हरा - भरा बस्तर निर्दोष लोगों के खून से लाल हो रहा है और नेताओं में वाक्युद्ध चल रहा है। और इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा! वही दिग्विजय सिंह, जो सालों बस्तर समेत पूरे छत्तीसगढ़ के भी मुख्यमंत्री थे। क्या तब हमले नहीं किया करते थे नक्सली? भूल गए क्या दिग्गी राजा? याद दिलाएं? आपके तो एक मंत्री तक को मार डाला था नक्सलियों ने! आपने अपने कार्यकाल में नक्सली समस्या को हल करने के लिए क्या उपाय किए थे? वही बता दीजिए सबको! आप क्या बताएंगे राजा साब? सब जानते हैं। उस समय यही नक्सली, जो आज छत्तीसगढ़ में तांडव कर रहे हैं, तब पड़ोस के राज्य आंध्र प्रदेश में कहर बरपाते थे।
कारण तो पता है न? उन दिनों वहां कांग्रेस की नहीं, तेलुगु देशम् की सरकार थी। वैसे आपको तो पता ही होगा नक्सली छत्तीसगढ़ में कब आए और किस पार्टी के कार्यकाल में पनपे? अगर पता नहीं हो तो फिर से अपने 10 सालों के कार्यकाल की समीक्षा कर लीजिएगा! दिग्गी राजा यह वही बस्तर है, यह वही छत्तीसगढ़ है जिसकी बदौलत कांग्रेस कभी पूरे मध्यप्रदेश पर राज किया करती थी। छत्तीसगढ़ कांग्रेस का गढ़ कहलाता था और आपने अपने 10 साल के कार्यकाल में कांग्रेस को कहां ला पटका, यह दुनिया जानती है। दुनिया क्या आप खुद भी अच्छी तरह से जानते थे कि एक नहीं, कई चुनावों तक अब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी संभव नहीं है। तभी तो आपने 10 साल के राजनैतिक संन्यास की घोषणा कर डाली थी।
अच्छा! अच्छा! याद आया, 10 साल तो पूरे होने जा रहे हैं और उसके बाद भी मध्यप्रदेश में कांग्रेस का फिर से राज आता नजर नहीं आ रहा है!
अच्छा तो यह बात है! फिर तो ठीक ही है दिग्गी राजा! बिना राज-पाट के राजा कहलाना काफी तकलीफ देता होगा, है न? ऐसे में आपके पास केंद्र की कुर्सी के अलावा और विकल्प भी नहीं है। मध्यप्रदेश में आपने जो कांग्रेस की दुर्गति की है, वह दो चुनावों में दिख चुकी है। और आने वाले चुनावों में भी उसकी वापसी आपकी गुटबाजी के कारण संभव नहीं दिखती। ऐसे में अगर केंद्र की कुर्सी की खातिर दिल्ली दरबार को खुश रखने के लिए डॉ. रमन सिंह के खिलाफ प्रचार युद्ध कर रहे हैं तो ठीक ही कर रहे हैं। वैसे भी दिल्ली दरबार में भोंपुओं को भरपूर तरजीह देने की परंपरा रही है। दिल्ली में मध्यप्रदेश से आपके पहले के कुंवर अर्जुन सिंह रिटायर हो चुके हैं और दूसरे चहेते सुरेश पचौरी बैक टू दि पेवेलियन यानी मध्यप्रदेश पहुंच चुके हैं। ऐसे में आपका दिल्ली दरबार को खुश करने के लिए राजनैतिक कलाबाजियां खाना कहीं से गलत नहीं लगता।
मगर सोचिए तो सही, राजा साब! इस बार तो आम जनता भी मारी गई है नक्सली हमले में। पुलिस वालों को निशाना बनाने वाले नक्सली अब जनप्रतिनिधियों और जनता को मार रहे हैं और आप उनसे कह रहे हैं चुनाव लड़ो। छत्तीसगढ़ सरकार को बता रहे हैं कि गोली नक्सलियों का जवाब नहीं है। यानी सरकार गोली चलाना भी बंद करे और नक्सली गोलियां चलाते रहे। मरते रहें बस्तरवासी। बेमतलब और बेवजह। क्या आपको दर्द नहीं होता अपनी पुरानी जनता के मारे जाने का? क्या जमीन के बंटवारे से रिश्तों का भी बंटवारा हो जाता है? अगर बंटवारा नहीं हुआ होता और आप ही यहां के मुख्यमंत्री रहते तब भी क्या आप वही कहते, जो आज कह रहे हैं?
राजा साब, माफ कीजिएगा; यह समय फिजूल की बयानबाजी का नहीं है। यह समय है इस बात पर गंभीरता से विचार करने का कि क्या अब बस्तर में आम आदमी सुरक्षित रह गया है? राजा बाबू! बस्तर में बारुदी सुरंगों का जाल बिछा हुआ है। वैसे ही जैसे आप राजा- महाराजा लोग जंगलों में जानवरों का शिकार करने के लिए जाल बिछाया करते थे। तब जैसे जानवर मरते थे न राजा साब, वैसे अब इंसान मर रहे हैं! आपको क्या लगता है कि आपके कहने से चुनाव लड़ लेंगे, नक्सली? उनका उद्देश्य सत्ता पाना नहीं है,सिर्फ हिंसा है, लूट-पाट है। और फिर, सिर्फ बस्तर संभाग और सरगुजा के कुछ इलाकों के भरोसे सरकार तो नहीं बना सकते न नक्सली; इसलिए जंगलों में अघोषित सरकार चलाना चाहते हैं वे! इसलिए कि तेंदूपत्ता के कारोबार के जरिए हजारों-करोड़ रुपए बटोर सकें। लकड़ी और वनोपज की अफरा-तफरी कर सकें। बहुमूल्य और सामजिक महत्व के खनिजों की तस्करी कर सकें। उन्हें विकास से लेना-देना होता तो वे वहां सालों बाद बनी पक्की सड़कें नहीं खोदते। वे वहां दशकों बाद (इसमें आपके कार्यकाल के साढेÞ सात साल भी शामिल है) बने स्कूल और अस्पताल नहीं उड़ाते। वे पंचायत भवन और विश्राम गृह नहीं तोड़ते। वे बिजली के टॉवर नहीं गिराते। वे रेल की पटरियां नहीं उखाड़ते। वे पंचों-सरपंचों को अपना निशाना नहीं बनाते। दरअसल वे तो चाहते ही नहीं है कि बस्तर का विकास हो, और इसी बहाने वे बस्तर में अपना खूनी खेल चला सकें।
दिग्गी राजा अभी भी समय है। संभल जाइए और इस बात पर विचार कीजिए कि बोतल से बाहर आने वाला जिन्न किसी का नहीं होता। आज हमारी, तो फिर तुम्हारी बारी है। नक्सलवाद बोतल से निकला हुआ वह जिन्न है जो धीरे-धीरे सबको निगल रहा है। आज जनता का खुद को हितैषी बताने वाला यह जिन्न अब आम जनता को भी निगलने लगा है। अब भी संभल जाइए और सिर्फ जुबानी जमा-खर्च करने के बजाय केंद्र में बैठी अपनी सरकार को समझाइए कि यह समय राजनीति करने का नहीं है। वैसे भी लाशों पर राजनीति स्थायी नहीं होती। आज नक्सली छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और बिहार में ज्यादा सक्रिय हैं तो क्या कल वे महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और दिल्ली को छोड़ देंगे? तब क्या करेंगे आप दिग्गी राजा, जब ये नासूर फैलकर पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेगा? क्या तब तक इंतजार करवाओगे? अगर अपने कार्यकाल की थोड़ी बहुत याद बाकी है और भोले-भाले बस्तर के आदिवासियों से मिला प्यार याद है तो खुलकर कहो कि नक्सलवाद जड़ से खत्म होना चाहिए। मगर अफसोस, आप तो ऐसा भी नहीं कर सकते क्योंकि अभी दिल्ली दरबार और वहां के राजकुमार इस मामले में खामोश हैं। अगर वे कह दें तो शायद सबसे जोर से आप ही चिल्लाएंगे, ‘नक्सलियों को खत्म कर दो! जड़ से मिटा दो नक्सलवाद को!’
21 comments:
सही बात
सच्ची बात
उम्दा पोस्ट........
bilkul sahi.....in nango ko aaina dikhana bahut jaroori hai....
आप भी ...... हद हो गई .... किन्नरों को विअग्रा खिला रहे हैं
बहुत सटीक कहा.
रामराम.
काश ये बात सरकार के कान तक पहुंचे...पर वो भी तो एक ही थैले के चट्टे - बट्टे हैं ....
पीपुल्स वार ग्रुप की गतिविधियाँ उन्हीं दिनों में अबूझमाड को अपना अड्डा बना रही थी जब छतीसगढ मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था और बस्तर पूर्णत: उपेक्षित। आज नक्सलवाद पर "सोफ्ट कोर्नर" रखने वाले दिग्विजय सिंह खुद अपनी जिम्मेदारी से भी नहीं भाग सकते।
दो और नेता नरेन्द्र मोदी तथा लालू यादव भी अपने बयानों से नक्सलियों के लिये "नर्म दिल" हो गये हैं और गोली का जवाब बोली से देंगे। सही भी है, नक्सलियों के निशाने पर आम आदमी हैं नेताओं की दुकान तो लफ्फाजी से चल जाती है। बस्तर जले-मरे...कितनों को फर्क पडता है?
आप से सहमत है जी, यह सब बारी बारी से जनता का खुन पीने वाले है सब
you are right..........
....नक्सली किस सिद्धांत/उद्देश्य पर काम कर रहे हैं क्या समर्थक/शुभचिंतक बता पायेंगे?
अनिल भैया,
नमस्कार,
नक्सलवाद पर सरकार क्या कर रही है, या क्या करेगी यह तो दूर की बातें हैं. कुछ ठोस कार्यवाही हो भी पायेगी या नहीं यह प्रश्न तो अनुत्तरित ही है, मगर आसपास जो हम देख रहे हैं वह तो रक्त रंजित धरती के अलावा कुछ नहीं. आश्चर्य की बात है की धरती पर बहने वाली लाली देश के हुक्मरानों की आँखों में क्यों नहीं उतर आती. क्या सरकारें केवल नीतियाँ बनाने के लिए होती हैं? क्रियान्वयन के लिए नहीं? जाने कितनी धमाकों के बाद हमारी सरकार जागेगी, जाने कितनी चीखें अभी और बस्तर के वादियों में घुटती रहेंगी? पता नहीं? लगता है साथ हमें भी चीखना होगा, मगर ऐसे नहीं दुष्यंत कुमार फिर से कहें की
"चीख निकली तो है होटों से मगर मद्धम है
बंद कमरों तक सुनाई नहीं जाने वाली"
भैया अपने स्वर में मेरी भी मद्धम आवाज शामिल करें, शायद धीरे धीरे ही सही कुछ असर पैदा हो. आमीन.
"उन दिनों वहां कांग्रेस की नहीं, तेलुगु देशम् की सरकार थी। वैसे आपको तो पता ही होगा नक्सली छत्तीसगढ़ में कब आए और किस पार्टी के कार्यकाल में पनपे" यह पंक्तियां सब कुछ बयान कर रही हैं...
ये अहिंसक आज कैसे हिंसक हो गया
कह रहा है अफ़ज़ल को फाँसी दो !!!!!!!!!!!
तुम्हारी दिल्ली सरकार तो ठीक से बोल नहीं रही है
दिग्गी राजा
काश ये बात सरकार के कान तक पहुंचे...पर वो भी तो एक ही थैले के चट्टे - बट्टे ........
इतना ही कहूँगा भईया कि इसे दिग्गी राजा की बजाए दिग्गी चोर कहें तो ज्यादा अच्छा है..
satyavachan,
rajeev ranjan jee ki bat se sau feesdi sehmat
बहुत सही कहा है आप ने । आशा करती हूँ कि देश का पूरा मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक दोनों, इस के खिलाफ़ एकजुट हो कर इसकी भर्त्सना करेगा। लालू की बारह की टीम को जबरदस्ती बस्तर भेज दिया जाये और नरेंद्र मोदी को भी गुजरात से निकाल बस्तर के जंगलों में भेज दिया जाए और फ़िर देखें ये कितना नक्सलियों को बोली से समझाते हैं। मासूम जानों का खून केंद्र सरकार के हाथों पे भी पूरी तरह लगा है। पंजाब में अगर दहशतवाद खत्म किया जा सकता है तो छत्तीसगढ़ में क्युं नहीं। लेकिन अभी उनकी रोटियों के परांठे बन रहे होगें मासूमों के खून से।
राजकुमार साहब तो बन्द मुठ्ठी लाख की हैं। जब खुलेंगे तब पता चलेगा कितना कि लाख के हैं या खाक के!
यह समय राजनितीक बयानबाजी का नहीं वरन किसी ऐसे निर्णय का है जिससे हमारे निर्दोष जन शांति के साथ अपना जीवन यापन करें और यह समस्या जल्द ही समाप्त हो , निश्चित ही नक्सलियों को किसी भी दशा में सरकार चलाने या उसमे शामिल होने का निमंत्रण देना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा , नेताओं को चाहिए की वे ऐसे समय पर बयानबाजी से बाज आयें और "हमें" भी यह सुनिश्चित करना चाहिए की "हम भी" किसी भी व्यक्ति या दल पर आरोप प्रत्यारोप से बचें ...........
बहुत सही कहा!
आलेख उबाउ ज्यादा हैं दरअसल इस समस्या पर जो भी बाते हो रही हैं उसमें गंभीरता जिनको होनी चाहिये वो खुद ही सो रहे हैं आप कोस कर उनको झकझोरिये जो कुछ कर सकते हैं ,
सतीश कुमार चौहान भिलाई
satishkumarchouhan.blogspot.com
satishchouhanbhilaicg.blogspot.com
राजा भी कभी प्रजा की किसी बात का जवाब देते हैं ? आप भी अनिल भाई ........
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