Tuesday, February 15, 2011

गांववालो,शहरवालों और देशवालों अब डरने की कोई ज़रुरत नही,बाढ से बचने का तरीका मिल गया है!

एक खुशखबरी है गांववालों के लिये,शहरवालों के लिए और कहो तो सारे देशवालों के लिए।सालों-साल बाढ का प्रकोप झेल चुके गांव और शहर इस बार बाढ के कहर से बच जायेंगे!क्या कहा?कौन बचायेगा?कमाल है यार,ज़रा जनरल नालेज ठीक करो और टीवी पर नये-नये आविष्कार-चमत्कार देखा करो?अब रोज़ टीवी नही देखोग,खुद को अपडेट नही रखोअगे तो इस तरह के बेकवर्ड क़्वेश्च्न तो पूछोगे ही।चलो अब जब पूछ ही लिया है तो बता देते हैं कि अब बाढ नियंत्रण का काम सरकार की बजाये सेनेटरी नेपकीन बनाने वाली एक कंपनी देखेगी।कमाल का सेनेटरी नेपकीन बनाया है उसने।अभी ट्रायल में तो उसका एक ही नेपकीन एक अच्छे-खासे तालाब का पानी सोख ले रहा है।अब जब अगली बरसात मे बाढ आयेगी तो इसी कंपनी के नेपकीन फ़ेंक-फ़ेंक कर बाढ का सारा पानी सोख लिया जायेगा।मानना पड़ेगा सेनेटरी बनाने वाली कंपनी के उस चमत्कारी उत्पादन को और उसे दिखाने वाले टीवी चैनलों को।क्यों है ना बड़ी खबर?क्या कहा नही देखा?तो देख लिजिये हर चैनल पर,हर प्रोग्राम के बीच दिखाई दे रहा है तालाब को सोख डालने वाले चमत्कारी सेनेटरी नेपकीन का विज्ञापन।तो गांववालों,शहरवालों और देशवालों अब डरना कैंसिल?

10 comments:

Atul Shrivastava said...

वाह। क्‍या लिखा है आपने। एक विज्ञापन को लेकर इतनी धासूं पोस्‍ट। मजा आ गया अनिल भैया।
वैसे टीवी में आने वाले कई विज्ञापन तो ऐसे होते हैं कि पूछो मत।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

hA hAA.. baddhiya..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

और बेचारी मछलियां ?

Rahul Singh said...

आपकी पोस्‍ट से विज्ञापन सार्थक और उसका (उत्‍पाद की जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का) उद्देश्‍य पूरा होते दिख रहा है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया सन्देश!

प्रवीण पाण्डेय said...

विज्ञापनों का मूर्खतापूर्ण सच क्या है, यह देखकर पता चल जाता है। आश्चर्य तो तब होता है कि लोग इस मूर्खता को हँसते हँसते स्वीकार कर लेते हैं।

G.N.SHAW said...

bah...ab kaho ko darana. ...

Swarajya karun said...

तीखा व्यंग्य है. वैसे बाजारवाद और उपभोक्तावाद के इस बदहवास दौर में कंपनियों के नैपकिन अभी तालाब सोखने का दावा कर रहे हैं . आगे चल कर वे अगर हमारा खून भी सोखने लगें , तो कोई आश्चर्य नहीं होगा !

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर, अबकि बार बाढ से पीछा छुटा :)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ऐसे में तो सूखे का अम्देशा बढ गया लगता है :)