Sunday, November 22, 2009

हे भगवान,अगले जनम मे तू मुझे सींधी या सरदार ही बनाना!अबे मुसलमान भी जोड ना,उसको क्यों छोड़ रहा है!

समीर लाल जी की एक पोस्ट ने और मेरी कल की पोस्ट पर शरद कोकास ने टिपण्णी ने मुझे ये पोस्ट लिखने पर मज़बूर कर दिया।समीर लाल जी की पोस्ट मे उनके सामने मदिरा का लबरेज़ समन्दर था और मेरे भतीजे को छुपा कर अंडा खिलाने पर थी वो पोस्ट थी जिस पर शरद जी ने कहा था कि अंडे का फ़ंडा तो बच्चे की समझ मे आ गया ,उसे क्या पता बड़े लोग छुप-छुप कर क्या करते हैं।वो बात सीधे-सीधे मेरे लिये ही थी।साफ़-साफ़ कहा जाये तो मेरे शराब पीने पर थी।बात बहुत ही खरी थी और इस बात से मैं और मेरे जैसे कुछ और भाई शुरू-शुरू मे बहुत परेशान रहते थे।उनमे से अधिकांश की शादी हो गई है और वे स्वतंत्र पारिवारिक इकाई भी बन गये है मगर वे परेशान आज भी रहते हैं।इस समस्या का हल,कालेज के और उसके बाद संघर्ष के दिनों मे खोजने की बहुत बार कोशिश हुई थी और एक बार नही कई बार ऐसे मौके आये जब इसका हल निकलता नज़र आया मगर उसका फ़ायदा तत्काल नही होने वाला था।

मुझे शरद भाई की बात बुरी नही लगी बल्कि उसने मुझे एक मज़ेदार किस्से को आपसे शेयर करने का मौका दे दिया।बुरा नही मानने वाली बात इसलिये कि मैं खुद ही कई बार बिना समझे निकल पड़ता हूं सिंग से निशाना लगाकर सिर नीचे किये हुये।खैर जाने दिजिये।हां तो मै क्या कह रहा था।हां बात कालेज के दिनो की है मदिरा,मैं मदिरा ही कहूंगा शराब नही,शराब थोड़ा चीप लगता है,तो हम लोगों ने उन दिनो छुप-छुप कर मदिरापान शुरू कर दिया था।कम्बाईन्ड स्टडी और हास्टल के कमरों मे धमा चौकडी भी होती थी और इसकी फ़्रिक्वेंसी भी क्लास बढने के साथ बढती चली गई।हास्टल मे इस लिये पीते थे कि वो पीने के बाद बस्साने(मदिरा का साईड इफ़ेक्ट,खुश्बू)के कारण पकड़ाने के रिस्क से बचाता था।मदिरा पान के बाद सब वंही सो जाते थे।

उन दिनो हास्टल मे सोकर उठ कर सुबह ज़ल्दी घर भागने की हड़बड़ी मे भी इस समस्या का बार-बार ज़िक्र होता था कि कब तक़ छुप-छुप कर मदिरा पान करना पडेगा?सब कालेज से विदा हो गये।घर से दूर एक और जो हमारा घर था हास्टल वो भी अब नही रहा था लेकिन मदिरा का प्रेम तो बढता जा रहा था।पीकर घर जाने से पहले घण्टो इधर-उधर भटकना,जाने से पहले बार-बार एक दूसरे को मुंह सुंघाना और पूछना देख तो भाई बता ना पता चल रहा है क्या?नही कहने पर फ़िर से एक बार चेक कर ले यार तू तो जानता है बाऊजी को डाऊट हुआ तो फ़टे तलक़ पडेगी।फ़िर से मुंह सुंघाना और घर जाने के बनते कोशिश की सीधे जाकर सो जाना या किसे से भी आमने सामने बात करने से बचना।अब क्या-क्या बताऊं इस मदिरा प्रेम मे क्या-क्या रिस्क नही उठाये ।

कालेज के बाद कुछ ने नौकरी पकड़ ली,कुछ ने नेतागिरी शुरू कर दी,कुछ व्यापार मे लग गये,कुछ ने वकालत शुरू कर दी और मैं एक अकेला पत्रकार हो गया।मदिरा अभी भी सबकी बिरादरी मे अपना महत्व बनाये हुये थी लेकिन हम दोस्तों मे अधिकांश के घर मे इसे वर्जित माना जाता था सिवाय बल्लू,दिलीप,लक्ष्मण,जिंदी,पाल या कह लिजिये सींधियों और सरदारों के।बल्लू तो घर मे डैड और बड़े भाई के साथ वो कभी-कभी बीयर पीकर अपने को कम पीने वाला साबित करता रहता था मगर दोस्तों के बीच टैंकर के नाम से मशहूर था।उसे घर मे कोई प्राब्लम नही थी मगर दोस्ती की खातिर वो भी हास्टल मे रुकता था।यही हाल दीलिप और लक्ष्मण का था,टीनू और टीटू चोपड़ा के भी घर मे ही बोतल खुला करती थी और उन सबकी बातें सुनकर और देखकर सिर्फ़ खून ही जला करता था।उनके यंहा परमीशन होने के बावज़ूद सभी अपनी नान-पीउ इमेज बनाने के चक्कर मे घर वालों की रिक्वेस्ट को मन मार कर ठुकराते थे।बारातों मे भी बिना पीये डांस नही करते थे लेकिन पीते तब भी छुपकर ही थे।
धीरे-धीरे सबका कोटा बढता जा रहा था और उसीके साथ घर मे पकड़ाने का रिस्क भी।

उन दिनो मेरे चाचा जी का एक मकान खाली पड़ा हुआ था उसे मैने काम्पिटिटिव एक्ज़ाम की तैयारियों के नाम पर ले लिया।अब तो सबकी निकल पड़ी थी।फ़िर से घर से दूर एक और घर वाले दिन आ गये थे और अब हास्टल के दिनो की तरह सुबह ज़ल्दी उठने के झंझट से भी फ़्री थे।शनिवार की रात की महफ़िल तो सच मे सैटर्डे नाईट फ़ीवर ही होती थी।इतवार की सुबह-सुबह ही कोई-कोई शुरू हो जाता था।

इस बीच दोस्तो की शादी होना भी शुरू हो गई थी।शकील ने तो एम एस सी फ़ायनल मे पढते हुये ही स्टेट बैंक की नौकरी लपक ली थी और बीच सेशन मे ही क्लास मे ही पढने वाली से शादी भी कर ली थी।जमकर हंगामा हुआ था,शहर मे तनाव भी बन गया था और सारे दोस्त घर मे हिट लिस्ट मे आ गये थे।तभी होटल मालिक सरदार बंटू की शादी तय हुई और बारात निकलने से पहले उससे पीने की व्यव्सथा होटल के कमरे मे करने के लिये कहा गया तो उसके छोटे भाई ने कहा क्या भैया बारात के साथ-साथ एक वैन मे स्टाक चलेगा,उसी मे पी लेना।तब कुछ दोस्तो ने उसे समझाया कि हम लोग सबके सामने नही पीते और अभी भी किसी को पता नही है कि हम लोग पीते हैं।तू बस इंतज़ाम ठीक-ठाक करवा देना।वो बोला इत्ते बड़े हो गये हो फ़िर भी।मैंने उससे कहा अबे तू वो कर जो कह रहें हैं।इत्ते क्या कित्ते भी बड़े हो जायें तो भी छुप कर ही पीना पड़ेगा शायद।
उसने मुझे हैरानी से देखा और पूछा ये क्या बात हुई।मैने कहा मेरे भाई हमारे घर मे शराब को बहुत खराब माना जाता है,समझा।जा भाग और देख इंतज़ाम बढिया होना चाहिये।वो चला गया और उसके बाद जब सब पीने बैठे तो उसकी बात फ़िर निकल आई।मैने कहा देखो यार छोटा भाई होकर क्या बढिया इंतज़ाम किया है,मैं अगर सुनील या सुशील को बोलूंगा तो पहले चिल्लायेगा आई देखो दादा क्या कह रहा है।साला ये जीना भी कोई जीना है।ये पीना भी कोई पीना है।कमरे मे छुप-छुप कर पी रहे हैं।पहले फ़ुल लोड़ होंगे तब तक़ बारात आधी दूर चली जायेगी।हमसे तो अच्छा वो छोटा भाई है मस्त डांस कर रहा होगा और थोड़ी-थोड़ी देर बाद पीछे जाकर सीप मार कर आ जाता होगा।मैने ठंड़ी सांस भरी तो लगा जैसे फ़ट्टू पीऊ गैंग़ रो पड़ेगी।शकील से लेकर चुन्नू तक़ एक सुर मे बोले सही कह रहा भाई तू।एकदम सही बात ये साला शराब को किसने खराब कह दिया उसका पता चले तो साले की वाट लगा देंगे।तब तक़ जिंदी बल्लू और दीलिप टनाटन ढकेल चुके थे।जिंदी बोला तो छुप कर पीते ही काहे को हो बे हमारे जैसे खुलकर पीओ और खुलक्र जीओ।इतना सुनकर मुझे गुस्सा तो बहुत आया मगर अपनी पोज़िशन ठीक नही थी सो मैनें सिर्फ़ एक ठड़ी आह भरी और कहा हे भगवान अगले जनम मे मुझे तू सींधी या सरदार ही बनाना।इससे पहले सब हंसते शकील और महमूद एक साथ बोले तो मुसलमान को क्यों छोड़ रहा है बेटा।मैने पूछा मुसलमानो के यंहा कंहा पीने की छूट है बे?तो दोनो बोले अबे तेरा क्या सिर्फ़ पीने का प्राब्लम है क्या?पढाई-लिखाई के नाम पर बचपन से घर मे मार खाते आया है।जब देखो तब बोलता था कि ये पढाई ज़िंदगी मे क्या काम आयेगी?तो?मैने सवाल किया।उन्होने कहा तो क्या बे,हम लोगो को देख कर नही बकता था तुन लोगो का ठीक है बे पढे तो ठीक नही पढे तो ठीक।कंही कबाडखाना खोल लिया नही तो कंही पंकचर बनाने बैठ गये।क्यों बोलता था ना।मै खामोश ही रहा।दोनो फ़िर बोले पीने के लिये सींधी बनेगा,सरदार बनेगा,व्यापार के लिये मारवाडी बनेगा,तो मुसलमान क्यों नही बनेगा बे।मै बोला अबे ढंग से इंसान बन जाये पहले फ़िर देखेंगे क्या बनना है।वो किस्सा आज भी सभी दोस्त दुहराते है और रात्रिकालीन सत्संग मे कभी पत्नी की लगातार काल से परेशान होकर इंडिपेंडेंट पति भी यही कहता है हे भगवान अगले जनम मे तू सींधी या सरदार ही बनाना।नोट ये पोस्ट किसी का दिल दुखाने या किसी को नीचा और ऊंचा दिखाने के लिये नही लिखी गई है।हां और एक खास बात ये सारी बातें सच है,झूठ ज़रा सा भी नही,ये भी नही कि मैं आज भी छुप-छुप कर ही पीता हूं।शहर मे गिनती के लोगों कोम पता है।शरद जी को इस लिये पता चल गया कि वो उस दिन साथ मे थे जब एक ब्लागर भाई के स्वागत मे हम दोस्तो ने मदिरा पार्टी दी थी और मैने बिना हिचक पहली बार मिल रहे भाईयों के सामने खुलकर पी ली थी।जिन दोस्तो को मेरी किसी भी बात का बुरा लगे एडवांस मे माफ़ी मांग रहा हूं उनसे क्योंकि ज़िंदगी मे सब कुछ है सिवाय प्यार के।सो प्यार बांटते चलो और पीते और जीते चलो।शरद भाई अगले जनम मे सींधी सरदार बना तो छुपकर नही पीऊंगा और अगर मुसलमान बना तो फ़िर मुश्किल है।वंहा भी शराब खराब ही नही मेरे खयाल से हराम भी है।तब तो शायद पीने ही नही मिलेगी।हा हा हा हा हा हा।समीर जी चीयर्स।

20 comments:

Unknown said...

मजेदार!

गुलाम अली साहब की गाई गज़ल याद आ गईः

ये किसने कह दिया के छुप छुपा के पियो
ये मय है मय इसे औरों को पिला के पियो

और हाँ, हम भी पहले छुप के पीते थे पर अब तो खुल्लमखुल्ला पीते हैं, वो भी डेली।

दिनेशराय द्विवेदी said...

लगता है खुले आम पीने के बजाए छुप कर पीने में अधिक आनंद है।
हम तो समझते हैं कि जो काम किया जाए खुले आम किया जाए, छुपाना पड़े तो न किया जाए।

Anonymous said...

अनिल जी,
चीयर्स

बी एस पाबला

मनोज कुमार said...

बस एक शे'र अर्ज़ है --
औरों के लिए गुनाह सही, हमारे लिए शबाब बनती है,
लाख ग़मों को निचोड़ने के बाद एक क़तरा शराब बनती है।

Dr. Shreesh K. Pathak said...

हंगामा है क्यों बरपा....!!..;)

Gyan Darpan said...

हमारे भी जितने भी छुपकर पीने वाले दोस्त आज पुरे पिक्कड़ है उन्हें बस मदिरा पीने का मौका मिलना चाहिए टूट पड़ेंगे पता नहीं दुबारा कब कहाँ मौका मिलेगा | लेकिन हमारे परिवार में ऐसी कोई बंदिश नहीं थी मेरे अपने कमरे की आलमारी में कोई बीसियों बोतले मदिरा पड़ी रहती थी जिसे देखकर कभी इच्छा ही नहीं होती कि इन्हें पिया जाय | हाँ जिस दिन थोड़ी पीने की इच्छा होती घर पर सभी के सामने पी लिया करते थे |
जो दोस्त छुपकर पीते थे वे एक पव्वा खरीदते कहीं जगह न मिली तो किसी जूस वाली रेहड़ी पर जूस में मिलाकर एक ही सांस में गटक जाते थे हालाँकि उन्हें पीने दो पेग होते थे पर बची मदिरा का क्या करे ? कहाँ रखे ? इस चक्कर में वे ज्यादा पी जाते और ऐसे ही उनकी ज्यादा पीने की केपिसिटी बढती गयी |
और हाँ मेरे एक चाचा जी मदिरा नहीं पीते थे उन्होंने अपने पुत्रों को भी मदिरा से दूर रहने की सख्त हिदायद दे रखी थी पर उनके पुत्र यह सोचकर कि पता नहीं मदिरा में कितना मजा होगा छिप कर पीने लगे और आज पुरे परिवार में सबसे ज्यादा पियक्कड़ है लेकिन पीते आज भी चाचा जी से छुपकर ही है |

मेरी नजर में न तो बड़ों से छुपकर पीना चाहिए और ना ही बच्चो पर इसके लिए जबरदस्ती प्रतिबंध लगाना चाहिए बल्कि उन्हें इसके दुष्परिणाम के बारे में ही शिक्षित करना चाहिए |

अजय कुमार झा said...

हा हा हा ये भी खूब रही ....हम तो मदिरा पार्टी में माजा पीने वालों में से हैं मगर ससुराल में जब भी दावत होती सब के सब एक साथ शुरू हो जाते थे सिवा हमारे ..हिंदी अंग्रेजी एक साथ ..एक दिन हमने भी भांग खा कर ....जो क्लास ली सबकी ..ऐसे ऐसे लेक्चर दिये ..कि सबको दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो गई....।

Unknown said...

क्या संस्मरण लिखा है भाऊ, कम या ज्यादा लगभग यही कुछ बहुत लोगों के साथ हो चुका है, लेकिन खरा-खरा बयान आपने किया है… :) :)

राज भाटिय़ा said...

चलिये जनाब पहले एक जाम हो जाये, बोलिये कोन सी लेगे.....?चियर्स
छुप के भी पी खुल के भी पी मजा दोनो मै ही है यानि जब भी पियो खुल के पीयो
चियर्स

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

"साफ़-साफ़ कहा जाये तो मेरे शराब पीने पर थी"

अच्छा, तो आप शराब भी पीने लगे.... आप तो ऐसे न थे:)

शरद कोकास said...

अनिल भाई आदाब अर्ज़ है .. आपको हम लोग ऐसे ही नहीं बड़े दिल वाला कहते हैं । वो तो आप हर-हमेशा साबित करते रहते हो और इस बार भी साबित कर दिया , वैसे अब मुझे समझ मे आ रहा है है कि हाँ यह तो आप पर भी फिट बैठती है । वैसे सही है हम बडे लोग बच्चों को बेवकूफ समझते है और उनके सामने क्या क्या कर जाते हैं ( आपको फिर कुछ याद आ गया होगा ..आपकी छठी इन्द्री बहुत तेज़ है ) चलिये आपने इस पोस्ट की शुरुआत मेरे नाम से की मै धन्य हुआ .आपकी मंडली के किस्से और स्मृतिभंडार से हमे भी बहुत कुछ मिलता है ।

Khushdeep Sehgal said...

जिंदगी गुज़ारने को साथी एक चाहिए,
हुस्न गर नहीं शराब ही सही...
हुस्न गर नहीं शराब ही सही...

जब से वो गये हैं.
अपनी ज़िंद़गी में इक नया दौर आ गया है,
उनसे कह दो,
उनसे भी हसीं कोई और आ गया है,
डर के आगे सिर झुकाके हुस्न बेवफा हुआ,
आज कोई हमसफर राहा नहीं तो क्या हुआ,
मेरे हमसफ़र जनाब ही सही,

जिंदगी गुज़ारने को साथी एक चाहिए,
हुस्न गर नहीं शराब ही सही...
हुस्न गर नहीं शराब ही सही...

जय हिंद...

दीपक 'मशाल' said...

एक और धाँसू पोस्ट..
मुश्किलें मुश्किल न थीं, जब तक शराबी मैं रहा
नीलम मैं उस दिन हुआ जिस दिन से आशिक हो गया...
जय हिंद...

विवेक रस्तोगी said...

हमारे यहाँ भी शराब सॉरी मदिरा वर्जित थी पर लड़कपन में हमने जब पीना सीखा तो वही होस्टल पर या किसी के रुम पर पड़े रहते थे, हमें हमारे वही दिन याद आ गये। पर हाँ हमने बिना किसी के दबाब के धूम्रपान, मदिरापान छोड़ दिया है अब लगभग ८ साल होने आये हैं, नहीं तो हम भी टैंकर से कम तो नहीं थे। बस कोई पहिचान वाला न पढ़ ले नहीं तो उसको पता चल जायेगा कि अच्छा ये भी पीता था।

हम भी छिप कर ही पीते थे पर फ़िर भी घर पर बता रखा था कि अब हमने मदिरापान करना शुरु कर दिया है। हमने हिम्मत से काम लिया और परिस्थियों को अपने पक्ष में कर लिया और बाद में ये लत छोड़ भी दी केवल अपनी इच्छाशक्ति के चलते।

Unknown said...

शानदार लेखन, इसी के लिये तो हम यहाँ आते ही है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हा-हा-हा , शानदार पोस्ट ठेली आपने यह !

Abhishek Ojha said...

'अबे ढंग से इंसान बन जाये पहले फ़िर देखेंगे क्या बनना है।'ये लाइन लेकर चले हम तो.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

ab lagta hai ki BLOG par PEENE-PILAANE ke daur chalenge, POST ke sahaare???

Udan Tashtari said...

चीयर्स भाई जी. हमें तो खुले आम पीने में भी गुरेज कभी नहीं रहा जब तक की सभ्यता बरकार रहे. फिर तो क्या चाय क्या शरबत और क्या मदिरा...अब तो रायपुर में ही चीयर्स होगी भाई.. :)

मस्त किस्सा बयानी!!

समयचक्र said...

अनिल जी हम भी चियर्स करने आ रहे है हा हा हा ....