Sunday, May 8, 2011

भैया प्लीज़ कोई अच्छी सी मां का पता चले तो बताना,सम्मान करना है,आज मदर्स डे है ना

दो तीन दिनो से कथित समाजसेवी संस्थाओ के भाईयो और बहनो का लगातार फ़ोन आ रहा था।उन्हे मां की ज़रूरत थी मदर्स डे पर सम्मान के लिये! शर्त ये थी कि मां अच्छी होना चाहिये और गरीब भी,जिसने खुद दुःख उठाकर बच्चों को पढा लिखा कर बड़ा आदमी बनाया हो।मै हैरान था कि ये मां के साथ अच्छी और खराब के विशेषण कब से लगने लग गये।मै ये भी सोचने पर मज़बूर हो गया कि क्या मां का एक दिन सम्मान करने से सही मायने मे मां का कर्ज़ उतर सकता है।जैसे ही कोई कहता कि भैया प्लीज़ कोई अच्छी सी मां का पता चले तो बताना,सम्मान करना है, मदर्स डे पर,मेरा दिमाग फ़टने लगता था।ये शायद हमारी दिखावे की दुनिया की नीचता की पराकाष्ठा ही है॥

मन खटटा हो चला था।रह-रह कर सवाल दिमाग मे आतंकवादियो के बमो की तरह धमाके कर रहे थे।मां! अच्छी! और वो भी गरीब होगी ! तभी सम्मान की पात्र होगी?नही तो नही!अमीर या ठीक-ठाक घर की मां जिसके बच्चे समाज मे सम्मानजनक स्थान हासिल कर चुके है,उन्की उपलब्धी का कोई मतलब नही है क्या?

फ़िर मां तो मां है! उसके कदमो मे स्वर्ग होता है।उसको अच्छी या बुरी कैसे परिभाषित किया जा सकता है।परिभाषित तो औलाद होती है कि फ़लाना देखो पढलिख कर अपने मां-बाप का नाम रौशन कर रहा है या फ़िर, देखो हरकत उन बच्चों की मां-बाप का नाम डुबा रहे है।मैं तो अपनी जानकारी मे औलादों के ही अच्छी या बुरी होने की बात सुनते आया था ।ये पहला मौका है जब कथित समाज सेवको?को अच्छी मां ढूंढते देख रहा हूं।

ये खयाल भी आया कि ये लोग क्यों नही अपनी ही मां का सम्मान कर देते।ये सवाल भी मुझे काफ़ी परेशान करता रहा। अपने मां-बाप का सम्मान करने मे क्या परेशानी हो सकती है।आखिर वे उस हैसियत के हुये जिसमे फ़ालतू समय और फ़ाल्तू बच रहे रुपयों से फ़ाल्तू टाईप की समाज सेवा कर पा रहे हैं,ये भी तो मां के लालन-पालन और आशीर्वाद से ही संभव हुआ है।इस मामले मे मैनें अपने कुछ साथियों से चर्चा कि तो उनका कहना साफ़ था कि मां के साथ रहते होंगे तभी तो ना सम्मान करेंगे?उन्होने कहा कि आजकल एक मुहल्ले मे मां-बाप और बेटे अलग-अलग घरों मे रह रहे हैं।एक साथी का तो लहजा काफ़ी सख्त था।जितनी गंदी गालियां वो बक़ सकता था उसने बकी और कहा कि ये सब अब रईसों के चोचले हैं। मां-बाप का सम्मान हम लोग यदी ढंग से कर पाते तो बुज़ुर्गो के लिये आश्रम खोलने की नौबत ही क्यों आती।

उसकी बाते सुनने के बाद मेरी हिम्मत नही हुई और किसी से इस मामले मे चर्चा करने की।मैने आज सुबह अपनी आई, यानी मां से कहा कि आज मदर्स डे है! आपको क्या गिफ़्ट चाहिये?वो हंस कर बोली और क्या गिफ़्ट चाहिये तुम तीनो भाई मेरे साथ रहते हो।मेरा इतना ख्याल रखते हो।ये ही मेरे लिये दुनिया का सबसे अच्छा गिफ़्ट है।बचपन से तुम तीनो आपस मे लड़ते-झगड़ते आ रहे हो मगर आज तक़ अलग नही हुए यही मेरे लिये काफ़ी है।मै बोला आज मां का सम्मान किया जा रहा ………मेरी बात बीच मे ही काटते उन्होने कहा सम्मान दिखा के नही किया जाता बेटा।इन सब बातो मे कुछ नही रखा है,बच्चे बड़े होते है तो उन्हे लगता है कि वे सब कुछ सीख गये और अब उन्हे बड़े-बुजुर्गो की सीख की ज़रूरत नही है और शायद यंही से टकराव शुरू होता है।मां-बाप के लिये बच्चे कितने भी बड़े हो जायें बच्चे ही रह्ते हैं,और वे उसी हिसाब से व्यवहार करते है जो बड़े हो चुके बच्चो को पसंद नही आता और जो बच्चे बहुत बड़े हो जाते है उन्हे फ़िर किसी की ज़रुरत नही होती।तुम लोग अभी भी शायद बच्चे हो इस्लिये मां की ज़रूरत है,जिस दिन बड़े हो जाओगे………………उस्के बाद मै सुन नही सका और उठ कर दुसरे कमरे मे चला गया।मुझे लगा कि मैं छोटा बच्चा ही सही मुझे नही करना मां का सम्मान सिर्फ़ एक दिन।मुझे नही मनाना सिर्फ़ एक दिन का मदर्स डे।मेरे लिये हर दिन मदर्स डे रहेगा।आज फ़िर वही फ़ोन वही बधाईयां,मन फ़िर खट्टा हो गया है।बहुत कुछ लिखना चाह्ता था,मगर अपनी ये पुरानी पोस्ट याद आ गई,इसे दोबारा पेश करने का मन हुआ सो आपके सामने रख रहा हूं,दोबारा पढने पर यदी किसी को बुरा लगे तो क्षमा करियेगा।

11 comments:

अनूप शुक्ल said...

सही है। अच्छा किया पुरानी पोस्ट लगायी।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

जब मां-बाप के लिए साल में एक दिन निकाल कर दे ही दिया है तो यूं ही जाया तो नहीं ही जाना चाहिये न, कि किसी ऐसी मां की भेंट चढ़ जाए तो अच्छी न हो...
लानत है

Arunesh c dave said...

बच्चे बड़े कैसे हो जाते हैं और मां को छोड़ चले जाते हैं शायद उनमे पूर्व जन्म की पशु व्रुत्ती ही हावी रहती होगी ।

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

@ये लोग क्यों नही अपनी ही मां का सम्मान कर देते।

भाई-भतीजावाद से त्रस्त देश में मातृ-संतति वाद?

अजित गुप्ता का कोना said...

हमारे यहाँ एक दिन तो श्राद्ध मनाया जाता है।

अतुल मिश्र said...

Waah !! Bahut Pyaara Vyangy Hai Aapka !!

Atul Shrivastava said...

बहुत अच्‍छी पोस्‍ट।
मां तो आखिर मां है और हर हाल में सम्‍मान की अधिकारिणी है.... लेकिन ये कथित समाजसे‍वियों को क्‍या मालूम।
ये ऐसे समाजसेवी हैं जो सौ रूपए का फल अस्‍पताल में गरीबों के बीच बांटते हैं और पांच सौ रूपए की फोटो खिंचवा लेते हैं...।
बहुत अच्‍छा लिखा आपने।
आभार।

प्रवीण पाण्डेय said...

हम हुये, इससे बड़ा और क्या उपहार मिलेगा हमें?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर आलेख!
--
मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
--
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
"नन्हें सुमन"

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

है ना! भारत मां :)

sandeep sharma said...

मैं भी ढूंढ़ रहा हूँ.. शायद ऐसे लोगों को जो अच्छी माँ को ढूंढ़ रहे हैं...