Saturday, August 7, 2010
इफ़ बास इज़ रांग?
एक और छोटी सी पोस्ट।कल की पोस्ट पर मेरे ब्लागिंग के गूरू पर पत्रकारिता के चेले आवारा बंज़ारा यानी संजीत त्रिपाठी ने कमेण्ट किया था कि यदि आफ़िस मे बास ही गेम खेलने लगे तो वो बाकी लोगों को कैसे मना करेगा?संजीत ने आगे लिखा कि हमको जवाब मांगता है बास!जवाब तो मैं उसे कल ही दे देता मगर रात ज्यादा हो गई थी इसलिये सोचा आज उठते ही गुरू/चेले टू-इन-वन को जवाब दिया जाये,मगर जवाब देते-देते रात हो ही गई।तो संजीत बाबू कभी हमने एक पोस्टर देखा था एक अखबार के दफ़्तर में।उस पर लिखा था दफ़्तर के दो रूल यानी नियम।पहला बास इज़ आलवेज़ राईट और दूसरा इफ़ बास इज़ रांग सी रूल नम्बर वन।तो समझ गये ना संजीत बाबू कि हम अगर गेम भी खेलें तो वो काम की श्रेणी मे आयेगा और अगर बाकी लोग काम भी करें तो वो खेल ही कहलायेगा।ठीक वैसे ही जैसे नेता कर रहे हैं जनता के साथ और जो जनता करती है वो तो खेल ही ना लोकतंत्र के साथ,देश के साथ और तो और खुद के साथ।और नेता जो करते है वो काम है सिर्फ़ काम्।क्यों सही कहा ना!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
19 comments:
yadi desh me sabhi log aapke baas or aapki tarah hi ho gaye or kaam ke samay me hi gem khelnaa shuru kar diyaayaa netaaon ki tarah hi ho gaye to samajhlo ki loktantr kaa to bedaa gark ho hi jaayegaa or fir desh kahaan jaayegaa kher aap to maje lekar chale jaayenge par bhogengi aapki pidiyaan
हहा...बढ़िया !
...bahut khoob !!!
यह सवाल तो हमारे ज़ेहन में भी आया था भाई । लेकिन शराफत के बोझ तले दबकर पूछ नहीं पाए ।
लेकिन आज आपका ज़वाब बहुत सटीक लगा ।
अब संजीत भईया ला तोर जवाब निक लागिस के नी ओला त संजिते भईया बताही, फेर मोला लागत हे तेंहा सिरतोन गोठियाये हवस भईया, हमर गवंई-गाँव म एक ठन कहावत हवे..
"हाथी ला हरहा नी कहे जाय, अउ अधिकारी ला चोरहा नी कहे जाय"
फेर लागत हवे बखत आ गे हे के हाथी ला घलोक हरहा कही के खेत ले खेड़े बर लागही, तभे हमर खेत (देश) ला हमन बचा पाबो.
यस अनिल बॉस, यू आर आल्वेज़ राईट
बी एस पाबला
बिल्कुल सच कह रहें हैं श्रीमानजी।
आपसे सहमत।
बॉस हमेशा गेम ही तो खेलते रहता है।
बिल्कुल सही कहा जी
बॉस इस आलवेज राईट
प्रणाम
hmm , ye rule to sawal puchhte vakt dhyann me hi nai tha sir ji.... locha hai je to.
ekdam sahi.
यही सवाल हमारे दिमाग मै भी घुम रहा था, लेकिन जबाब भी हमे हमारे दिमाग ने दे दिया था, कि भारत तभी तो इतनी तरक्की कर रहा है, जिधर देखो तरक्की ही तरक्की:)
अब कर्पोरेट लेवल पर बॉस की परिभाषा बदलने लगी है
नम्बर एक से ज्यादा न० २ रूल जयादा जरुरी है
आपको जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ .अशोक बजाज
आपको जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ .अशोक बजाज
बिल्कुल सच कह रहें हैं
jandin ki bahut bahut badhai evam
shubhkaamnayen
अनिल पुसदकर जी जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई .
और एक आग्रह छत्तीसगढ़ ब्लॉग में "रोजगार और निर्माण" से जुड़ा एक प्रश्न किया था अपने व्यस्त समय से कुछ पल उसके लिए भी निकालिएगा .
इसीलिए पुराने जमाने के समझदार बड़े लोग ऑफिस बॉस के लिए अगल बंद केविन का प्रावधान रखते थे
nice
he adhikari jagat murari, nach raha mai tere aage.......
Post a Comment