Friday, August 20, 2010
सेलिब्रेशन का ये कौन सा तरीका है?
सेलिब्रेशन आजकल फ़ैशन के साथ-साथ स्टेटस सिंबल बन गया है।खासकर युवा पीढी तो सेलिब्रेशन कि दिवानी हो गई है।सेलिब्रेट करने का कोई मौका हाथ से नही जाने देती।ठीक है अच्छी बात है खूबसूरत पलों को यादगार बनाने के लिये जश्न कोई बुरी बात नही है,मगर जो जश्न ज़िंदगी भर के लिये ज़ख्म दे जाये उसे क्या कहें?जी हां मै सच कह रहा हूं।छत्तीसगढ भी विकास की दौड़ मे सरपट भाग रहा है और यंहा की युवा पीढी उससे भी तेज़।युवा वर्ग हर दिन-हर पल को यादगार बनाये रखना चाहता है और कभी-कभी उसकी ये दिवानगी उसके परिजनों के लिये ज़िंदगी भर का गम दे जाती है।चार दिन की छुट्टी के बाद जब रायपुर लौटा तो दूसरे दिन सुबह की अख़बार की एक खबर मुझे विचलित कर गई।जन्म दिवस सेलिब्रेट कर वापस लौट रहे तीन छात्रों की सड़क दुर्घटना मे मौत हो गई थी।सब पास के ज़िले के पालिटेक्निक कालेज के छात्र थे और हास्टल मे रह रहे थे।पंद्रह छात्रो की टोली एक छात्र राजेश का ब'ड्डे सेलिब्रेट करने शहर से बाहर ढाबे गये और आधी रात को वापस लौटते समय उनमे से तीन की मौत हो गई जिसमे ब'ड्डे बाय भी शामिल है।अब बताईये उनका ये सेलिब्रेशन उनके परिजनो को कितना भारी पड़ गया।क्या-क्या सपने संजो रखे होंगे घर वालों ने?अब उसका जब अगला ब'ड्डे आयेगा तब क्या बितेगी घर वालों पर?और ये सिर्फ़ एक साल की ही बात नही है,उसका ब'ड्डे हर साल आयेगा और तमाम उम्र उसके घर वाले उसे सेलिब्रेट करने की बजाये शायद रोते ही रहेंगे।ये पहली खबर नही है।इससे पहले भी मेरे सीनियर छात्र नेता और दबंग भाजपा नेता ने अपने पुत्र को ज्न्म दिन पर खो दिया था। वो भी हास्टल के दोस्तो के साथ अपना ब'ड्डे सेलिब्रेट करके लौट रहा था कि आधी रात को हाईवे पर दौड़ती मौत यानी ट्रक ने उसे अपने आगोश मे ले लिया था।पिछले साल ही एक पत्रकार साथी का पुत्र,फ़र्स्ट ईयर इंजीनियरिंग का छात्र अपने साथियों के साथ बड्डे सेलिब्रेट करने गया तो वापस आंसुओं का सैलाब लेकर लाश बन कर लौटा।ऐसे और भी उदाहरण है।मैं सेलिब्रेशन का विरोधी नही हूं और ना ही युवा पीढी की आज़ादी का!मगर मेरा सवाल ये है कि आज़ादी का मतलब उन्माद तो नही है?आज़ादी का मतलब गैर्ज़िम्मेदारी तो नही है?आज़ादी का मतलब विद्रोह तो नही है?आज़ादी का मतलब परंपराओं की धज्जियां उड़ाना तो नही है?सेलिब्रेशन का मतलब सिर्फ़ ढाबा पार्टी या दारू पार्टी तो नही है?पता नही मुझे ये हाई-स्पीड बाईक और कारें अचानक खराब लगने लगी है?मुझे बच्चों,युवाओं और छात्रों की पार्टियों से भी दहशत होने लगी है?आपको क्या लगता है बताईगे ज़रूर।
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24 comments:
वाकई ध्यान रखने वाली बात है
सेलिब्रेशन तो एक मानवीय प्रवृत्ति है मगर अंधे होने की जरूरत नहीं है
आजकल 'सेलीब्रेशन' का पर्याय हमउम्र वालों के साथ समय बिताना हो गया है।
यही धूमधाम यदि अपने से बड़ों-छोटों के साथ हो तो बहुत अंतर आ जाता है। स्वयं पर नियंत्रण के लिए यह आवश्यक भी है, जो कि अब लुप्तप्राय होते जा रहा।
बी एस पाबला
काश, आपकी बात सेलिब्रेट करने के नाम पर, अपने रोमांच पर नियंत्रण न रख पाने वालों तक भी पहुंचे.
हमारे एक बुजुर्ग तेज रफतार बाइक देखकर टिप्पणी करते थे- 'भइगे एकर बाप ल भुंइया उतार डारे हें.'
फिर भी संयोग और दुर्घटनाएं मिसाल हो सकती हैं, मानक नहीं. हमारी पूरी युवा पीढ़ी पूरे रोमांच के साथ स्वस्थ्य और दीर्घजीवी हो.
सेलिब्रेशन के चक्कर में ऐसे बच्चे बूढे हो रहे माता पिता की बाकी बची जिंदगी को आंसूओं के साथ व्यतीत करने को मजबूर कर देते हैं!!
आप ठीक कह रहे हैं। आजादी का मतलब उन्माद नहीं होना चाहिए।
आप ठीक कह रहे हैं। आजादी का मतलब उन्माद नहीं होना चाहिए।
बच्चे अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझते ...और ऐसी दुखद घटनाएँ हो जाती हैं .....
अति पर नियंत्रण आवश्यक है.
असल में हम लोगों के लिए शराब पीने का मतलब होता है होश गँवा बैठना.. जब तक पीने का सलीका नहीं आएगा तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे भैया..
दुखद है। जोश में होश नहीं खोना है। जीवन का मूल्य बच्चों को बताने से पहले माँ-बाप को स्वयम भी तो समझना पडेगा।
एक कडवी बात कहूंगा अनिल जी , मेरा अपना तजुर्बा है कि जो बहुत पुराने खानदानी रईस लोग है उनके बच्चो की पार्टी में फिर भी काफी हद तक शालीनता झलकती है! अक्सर देखा गया है कि हुडदंग उन नव-रईसों की औलादे मचाती है जिन्होंने गलत तरीके से धन एकत्र किया हो और अभी-अभी पैसा देखा हो !
दुर्घटनायें और म्रत्यु सेलिब्रेशन के बिना भी हो सकती हैं ! हां रोमांच की तीव्रता पर नियंत्रण अलबत्ता होना चाहिये !
अनिल जी
मै अली जी के विचारों से सहमत हूँ .... बहुत सटीक प्रस्तुति.....आभार
थोड़े-थोड़े अंत्राल पर ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती रहती हैं। पर कोई भी सबक लेना नहीं चाहता। हरेक को यही लगता है कि मेरे साथ ऐसा थोड़े ही हो सकता है।
लाड़-प्यार अपनी जगह ठीक है पर बचपन से ही जरा सी सख्ती भी जरूरी है। मुझे तो उन मां-बाप पर हैरत होती है जो स्कूलगामी के हाथों में भी गाड़ी थमा देते हैं।
युवा वर्ग को यह बात समझ नहीं आती । खतरनाक तरीके से मोटर साईकल चलाते हैं । यह नहीं सोचते कि यदि कुछ हो गया तो मात पिता पर क्या गुजरेगी । शायद यह बात खुद बड़े होने पर ही समझ आती है ।
अति सर्वत्र वर्जयेत.
रामराम
सावधानी के साथ उत्सव मनाना चाहिये।
पार्टी-वार्टी, दारू-वारू अब एक साथ प्रयोग होने लगे हैं. और आप बताइये भी कि आप ये सब लिख कर किसे समझाना चाह रहे हैं, उन्हें जो आजकल इस विचारधारा का समर्थन कर रहे हैं कि बच्चे अपने मालिक हैं. माता-पिता यदि कुछ कर रहे हैं, अंकुश लगा रहे हैं तो वो सामंती मानसिकता है, बच्चों के ऊपर ज्यादती है.
समझना होगा कि हम कहाँ जा रहे हैं?
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
जितना इस गलती में पश्चिमी सभ्यता का अंधाधुंध अनुसरण करना है, उतना ही हाथ आजकल के माँ-बाप का है, जो अपने बच्चों का सही समय पर और सही जगह पर उनका हाथ नहीं पकड़ते हैं..
फिर भुगतान भी उन्हीं को करना पड़ता है..
गलती पहले माँ-बाप की ही है और फिर बच्चों की..
सेलिब्रेशन आजादी पअहले इन बच्चो को इस क अर्थ जाना चहिये, यह नही कि जब तक गिरे नही , सर ना घुमे तब तक पियो.... कुछ भी शव्द नही इन समाचारो को पढने के बाद, इन के मं बाप पर क्या गुजरती होगी....
sab-kuchh shaalinta ke sath hona chahiye
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
पहले लोग अपनी शादी की सिल्वर या गोल्डन जुबली मनाते थे पर अब तो चालीसवां भी मनाने लगे हैं :)
यह पीढ़ी ज़िन्दगी को जल्दी जल्दी जी लेना चाहती है .. शायद यही कारण हो इस रफ्तार के पीछे !!
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