कितना चूसोगे अपनी ही मां को?उस मां को जो हमारे खाने पीने का आदिकाल से खयाल रखती आ रही है।उस मां की हालत हम लोगों ने अपने लालच से बदतर कर दी है।अब वो बेज़ार हो चुकी है।सड़क पर पड़े कमज़ोर जानवर की तरह जिसके जिस्म मे खुद के लिये कुछ नही और उसके शरीर से लिपटे बच्चे उसे झिंझोड़ते रहते हैं।हमे जानवर से श्रेष्ठ इसलिये माना गया क्योंकि हमारे पास दिमाग है?सोचने समझने की ताक़त है?तो क्या लगता है हम अपने सोचने समझने की ताक़त का सही मे इस्तेमाल कर रहें हैं?जमाखोरी हमारी प्रवृत्ति बन गई है और जरूरत से ज्यादा जमा करने के चक्कर मे बहुत से लोगों का हक़ भी मारा जा रहा है।हम स्वार्थी हो गयें है और हमे दूसरों की चिंता नही रहती,दूसरों की क्या हमे अपनी खुद की मां कि चिंता नही है जो हमे दूध पिलाते-पिलाते,दूध खतम, होने पर खून तक़ पिला रही है।उसको ज़रूरत से ज्यादा निचोड़ चुके हैं हम।अब भी समय है हमे संभलना ही होगा वरना जिस दिन धरती मैया के शरीर मे खून भी नही बचेगा तो फ़िर हम क्या पियेंगे?कौन बुझायेगा हमारी प्यास?
क्या हमे गिरते भूजल से समझ नही आ रहा है कि हम घोर संकट कि ओर जा रहे हैं।पानी के लिये मारामारी,खूनखराबा और हत्या जैसी वारदात क्या हमे बड़े खतरे का संकेत नही दे रही है?फ़िलहाल हम खुश हैं कि पानी की किल्लत सिर्फ़ गरीब झेलते हैं।जो सक्षम है वो तो पानी खरीद भी सकता है और यंहा छत्तीसगढ मे तो शिवनाथ नदी तक़ को बेचा जा चुका है।कब तक़ खरीदोगे पानी और कितना खरीदोगे?एक समय आयेगा जब भीड़ पानी लूटने पर उतर आयेगी तब कौन बचायेगा?आज भी बड़ा तबका अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिये पानी के जुगाड़ मे लगा रहता है।क्या बचपन,क्या जवानी और क्या बुढापा?सब एक लाईन मे लगे मिलते है,पानी के लिये।और कंही पर पानी बहता रहता है बेवज़ह्।नौकर को तक़लीफ़ होती है इसलिये बल्टी मे पानी लेकर कार धोने कि बजाये सीधे पाईप से कार धोता है।मेमसाब को हरियाली पसंद है इसलिये बगीचे को सुबह-शाम पानी दिया जाता है और तो और बच्चों के प्यारे पप्पी को गरमी लगती है इस्लिये उसे दो वक़्त नहलाया जाता है और दूसरी ओर स्कूल जाना छोड़,खाना पकाना छोड़ लोग दौड़ पड़ते हैं उस ओर जिस ओर से म्यूनिसिपैलिटी का वाटर टैंकर आता है।
वाह रे इंसान।जिस पानी को हमारी धरती मैया ने मुफ़्त मे हम लोगों के लिये उपलब्ध कराया अब उसे खरीदना पड़ रहा है।मैने बचपन मे सुना था किसी को भी पानी पिलाने से पुण्य मिलता है।यही स्थिति रही तो क्या हम पुण्य कमा पायेंगे।पुण्य तो जाने दिजिये क्या हम पानी बचा पायेंगे?छोड़िये पानी को क्या हम अपनी मां धरती मैया को बचा पायेंगे?शायद मैं गुस्से मे कुछ ज्यादा लिख गया हूं,मगर मैं भी उतना ही दोषी हूं।बहुत गुस्सा आता है जब खुले नल से पानी बहता देखता हूं।कूलर की टंकी भर जाने के बाद पाईप से इतना पानी बह जाता है जितना झुग्गियों मे रहने वाला एक परिवार लड़-झगड़ कर बड़ी मुश्किल से इक्ट्ठा कर पाता है।कंही-कंही हर घर मे(एसीवालों को छोड़ कर)हर कमरे मे कूलर होता है और एक ही कूलर की टंकी मे इतना पानी आ जाता है जितना गरीब के घर के सारे बर्तनों मे।एसीवालों के यंहा पानी कूलर की टंकी मे नही जाता तो बगीचे को हरा करने मे बह जाता है।क्या कहूं कहने को बहुत कुछ है मगर कहूंगा नही,क्योंकी मैं चाहता हूं कि आप भी कुछ कहें।(सभी तस्वीरें नेशनल लुक के युवा फ़ोटोग्राफ़र दिनेश यदु ने अपने कैमरे मे कैद की थी)
26 comments:
अनिल जी, पानी खरीदने पर मुझे एक वाकया याद आ गया. १९९८ की गर्मी में एक बार मैं मुंबई से कर्णावती एक्सप्रेस ट्रेन में सफर करने के लिए चढा था. गाडी चलने वाली थी और तेज गर्मी के कारण मुझे प्यास लग रही थी. मैंने ट्रेन में बिसलेरी की बोतल वाले से एक बोतल खरीदी. उसने उस समय मौके का फायदा उठाकर उसके २५ रूपये लिए जबकि शायद उस समय दूध कोई १० या १२ रूपये लीटर रहा होगा. उस समय मुझे अहसास हो गया था कि आने वाले सालो में पानी शायद एक rare commodity बन जाये और अफ़सोस आज ये काफी हद तक सही लग रहा है. इसका बहुत बड़ा कारण संसाधनों का दुरूपयोग है. ये हाल रहा तो हम अपने आने वाली पीढियों के गुनाहगार कहलायेगे.
ek baar fir aapne udvelit kar diya bhai saaheb !
ek behtareen post ke liye shukriya !
बहुत सार्थक लेख है....पानी जीवन है...और हम बिना सोचे समझे इसे बहाते रहते हैं....जागरूकता प्रदान करने वाला लेख बहुत अच्छा लगा....बधाई
यह एक बहुत विकट समस्या हो चली है जबकि अभी पूरी गर्मी बाकी है -
अनिल भाई !
एक ज्वलंत समस्या पर बेहतरीन विचार के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ! मैं समझाता हूँ आम लोगों के लिए एक नीरस सा यह लेख, एक दस्तावेज के रूप में सुरक्षित होना चाहिए ! अधिकतर लोग इसे समझने का प्रयत्न करें यही दुआ रहेगी !
शुभकामनायें !
क्या भाईसाहब, आप अभी से घबरा गए, अभी तो खून के बाद हड्डी भी तो मिलेगी.....
चूसो-चूसो दम लगाकर चूसो....
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जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
जनसंख्या पर रोक लगाने के लिये अविलम्ब कानून की आवश्यकता है अन्यथा यहां गृहयुद्ध छिड़ जायेगा. लेकिन यह होगा नहीं क्योंकि कोई भी दल मुस्लिमों के वोट खोना नहीं चाहता..
बिन पानी सब सून
सुन्दर झाँकियों के साथ बढ़िया आलेख!
अनिल भाई
संसाधनों के असंगत और अन्यायपूर्ण बंटवारे तथा इन संसाधनों के अधाधुंध दोहन पर आपकी चिंतायें जायज़ हैं !
संभव है कि हमें ...पानी का महत्त्व मनुष्यता की अंतिम हिचकी के साथ पता चले :(
काश.. कि आम आदमी की पीड़ा साहब और मेमसाहबों को भी समझ आए।
इन्सान के लालच ने पानी को भी लील लिया है।
पानी की समस्या अभी और गम्भीर होगी ।
आने वाला समय निश्चित ही पानी को लेकर युद्ध करने वाला होगा । बेशक अभी ये उतना गंभीर नहीं दिखता है मगर यकीनन है ..अभी पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली के कुछ इलाकों में पेयजल के लिए खून खराबा हो रहा है । विचारणीय पोस्ट
अजय कुमार झा
जल एक प्राकृतिक सम्पदा है। पृथ्वी पर जीवन को बचाने के लिए इसे बचाना होगा।
सार्थक लेख ।
pani ki samsya he abhi shuru huwa he
filem to abhi baki he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
अपने ही कर्मों का नतीजा है.
रामराम.
सच मै भारत मै पानी की इतनी किल्लत देख कर हेरानगी होती है..... पानी क्या हमारे यहां किसी किसी के लिये सब कुछ मोजूद है, ओर करोडो के लिये हर चीज की किल्लत है
पानी के लिए जद्दोजहद देख कर एक पंक्ति याद आ गई
अभी तो ये अंगड़ाई है
आगे बहुत लड़ाई है
सोचनीय दशा....
...जल ही जीवन है ... दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता है प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन कम से कम इतना पानी तो जरूर बचा सकता कि एक "गरीब परिवार" को दिन भर पीने के लिये पानी मिल सके ... दिन में तीन बार नहाने वाले तथा "बाथ टब" में डूबे रहने वाले,बेवजह गाडियां धोने वाले....इस समस्या से बचने के बारे में सोचें ...
....बेहद प्रभावशाली लेख!!!
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गए ना उबरे, मोती मानस चून।
रहीम बाबा तो बहुत पहले ही कह गए। यहाँ तो मनुष्य का भी पानी समाप्त हो रहा है।
तस्वीरें देखकर तो हमें हमारे पुराने दिन याद आ गये टेंकर पर अपना पाईप फ़ेंककर पानी भरना, और अगर टेंकर कम आयें तो लाईन में लगकर अपनी बाल्टियों को भरना, हैंडपंप पर लाईन लगाकर पानी भरना, साईकिल पर दो बाल्टियों को हैंडल पर टांगकर घर लाना और भी पता नहीं क्या क्या !!
पता नहीं आगे भविष्य में क्या क्या देखने को मिलेगा हमारी अगली पीढ़ी को, जब हमने यह सब देख लिया है।
Nice Thought
Ye baat yadi aaj kise ko samajh me nahi aayege to humara aane wala kal shayad isse bhi jyada bura hoga.....
Its Really a nice thought
Par ye baat humare is aaj ke yug me 90% logo ko samajh me nahi aate....
ye humare liye ek sandesh hai ke humara aane wala kal aur kitna jyada kharab ho sakta hai...
ye sab ke liye sochne ka vishye hai......
ए सी भी बिजली से चलता है और बिजली भी पानी से ही है । पानी खत्म हो जायेगा तो ए सी भी बन्द हो जायेंगे । और सिर्फ पानी बचाने से कुछ नही होगा और पानी कैसे बरसे इसके बारे मे सोचना होगा । पेड लगाना और अन्य उपाय करने होंगे ।
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