बता भाई क्या सोच रहा है?क्या करोगे मेरे लिये?मै भौंचक्क रह गया।ये कहा हो गया भ्रष्टराष्ट्र को।एकदम से शोले के वीरू की तरह टर्न ले रहा है।ना बे,ना साले!उल्टे भाई?बुढिया से मौसी और मौसी से मौसीजी वाली स्टाईल मे महाराज को आता देख मे थोड़ा चमका मगर मुझे समझ मे आ गया कि करिया ने मेरा फ़ेंका दाना चुन लिया है अनपढ,गंवार वोटरों की तरह्।मैने भी शब्दो मे जलेबी की तरह चाशनी भर कर फ़ेंका।मैने कहा प्रभू सारे देश मे आश्रमो का जाल फ़ैला देते हैं और कुछ पिकनिक स्पाट पर मंदिर,मसाज सेंटर भी शुरू कर देते हैं!
महाराज के मुंह से आज युवराज के बल्ले की तरह चौव्वे छक्कों की तरह बे और साले नही निकल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वो किसी क्रूशियल मैच या फ़ायनल मे पोक रहे हो।उन्होने कहा कि आईडिया तो ठीक लग रहा है मगर इसमे बदनामी के चांसेस ज्यादा दिख रहे है और ये अब व्हाईट कालर्ड जाब नही रहा।उनकी आवाज महाराष्ट्र के वोल्टेज प्राब्लम मे चल रहे टेप रिकार्ड की तरह रिरिया चिचिया रही थी।मैने कहा कुछ नही होता महाराज सुना तो होगा ही आपने के बदनाम हुये तो क्या नाम न होगा।वो सब तो ठीक है मगर ये आश्रम-वाश्रम का मामला जम नही रहा है?बहुत लोचा है इसमे।
अब मैने डाऊन होते महाराज पर किसी गिरे-पड़े,पीटे-हारे नेता पर पत्रकारो की तरह चढना शुरू किया।क्या लोचा है बताओ तो ज़रा?मेरे बदलते टोन को उन्होने शायद मार्क कर लिया था,इसके बावजूद राजनाथ की तरह कोई खास एक्शन लेते वे नज़र नही आये।उन्होने कहा कि ये आश्रम शब्द ही अपने आप सब कुछ कह देता है।क्या नही हो रहा है आश्रम के नाम पर?बलात्कार,दैहिक शोषण,जमीन पर कब्ज़े,इल्लिगल कंस्ट्रकशन्।सारे के सारे आश्रम किसी न किसी लफ़ड़े मे फ़ंसे नज़र आते हैं।अरे महाराज आश्रम की तो शुरूआत ही भ्रष्टाचार से होती है।वंहा जाने वालों मे सबसे पहली लाईन मे बैठे वीआईपी से लेकर रेलिंग के पार से ऊचक-ऊचक कर दर्शन को फ़ड़फ़ड़ाते गरीब तक़ महाभ्रष्ट रहते हैं।अपने फ़ालोअर बढाने की इससे अच्छी कोई अपोरचुनिटी नही मिलेगी।
महाराज ने थोड़ा नार्मल होते हुये कहा कि अपने को फ़ालोअर की कमी है कंहा?ये तेरे फ़टीचर इंडिया से लेकर अमेरिका तक़ अपने फ़ालोअर हैं।मै उनसब को एक साथ मेंटेन नही कर पा रहा हूं इसलिये तो तेरे पास आया हुं।महाराज को तू-तड़ाक पर वापस लौटते देख मै समझ गया कि मेरा जादू टूट रहा है और अब करिया किसी भी समय बे साले शुरू कर सकता है।मैने सरकार का रवैया बदलते देख आश्रम का चक्कर चलाना छोड़ा और मंदिर-मसाज सेंटर का प्लान सामने रख दिया।इस बार महाराज थोड़ा इंट्रेस्टेड़ लगे।उन्होने कहा ये थोड़ा जम रहा है,डिटेल्स बता।
माने कहा महाराज मंदिर और मसाज सेंटर चालू करने से फ़ायदे ही फ़ाय्…… अबे चुप्।महाराज वापस अपनी औकात पर आ गये थे।मैने भी अंट शंट बयान देकर फ़ंसे नेताओ की तरह यू टर्न लिया और सम्भल कर कहा कि क्या गलती हो गई महाराज्।गल्ती?मंदिर कोई दुकान है क्या बे जो चालू कर देते हैं कह रहा है।महाराज आज की डेट मे तो इससे बड़ी कोई दुकान नही है।ज़िरो इन्वेस्टमेंट से शुरू होने वाली दुकान कुछ ही दिनो मे डिपार्टमेंटल स्टोर बन जाती है।वोटर समझ लिया है क्या बे जो कहेगा गरीबी हटा दुंगा तो मान लूंगा।मैने कहा महाराज देखिये सड़क क किनारे बिजली के किसी ट्रसफ़ार्मर से थोड़ा सा दूर किसी होर्डिंग के नीचे या अगल-बगल एक पत्थर सिंदुर ड़ाल कर रख दो कुछ दिनो मे चढावा शुरू।दो चार गुर्गो को पब्लिसिटी मे लगा दो कि कल मेरे सपने मे आये और मेरा काम हो गया।बहुत पावरफ़ुल है बताओ और देखो कुछ ही दिनो मे प्लेटफ़ार्म फ़िर कालम और फ़िर छत।कुछ ही दिनो मे उसके बगल मे एक और, फ़िर एक और,और फ़िर एक और मंदिर अलग-अलग भगवान के नाम पर बनालो।पत्थर रख कर मंदिरो का कम्प्लेक्स बनाते देख लो सारे देश मे कंही भी।
ठीक है ठीक है।वो मसाज सेंटर, क्या कह रहा था बे।महाराज ये नया कन्सेपट है मालिश के नाम पर पूरा लंद-फ़ंद कर सकते है।धरम के नाम पर किसी भी बढिया टूरिस्ट स्पाट पर शानदार लोकेशन पे लम्बी चौड़ी ज़मीन हड़पो और फ़िर देखो पर्यटन और तीर्थयात्रा के संगम तीर्थाटन का जादू।सुपर हिट रहेगा।फ़ायदा?महाराज एक से एक आईटम आयेंगे। चल बे बिगाड़ेगा क्या साले?मै कितना भी भ्रष्ट हूं लेकिन इस मामले मे अपना रिकार्ड एकदम साफ़ है।साले चैन से जी रहा हूं,पूरी फ़ैमिली लाईफ़ तहस नह्स कर देगा क्या बे?अरे नही महाराज।साले इससे तो आश्रम ही अच्छा है।आईटम तो वंहा भी आते हैं।जैसा आप कहे महाराज लेकिन आश्रम से तो मसाज सें… क्या प्राब्लम है आश्रम मे अब तू बता।मसाज सेंटर मे मेरा ज्यादा इंट्रेस्ट शायद करिया को पता चल गया था।
मैने भी आश्रम को ड्राप को करने मे पूरा ज़ोर लगाने कि ठान ली।मैने कहा महाराज आजकल तो कोई भी दाढी बढा कर आश्रम खोल लेता है।फ़िर आश्रम के लिये कम्पलसरी आईटम योग तो आपके बाडी स्ट्रकचर को देख कर पासिबल नही लगता।और अगर आप करोगे भी तो एण्ड-बैण्ड,मोटर स्टैण्ड बाडी देख कर कौन आयेगा अपनी दुकान पर। अबे तो योग कोई ज़रूरी है।तो क्या देवराम बाबा की तरह जड़ी बूटी बेचोगे।बिना बताये लोग कन्फ़र्म कर देंगे कि हड्डी का चुरा बेच रहा है।क्यों?क्यों क्या क्यों,नाम ही बड़ा अच्छा रखा है।युनिवर्सिटी भी खोल चुका है वो ललिता पवार का भाई।और अब तो डेरा-टंटा,खेमा-कैम्प,यंहा तक़ झोपड़पट्टी मे भी बाबा लोगो ने दुकान खोल ली है। आस्था और सस्कार चैनल खोल के देख लेना कितना टफ़ कम्पीटिशन है।ब्याज पर रूपया चलाने से लेकर मर्डर और रेप जैसे स्कैण्डल खड़े करके पब्लिसिटी करनी पड़ती है।कंहा टक्कर ले पाओअगे ए से लेकर ज़ेड तक़ और एक से लेकर सैकड़ो तक़ सभी नाम और नम्बर बाबा लोगो ने मोबाईल और गाडियों के च्वाईस नम्बरो की तरह बुक कर लिये हैं। अबे चुप आश्रम नही चल पायेगा ना,यही कहना चाह रहा है ना तू। हां। तो सुन मसाज सेंटरऔर मंदिर भी नही चलेगा।समझा।कोई और आईडिया सोच और बता।मेरी खोपड़ी घूम गई।मैहा मुझे टाईम चाहिये।ले जितना चाहे टाईम ले मगर आईडिया अमिताभ के बच्चे की स्टाइल मे वाट एन आईडिया होना चाहिये।क्या नया आईडिया जमा महाराज को बताऊंगा अगली कड़ी में।
4 comments:
बहुत खूब।
ये वार्तालाप न जाने क्या गुल खिलाएगा।
बाबाओं के भेद खोला।
अब किसका नम्बर है।
महाराज तो गदगदायमान हो गये होंगे..
सच है कम से कम रिसॉर्ट में पैसे तो नहीं खर्च करने पड़ेंगे।
हथेली की उंगलियों का अंगूठा जैसे हैं ये बाबा..कुल मिलाकर घूमकर वापस बाजी उसी जगह पर आती है..बस वैसे ही ये बाबा हैं..नेता तो कुछ समय के लिए रहते हैं..ये तो दीमक की तरह हैं..और गलत रहा फेजने के सौदागर भी हैं..
वाकई आपकी बात सही जगह पर वार करती है
कमलेश पाण्डेय
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