Friday, March 26, 2010
जो दवा के नाम पे ज़हर दे?
इस देश मे नियम बनने के पहले ही उसके तोड़ ढूंढ लिये जाते हैं।और उसी तोड़ की आड़ मे बड़े-बड़े खेल किये जाते हैं मगर ये सब बड़े लोगों के लिये ही है,छोटे-मोटे लोग अगर वैसा कुछ ट्राई करते हैं तो तोड़ गायब और नियम सख्त हो जाते हैं।इसमे कोई शक़ नही जितना मज़ाक नियमों का इस देश मे उड़ाया जाता है उतना शायद ही कंही और उड़ाया जाता होगा।अब शराब को ही ले लिजिये।उसके विज्ञापन पर प्रतिबंध लगा हुआ है।तो क्या शराब का विज्ञापन नही होता इस देश में।शराब को सामाजिक बुराई और जाने क्या क्या कहा जाता है मगर जब बात रेवेन्यू की आती है तो सरकार खुद इसे बेचने का ठेका देती है और रहा सवाल उसके विज्ञापन पर प्रतिबंध का तो उसी नाम से दूसरे प्रोडक्ट का विज्ञापन कर दो कौन साला मना करेगा।मसलन हेवर्डस 5000 बीयर के नाम पर सोड़ा का विज्ञापन धड़ल्ले से दिखाया जा रहा है।इसी तरह मैक्डावल का सोड़ा और बीयर के लिये मशह्हूर ब्रांड किंगफ़िशर का ऐअरलाईन्स के नाम पर विज्ञापन दिखाया जा रहा है।सबको मालूम है कि किस नाम का सोड़ा बिकता है और किस नाम से बीयर।बेशर्मी की हद तो यंहा तक़ है कि आईपीएल की बेंगलूरू क्रिकेट टीम का नाम ही मशहूर शराब के ब्रांड रायल चैलेंज के नाम पर है।याने आपके पास रूपयों की ताक़त होना चाहिये,फ़िर आप जो चाहे दिखायें।चाहे तो दवा के नाम पर ज़हर का भी विज्ञापन दिखा दें।रोकने वाला है ही कौन्।समरथ को नही दोष गुसाईं।
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22 comments:
सार यही है .. समरथ को नही दोष गुसाईं !!
रूपयों की ताक़त का तंत्र (जनतंत्र)
सही सवाल उठाया है आपने - विज्ञापनों के बेहतर नियमन की आवश्यकता है. जनतंत्र की यही विशेषता है की उसमें निरंतर सुधार की गुंजाइश है. उत्तर कोरिया, क्यूबा, म्यांमार, या चीन आदि जैसी कम्युनिस्ट तानाशाही के विपरीत यहाँ बन्दूक की गोली के बिना (वोट या विचार-विमर्श से) भी काम हो सकता है, और होता रहा है.
बिलकुल सही कहा आप ने,गरीब अगर खाली बोतल के संग ही पकडा जाये तो उस बेचारे का हाल देखे...
सही कहा!
समरथ को नही दोष गुसाईं
क्या कहा जाये!!
जी हां समरथ को नहिं दोष गुसांई..
गोस्वामी जी ने समय को सही पहचाना था.
....रुपये-पैसे का कमाल तो बस कमाल है एक जादुई शक्ति है जो इंसानों को भी जोकर बना कर करतब दिखाती है ..... सब कुछ संभव है!!!!
sach hai.. Money makes the mare go..
खीसा गर्म हो तो फ़िर काहे की चिंता?
रामराम.
सच है...पैसे में बहुत ताकत होती है...इन विज्ञापनों से साफ़ पता चलता है कि क़ानून की धज्जियाँ कैसे उड़ाई जाती हैं...
ye to mook aur baghir bastuyen hain
ek din insan insan ko bechane ka vigyapan dega
sahi likha aapne
dhanyvad
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
एक शराब के नाम से पानी की बोतल भी बिकती है.
समरथ को नहीं दोष... सही कहा.
पहले भी एक विज्ञापन आता था "खू जमेंगी जब मिल बैठेंगे तीन ,तुम ,मैं और बेग्पाइपर.....................सोडा |
केवल अपनी ब्रांड को प्रचारित करते रहने के लिये ही किंगफिशर ने पानी भी बेचना प्रारम्भ किया ।
अनिल जी शीर्षक पढ़कर उत्सुकता जगी थी। लेकिन विषय तो कुछ और ही निकला ।
खैर बात तो ये भी सही है आपकी।
तुलसीदास भी जब यह जान गए थे तो आम आदमी का क्या होगा . आज ही पढ़ा छत्तीसगढ़ सरकार ने सार्वजनिक जगह पर पीने पर जुर्माने का कानून लगाया है . मरेगा तो गरीब ही .
दोष तो गरीब में होते हैं, कहीं समर्थ भी दोषी है? आप भी समझदार होकर कैसी बात करते हैं?
लेकिन छतीसगढ देश का पहल ऐसा प्रदेश है जहा हाल ही में विधानसभा में विधेयक पारित कर अब प्रदेश में शराब लेजाने पर सजा का प्रावधान किया गया है ये और बात है की सरकार खुश दुकान खोल शराब बेचती है लेकिन ले जाने पर सरकार सजा का प्रावधन कर दीहै देखना है की कितना कारगर होता है
सिर्फ सोडा ही नही , गिलास , केसेट और अन्य कई वस्तुओं पर भी इनके नाम हैं आश्चर्य नहीं कल को गंगा जल भी इन्ही नामों से बिकने लगे ।
एक प्रयोग के तौर पर सभी चीजों को एक्साइज़ से मुक्त कर दिया जाय, तो मैं समझता हूँ कि बहुत हद तक स्थितियाँ बदल जायेंगी । मग़र ऎसा शायद ही हो.. नये तरह के उग आये फिरँगियों के ऎश के लिये मुनाफ़े की हर गुँज़ाइश पर काबिज़ बने रहने की सलाहियत अँग्रेज़ बहादुर छोड़ गये हैं, और वह ज़ारी है । राजस्व का कितना क्या होता है, क्या किसी को बताने की आवश्यकता है ?
बिलकुल सच कहा है. हमारे घर वाले भी पूछने लगे थे की यह कैसा सोडा है. हमने कह दिया यह बियर है वह भी पानी
यह निराला देश है। कानून का ही नहीं यहां धर्म और देवता के साथ भी पर्याप्त परिहास चलता है।
बिल्कुल कासी का अस्सी के अन्दाज में!
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