Friday, May 27, 2011

वोट मांगते हो,जात पर न पात पर,मुहर लगेगी हाथ पर,तो जातिगत जनगणना क्यों करवाते हो?

एक छोटी सी पोस्ट।बस एक छोटा सा सवाल ही है जो एक बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी है।कांग्रेस का चुनावी नारा है जात पर न पात पर,मुहर लगेगी हाथ पर।इस नारे को मैं सालों से सुनता आ रहा हूं और सभी सुन रहे हैं।जनता भी इस नारे के मोहपाश में बंधकर कई बार कांग्रेस को सत्ता की मलाई चटा चुकी है।अब जब आप बात करते हो जात-पात से परे होने की ,बात करते हो आप धर्मनिरपेक्ष होने की,गालियां देते हो आप अपने विरोधी दल को सामप्रादायिक होने की,फ़िर आप करा क्या रहे हो?जातिगत जनगणना।क्यों ?किस लिये?क्या ऐसा करने से जात-पात का फ़र्क़ मिट जायेगा?क्या इससे धर्मों के बीच खुदी खाई पट जायेगी?आखिर ऐसी कौन सी ज़रूरत आन पड़ी है कि जातिगत जनगणना कराना ज़रुरी हो गया है।बेहद अफ़सोस की बात है कि आज़ादी के इतने सालों बाद भी हम अपने देश में रहने वाले को राष्ट्रीयता की एक ही माला मे नही पिरो पाये हैं।विभाजन का दर्द कभी भी हम लोगों को दंश दे देता है।चाहे लाख भाईचारे का दावा करे,शक़ का क्वेश्चन मार्क हमेशा उसके साथ चिपका रहता है।देश के विभाजन के बाद और जाने कितने विभाजन हो चुके हैं इस देश में।हिंदु -मुसलमान का,अल्पसंख्यकों के सिक्खों को अलग बताया गया,जैन को अलग किया गया,स्वर्ण और पिछड़ों के बीच आरक्षण की खाई खोद दी गई और से अगड़ों और पिछड़ों के नाम पर और गहरा किया गया,फ़िर उसमे अति पिछड़ेपन के कांटे भी बोये गये और अब जात-पात का ज़हर घोला जा रहा है।इतने सालों मे हम सब  अपने आपको हिंदुस्तानी या भारतीय कहना नही सीख पाये हैं और ना इस बारे में कभी कोई पहल की गई है।बस वोटों की खातिर देश के दो टुकड़े होने के बाद टुकड़े-टुकड़े कर दिया।गुजराती-मराठी-पंजाबी-बंगाली का हिस्सा बंटवारा पहले ही कर चुके अब ब्राह्मण,बनिया,हलवाई-नाई,लोहार-…………। पता नही और कितने टुकड़ों में बाटेंगे इस देश को।बताओ भला नारे लगाते है,जात पर ना पात पर,मुहर लगेगी हाथ पर और करवा क्या रहे हैं जातिगत जनगणना।बापू इस देश की रक्षा करना,क्या यही सोच के देश को आज़ाद कराया था।

13 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

लोगों को साक्षर बनाने के बजाय उन्हें सद्बुद्ध बनाने पर ज़ोर देना होगा

Pratik Maheshwari said...

बेहद शोचनीय अवस्था है... मुद्दा आपने सही उठाया है.. पर सवालों के जवाब कौन देगा?

"सुख-दुःख के साथी" पे आपके विचारों का इंतज़ार है...

Gyan Dutt Pandey said...

जातिगत जनगणना अजीब तो लगती है। अर्जुन सिन्ह जी गये, या जिन्दा हैं?!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अरे भाई साहब, अगर जात नहीं पूछेंगे तो रिज़र्व्ड कान्स्टिटूएंसी कैसे बनाएंगे.... और फिर, जाट, ब्राहमण, दलित आदि के नाम पर वोट बैंक को पैसे कैसे बांटेंगे.... समझा करो जानम!!!

प्रवीण पाण्डेय said...

जातिप्रथा को स्थायी करने का प्रयास भर है यह।

राज भाटिय़ा said...

जात पात ओर धर्म पर सब से ज्यादा देश को इसी काग्रेस ने बांटा हे, लेकिन लोग समझ ही नही पाते

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

जो जाति आधारित राजनीति के कारण कहा करते थे कि "मुहर लगेगी हाथी पर वरना गोली छाती पर" अब उन्हीं के चालचलन में ये भी रंग गए हैं....
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

Atul Shrivastava said...

करनी और कथनी का अंतर
यही तो है नेताओं की पहचान

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

खण्ड खण्ड होने की तरफ बढ़ रहा है देश...

शरद कोकास said...

इसी को तो कहते हैं हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और । बढिया मुद्दा है ।

Madhur said...

राजनीतिक पार्टियों को आगे जातिगत आधार पर चुनाव मैनेज करने में सरलता होगी इसलिए कोई इस प्रकार की जनगणना का विरोध नहीं कर रहा है |

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत सुंदर ...लाजवाब प्रस्तुति.......

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत सुंदर ...लाजवाब प्रस्तुति.......