Thursday, April 1, 2010
क्या मिनी स्कर्ट या टांगो की नुमाईश ही नौकरी की फ़ुल गारंटी है?
बड़ा सवाल उठाती हुई एक छोटी सी पोस्ट लिख रहा हूं।क्या नौकरी की फ़ुल गारंटी मिनी स्कर्ट या टांगो की नुमाईश से ही मिलती है?ये सवाल मुझे कचोट रहा है।क्या लड़कियों की सबसे बड़ी योग्यता उसका खुलापन या शरीर ही है?क्या उनके पास और कोई योग्यता नही होती?क्या इंटर्व्यूह में मिनी स्कर्ट पहन कर जाने वाली लड़की की नौकरी पक्की हो जाती है?क्या टांगों नुमाईश करते हुये आने वाली लड़की के इंटर्व्यूह मे आते ही लड़को को उठ कर या इंटर्व्यूह छोड़ कर चले जाना चाहिये?और भी बहुत से सवाल है जो मेरे दिमाग में उथल-पुथल मचाये हुये है।ये सवाल अनायास ही मेरी परेशानी का सबब नही बन गये हैं और ना ही ऐसा कोई किस्सा मैने सुना है।हां ऐसा किस्सा मैने देखा ज़रुर है।कंहा?ऐसी घटिया बकवास और कंहा देखने को मिल सकती है।जी हां, सही पहचाना टीवी पर।टीवी पर एक विज्ञापन इन दिनों धड़ल्ले से दिखाया जा रहा है।सिग्नल को पकड़ो बताने वाला ये विज्ञापन पहले प्यार का सिग्नल बताता है।बरसात मे खुद भीग कर लड़का,लड़की को अपने छाते से भीगने से बचाये तो वो प्यार का सिग्नल होता है।बच्चा अपने पापा की टाई पकड़ ले तो वो पापा को आफ़िस जाने से रोकने का सिग्नल होता है और इंटर्व्यूह मे बैठे लड़को के बीच एक मिनी स्कर्ट पहने टांगों की नुमाईश करती लड़की के आते ही लड़को के लिये वो नौकरी चले जाने का सिग्नल होता है,उठ कर रवाना होने का सिग्नल होता है यानी वो नौकरी उस लड़की को मिल जाने का सिग्नल होता है?मैने ये विज्ञापन फ़ुरसत में टीवी देखते हुये नही देखा है।मैं खुद क्रिकेट खेलता रहा हूं और अविभाजित मध्यप्रदेश मे रायपुर संभाग क्रिकेट एसोसियेशन का सालों तक़ उपाध्यक्ष रहा हूं और मुझे क्रिकेट पसंद है इसलिये आईपीएल के मैच देख लेता हूं।उसी दौरान मुझे ये बेहद आपत्तिजनक विज्ञापन नज़र आया।मुझे लगा कि इसके खिलाफ़ ज़रुर लिखना चाहिये।ये लड़कियों की योग्यता पर सवाल तो लगाता ही है साथ ही उनका अपमान भी करता है।ये अपमान सिर्फ़ उस रूपया लेकर काम करने वाली माडल कोछोड़ सभी के घरों की लडकियों का है,बहनों का है,बेटियों का है।किसी प्रोड़क्ट को बेचने के लिये मैं नही समझता की लड़कियों की इज़्ज़त इस तरह से बेची जानी चाहिये।ये विज्ञापन अपनी युवा पीढी के दिलों-दिमाग पर भी बुरा असर डाल सकता है ऐसा मैं समझता हूं।आप क्या समझते हैं मुझ कमसमझ को भी बताईयेगा ज़रूर्।
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34 comments:
विज्ञापन बनाने बनवाने वाले लड़कियों को सामान समझते हैं।
अनिल जी, विज्ञापन लोगों को लुभाने के लिये उनकी मानसिकता का अध्ययन करके ही बनाया जाता है। हमारी कुशिक्षा ने हमारी मानसिकता को जैसा बना दिया है उसी के आधार पर ही तो विज्ञापन बनाने वाले विज्ञापन बनायेंगे ना?
यह अलग बात है कि आपके संस्कार अच्छे होने के कारण ये विज्ञापन आपको कचोटते हैं।
अनिल भाई,
किस किस एड को रुकवाएंगे...
यहां तो लग्जरी गाड़ियों की तुलना सुंदर मॉडल के शरीर से करते हुए दिखाई जाती है...
मनमोहनी इकोनॉमिक्स है...बस आंख बंद कर तमाशे देखिए...
जय हिंद...
ये विज्ञापन अपनी युवा पीढी के दिलों-दिमाग पर भी बुरा असर डाल सकता है ऐसा मैं ......BHI ........समझता हूं।
अनिल भाई, आपने बहुत सही सवाल उठाया... नौकरी तो नौकरी आजकल स्कूल लेवल पर भी लड़कियों की टांगों का अंग प्रदर्शन आम होता जा रहा है... और हम पश्चिम संस्कृति के गुलाम, उस सड़ी सभ्यता (बदचलनी) के अंध भक्त होते जा रहे हैं, और अपना भला बुरा भी नहीं सोच पा रहे हैं...
सवाल ये उठता है कि क्या यह कह देने या इसकी आलोचना कर देने भर से ही इतिश्री हो जायेगी??? मौजूदा भौतिकवादी, विलास्वादी, सेकुलर (धर्म-उदासीन व ईश्वर विमुख) जीवन-व्यवस्था ने उन्हें सफल होने दिया है या असफल. क्या वास्तव में इस तहज़ीब के मूल-तत्वों में इतना दम, सामर्थ्य व सक्षमता है कि चमकते उजालों और रंग-बिरंगी तेज़ रोशनियों की बारीक परतों में लिपटे गहरे, भयावह, व्यापक और जालिम अंधेरों से नारी जाति को मुक्त करा सकें???
उजाले और चकाचौंध के भीतर खौफ़नाक अँधेरे
नारी जाति के वर्तमान उपलब्धियां- शिक्षा, उन्नति, आज़ादी, प्रगति और आर्थिक व राजनैतिक सशक्तिकरण आदि यक़ीनन संतोषजनक, गर्वपूर्ण, प्रशंसनीय और सराहनीय है. लेकिन नारी स्वयं देखे कि इन उपलब्धियों के एवज़ में नारी ने अपनी अस्मिता, मर्यादा, गौरव, गरिमा, सम्मान व नैतिकता के सुनहरे और मूल्यवान सिक्कों से कितनी बड़ी कीमत चुकाई है. जो कुछ कितना कुछ उसने पाया उसके बदले में उसने कितना गंवाया है. नई तहजीब की जिस राह पर वह बड़े जोश और ख़रोश से चल पड़ी- बल्कि दौड़ पड़ी है- उस पर कितने कांटे, कितने विषैले और हिंसक जीव-जंतु, कितने गड्ढे, कितने दलदल, कितने खतरे, कितने लूटेरे, कितने राहजन और कितने धूर्त मौजूद हैं.
बात सिर्फ़ यह है कि जब दुनिया को आज़ादी का ख़्याल पैदा हुआ तो उसने यह ग़ौर करना शुरु किया कि आज़ादी की यह बात तो हमारे पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है आज़ादी का यह ख़्याल तो इस बात की दावत देता है कि हर मसले में उसकी मर्ज़ी का ख़्याल रखा जाये और उस पर किसी तरह का दबाव न डाला जाये और उसके हुक़ुक़ का तक़ाज़ा यह है कि उसे मीरास में हिस्सा दिया जाये उसे जागीरदारी और व्यापार का पाटनर समझा जाये और यह हमारे तमाम घटिया, ज़लील और पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है लिहाज़ा उन्होने उसी आज़ादी और हक़ के शब्द को बाक़ी रखते हुए अपने मतलब के लिये नया रास्ता चुना और यह ऐलान करना शुरु कर दिया कि औरत की आज़ादी का मतलब यह है कि वह जिसके साथ चाहे चली जाये और उसका दर्जा बराबर होने के मतलब यह है कि वह जितने लोगों से चाहे संबंध रखे। इससे ज़्यादा इस ज़माने के मर्दों को औरतों से कोई दिलचस्बी नही है। यह औरत को सत्ता की कुर्सी पर बैठाते हैं तो उसका कोई न कोई लक्ष्य होता है और उसके कुर्सी पर लाने में किसी न किसी साहिबे क़ुव्वत व जज़्बात का हाथ होता है और यही वजह है कि वह क़ौमों की मुखिया होने के बाद भी किसी न किसी मुखिया की हाँ में हाँ मिलाती रहती है और अंदर से किसी न किसी अहसासे कमतरी में मुब्तला रहती है
समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में रोज़ाना औरतों के नंगे, अध्-नंगे, बल्कि पूरे नंगे जिस्म का अपमानजनक प्रकाशन.
सौन्दर्य-प्रतियोगिता... अब तो विशेष अंग प्रतियोगिता भी... तथा
फैशन शो/ रैंप शो के कैट-वाक् में अश्लीलता का प्रदर्शन और टीवी चैनल द्वारा ग्लोबली प्रसारण
कारपोरेट बिज़नेस और सामान्य व्यापारियों/उत्पादकों द्वारा संचालित विज्ञापन प्रणाली में औरत का बिकाऊ नारीत्व.
सिनेमा टीवी के परदों पर करोडों-अरबों लोगों को औरत की अभद्र मुद्राओं में परोसे जाने वाले चल-चित्र, दिन-प्रतिदिन और रात-दिन.
इन्टरनेट पर पॉर्नसाइट्स. लाखों वेब-पृष्ठों पे औरत के 'इस्तेमाल' के घिनावने और बेहूदा चित्र
फ्रेंडशिप क्लब्स, फ़ोन सर्विस द्वारा दोस्ती
लेख पसंद आया इसलिए एक पसंद का चटका मेरी तरफ़ से...
आप सही कह रहे हैं...ऐसे विज्ञापन और ऐसी समझ ही लड़कियों को और उनकी योग्यता को भी अपमानित करती है...जब कि वास्तविक जिंदगी में इस तरह नौकरी नहीं मिलती...बल्कि लड़कियों को अपनी योग्यता अपने काम से सिद्ध करनी होती है...
इस तरह के विज्ञापनों पर एकदम रोक लग जानी चाहिये ऐसा एकमात्र यही नहीं बहुत सारे विज्ञापन आते हैं सभी पर रोक लगा देनी चाहिये ।
खुशखबरी !!! संसद में न्यूनतम वेतन वृद्धि के बारे में वेतन वृद्धि विधेयक निजी कर्मचारियों के लिये विशेषकर (About Minimum Salary Increment Bill)
आप कहते हैं''मैं नही समझता की लड़कियों की इज़्ज़त इस तरह से बेची जानी चाहिये'' साथ में यह भी जोड लिजिये के किसी भी तरह नहीं बेची जानी चाहिये
हम तो इन विज्ञापनों को सही ढंग से देख ही नहीं पाते। हमारे घर में टीवी का रिमोट अक्सर हमारे पतिदेव के हाथों में रहता है और जैसे ही विज्ञापन आता है वे चेनल बदल देते हैं। आपने पहले भी एक विज्ञापन के बारे में लिखा था तो ध्यान से उसे देखा अब इसे भी देखने का प्रयास करेंगे। कुछ देर रिमोट को अपने हाथ में लेकर रखेंगे। लेकिन बहुत सारे ऐसे विज्ञापन हैं जो गंदगी फैलाने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर रहे। लेकिन धन्य हैं आजकल की शिक्षित कही जाने वाली युवापीढ़ी जो विज्ञापन देखकर ही तय करती है कि उन्हें कौन सा शेम्पू खरीदना है और कौन सा तैल?
I could not visualize the advertisement that is being aired during the IPL telecasts which according to the author is referred to an obscene! Yeah there are many advertisements related to family planning and AIDS on various media channels which at times sound X-rated but they are largely serving awareness at all levels and therefore I think we need to change our orthodoxy approach to these issues.
कभी कभी शायद ये नुस्खा भी काम कर ....
भैया आपने लिखा महिला पर तो ब्लोगवाणी ने सर आँखों पे बिठाया. मैंने लिखा तो सदस्यता ही बर्खास्त कर डाली. ब्लोगवाणी तू कब बनेगी मीठीवाणी.
मेरा लेख यहाँ पढ़ें
http://laraibhaqbat.blogspot.com/
मुद्दा आपने वाजिब उठाया था अनिल जी लेकिन लगता है उसी मानसिकता के कुछ लोगो ने यहाँ आपके लेख की टिप्पणियों में भी अपने विज्ञापन डाल दिए !
लड़कियों को वाकई एक प्रोडक्ट के रूप में प्रचलित कर दिया गया है! ऐसे ही कई और भी विज्ञापन हैं ! शायद ये मॉडल्स खुद भी ये नहीं समझ पा रही हैं की उन्हें भद्दे तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है!
आईपीएल ने तो ऐसे विज्ञापनो की बरसात कर दी है .
एक्स पर्फ्यूम वाले विज्ञापन को तो एक जगह पुरस्कार भी मिला है .नए विचार के लिए !
आपत्तिजनक
लड़कियों को सामान ही बना दिया है और ऊपर से उनके लिये यह बताया गया है कि इसी में उनका कल्याण है. यदि वे ऐसा करती हैं तो उनका निजी निर्णय है, खुलापन है, आधुनिकता है, वगैरा.
The IPL is nothing but sponsored circus where cheer leaders make it watching absolutely horrible
LET US GET TOGETHER AND RAISE OUR VOICE AGAINST IPL IN THE FIRST CASE
WHY SHOULD CRICKET HAVE ALL THIS TAMASHA AND WHY SHOULD INDIANS EVEN WATCH IT .
ITS SHEER WASTE OF TIME AND MONEY
lekh to jagaane wala raha...
par godiyaal ji,bachche ko yaha to baksha hota......
bechaara kal hi to keh raha tha ki ye to shuruaat hai,aage-aage dekhiye hota hai kya?...
वाकई अफ़्सोसनाक कार्य है. पर सवाल ये ऊठता है कि इन ज्यादतियों और फ़ूहडता को परोसने और खाने वाले भी आप और हमसे ही हैं?
रामराम.
सलीम भाई ने बहुत ही सार्थक बात कही है और रचना जी की बात पर भी गौर किया जाना चाहिए.
इन सब के लिये कही न कही हम भी दोषी है
यदि लड़की को भोग की वस्तु समझा जाएगा तो फिर मिनी स्कर्ट और टांगों की नुमाइश का महत्व तो भोगियों के बीच रहेगा ही। ऐसा नहीं है कि सिर्फ लड़कियां ही भोग की वस्तु बनी हैं। अब महिलाएं भी ऊंचे पदों पर आसीन हो रही हैं। वे भी अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग कर रही हैं। बात यही है कि लड़कों के लिए मिनी स्कर्ट जैसी समस्या नहीं है। मगर कोई अपने स्तर से नीचे गिर जाए तो फिर नौकरी की गारंटी या मौज मस्ती जैसी बातें तो सामने आती ही हैं।
यह परोसने वाले और रस लेने वाले दोनों मूढ़ हैं । शीघ्र समझ में आयेगा ।
आज कुछ लोगों की मानसिकता ही बदल गई है जिस वजह से पूरा सामाजिक माहौल खराब हो रहा है..
बहुत खूब, अच्छा मुद्दा उठाया है आपने...
अनिल जी बहुत सही मुद्दा उठाया आप ने.... लेकिन मेरे या आप के रोकने से कोई नही रुकने वाला, इन सब को रोकने का एक ही उचित मार्ग है कि इन्हे देखना ही बन्द कर दे,
देखकर बाजार की हालत गालिब,
अब सो जाने को दिल करता है.
यह बाज़ारवाद आपके हमारे जैसे लोगो को समझ आ रहा है जिन्हे आना चाहिये उन्हे कुछ नही समझ मे आता ?
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
सूचनार्थ!
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
सूचनार्थ!
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