शादी के लिये कुछ दोस्त फ़ार्मेलिटी के लिये कभी-कभार फ़ोर्स करते है मगर कुछ दोस्त हमेशा ही शादी करने की बजाय मुझे खुशनसीब होने की गलतफ़हमी बनाये रखने मे मदद करते आये हैं।ऐसे ही एक दोस्त ने मुझे एसएमएस के जरिये बताया कि शादीशुदा का दर्द्।
उसने बताया कि दिन भर मेहनत कर रात को थक-हार कर घर लौटने के बाद पति से पत्नी पूछती है खाना खाकर आये हो खाओगे?नही खाकर नही आया हूं!तो क्या खाओगे?क्या खिलाओगी?जो आप कहे वो बना दूं।इतना प्यार भरा जवाब सुनकर कोई भी शादी-शुदा खुशी से ही मर जाये मगर आप आगे का भी किस्सा पूरा सुन लिजिये।बिना पूरा किस्सा जाने किसी भी निष्कर्ष पर पंहुचना सरासर गलत होगा।
तो,जो आप कहे बना दूं के बाद पति का डायलाग खिचड़ी ही खिला दो।अरे कल ही तो खाई थी खिचड़ी!तो दाल-चावल खिला दो।बच्चे नही खाते दाल-चावल!तो कोई सब्ज़ी बना दो।अब रात को कौन सब्ज़ी काटेगा।तो फ़िर कीमा बना लो।मुझे एलर्जी है।तो पराठें सेक दो।रात को कोई पराठे खाता है।तो कढी बना दो।दही नही है।अच्छा ऐसा करो अण्डे बना दो।पागल हो क्या?आज गुरुवार है?तो फ़िर क्या बनाओगी?अरे कैसी बातें करते हैं आप?आप जो कहो वो बनाकर खिला दूंगी! सुरेन्द्र छाबड़ा ने ये एसएमएस मुझे भेजा है।शायद वो ये बताना चाहता है कि मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूं।थोड़ा-थोड़ा तो मुझे भी लगता है कि वो सच कह रहा है,आप लोगों को क्या लगता है बताइयेगा ज़रूर्।
18 comments:
थोड़ा ज्यादा ही हो गया । लड़ाई तो खाने के बाद शुरू होती है:)
दोस्त कॊ ताऊ का लठ्ठ दे दो... लेकिन आप ना डरे जल्दी शादी कर ले, ओर बीबी मगज खाये उस से पहले खुद ही बना ले अपनी मर्जी का खाना, आप भी खुश ओर दिमाग खाऊ बीबी भी खुश:)
अरे छोडिये भी ,शादी कर ही डालिए ! आपके मित्र नें भी की है पर आपको जबरिया डरा रहे हैं !
गलती पूरी तरह से उस पति की ही है। घर का खाना खत्म होने के बाद उसे देर रात को घर नहीं आना चाहिये था… :) :) कहीं और ऐश करता…
और कुछ नहीं तो पुसदकर जी को बुला लेता, फ़िर मिल बैठते दो यार…
फ़िर जब सुबह घर पहुँचता तब देखता कैसी शानदार "आवभगत" होती… :) :)
जिस दिन होती है बहस उनसे,
शरबत को वो कढ़ी कर देतें है!
मजाल 'मजाल' की की चूं भी करे,
वो जो कहें, हम बस वहीँ कर देतें है!
हा...हा...हा...हा...
मजा आ गया पढ़ कर,
सुन्दर प्रस्तुति.
मुझे तो सुरेन्द्र छावड़ा अनुभवी और विद्वान् लगते हैं सही आगाह कर रहे हैं , मगर सावधान अवश्य रहें !
kuchh bhi khilao bhagwan.... par plz mera mera bheja mat pakao...plz...plz...plz....
यह मन्त्र तो नित्य कहते कहते अपनी सिद्धि पा चुका है।
"इतने बडे हो गए और अब तक समझ नहीं आई"....
यह किसी विज्ञापन का अंश है.. शादी-शुदा होकर भी यह बात समझ में अब तक नहीं आई कि घर लौटते किसी होटल में खा लेना चाहिए :)
बड़ा मुश्किल है इस लड्डू का बखान. बहस ही गुंजाइश नहीं है इस पाकचर्चा में :)
mai thoda bhramit hun vo yah ki shikshha kaha se lu... post se yaa fir aaye hue comments se... koi margdarshan kare....
;)
दोस्त सही कह रहा है बेकार में आ बैल मुझे मार कहने में कोई समझदारी नहीं। शादी के चक्करों में न पड़ना…।:)
अरे भाई ये @ संजीत PSPO नहीं जानता !!
सर, शादी तो ऐसा लड्डू है जो खाये वो पछताये और जो ना खाये वो भी पछताये।
गलती से भी गलतफहमी के शिकार न हो जांय. अफवाहों से बचें, बहकावे में न आए, जमाने भर की नसीहत पाएं, खुशनसीबी की खुशफहमी ओढ़ें, बिछाएं और खायं.
इसे किसी ब्लॉग पर पढ़ा था, आप सभी शौक फरमायें:
शादी के बाद पत्नी कैसे बदलती है, जरा गौर कीजिए...
पहले साल: मैंने कहा जी खाना खा लीजिए, आपने काफी देर से कुछ खाया नहीं .
दूसरे साल: जी खाना तैयार है, लगा दूं ?
तीसरे साल: खाना बन चुका है, जब खाना हो तब बता देना.
चौथे साल: खाना बनाकर रख दिया है, मैं बाजार जा रही हूं, खुद ही निकालकर खा लेना.
पांचवे साल: मैं कहती हूं आज मुझसे खाना नहीं बनेगा, होटल से ले आओ.
छठे साल: जब देखो खाना, खाना और खाना, अभी सुबह ही तो खाया था ...
अब हम क्या कहेँ ? हम तो अब सुनने वाली कौम के हो गय हैं ... ।
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