉ महेश सिन्हा said...

कहावत है मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता है :) तो आई ने भी एक बीच की राह दिखा दी , बेटे घर में तो नहीं चलेगा लेकिन बाहर ऐतराज नहीं है . हमें ये लगता है कि कई बातें या आदतें हमारी छुपी रहती हैं हमारे बुजुर्गों से लेकिन कुछ बातों को वो जानबूझकर नहीं जताते जबकि मालूम सब रहता है उन्हें .