Sunday, July 3, 2011
पत्थर के भगवान के खज़ाने पर इतना हंगामा, हाड़-मांस के चोट्टो के खज़ाने पर मौन क्यों??कराये स्विस बैंक में छिपे खज़ाने की जांच?
एक मंदिर के तहखानें में सोने की ईंटे और करोडो रुपये मिलने पर सारे देश में हंगामा मचा हुआ है।केरल का पद्मनाभस्वामी का मंदिर सदियों पुराना है और वंहा भक्तो का दिया दान वंही जमा है।आज तक़ की गिनती में उसका मूल्य कुल मिलाकर पचास हज़ार करोड़ हो पाया है।यानी राजा के कुछ साल के घोटाले का के तिहाई भी नही।फ़िर मंदिर का खज़ाना यंही है इसी देश में किसी स्विस बैंक मे नही,फ़िर भी चारो ओर शोर मच रहा है,गरीबों की भलाई में या भक्तों की भलाई में मंदिर की भूमिका के सवाल पर्।अब सवाल ये उठता है कि क्या मंदिर में स्थित भगवान नें कंही कोई भ्रष्टाचार तो नही किया है?किसी की जेब तो नही काटी है?किसी को आश्वासन देकर ठगी तो नही की है?किसी कांट्रेक्ट में कमिशन तो नही खाया है?ऐसा क्या किया है जो एक मंदिर में खज़ाना मिलने पर हंगामा मचना शुरु हो गया है।इसके बाद लगता है भगवान बालाजी,सिद्धीविनायक और शिरडी के साईं बाबा के खज़ाने पर भी ऊंगली उठादे कोई,हिन्दू विरोधी ताक़तों को खुश करने या अपना अल्पसंख्यक वोट बैंक बढाने के लिये। अब सवाल ये उठता है कि एक मंदिर के खज़ाने की जांच तो हो गई ,चलो ठीक किया।होना भी चाहिये इस देश में हर कोई बराबर है खासकर हिंदु देवी-देवता।अब रामचन्द्र जी तो इंसान ही थे,और किसी किसी को तो उनके मंदिर के अस्तीत्व पर ही भरोसा नही है,रामसेतु भी बक़वास ही हैउन लोगों के लिये।लेकिन क्या इस देश मे सिर्फ़ हिंदुओं के ही तीर्थस्थल है?क्या अल्पसंख्यकों के धर्मस्थलों के विस्तार पर किये जाने वाले खर्च का कभी हिसाब पूछा जाता है?क्या वंहा चढने वाले देशी और विदेशी चढावे का कभी हिसाब लिया जाता है? खैर जाने दिजीये इस तरह के सवाल हो सकता इस देश की विशेष तरह की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ़ हो।हो सकता है कि इसमे किसी को आरएसएस का हाथ नज़र आ जाये या फ़िर कोई इसमें भगवा रंग चढा हुआ देख ले।सो छोडिये दूसरे धर्म के तीर्थस्थलों की भव्यता को,वंहा के चंदे-चढावे को,वंहा छिपे खज़ाने को,आतकवादियों को,गोला-बारूद?ओह क्षमा करना वर्ज़ित क्षेत्र में चला गया था। जाने दिजीये,अपन तो हिंदु देवी-देवताओं को ही नंगा करे?इस देश में वही सबसे आसान है।फ़लाने मंदिर में इतना चढावा आता है सरकार को उससे टैकस लेना चाहिये,वंहा रिसीवर बिठाना चाहिये।वंहा का खज़ाना इस देश के गरीबों के साथ मज़ाक है।चलो मान लिया,तो फ़िर एक बार स्विट्ज़लैण्ड के मंदिर यानी बैंक में छिपे देसी खज़ाने की भी जांच हो जानी चाहिये।वंहा तो पत्थरों के भगवानों के नही हाड मांस के मार्डन भगवानो के खज़ाने छिपे हुये हैं।कुछ लोग तो चिल्ला भी रहे हैं देख का खज़ाना जो स्विस बैंक में छिपा हुआ है उसे देश में लाना चाहिये,उससे देश के गरीबों का उद्धार होगा। मज़ाल है कि कोई उस विदेशी मंदिर में छिपे देशी मार्डन ज़िंदा देवी-देवताओं के खज़ाने की जांच भी करा ले,वापस लाना तो बहुत दूर की बात है।छोड़िये विदेशी मंदिर,ज़िंदा देवी-देवताओ के यंहा इसी देश में बने मंदिर,मंदिर ही कहा जाना चाहिये उनके महलनुमा बंगलो,फ़ार्महाऊस या मकानों को,जंहा उनका घण्टा बज़ाने से जनता की मांग या मन्नत पूरी होती है,उसी की जांच हो जाये।सारे देश में सम्पत्ती का ब्योरा देते हैं ये मार्डन देवी-देवता चुनाव लड़ते समय उसी ब्योरे से पता चल सकता है कि इन चंद सालों मे आखिर उसने ऐसा कौन सा धंदा किया जो सड़क से आसमान तक़ का सफ़र तय हो गया।हर ब्योरे के बीच की कमाई के अंतर पर चुकाये गये टैक्स का हिसाब-किताब ही खंगाल ले तो सारे देश के हिंदु धर्मस्थलों में सदियों से जमा हो रहे दान-दक्षिणा से आज़ादी के बाद चंद दशकों मे जमा किये गये खज़ाने की रकम कई गुना ज्यादा होगी।अकेले राजा ही कई बड़े-बड़े मंदिरों को टक्कर दे रहा है।है दम तो खोलो खज़ाना स्विस बैंक का।टटोले खज़ाना हाड़-मांस के मार्डन देवी-देवताओं का।और अगर ये नही कर सकते तो कम से कम हिंदुओ की धार्मिक आस्था का मज़ाक उड़ाना तो बंद करो। किसी आत्याधुनिक धर्मनिरपेक्ष भाई-बहन को बुरा लगा हो क्षमा सहित बता दूं कि ये मेरे निजी विचार हैं इसमे किसी भी प्रकार हिंदु देवी-देवता,या उनके अनुयायी या किसी भी प्रकार के भगवा-सगवा या आरएसएस का हाथ नही है।ये शुद्ध रूप से एक मंदिर के तहखाने को खोलने के बाद अनावश्यक रूप से अन्य मंदिरो के चढावे के तुलनात्म्क अध्ययन के बाद मन में ऊठा स्वाभाविक आक्रोश है।एक बार फ़िर किसी भी प्रकार के धर्मभक्त,या नेताभक्त को बुरा लगा हो तो उससे यही कहुंगा जरा अपने-अपने अराध्यों के खज़ाने को भी टटोल लें।
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7 comments:
अच्छी बत्ती दी है भैया पर खजाना मिल गया वो भी इस भ्रष्ट देश मे अब न जाने जाने किन किन नेताओ की अधिकारियों की चांदी हो जायेगी
वर्तमान सरकार के रवैये से किसी भी सच्चे भारतीय का मन होगा.
इस लेख में खरी- खरी बातें कही हैं आप ने.
''है दम तो खोलो खज़ाना स्विस बैंक का!''
आप के इस आक्रोश में मैं भी अपना स्वर सम्मिलित करना चाहूंगी.
चोट्टे तो चोट्टे ही हैं, अब उनकी नजर उस खजाने पर भी है।
सेकुलरों को दुःख इस बात का है कि धन यहाँ क्यों है इसे भी उनके खातों में स्विस बैंक में होना चाहिए !!
सुन्दर प्रस्तुति..आज इस खबर को पढने के बाद मन में यही विचार आये थे...आपके लेख में इनको पढ़कर अच्छा लगा...
बिलकुल सही कहा है पुसदकर साहब आपने ..सहमत!
भगवान के दरबार में करोडों......
यहां शैतान भी करोडों दबाकर बैठे हैं........
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