जंगल बिक चुके हैं,पहाड़ बिक चुके हैं,अब नदी और बांध भी बिक रहें,आगे पता नही क्या बेचेंगे?जी हां मैं,सच कह रहा हूं।जंगलों मे तेंदूपत्ता और वनोपज से लेकर लकड़ी व्यापारियों के हाथ मे जा चुका है।अंधाधुंध अवैध कटाई ने जंगल के जंगल साफ़ कर दिये है।खनिज के नाम पर पहाड़ खोद दिये गये हैं।लोहे के पहाड़ों से लेकर बाक्साईट और अन्य खनिजो के पहाड़ पहले ही बेचे जा चुके हैं।अब बारी है नदियों और बांधों को बेचने की,तो हमारी छत्तीसगढ की भाजपा सरकार ने इसकी भी तैयारी कर ली है।हालांकि अब जाकर विपक्ष यानी कांग्रेस को होश आया है और उसने इसका विरोध करना शुरू किया है मगर नदियों को बेचने की शुरूआत भी कांग्रेस के कार्यकाल मे हुई थी।
सालों पहले किसानो के लिए बनाये गये एक बांध को सिंचाई के लिये अनुपयोगी बता कर मात्र सात करोड़ रूपये में एक उद्योगपति को बेच दिया गया है।अब उस बांध का पानी उसके कारखाने मे काम आयेगा।ऐसा पहली बार नही हो रहा है।इससे पहले शिवनाथ नदी के पानी को एनिकट बना कर उद्योगों को बेचा जा चुका है।नदी तो बेच चुके ही थे,इस बार उन्होनें सीधे-सीधे बांध ही बेच दिया है।
साल भर बहने वाली शिवनाथ नदी पर अब और पांच एनिकट बना कर उसका पानी उद्योगों को बेचने की तैयारी चल रही है।
पता नही नदी बचाओ,पहाड़,बचाओ,बांध बचाओ आंदोलन करने वाले एक्स्पर्ट लोगों को इस की खबर कैसे नही लगी।वैसे तो वो लोग बिना बुलाये छत्तीसगढ मे रोने के लिये चले आते रहें है। मानवाधिकार के कथित उल्लंघन के मामलों में और राजद्रोह के आरोप में डा विनायक सेन की गिरफ़्तारी के विरोध मे वे यंहा कर अपने रूदाली होने का रूतबा कायम कर चुके हैं।मगर अब जब उनके इंट्रेस्ट का मामला सामने आ रहा है तब उनकी खामोशी समझ से परे है।बहरहाल बांध तो बिक चुका,नदियो का पानी भी बिक चुका।समय रहते अगर इसका विरोध नही हुआ तो पता नही कुदरत की बनाई कोई चीज़ बिना बिके रह पायेगी भी या नही?
12 comments:
आप की पीड़ा समझी जा सकती है। क्या भाजपा और क्या कांग्रेस ये दोनों ही तो उद्योगपतियों के हितों के पहरुए हैं।
सब बिकेगा जब तक बेचनेवाले हैं और खरीदनेवाले हैं।
सही कहा कि हर वक्त रूदन मचाये रूदालीयों का अता पता नहीं चल रहा कि आखिर वो क्यों चुप हैं इस तरह के गड़बड़झाले पर।
क्या कांग्रेस क्या भाजपा...केवल नाम का फर्क है.....काम तो एक ही तरह का करते हैं।
बस यही बचा था बेचने को। बाकी तो सब बिक चुका है।
आपकी चिंता सही है।
परदेशी की प्रीत-देहाती की प्रेम कथा
जब इन्सान का जमीर ही बिक जाये तो बाकी क्या बचा..
जिसमें भी संभावना होगी, खरीद लिये जायेंगे।
इसके बाद देशवासी ही बचते हैं अगला नंबर उनका ही मानिये !
इस गीत मैं कितनी सच्चाई है ......मालूम नहीं पर .....जब ये गीत आया था, तब के बच्चे आज के नेता है ......... कलमाड़ी ,राजा , मदु केडा और न जाने कितने इस गीत से प्रेणना पाए होंगे ...... भारत में ऐसा क्यूँ होता है की जो लिखा होता है उसका उल्टा होता है ....लिखा रहता है थुखना मन है पर लोग उसी जगह पर ............समीर
इन्साफ़ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चल के
यह देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के
दुनिया के रंज सहना और कुछ न मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के ....
इस गीत मैं कितनी सच्चाई है ......मालूम नहीं पर .....जब ये गीत आया था, तब के बच्चे आज के नेता है ......... कलमाड़ी ,राजा , मदु केडा और न जाने कितने इस गीत से प्रेणना पाए होंगे ...... भारत में ऐसा क्यूँ होता है की जो लिखा होता है उसका उल्टा होता है ....लिखा रहता है थुखना मन है पर लोग उसी जगह पर ............समीर
इन्साफ़ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चल के
यह देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के
दुनिया के रंज सहना और कुछ न मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के ....
अरे भैया, देश बिक चुका है तो अब पत्थर पानी की किसे परवाह :(
ये तो पता नहीं लेकिन जो सामने आयेगा बेच दिया जायेगा।
agar phir bhi kuch kanha-kotar bach
jaye to loole-langre ke kam aa hi jawega..........bas bachna nahi chahiye.....
pranamm.
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