एक दिन अचानक़ एक स्कूटर आकर रुका और उसपर सवार दो युवतियों मे से एक ने पूछा कि दिलीप जी से मिलना है?जो स्कूटर चला रही थी वो तो बेहद साधारण थी लेकिन पीछे जो बैठी थी वो बला कि खूबसुरत थी।उस सूखे-तपते रेगिस्तान मे दोनो का आ जाना अमृत की बूंदो के समान सुखदायी था।दोनो अचानक़ सामने आ गई थी इसलिये प्लानिंग करके कुछ किये जाने की स्थिति मे ह लोग नही थे और इससे पहले कोई कुछ कहता मैने उन्हे रूखा सा जवाब दे दिया दिलीप नही आया है?कब आयेगा के सवाल का जवाब और भी रूखा था,पता नही!
पता नही उस रूखे और अक्खड जवाब मे उन दोनो को क्या नज़र आया वो मुझसे और बातें करन लगी।मेरा चेहरा थोडा बिगड़ने लगा था और इस बात को बाकी लोग भांप गये थे,उन्होने उन दोनो युवतियों को बगल की दिलीप की दुकान मे बिठा कर इंतज़ार करने कहा और वंही से दिलीप को फ़ोन कर दिया।तब सब के सब कुंआरे थे और उनमे से कुछ रोमियो टाईप के रोमेंटिक बाय ट्राई कर करके रोडियो यानी रोड छाप रोमियो हो गये थे मगर सफ़ल नही हो पाये थे।उन लोगों के लिये युवतियों का आना ही एक अच्छी खबर थी।जब तक़ दिलीप आता तब तक़ उनमे से एक को बाकी लोगों की भाभी बनाने के चक्कर मे सब एक दूसरे से लड़ने-झगड़ने लगे थे।मैने उनसे कहा अबे हो सकता है वो लोग दिलीप की रिश्तेदार हों।मेरा इतना कहना ही सबको मेरा दुश्मन बना गया था।चुप बे जब देखो मनहूसियत फ़ैलाता रहता है।अच्छी बात तो मुंह से निकलती ही नही है,जब देखो अपशकुन।
वो आलस भरे मौसम की बात है।पढाई का दौर खत्म हो चुका था और सब अपने-अपने भविष्य की प्लानिंग मे लग गये थे।दिन मे पसीना तंग करने लगा था और शाम को उससे थोड़ी बहुत राह्त मिल जाया करती थी।शाम होते ही हम सब रायपुर की सबसे व्यस्त सड़क मालवीय रोड़ जिसे छात्र वर्ग माल रोड़ कहा करता था के किनारे अपने ठिकाने पर जमा हो जाया करते थे।कालेज के शुरूआती दिनो से शुरू हुये उस अड़ड़े पर हम सारे दोस्त बिना नागा सालों खड़े होकर खुबसूरत लड़की को आते-जाते देख कर सुनहरे सपने देखा और उसे चूर चूर किया करते थे।
ऐसे मे किसी लड़की का वंहा आकर रूकना और दिलीप के बारे मे पूछताछ करना बाकी लोगों के लिये फ़िर से सपने बुनने की जाब एपोर्चुनिटी ले आया था।दिलीप के बारे मे पूछने वाली को बिना किसी आब्जेक्शन के दिलीप को एलाट कर दिया गया था और उसके पीछे बैठी बेहद खूबसूरत लड़की को सभी एक-दूसरे की भाभी बनाने के नाम पर मरने-मारने पर उतारू हो गये थे।इधर तेरी भाभी नही तेरी भाभी को लेकर बह्स चल रही थी और ऊधर दोनो दुकान पर बैठे-बैठे बोर होने से बचने के लिये दोनो हमारे पास आगई।
सभी की ज़ुबान आग उगल रही ज़ुबान से अचानक़ शहद टपकने लगा और तू-तड़ाक करने वाले रायपुरिया टपोरी नवाबों को मात देने वाले लखनवी अंदाज़ मे आप-जनाब प उतर आये थे।मैंने इतना संजीदा उन लोगों को कभी नही देखा था सो मै पूछ बैठा क्या हो गया बे तुम लोगों को अचानक़?सबकी आंखों मे मई-जून का तपता सूरज उतर आया था जैसा।सबने मुझे घूरा और तत्काल नारम्ल होकर उन युवतियों से कहा दिलीप आता ही होगा,बताईये ना हम लोगों के लायक कोई सेवा हो तो?सेवा मैने इतना ही कहा था कि सभी एक साथ बोले हम लोग सभी दोस्त है और एक दूसरे का काम करने मे पीछे नही हटते।दिलीप और हममे कोई फ़र्क़ नही है,बताईये ना प्लीज़!हम लोगो का सौभाग्य होगा जो आपके काम आ सकें।
मेरा खून खौलने लगा था।साले लड़की आई तो सेवा,और कभी कोई भूल से किसी का पता पूछ ले तो बोर्ड लगे हैं ना,पढना आता है ना,तो खुद पढ लो और पता कर लो।किसी कटखने कुत्ते से कम नही गुर्राते हैं और लड़की देखी तो साले दुम हिला रहे हैं।तब तक़ उनमे से किसी को डाऊट हो गया था कि ये बजरंगी खेल बिगाड़ सकता है सो उनमे से एक ने पूछा तू जा रहा था ना प्रेस,निकल हम लोग आते हैं,उधर ही?मैने कहा थोड़ी देर से जाऊंगा तो सभी बोले कोई मतलब नही है यंहा रूककर ज़ल्दी जा और जल्दी काम निपटा,हम लोग आते है आज ढाबे चलेंगे पार्टी है।मैने पूछा किसकी पार्टी?तो बल्लू ने जवाब दिया आज बीसी है ना जिसकी निकलेगी वो देगा पार्टी समझा ना और अब तू निकल चल्।मैं समझ गया वो युवतियों को बीसी बता रहा था और मुझे टरका रहा था।
तभी दिलीप आ धमका!उनमे से एक ने दिलीप से कहा भैया ला कर रही हूं,मेरे पेपर ठीक नही जा रहे हैं,मुझे पता चला कि आपके पेपर आ जाते हैं।भैया सुनते ही दिलिप का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंचा ज़रुर था मगर उसके साथ की युवती की खूबसूरती ने उसे तुरंत ज़मीन पर ला दिया।हीरो बनने का मौका खोए बिना उसने कहा आते तो नही है लेकिन आप कहेंगी तो आ जायेंगे।जी मुझे चाहिये प्लीज़ मेरे लिये मंगवा दिजीये ना।मैं आ जाऊंगी।अबकी दिलीप बोला मैं यानी सिर्फ़ आपको चाहिये और इनको?नही ये तो मेरी छोटी बहन है।बी काम फ़ायनल मे है।उसके पेपर भी मिल जायेंगे,सब बेक साथ बोले मगर वो बोली मुझे नही चाहिये पेपर।दीदी को चाहिये बस उनको ही दे दिजिये।
इतनी देर मे वो पहली बार बोली थी।आवाज़ तो ऐसे थी जैसे मीठी गज़ल्।जितनी सुन्दर वो थी आवाज़ उससे ज्यादा और अंदाज़ तो जैसे सबका दिल लूट गया।मैं सब सुन रहा था।मैने तत्काल कहा बिल्कुल सही कह रही हैं आप।ये पेपर-वेपर का चक्कर सही नही है।पता नही उसे क्या लगा वो मुस्कुराई और मैने भी मुस्कुरा कर उसे जवाब दिया।मामले को डाईवर्ट होता देख दिलीप ने उससे कहा कि आप कल शाम आ जाईये मैं आपको पेपर ला दूंगा।जी कह कर दोनों ने थैंक्स कहा और वंहा से निकल गई।उसके बाद तो वंहा महाभारत शुरू हो गया।सबके सबको बीकाम वाली चाहिये थी।दिलीप से सबने कहा अबे तुझे तो भैया कहा था ना उसने,उसने नही बड़ी वाली ने कहा था।
लगता है स्टोरी लम्बी हो गई है।खैर आजके लिये इतना ही आगे का किस्सा कल बताऊंगा।ये कहानी नही हम लोगों की यादों के खज़ाने का अनमोल हीरा है।सच मे उन दिनों को याद करके ही वो सब कुछ मिल जाता है जिसे आज चाह कर भी नही पा सकते।
15 comments:
लगता है प्रकृति ने नर को ऐसा ही बनाया है, मादा को देख कर उस की मर्दानगी पिघल जाती है। बहुत कम लोग स्टील होते हैं जो नहीं पिघलते। लड़कियाँ भी ऐसा स्टील बहुत पसंद करती हैं। पर स्टील फिर भी नहीं पिघलता, देख रहे हैं। भैया अब भी पिघल लो,अभी देर नहीं हुई।
क्या ज़माना था बैल बौटमवाला!
अरे वाह लडके सभी जगह एक से ही होते है, मिलना कुछ नही लेकिन शेख चिल्ली की तरह सपने देखना...अनिल जी मजा आ गया देखे कल क्या गुल खिलता है.
धन्यवाद
बेहतरीन गुदगुदाती और गंभीर बनाती पोस्ट।
वो दिन कहां गए।
वाकई खजाने में कई अनमोल हीरे धरे हैं..आगे भी बताते चलिये किस्से. :)
अगली किश्त का इन्तजार है।
स्टील कब पिघलेगा ??
महिलाएं भी टिप्पणी कर सकती हैं ना? मैं जिस कॉलेज में पढ़ी हूँ वहाँ 300 लड़कों के मध्य मैं ही अकेली लड़की थी। मेरे पास भी बहुत सारे अनुभव हैं क्या लड़के और क्या गुरुजन? कभी लगता है कि मनुष्य का अधिकतर समय प्रकृति पुरूष बने रहने में ही व्यतीत होता है। इसी कारण पिता, भाई आदि घर के सदस्य महिलाओं पर पाबन्दी लगाते हैं क्योंकि वे जानते हैं पुरुषों की मानसिकता। मेरी टिप्पणी का अर्थ समझ आया क्या?
गुदगुदाने वाली यादें....
आप के लेख ने सारी रात सोचने पर मजबुर कर दिया.... कुछ बीती बाते याद आ गई शॆख चिल्लियो की बडी बडी बाते, लेकिन लडकी सामने पडते ही बोलती बन्द... ओर फ़िर ही ही वही हाल आप ने अपनी कल्म से अपने दोस्तो का बताया, एक दम फ़ोलाद लेकिन....पता नही ऎसा कयु है,क्यु हम सब की घिघि बंध जाती है
:) मेरी तो हंसी नहीं रुक रही आपके किस्से पढ़कर...बहुत मजेदार तरीके से लिखा है आपने ..अगली किश्त का इंतज़ार है
"" एक दिन अचानक़ एक स्कूटर आकर रुका और उसपर सवार दो युवतियों मे से एक ने पूछा कि दिलीप जी से मिलना है ? जो स्कूटर चला रही थी वो तो बेहद साधारण थी लेकिन पीछे जो बैठी थी वो बला कि खूबसुरत थी।उस सूखे-तपते रेगिस्तान मे दोनो का आ जाना अमृत की बूंदो के समान सुखदायी था"""
भैय्या अनिल जी,
बधाई बड़ी गजब की रिपोर्टिंग है ... आप जल्दी से अपनी शादी करा लें .. .. नहीं तो एसई रिपोर्टिंग लिखते रहोगे क्या ? हा हा ... मजेदार रोचक
पहले आगे का पढेंगे फ़िर कुछ लिखेंगे
jai ho aapki !
अंत तक बांधे रही, अपनी पुरानी यादें ! बहुत रोचक.
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