Sunday, March 27, 2011

अबे श्मशान अब रोने गाने की नही, मेल-मुलाकात की जगह हो गई है!


इन दिनो श्मशान जाना थोड़ा ज्यादा हो रहा है। हाल ही साथी की शवयात्रा मे वंहा पहुंचे कुछ पुराने दोस्तो ने हंसी-ठट्ठे का जो दौर शुरू किया वो मुझे जमा नही।मैने जब आपत्ति की तो एक का जवाब था अबे ये अब रोने गाने की नही, मेल-मुलाकात की जगह हो गई है।

ये जवाब सुन कर मेरा पारा चढ गया मगर इससे पहले मै कुछ कहता उसने कहा देख तेरी भावनाओं की मै कदर करता हूं मगर मै जो कह रहा हूं वो सौ टका खरा है।तू चल उठ,मेरे साथ चल।तू चुप-चाप रहना,बस सुनना।बाकि दोस्त भी बोले जा ना चेक कर ले।मै अनमने ढंग से उठा और उसके साथ हो लिया।छात्र जीवन से लेकर अब-तक़ सिवाय नेतागिरी के उसने कुछ नही किया था।अपनी न्यूसेंस वेल्यू को उसने समझा था और राजनैतिक दलों से दूर रहकर क्षेत्रियतावादी राजनिती का दामन थाम लिया था।

सबसे पहले वो नेताओं के एक गुट के पास गया और मुझसे बोला तू सिर्फ़ सुनना।वंहा जाते ही उसने पहले उनके नेता के भ्रष्टाचार का पिटारा खोला और तुरंत ही उनके विरोधी नेताओ की पोलपट्टी खोलने लगा।सारे के सारे नेता उसकी बातो मे रस लेने लगे और उसके बाद हंसी मजाक भी शुरू हो गया।ऐसा लग ही नही रहा था कि श्मशान मे खड़े हैं।वो अचान्क उन लोगो से बोला थोड़ा तुम्हारे एण्टी ग्रुप से भी मिल आऊं साले इधर ही देख रहे हैं।उन लोगो ने कहा हां जा मिल आ उनको भी सेट कर ले।वो बोला पुरा टाईम तुम लोगो को ही दूंगा तो हो गया काम्।सबसे मिल्ना पड़ता है।

उसके बाद उनके विरोधियो के पास पंहुचते ही सब शुरु हो गये।एक दूसरे की बखिया उधेडने के साथ-साथ कौन कितना कमा रहा है।किस का किस से चक्कर चल रहा है और पता नही क्या क्या बकवास करते रहे सब्।वंहा से हट कर वो बोला चल अब तेरी जात के लोगो के पास चल रहा हूं,वंहा सीनियारिटी मत पेल देना।मै खामोश था।उसने कोने मे जमा होकर पता नही क्या खुसूर-फ़ुसूर कर रहे उन लोगो से सीधे-सीधे जाने वाले साथी के संघर्ष का जिक्र छेड़ दिया।सब खामोश हो गये और उसके बाद उसने जाने वाले के अच्छे-बुरे समय मे उसके साथ किये गये वरिष्ट लोगो के बर्ताव पर बोलना शुरू किया और धीरे से उनके खबरो को दबाने से लेकर उनका फ़ायदा उठाने के किस्से छेड़ दिये।धीरे-धीरे सभी उसीके सुर मे सुर मिलने लगे और फ़िर वंहा भी हंसी मजाक का दौर शुरू हो गया।

वो बोला चल अब उन बुढऊ लोगो के पास और सुन उन लोग क्या बोल्……।मै बोला बस कर मुझे नही सुनना।उसने मेरा हाथ पकड़ा और वापस पुराने साथियों के पास चला आया।सबने उससे कुछ नही पूछा ,मुझसे ही पूछा क्यों देख लिया।मैने कुछ नही कहा।इस पर वो बोला अनिल दुःख तो हम सबको उतना ही है जितना तुझे। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि हम लोग आदि हो गये है और ये सब होना ही है,ये मान कर चलते हैं।तू मेरे छोटे भाई के निधन पर आया था तब मै भी रो रहा था।तू उस समय भी ऐसा ही था जैसा आज है लेकिन हर कोई नही।बहुत से लोगो के ठहाके मेरे कानो तक़ पहूचे थे।बहुत से लोगो को बार-बार मोबाईल पर फ़ुस्फ़ुसाते और चेहरे पर परेशानी की गहराती लकीरों को मैने पढा था।बहुत से लोगो को यार और पता नही कितनी देर लगेगी कहते सुना था।आ रहा हूं,बस पहुंच रहा हुं,तुम लोगो शुरू करो आदि-आदि।मुझे थोड़ा खराब लगा मगर तब मुझे ये याद आ गया मै भी ऐसा ही तो करता हूं।और एक बात और कोई यंहा इधर-उधर की बात इस लिये नही करता कि उसे मरने वाले का दुःख नही है।वो भी दुःखी होता है मगर सच ये भी है कि श्मशान के बाहर दूसरी दुनिया उसका इंतज़ार कर रही है।तू तो अभी भी घर जाकर नहा कर वापस आयेगा लेकिन कितने लोग ऐसा कर पायेंगे। आधे से ज्यादा यंही हाथ पैर धोकर दुकान चले जायेंगे ,तेरे साथी सीधे दफ़्तर चले जायेंगे। अब समय उतना नही है लोगो के पास्।वो बोले चले जा रहा था थोड़ी देर बाद मुझे कुछ भी समझ मे आना बंद हो गया।पहली बार मुझे वो समझदार और जिम्मेदार लगा।इससे पहले मै उसे बिंदास और लापरवाह हर वक़्त बक़वास करने वाले मतलबी नेता ही समझता था।पता नही वो सच कह रहा था या झूट।लेकिन मैने हर ओर नज़र दौड़ा कर देखा सब लोगो छोटे-छोटे समूहो मे बातचीत मे मस्त थे।मुझे लगा उसकी बात मे दम तो है।ये पोस्ट मैने लिखी थी पांच अगस्त को।कल एक पत्रकार साथी के पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ था।वंहा फ़िर एक बार मुझे सब कुछ वैसा ही लगा और मैने उसे दोबारा लिखने की बजाय पुरानी पोस्ट को ही फ़िर से ठेलना ज्यादा बेहतर लगा।

9 comments:

Rajendra Rathore said...

अनिल सर, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने, बधाई

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

ऐसा ही हो गया है अब माहौल... सामान सौ बरस का.. सब जानते हैं लेकिन..??

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपने सही कहा, हमने इस पर पहले सोचा था कि कुछ लिखें पर हमें लगा कि कहीं ये सिर्फ हमारे शहर की स्थिति तो नहीं है? हमने बहुत बार देखा है कि हंसी हंगामा होता है, बिजनेस की बातें, फंड के चर्चे, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बहसें आदि होतीं है. हमने गंभीर होना छोड़ दिया है, अब...
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

Udan Tashtari said...

ऐसे ही माहौल से त्रस्त कभी कलम चलाई थी:

http://udantashtari.blogspot.com/2008/08/blog-post.html

राहुल सिंह said...

कौन कहता है श्‍मशान में सिर्फ मौत होती है.

प्रवीण पाण्डेय said...

ये सब के सब, लाइफ गोज़ ऑन के पुजारी हैं।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

सही है भाई,
संवेदना अब दिखावा
मात्र बन कर रह गई है.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Satish Saxena said...

सच ही कहा आपके दोस्त ने ...शुभकामनायें !!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बचपन में एक लेख पढा था- हसू या रोऊ। शीर्षक या है लेखक नहीं पर बात यही थी, श्मशान में लोग शोक मनाने नहीं आते, जुगाड़ भी लगाते है:)