Monday, November 23, 2009

ये भगवान भी देखो एड्रेस गलत दे कर हम भक्तों को परख रहा है

रात्रिकालीन सत्संग का एड्रेस बदल गया था।होटल के बंद कमरो की बजाय सत्संग गोपाल के घर मे होना था।उसमे शिरकत करने आ रहे थे उसके व्यापारिक साथी और मित्र अशोक कुमार शर्मा।अरबो रुपये की कंपनी के वाईस प्रेसिडेंट हैं वो और हम सभी दोस्तों से दिन मे उनकी मुलाकात पहले भी हो चुकी है।रात्रिकालीन सत्संग मे उनसे पहली मुलाकात थी।गोपाल सींधी है और उसके घर मे बोतल खुलने मे कोई ऐतराज नही है।शर्मा जी के नाम पर जाम छलकने शुरू हुये और छलकते चले गये।

पीने-पीलाने के दौर मे बात निकल पड़ी शराब की तो एक से एक किस्से सामने आते चले गये।ऐसे मे दिल्ली के पंजाबी भाई शर्मा जी कंहा पीछे रहते।सो उन्होने भी शराब की तारीफ़ के पुल बांध दिये। शराब को लिगलाईज़ करने के लिये एक से बढकर एक उदाहरण दिये गये।डाक्टर सुबह ही पूना से कान्फ़्रेंस अटैण्ड करके लौटा था,सो वो सबसे पहले भाग निकलने का बहाना ढूंढने लगा।ये देखकर शर्मा जी भी डाक्टर से आग्रह करने लगे और दूसरे के बाद तीसरे पैग पर खतम करने कि बात कह कर उसे रोकने मे कामयाब हो गये।

इसके बाद हर कोई शराब के फ़ेवर मे अपना-अपना तर्क सामने रखता चला गया।इस पर शर्मा जी ने कहा कि भाई आप लोग सब बोल चुके हो तो मुझे भी मौका दे दो।सबने कहा शर्मा जी ये भी कोई पूछने की बात है।बोलिये आप जो कहना चाह्ते हैं।अब शर्मा जी शुरू हो गये।उन्होने कहा कि एक भिखारी बहुत परेशान होने के बाद एक मंदिर के सामने जा खड़ा होता है।बिल्कुल ही नये टाईप का टापिक सुनकर सब दोस्तों के कान खड़े हो गये और सबने कहा एक स्वर मे पूछा कि फ़िर क्या हुआ महाराज्।

महाराज शर्मा जी बोले मंदिर से बाहर निकलने वाले भक्त गण बाहर खड़े भिखारी के पात्र मे अट्ठन्नी,चवन्नी डालने लगे और उस रकम को जमा कर भिखारी अपना जीवन चलाने लगा।एक दिन जाने कैसे भिखारी मंदिर तक़ नही पहुंच पाया और उसने रास्ते मे देर हो जाने पर एक बार के सामने खड़े होकर अपना पात्र सामने रख कर भिक्षा मांगने लगा।थोड़ी देर तक़ बार से कोई भी बाहर नहि निकला और कुछ देर बाद अपने भाई लोग बाहर आने लगे।उसके बाद बाहर आने वाला हर मदिरा प्रेमी भाई उस भिखारी के पात्र मे पांच रुपया,दस रूपया,डालने लगा।थोड़ी देर मे ही भिखारी का पात्र नोटों से भर गया। नोटो से भरे पात्र को देखकर उसने सिर्फ़ इतना ही कहा कि भगवान भी देखो एड्रेस गलत दे कर हम भक्तों को परख रहा है।रहता यंहा है और एड्रेस मंदिर का दे रखा है।डिस्क्लेमर अगेन।किसी साथी को बुरा लगा हो तो एडवांस मे माफ़ी मांग लेता हूं उनसे,ये पोस्ट दिल्ली से आये बेहद ज़िंदादिल इंसान अशोक कुमार शर्मा को समर्पित है।आप ज़रूर बताईयेगा कैसी लगी ये पोस्ट्।समीर जी चीयर्स्।छत्तीसगढ के साथी आपका इंतज़ार कर रहे हैं।

16 comments:

Anonymous said...

रोचक पोस्ट

चीयर्स!
समीर जी तो कह चुके कि इस बार भिलाई-रायपुर नहीं आया तो वापस नहीं जाऊँगा। वैसे भी किसी समय भिलाई की सड़कों पर खूब धमाल मचाई है समीर जी ने, साइकल चलाते हुए

:-)

बी एस पाबला

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही बात, ओर सची इन मंदिर मस्जिद मै तो अब शेतानो का वास है जी, मजेदार लेकिन सच.
धन्यवाद

शरद कोकास said...

मुझे वो मशहूर शेर याद आ गया ..
"जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता जहाँ पर खुदा न हो "
इसके आगे मुकेश साहब का गाया गाना तो आपको पता ही होगा ... आप भी गा सकते हैं .. "मुझको यारों माफ करना मै नशे में हूँ .. ।"

Udan Tashtari said...

समीर जी चीयर्स्।छत्तीसगढ के साथी आपका इंतज़ार कर रहे हैं।-

चीयर्स भाई-हम तो और बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं.

बढ़िया रहा यह किस्सा भी..सही एड्रेस भी मिल गया.

विवेक रस्तोगी said...

वाह खरी बात है, भगवान के भक्त तो कहीं ओर रहते हैं।

चीयर्स, वैसे तो हम पीना छोड़ चुके हैं पर कोरम का साथ देने के लिये हम साफ़्ट ड्रिंक्स से साथ देंगे।

मनोज कुमार said...

आप ज़रूर बताईयेगा कैसी लगी ये पोस्ट्।
इस रचना का सहज हास्य मन को गुदगुदा देता है।

Unknown said...

शानदार पोस्ट है जी!

देख तेरे भगवान की हालत क्या हो गया इन्सान
कितना बदल गया भगवान

और

साकी शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो

दिनेशराय द्विवेदी said...

मधुशाला की शान में बच्चन जी बहुत पहले ही पूरा काव्य लिख गए हैं यह किस्सा उसी से प्रेरित है।
याद करें ...... मेल कराए मधुशाला! पर छायावाद में मधुशाला के अनेक अर्थ हैं।

एस.के.राय said...

जिसे जहॉं लाभ मिलता है वही उसके लिए भगवान है , ‘ाराबी को मैयखाना , कुत्तों को पैखाना , गुंडों को तैयखाना , बालठाकरे को भौकना ..........

Khushdeep Sehgal said...

अनिल भाई,

एक बेवड़ा भाई झूमता जा रहा था...रास्ते में एक जगह एक संत और एक सूफ़ी बैठे हुए थे...उन्होंने बेवड़े भाई की ये हालत देखकर उसे बुलाकर शराब छोड़ने की नसीहत दे डाली...दोनों ने कहा कि हमने जिंदगी में कभी शराब की बूंद तक नहीं चखी...देख तप और अकीदत से हमें कितनी अंदरूनी ताकत आ गई...बेवड़े ने कहा...तुम में वाकई बहुत ताकत है...संत और सूफी ने कहा...आजमाना चाहता है तो आजमा कर देख ले...बेवड़ा बोला...अगर वाकई तुम में ताकत है तो ये सामने वाले मंदिर और मस्जिद को हिला कर दिखा दो...संत और सूफी ने बेवड़े को लानत-मलानत भेजते हुए कहा कि ये भगवान और खुदा के घर हैं...भला इंसान की क्या मजाल जो इन्हें हिला दे...बेवड़ा बोला...दो घूंट पियो, मंदिर-मस्जिद हिलते देख लो...

जय हिंद...

Saleem Khan said...

अनिल भाई!
शराब किसी भी हालत में वैद्ध नहीं हो सकती, यह सत्यापित है कि शराब पीने के नुक्सान ज़्यादा हैं और फ़ायदे सिर्फ एक भी नहीं... यही नहीं हमारी धार्मिक किताबों में चाहे वो वेद हों या उपनिषद या पुराण अथवा कुरआन या अन्य कोई किताब सबमें इसके इस्तेमाल की पुरजोर मुमानियत है.

अगर समर्थन इतना ही है शराब का तो मेरे लेख जो मांसाहार पर आधारित होते हैं, इतना हो हल्ला क्यूँ हो जाता है?? शराबी तो कबाबी भी होते हैं!!!

अभी व्यस्त हूँ एक बड़े मकसद में, यही वजह है नेट पर ब्लोगिंग का शटर ऑफ किया हुआ है कभी कभार आ जाता हूँ... छः महीने तक यही चलेगा
आपका सबका
सलीम खान

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ऐसा है, मंदिर जाने वाले भक्त के पास तो केवल चिल्लर ही बच जाता है, बाकि तो ब्राह्मण भगवान के नाम पर भीतर ही लूट लेता है ना :) यही तो अंतर है तीर्थ और शराब में....:))))

डॉ महेश सिन्हा said...

पावर बढ़ते ही नोट भी छलकने लगते हैं , सींधी को सिन्धी कर लो

Creative Manch said...

दिलचस्प पोस्ट
काश कि और लोगों को भी भगवान् का नया एड्रेस मालूम चल जाता !



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Arshia Ali said...

भगवान भी समय समय पर एड्रेस बदलते रहते हैं।
ह ह हा।



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क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।

Gyan Dutt Pandey said...

ईश्वर तो सर्वव्यापक हैं! :)