हर ज़ोर-जुल्म के टक्कर मे संघर्ष हमारा नारा है।अब ये नारा सिर्फ़ नारा ही रह गया है।पत्रकार सारी दुनिया के खिलाफ़ होने वाले अन्याय के खिलाफ़ हमेशा से लड़ता आ रहा है और लड़ता रहेगा भी,मगर जब बात खुद उसके हितों की आइ तों उन्हे धरना देना पड़ा।एक नही दो-दो पत्रकारों की गोली मार कर हत्या कर दी गई।इसके बाद भी पुलिस प्रशासन कुम्भकरण की नीद सोता रहा।सारी दुनिया का ठेका लेने वालों ने जब देखा कि उनकी बातों पर कोई,ध्यान नही दे रहा है तो वे धरने पर बैठे।उनके साथ प्रेस क्लब बिलासपुर के अध्यक्ष शशिकान्त कोन्हेर व उनके साथी भी शामिल थे। हत्यारों को तत्काल दिरफ़्तार क्रने की मांग के आलावा साथी उमेश राजपुत के आष्रितों को मुआवजा देने की मांग भी की गईंऔबत धरना देने के आ गई है और इसके बाद क्या हालात होगी ये पत्रकारों के लिये चिंता का विषय है। ।
7 comments:
यह हाल सबका है, भ्रष्टाचार, अनैतिकता और अन्याय के लिये जनता को सड़क पर उतरना ही होगा।
मेरा मानना है कि पत्रकारों में अधिकांश तो अपना नियोजन छिन जाने से ही डरते हैं। वे अपने नियोजक द्वारा उन के साथ किए जा रहे अन्याय के विरुद्ध ही नहीं बोलते।
दुर्भाग्यपूर्ण है यह स्थिति।
बिल्कुल है..
दिया तले अंधेरा।
चिन्ताजनक.
कभी कभी ऐसा भी होता है!
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