Monday, September 26, 2011
हर साल कंही बाढ के कहर की तो कंही सूखे की खबरें दिल दहलाती है।क्या देश के ठेकेदार बाढ और सूखे जैसी आपदाओं का स्थाई निदान नही चाह्ते?
हर साल कंही बाढ के कहर की तो कंही सूखे की खबरें दिल दहलाती है।बाढ का तांडव तो अब लाईव नज़र आ जाता है।क्या ये सब हमारे देख के ठेकेदारों को नज़र नही आता?हर साल डिसास्टर मैनेजमैंट के नाम पर पता नही कितनी रकम डकार जाते हैं,एक्स्पर्ट?खाने में बचाने में नही।दोनो ही प्राकृतिक आपदाओं का कारण है पानी।क्या इस देश में आज़ादी के बाद से नदी जल के मैनेजमेंट पर सोचने के लिये किसी के पास समय नही है?क्या देश के ठेकेदार बाढ और सूखे जैसी आपदाओं का स्थाई निदान नही चाह्ते?
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4 comments:
यदि स्थाई निदान चाह लें और इस पर धोखे से अमल हो जाए तो हर साल इस नाम पर लंबा चौडा बजट फिर कहां से मिलेगा और फिर कमाई मारी जाएगी...... इसलिए समस्या बनी रहे, इसी में भलाई है.... फिर जनता को जान माल का नुकसान हो, इन्हें क्या.... इनको कमाई का जरिया चाहिए....
SAMSYA RAHEGI TAB TO KAMAYI HOGI AP BHI BHOLE HAI BHAIYA
सबको समस्याओं ने मार डाला है।
बिल्कुल सही कहा है आपने ।
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