Tuesday, July 13, 2010

आखिर चाह्ती क्या है सरकारें?खून बहता रहे बस्तर की हंसी वादियों में?

मन बेचैन है बेहद्।पता नही कल अख़बार की सुर्खियां क्या होगी?शाम ढलते ही खबर मिली की बस्तर मे आधा दर्ज़न जगहों पर पुलिस और नक्सलियों के बीच फ़ायरिंग शुरू है।अब भला बताईये ये भी भला कोई खबर है,कि फ़लाना जवान मारे गये या ठिकाना नक्सली मारे गये!आखिर कब तक़ चलेगा ये खूनी खेल बस्तर की खूबसूरत वादियों में।ले-देकर एक साल ही बीता है मदनवाड़ा की नक्सल वारदात को।उस वारदात मे हमने एक जाबांज़ पुलिस अफ़सर आईपीएस विनोद कुमार चौबे समेत 4 दर्ज़न से ज्यादा लोगों को खोया था।कल ही मुख्यमंत्री ने उनके पुत्र को अनुकम्पा नियुक्ति दी है।क्या अब सरकार सिर्फ़ अनुकम्पा नियुक्ति देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ रही है?या फ़िर वो अनुकम्पा नियुक्ति की नौबत आने देने से बचने का उपाय करेगी ?रोज़ लोग मर रहे हैं।रोज़ फ़ायरिंग की खबर आती है।बस्तर की हरी-भरी वादी खुन से लाल हो चुकी है ।पता नही और कितना खून बहेगा वंहा?आखिर क्या चाहती है सरकारें और क्या चाह्ते हैं नक्सली?सरकार अपनी सत्त्ता चाहती है तो नक्सली अपनी!और दोनो की लडाई के बीच पिस कर मर रहा है बस्तर का भोला-भाला आदिवासी।जिसके हितों की बात करने वालों की तोंद सुरसा की तरह बढती ही जा रही है,चाहे वे सरकारी नुमाईन्दे हों या फ़िर नक्सली नेता!सब का पेट भर रहा है और आदिवासी बेचारा मर रहा है।कभी सिर्फ़ और सिर्फ़ नमक के नाम पर छला जाने वाला आदिवासी आज हर बात पर छला जा रहा है।सरकार उसे विकास के नाम पर छल रही है तो आदिवासी अन्याय के नाम पर?उसे दोनो तरफ़ से मरना पड़ रहा है।पुलिस की मदद करता है तो नक्सलियों की हिट लिस्ट मे और नही करता तो पुलिस की हिट लिस्ट में।सबसे बड़ी समस्या तो बस्तर के मूल निवासियों की है जिनके हक़ के लिये चिल्ला रहे है आंध्र के कथित नक्स्ली और जिनके समुचित विकास का दावा कर रही है सरकार्।और ऐसे मे अगर एक ही रार को आधा दर्ज़न ठिकानों पर पुलिस नक्सली मुठभेड़ की खबर आती है तो क्या वो अच्छी खबर होगी?अगर खबर ऐसी होती है तो भगवान से निवेदन ही कि खबर ही ना हो।

हादसे इतने है मेरे शहर में कि अख़बारों को निचोड़ो तो खून टपकता है।

फ़िर एक बार ईश्वर से प्रार्थना करते हुये कि सुबह अख़बार को निचोड़ूं तो उससे बस खून ना टपके।इससे ज्यादा अब और कुछ किया भी नही जा सकता क्योंकि पता नही सरकारें आखिर चाहती क्या है?

23 comments:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

मेरी भी इश्वर से प्रार्थना है कि सुबह अख़बार को निचोड़ूं तो उससे बस खून ना टपके।

पुरे देश मैं हर जगह भोला-भाला गरीब ही पिस रहा है.

Unknown said...

aapki mlekhni ke parakram ko naman !

Unknown said...

aapki mlekhni ke parakram ko naman !

Udan Tashtari said...

हादसे इतने है मेरे शहर में कि
अख़बारों को निचोड़ो तो खून टपकता है।

-आत्मा दुख जाती है. ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं.

bilaspur timess said...

naksalvaad kaa safaayaa honaa aavshyak hai !

उम्मतें said...

अनिल भाई
शुक्र है कि आपका नंबर अखबारों के बाद आता है ! यहां बस्तर में अखबार दूसरे नंबर पर हैं !

Smart Indian said...

अख़बारों को निचोड़ो तो खून टपकता है।
शर्मनाक स्थिति है अनिल जी. जिन को प्रशासन और व्यवस्था की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, वे कहाँ हैं? कहाँ है हमारी राजनैतिक इच्छाशक्ति कि चन्द हत्यारों के गिरोह जब चाहते हैं घात लगाकर निरपराध जनता, देशभक्त सनिकों के गले रेत जाते हैं?

Arvind Mishra said...

हल सुझाएँ पुसदकर जी ,रूदा (व्)ली बहुत हो गयी ! कान पक गया है !

Satish Saxena said...

बस्तर के लिए आपकी संवेदनशीलता, बस्तर निवासियों की एक पूंजी है !

Anil Pusadkar said...

अरविंद भैया हल तो उनको भी पता है जिन्हे इस समस्या का हल करना है।क्या इससे पहले कभी अलगाववादी आंदोलन खत्म नही किये गये हैं?लिट्टे से बड़ा तो नही है ये?वीरप्पन को भी जब चाहा तब मार गिराया गया था और वैसे दुसरों को।मगर सवाल सरकारों के चाहने और नही चाहने का है,मेरे हल सुझाने से क्या होगा?क्या सरकार उसे मान लेगी?हज़ारों करोड़ रूपये के स्पेशल पैकेज़ का क्या होगा?जनता बह्ले ही अच्छी फ़सल की कामना करे,नेता हमेशा बाढ या सूखे की कामना करता है,आखिर सवाल है ये करोड़ो-अरबो के राहत कामों का जो जनता को कम उन्हे ज्यादा राहत देते हैं।कोई बात बुरी लगी हो क्षमा कर देना,

Anil Pusadkar said...

अरविंद भैया हल तो उनको भी पता है जिन्हे इस समस्या का हल करना है।क्या इससे पहले कभी अलगाववादी आंदोलन खत्म नही किये गये हैं?लिट्टे से बड़ा तो नही है ये?वीरप्पन को भी जब चाहा तब मार गिराया गया था और वैसे दुसरों को।मगर सवाल सरकारों के चाहने और नही चाहने का है,मेरे हल सुझाने से क्या होगा?क्या सरकार उसे मान लेगी?हज़ारों करोड़ रूपये के स्पेशल पैकेज़ का क्या होगा?जनता बह्ले ही अच्छी फ़सल की कामना करे,नेता हमेशा बाढ या सूखे की कामना करता है,आखिर सवाल है ये करोड़ो-अरबो के राहत कामों का जो जनता को कम उन्हे ज्यादा राहत देते हैं।कोई बात बुरी लगी हो क्षमा कर देना,

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सरकार को अपनी रोटी सेकने से मतलब है। जनता जाए .... असली शब्द उपयोग में नही लासकता, इसलिए खाली गजह के लिए 'भाड़ में' से काम चला लीजिए।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अनिल भईया, अब बात बस्तर तक सिमित कहाँ रही है. रायपुर जिले की सीमायें भी लाल होने लगी हैं. विधायक रेस्ट हाउस तक भी तो पहुँच गई है लाली. जाने सरकार और किस बात का इंतजार कर रही है? सरकार अब भी अगर घोड़े की सवारी में संकोच करती रही तो वह दिन दूर नहीं जब घोडा ही सरकार की सवारी करने लगेगा.

ZEAL said...

do-chaar besharam neta logon ka khoon tapka dein to shayad koi hal nikal aaye !

प्रवीण पाण्डेय said...

सच में, दुखद और चिन्तनीय।

डॉ महेश सिन्हा said...

राज्य और केंद्र की लीला न समझे कोय
दो पाटन के बीच में दिया आदिवासी रोय

Awasthi Sachin said...

अनिल भैया,
धन धन धन धन , धन बड़ा, धन से बड़ा न कोई....
मैं अभी लौटा हूँ धुर माओवादी क्षेत्र से,
वहां सिर्फ पैसे की गंगा बह रही है, पानी, दवा, शिक्षा तो है ही नहीं वहां...
आश्चर्य का विषय है की पिछले १ दशक मे १ भी शिक्षक या
डॉक्टर माओवादी हिंसा मे नहीं मारा गया, मरे गए तो सिर्फ वर्दीधारी...
ये क्योंकर हुआ, ये जाँच का विषय है...

दीपक 'मशाल' said...

अभी परसों हाल ही में रिलीज फिल्म 'रेड अलर्ट' देखी.. उसमे भी काफी कुछ यही बताया गया है कि ना तो सरकार को कोई तकलीफ है ना नक्सलियों को.. गेंहूं में घुन की तरह बेचारे आम लोग पिस रहे हैं... बढ़िया आवाज़ उठाई भैया..

समय चक्र said...

भाई ही सटीक विचारणीय बात कहीं है आपने अनिल जी... मेरे ख्याल से सरकारों का ये रवैय्या रहा है की दर्द भी दो और दवा भी न दो...भाड़ में जाए जनता जनार्दन .... यदि ऐसा नेता नहीं करते हैं तो उन्हें मुद्दे कहाँ से मिलेगें ...फिर जनता कैसे रोयेगी... आभार

शरद कोकास said...

ऐसा ही होता रहा है ऐसा ही होता रहा है ..दुनिया में

CARTOON CHHATTISI said...

syahi mahangi ho gayi hai bhaiya
our khoon ka to koi mol hai nahi.....isiliye khoon khabren ban tapak raha hai..AK BAAT OUR...APNE NETAON KA BLOOD TEST HONA CHAHIYE...SHAYAD UNKA KHOON PANI HO GAYA HAI..!!?

PD said...

आजकल Indian Ocean का एक गीत बहुत चर्चे में है - "इण्डिया सर ये चीज धुरंधर.. रंग-बिरंगा परजातंतर"

विवेक रस्तोगी said...

हमारी किस्मत में शायद रोज सुबह खून निचोड़ना ही लिखा है, पता है कि अखबार में यही सब होगा तब भी बड़ी बेसब्री से अखबार का इंतजार करते हैं, जैसे ही घंटी बजती है, पहले दरवाजा खोलने की जंग सी रहती है घर में, पता नहीं हम कौन से समाचार के लिये इंतजार रहता है, आज पता चल गया कि हम रोज खून निचोड़ने के लिये ही अखबार पढ़ते हैं और सुबह इंतजार करते हैं।