थोड़ी ही देर मे गाड़ी के मिलते ही लगा कि मौसम के साथ-साथ भगवान भी मेहरबान है।गाड़ी मे बैठ कर बाहर निकलते-निकलते बारिश की बूंदो ने गाड़ी की छत को म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट बना कर नया तराना छेड़ दिया था।उस अलौकिक संगीत मे डूबा हुआ मै कब घर पहुंचा पता ही नही लगा।गाड़ी से उतर कर सीधे अंदर भागा।आई ने पूछा आज इस समय्।मैने कहा कुछ नही थोड़ी देर मे भजिये बना कर खिलाओगी क्या?उन्होने कहा अभी बना देती हूं।मैने कहा नही अभी मे छत पर जा रहा हूं।बड़ा हो गया है बच्चा नही है तू…… मैने उनकी बात सुनने की बजाय छत की ओर भागना ज्यादा मुनासिब समझा।आई की आवाज़ मेरा पीछा करते हुये आई और कान मे फ़ुसफ़ुसा के कहा कि पता नही कब सुधरेगा।
तब-तक़ बारिश की बूंदों ने भी धीरे-धीरे मतदान की तरह रफ़्तार पकड़ ली थी।अब उनका संगीत किसी विदेशी संगीत की तरह न समझ मे आने वाला होकर भी कानो मे मिश्री घोल रहा था।बूंदो के बोल समझ मे नही आ रहे थे मगर वे पैरो को थिरकने पर मज़बूर कर रहे थे।सर से लेकर पैर तक़ बारिश की बूंदों के रंग मे रंगने के बाद होश ही नही रहा कि समय कैसे बादलो की तरह उडता चला जा रहा है।बूंदे भी लगता है कि थक़ गई थी और उसकी रफ़्तार दम तोड़ने लगी थी।रह-रह कर गरजने और चमक्ने वाली बिज़ली भी खामोश होकर कही छुप कर बैठ गई थी।
नीचे से आई की आवाज़ ने बारिश के संगीत का जादू तोड़ा।अरे भजिये लाऊं क्या?मै आ रहा हूं आई, कह कर मै नीचे उतरा।कपड़े बदले और गर्मा गरम भजिये की प्लेट और टमाटर और हरी मिर्च-धनिये की चटनी लेकर उपर आया।बालकनी मे बैठ कर फ़िर से ज़ोर मारती बारिश की बूंदो की छमाछम सुनते हुये भजिये का स्वाद लेने लगा।वाह क्या बात है?दुनिया मे इससे अच्छा भजिया और कोई बना ही नही सकता होगा,ऐसा मैने सोचा और अलौकिक संगीत के साथ स्वाद के समंदर मे गोते खाने लगा।
अचानक़ बिजली रानी ने फ़िर से अपनी ताक़त दिखाना शुरू कर दिया और थोड़ी ही देर मे वो छतीसगढ के उत्पाती हाथियो की तरह आऊट आफ़ कंट्रोल होने लगी।उसकी उद्दंडता को देख बरखा रानी भला कंहा चुप रहने वाली थी।उसने भी अनुशासनहीनता मे कोई कमी नही की और अब गुलज़ार के गीतों सी मधुर बरखा रानी रामसे ब्रदर्स की फ़िल्म सी लगने लगी।रह-रह कर कड़कड़ाकर चमकने वाली बिजली ऐसा लग रहा था टार्च जलाकर देख रही हो कि है कोई जो उसका मुक़ाबला करने बाहर निकले।
अरे अंदर आ जा,नीचे से आई की आवाज़ ने ध्यान बंटाया।मैने कहा आ रहा हूं।इतने मे फ़िर बिजली चमकी और ऐसा लगा कि सामने थोड़ी दूर कंही गिरी है।अरे उस तरफ़ तो झोपड़पट्टी है।ओफ़ बुरा हाल होगा वंहा तो।अभी तो शुरूआत है। बारिश जब जवान होगी तब तो और कहर बरपायेगी।अचानक़ मै कई साल पीछे चला गया।याद आ गया मुझे बारिश के मौसम का हाल बयान करना।तालाबों का ओव्हर-फ़्लो होना,नालियो-नालो का फ़ूट जानां। निचली बस्तियों मे पानी भर जाना।रात-रात भर जाग कर गुज़ारना। दूसरे अख़बार मे छपी, नवजात शिशु को छाती से लिपटाये मां की तस्वीर देख कर संपादक का बड़बड़ाना। और, थोड़ा और,थोड़ा और ह्यूमन स्टोरी लिखने के लिये कहना।रात भर टपकती छतों के पानी को गिनती के बरतनों मे जमा करके ऊलीचना। भूख से बिलखते बच्चो को, परेशान होकर चुप कराने की बजाये पीटना।झडी यानी लगातार होने वाली बारिश मे दूसरे और तीसरे दिन भी चुल्हा नही जला सकने की हताशा।रोज कमा कर खाने वालो के चेहरो पर गहराती निराशा।
ओफ़ मै ये क्या सोचने लगा। मैने सिर को ज़ोरदार झटका दिया और उन खयालो को बाहर निकाल फ़ेकने की भरपूर कोशिश की।पर वो खयाल तो न चाहते हुये भी युपीए की सरकार की तरह रिपीट होने लगे।भूख से बिलखते बच्चे।गीले कपडो मे तरबतर घरों मे भरे पानी को बाहर फ़ेंकते लोग्।बिमारियो का संक्रमण रोकने के लिये मुंह पर मास्क पहने दवा बांटती मेडिकल टीम्।फ़ोटोग्राफ़र और विडीयोग्राफ़रो की टीम के साथ प्रभावित ईलाको का दौरा करते जन?प्रतिनिधि। अख़बारो मे गरीबी को छापने की होड़।मै परेशान हो गया ये क्या हो गया है मुझे।मै तो सारे काम-धाम ड्राप करके मौसम का मज़ा लेने घर आया था।तभी नीचे से आई ने आवाज़ दी, भजिया और दूं क्या बेटा?नही आई,पता नही, ये नही, मेरे मुंह से कैसे निकला।मुझे याद आया। एक ऐसी ही तूफ़ानी बारिश की अपनी रिपोर्ट का शीर्षक्।"ये किसने दुआ की थी बारिशों की"।मैने कुर्सी से उठते हुये प्लेट मे बचे भजिये के आखिरी टुकड़े को मुंह मे ड़ाला।पता नही क्यों आज आई के हाथ के भजिये मे वो स्वाद नही आया।
बरसात फिर आ गई है.बादल गरज़ कर बरस पडे हैं.मौसम का जंहा कुछ लोग मज़ा ले रहे हैं तो कुछ् लोगों के लिये बारिश सज़ा से कम नही साबित होती है.बादलों की गरज़-चमक देख कर याद आ गई अपनी ही एक पोस्ट को रिठेल रहा हुं.
12 comments:
भैया इसे आप दो अलग अलग पोस्ट मे लगाते तो खुशी के गम मे बदलने की पीड़ा तो न होती क्या कहूं आगे
अनिल भाई , बहुत सुंदर रिठेल ( आपकी भाषा में ). सच है कि एक ही बारिश , अलग अलग लोगों के लिये अलग अलग तरह के मजे और जुल्म | सारी मेहरबानियाँ व्यवस्था की तो कुछ मेहरबानियाँ कुदरत की |इसी की मेहरबानी से कल चन्दा मामा नहीं दिखे |
धधकती गर्मी में बारिश की बूँदें, क्या कहने।
ऐसा ही है किसी को बरसात सुख देती है तो किसी को घनघोर दुख.
bas ek shabd ...SUPERB.
आखिर तक आते आते स्वाद जाता रहा पकौड़ों का :-(
Sirji , garibi sabse badi problem hai , hamare desh me .
aab to log , garibi ki jagah garib logo ko hi hatane me lag gaye hain.
Regards-
Gaurav Srivastava
"ये किसने दुआ की थी बारिशों की!"
हमेशा याद रहेगी यह पोस्ट!
-हितेन्द्र
BAS YAHI DUA HAI AISI HI MAA MILE SABKAO , MAA KA ANCHAL
SANJAY VARMA
Adbhut!
adbhut!
Adbhut
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