Thursday, May 12, 2011

राजनीति की तो मां की…………………………………।

शर्म आई है किसी को राजनीति पर,बड़े परिवार के हैं वे इसलिये ये कह रहे हैं कि वे शर्मिंदा है। मगर आम आदमियों से पूछोगे  राजनीति पर तो वे यही कहेंगे  कि राजनीति की तो मां की…। और सच भी है ये।गलत कुछ भी नही।मुझसे भी कोई पूछे तो मैं उससे भी एक कदम आगे चला जाऊंगा,राजनीति की मां का,राजनीति की बहन का…राजनीति की तो खानदान की मां का…। मै बहका हुआ नही हूं और पूरे होशो-हवास मे ये लिख रहा हूं।और फ़िर ये सब नही लिखू तो और क्या लिखूं?हमारे राज्य में राष्ट्रद्रोह के आरोपी को दोषमुक्त होने से पहले ही अगर केन्द्र सरकार योजना आयोग जैसे महत्वपूर्ण जगह पर बिठा कर उसकी ताजपोशी करती है तो इस प्रदेश में नागरिकों और सरकार के लिये अपनी जान की बाज़ी लगाने वाले पुलिस के जवानों के और उनके परिवार वालों के दिल पर क्या गुज़र रही होगी?क्यों वे अपनी जान हथेली पर लेकर जंगल में बारूदी सुरंग का शिकार बनने के लिये जायें?और फ़िर जब उनके लिये मौत का जाल बिछाने वाले नक्सलियों के हमदर्द व सहयोगी होने के आरोपी को अगर विदेश के साथ -साथ देश में भी मान सम्मान मिल्ने लगे तो क्यों लोग कानून की मदद करेंगे?क्यों संविधान मे आस्था रखेंगे?क्यों राजनीति पर विश्वास करेंगे?क्यों नही कहेंगे कि राजनीति की तो मां की…।                                                                                                                                       और फ़िर क्या हमको राजनीति को गाली बकने का भी हक़ नही है?क्या ये हक़ सिर्फ़ चंद लोगों को ही हासिल है?दिग्गी पता नही क्यों वे राजा कहलाते हैं,कुछ भी कह सकते हैं?और फ़िर जब वे राजा है तो राहुल को तो युवराज कहलाने का हक़ बनता ही है।राहुल भी कुछ भी कह सक्ते हैं?याने दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी राजा और युवराज को ही बोलने का हक़ है?तो फ़िर ये लोकतंत्र काहे का?जंहा आज भी राजा और युवराज हो वंहा के लोकतंत्र की तो मां की…।अब बताओ भला ये भी कोई बात है कि ओसामा को जी कहना चाहिये?कसाब को भी जी कहो और अफ़ज़ल गुरु को भी जी कहो?आपकी मर्ज़ी है,चाहे तो अब्बा जी कह लो।आप लोग जो चाहे कह सकते हैं,मगर हम नही।                                                                                          हम तो उन्हे गद्दार ही कहेंगे और ये भी कहने से नही चूकेंगे कि ओसामा की मां की…। कसाब की मां की…अफ़्ज़ल की मां की…।नक्सलियों को मदद करने वालों की मां की…। हमको शर्म नही आती है भारतीय होने में।हमको गर्व है भारतीय होने पर्।और फ़िर देश की सत्ता का अपरोक्ष रूप से उपभोग करने वाले परिवार के लोगों को दूसरे प्रदेशों,खासकर गैर कांग्रेसी राज्यों मे ही सारा लफ़डा-दफ़ड़ा क्यों नज़र आता है?क्यों उन्हे उत्तर प्रदेश के किसानों पर दया आ रही है?क्यों उन्हे विदर्भ के किसान याद नही आ रहे हैं?क्यों उनको छत्तीसगढ में ही गड़बड़ी नज़र आ रही है? क्यों उन्हे गुजरात के ही दंगे पर रोना आता है?क्यों वे अपनी सासू या नानी की हत्या के बाद हुये दिल्ली के दंगो पर नही रोते?क्यों उन्हें दक्षिण में भ्रष्टाचार का रिकार्ड बना चुके लोगों से गठबंधन पर शर्म नही  आती?हम तो कहेंगे कि गरीबों के हिस्से का लाखों करोड़ो रूपया हड़पने वालों की मां की…। उनके साथ राज्नैतिक संबंध रखने वालों की मां की…। भारतीय होने पर जिन्हे शर्म आती है उनकी मां की…। अपने फ़ायदे के लिये देश का,आज़ादी की लड़ाई का,इतिहास का पर्सनल दूरुपयोग करने वालों की तो मां की…।             नकसलियों की मदद करने के आरोप में जेल से ज़मान्त पर छुटे,अदालत से राष्ट्रदोह के मामले मे बरी नही हुये आरोपी को देश के महत्वपूर्ण योजना आयोग में स्थान देने वालों की समझ पर तरस आता है।अभी हाल ही में एक नियुक्ति के मामले में बेशर्मी से नियुक्ती को कैंसिल करके खुद को पाक साफ़ बताने की कोशिश करने वाली पुतलियों पर तो सिर्फ़ तरस ही खाया जा सकता है।और फ़िर जब नक्सलियों के मददगार को योजना आयोग मे पद दे सकते हो तो फ़िर उत्तर प्रदेश के किसानों की मांग पूरी क्यों नही कर सकते?जाता ही क्या है किसीका?ऐसे लोगों की भी मां की…। जो राजनीति के चक्कर में देश का बंटाधार कर रहे हैं और बेशर्मी से कह भी रहे हैं कि मुझे शर्म आती है?

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

राजनीति की बात तब करेंगे जब उस पर गर्व करने लायक कुछ होगा।

Atul Shrivastava said...

बहुत अच्‍छा लिखा है।
एक एक शब्‍द तीर की तरह।
यही हो रहा है..... राजनीति में ऊपर जा पहुंचे लोग जो चाहे कह रहे हैं और कर रहे हैं।
नैतिकता की उम्‍मीद आम नागरिकों से....
सच में ऐसे लोगों की तो मां की.....

Arunesh c dave said...

आपके विचार से सहमत भी हूं और असहमत भी गाली तो आपने ठीक निशाने पर लगाई है पर कुछ और लोग भी है जो इसके पात्र हैं । सबसे बड़ी बात तो यह है कि राजनीती की मां याने की लोकतंत्र को ही गाली बकी जा सकती है मां ऐसी की एक्दम पवित्र कोई बुराई दिख ही नही सकती व्यवस्था श्रेष्ठ है पर इस मां का प्रयोग भारत मे जैसे हो रहा है वो अकल्पनीय है राजशाही का संहारक नक्सलवाद लोकतंत्र मे कैसे पनप गया और विनायक सेन यदी वाकई वो सब है जिसका आरोप छ्ग सरकार लगा रही है तो वो बच कैसे गया और यदि नही है तो ऐसा गंभीर आरोप लग कैसे गया । दूसरा ओसामा को जी कहने के जिम्मेदार क्या गोधरा नरेश मोदी टाईप के लोग नही है जिनके कारण आज दिग्गी चोट्टा मुसलमानो को खुश करने के लिये एक आतंकवादी को जी कह रहा है और आप विश्वास करें या नही कल एक phd मित्र जो मुसलमान भी है कह रहा था कि आडवानी को भी तो जी बोलते हैं फ़िर ओसामा को क्यों नही । मुझे तो पता नही पर बिना नाम लिये गाली मै रोज बकता हूं ।

Vishal Tiwari said...

सच लिखा है भैया आप क साथ मैं कहना चाहता हूँ ऐसे देश क दलालों की माँ की..............

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अंधों को आइना दिखाना व्यर्थ है.

Gyan Dutt Pandey said...

राजनीति तो गन्धा गयी है! :(

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

@दवे जी-मोदी के कारण ही गुजरात आज दंगों से बचा है...

राजनीतिबाजों के लिये जितना कोसा जाये कम है..

सतीश कुमार चौहान said...

भाई, कब और किसके लिऐ लिख रहे हो जरूरी नही जो मुखिया कहे उस पर ही ...फैसले का इन्‍तजार कर लेते.....राजाधानी के ही सरकारी अस्‍पताल का हालत देख लो .. क्‍या पता सुदूर जंगल में कही किसी मरीज का भला हो जाऐ ... सतीश कुमार चौहान भिलाई