ब्लाग जगत से किसने क्या पाया,क्या खोया ये तो वही जाने पर मुझे लगता है कि मैने खोया कुछ भी नही सिर्फ़ पाया ही पाया है।बहुत से ऐसे लोग मिले जो सगे रिश्तेदारों से अच्छे लगे।मैं उन्हे कभी खोना नही चाहूंगा और कुछ ऐसे लोग मिले जिनके मिलने की कल्पना भी मैंने नही की थी।खासकर सालों पहले कालेज के दिनो बिछुड़े साथी से मिलना।जी हां सच कह रहा हूं,लगभग 25 साल बाद ब्लाग ने मुझे कालेज के अपने एक जूनियर से मिला दिया।
पच्चीस साल!जी हां!पूरे पच्चीस साल बाद!इन पच्चीस सालों मे उससे कंही कोई बात नही,मुलाकात नहीं!सच कहूं तो उसकी शकल तक़ याद नही रही।ऐसे जूनियर से मिलना,खुशी से दीवाना कर गया मुझे। सिर्फ़ एक साल ही कालेज मे साथ रहा,वो भी कालेज के दिनों के विरोधी गुट में।हम लोग एम एस सी फ़ायनल मे थे और वो शायद फ़र्स्ट ईयर मे था।चुनाव के समय हम लोगों का झगड़ा हुआ और उसी झगड़े का रेफ़रेंस देते हुये उसने मेल कर मुझे अपनी याद दिलाने की कोशिश की।
उल्हास नाम है उसका।उल्हास उसे ऐसा ज़रूर लगा होगा कि इतने सालों तक़ कौन किसे याद रखता है!मगर कालेज के दिनो की बातें तो हमारा सबसे बड़ा खज़ाना होता है।और उस खज़ाने मे सिर्फ़ मीठी ही नही खट्टी यादों का भी ज़खीरा रहता है।जब वो इस बात को याद रख सकता है।अपने एक सीनीयर को सिर्फ़ नाम से सालों तक़ याद रख सकता है तो भला मैं कैसे भूल सकता था।
उल्हास!उल्हास कर्नावर!सच मे उल्हास ने मुझमे उल्हास भर दिया।उसके मेल ने मुझे पच्चीस साल पीछे कालेज के दिनों मे धकेल दिया।वो कालेज के दिन,वो मौज-मस्ती,सब कुछ तरोताज़ा हो गई।वैसे ही जैसे तुम्हे मेरे ब्लाग ने धकेला।
उल्हास अब बहरीन मे है।छत्तीसगढ या कहे भारत उसने 90 मे छोड़ा था।आज वो बहरीन मे ज़िम्मेदार पद पर है और सबसे खास बात ये कि वो वंहा की भारतियों के क्लब का जनरल सेक्रेटरी है।वो भी तीसरी बार चुना गया है।दो लाख सत्तर हज़ार भारतियों का प्रतिनिधित्व करने वाला क्लब 94 साल पुराना है।ये उपलब्धी साधारण नही है।बकौल उल्हास लोस्ट रायपुरियन मे नेतागिरी का कीड़ा अभी भी ज़िंदा है।बहुत सही शुक्ल बंधुओं की नगरी की हवा मे ही नेतागिरी का कीड़ा रहा है शायद।उल्हास से दोबारा कभी बात हो पायेगी,मुलाकात हो पायेगी ये तो पता नही लेकिन उससे सम्पर्क तो फ़िर से स्थापित हो ही गया है।पच्चीस साल बाद सम्पर्क स्थापित होना किसी चमत्कार से कम नही है और जब ये हुआ है तो मुलाकात भी ज़रूर होगी।और ऐसा संभव हो सका सिर्फ़ और सिर्फ़ ब्लाग के कारण्।वो घुमते-फ़िरते मेरे ब्लाग पर आया और उसने मुझे मेल कर अपनी याद दिलानी चाही।अब बताईये ऐसा सुखद एहसास तो सिर्फ़ ब्लाग के कारण ही संभव हो पाया है ना।वरना मैने तो कभी सोचा भी ना था कि कालेज से बिछड़ने के सालों बाद कोई फ़िर मिल जायेगा!खूब तरक्की करो उल्हास!रायपुर का नाम रौशन कर दिया है तुमने और तमाम रायपुरिया लोगों को तुम जैसे रायपुरियाओं पर नाज़ है।तुम लोस्ट रायपुरियन नही अभी रायपुरियन हो।तुम्हारे उज्जवल भविष्य की कामनाओं के साथ,ढेर सारी शुभाशिष।ऐसे ही प्यार बनाये रखना।
28 comments:
वाह अनिल जी! सुखद आश्चर्य!!
कालेज से बिछुड़ने के बाद काफी अरसे बाद मिलने पर हर किसी को बेहद ख़ुशी होती है .
आपने बिलकुल सच कहा है.. ब्लॉग जगत से जुड़ने के बाद मैंने भी बहुत कुछ पाया ही पाया है। और रही दोस्तों के मिलने की बात तो मैंने जाने अनजाने सैंकड़ों दोस्त भी पा लिया है।
बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
लंबे वक़्त बाद अपना कोई परिचित यूँ सामने आ जाता है तो दिल मारे खुशी के पागल बावरा हो जाता है.
ब्लॉग से ये उपलब्धि बहुत भली है.
nice
मुबारक हो, ब्लॉग की बिमारी ने एक और अच्छा काम कर दिया.
उस दिन आपने फोन पर बताया था उल्हास जी के बारे में, मगर इतने विस्तार से नहीं.. सच में इसे एक उपलब्धि से कम नहीं माना जा सकता है..
बढ़िया
बहुत सुंदर लगा, आप का यह लिखना, मुझे भी बहुत कुछ मिला है इस ब्लांग जगत से, अपने से बडो का प्यार, छोटो से सम्मान, हम उम्र वालो से होस्सला, मै नही मानता कि हम ने ब्लांग मै आ कर कोई गलती की है. धन्यवाद उल्लास को हमरी तरफ़ से नमस्ते
bahut acchha laga. main bhi biis saal baad ek mitra se mila to badi sukhad anubhooti hui.
ब्लागिंग से मिलता ही है. जो मिला उसे सहेज लीजिए. मैने भी बहुत कुछ पाया है.
बहुत सुखद है यूं ढ़ाई दशक बाद मिल जाना।
सुखद घटनाक्रम
आपकी भावनाओं का अंदाज़ा भर लगाया जा सकता है
बी एस पाबला
बहुत सही लिखा है आपने, हमें भी कुछ लोग पुराने मिले, जिनसे मिलने की आशा ही छोड़ चुके थे.
Its just a plain thank you Anilji, if you mail me your mobile number, would keep in touch... will strongly follow bloggers from Raipur, keep posting...
Regards,
Ulhas Karnavar
सुखद मुलाकात, बचपन का मित्र या कालेज के दिनों के भुले बिसरों से मि्लना बहुत ही सुखद होता है। सब कुछ फ़्लेश बैक मे चला जाता है।
अपना अनुभव बांटने के लिए-आभार
ब्लागीरी में यह संभावना तो बहुत है कि कोई बिछड़ा मिल जाए। ऐसा हो तो इस से बड़ा सुखद संयोग क्या हो सकता है।
आपकी ख़ुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है...अपना
कोई अज़ीज़ इतने दिनों बाद मिले तो ख़ुशी संभाले नहीं संभलती...इस ब्लॉग जगत में कई नए रिश्ते बनते हैं तो कितने पुराने रिश्तों में नयी जान आ जाती है.
वाह सुखद समाचार, उल्हास भाई और आपके नेटीया मिलन की शुभकामनाये.
यह तो बहुत ही हर्ष का विषय है की आप को एक पुराना सहपाठी मिला..वो भी २५ साल बाद!
--कितना सुखद है यह सुनना भी की कोई जान पहचान का व्यक्ति एक अरसे बाद मिला.
--पुरुषों के नाम शादी के बाद बदलते नहीं है...इसलिए अंतरजाल पर उन्हें ढूँढना मुश्किल नहीं अगर वे yahan हैं तो..]
मुश्किल स्त्रियों के लिए है जिनका नाम /सरनेम विवाह के बाद बदल जाता है..इसलिए मैं ने तो उमीद ही छोड़ दी की कभी कोई पुरानी सहेली blogging छोड़िए...,,अंतरजाल पर भी कभी मिल पाएगी!
खुशनसीब हैं आप...बधाई..
अभी तुम्हारे बहुत से वादे बाकी है,
अभी यहां बहुत सी मुलाकातें बाकी है.
अनिल तुम लगातार लिख रहे हो ये सबसे अच्छी बात है और देखो इसके नतीजे मिलने भी लगे है... सालों बाद उल्हास मिल गया.
पुराने मित्रों से पुनर्परिचित होने का आनंद ही और है.
सपरिवार आपको और आपके सभी पाठकों और मित्रों को नव वर्ष की शुभकामनाएं!
वाकई अद्भुत और बधाई उल्हास को कि उसका मेल पढ़ा गया
anil jee, ummeed hai ki naye saal mein aapko apne kuchh aur purane mitra mil jayenge. lekin blogging se jo naye dost aapne banaye hai, voh shayad aap se kabhi bhi door nahin honge.ulhas (raipurin jyada uchit)se milne aur batcheet ke liye aapko ek baar phir badhai.
यूँ अचानक मिलना बहुत ही सुखद होता है। अपनी खुशी हमसे साझा करने के लिए आभार।
घुघूती बासूती
बेहतरी रचना के लिए
बहुत -२ आभार
chalo yar tumhara dost to mil gaya ham bhi tumhare sath khush hye
bhagyoday organic.spotblog.com
बधाई हो अनिल भाई .. इसी ब्लॉगिंग के चलते शेफाली जी के माध्यम से मेरी अपने कॉलेज के ज़माने के मित्र मधुकर जोशी से मुलाकात हुई जो आज सेना में मेजर हैं ।
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