Tuesday, October 11, 2011

कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन्…………॥

रोज़-रोज़ की खट-खट,झंझट से कुछ दूर जा रहा हूं,बस तीन-चार दिनों के लिये।फ़िलहाल तो इतना ही काफ़ी है,वैसे चाहता तो लम्बी छुट्टी हूं,मगर वो अब नसीब में कंहा।भतीजा ओम और भतीजी युती भी साथ रहेंगे उन्हे महिने भर की छुट्टी है।उनकी खुशी देख कर अपने स्कूल के दिन याद आ रहे हैं।दशहरा-दीपावली का महिने भर का अवकाश।वाह क्या दिन थे।पहले पतंगबाज़ी और फ़िर पटाखों का दौर।अब तो बस एक दिन दशहरे को पतंग उड़ती है यंहा और दीपावली के एक-दो दिन पहले और एक-दो दिन बाद तक ही फ़ूटते हैं पटाखे।पहले तो दशहरे के बाद से शुरू हो जाते थे।और फ़िर छुट्टियां खत्म होते-होते होम-वर्क़ की याद आ जाना।अचानक जैसे जंगल में मंगल के समय किसी राक्षस का आ जाना।खैर उसका तो मेरे पास परमानेंट इलाज था।छुट्टियां खत्म होते ही स्कूल मैं कभी गया ही नही।बहाना करके,डांट सुनकर और बाद में अच्छी-खासी पिटाई के बाद स्कूल के वापसी करता था।तब-तक़ स्कूल में होम-वर्क़ जांचने से लेकर होम-वर्क़ नही करने वाले अपने संगी-साथियों की ठुकाई-कुटाई का सिलसिला भी थम जाता था।उनका बलिदान मैं आज भी याद करता हूं।मगर अब वो दिन कंहा।देखता हूं ज़रा सा टीचर में ने मार क्या दिया,पेरेंटस का बवाल,फ़िर हमारे याने मीडिया के सवाल,टीचर है या कसाई?फ़िर कथित सामाजिक संगठनो की हड़ताल।फ़िर स्कूल प्रबंधन और सरकारी मशीनरी की जांच-पड़ताल्।पता नही क्या-क्या?हमारे समय जो ठुकाई हुई है,उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़,यंहा रायपुर के जो लोग होली क्रास बैरन बाज़ार स्कूल के पूज्यनीय एस के यादव सर,दत्ता सर,को जानते है,उन्हे उनका प्रसाद आज तक़ याद आता ही होगा।हम लोग जो कुछ भी हैं उन्ही के आशीर्वाद से ही हैं।स्कूल ही नही ,मुझे तो कालेज में भी बीएससी फ़ायनल में आदरणीय अनिल चौबे सर ने प्रसाद चखा दिया था।हाहहहह्हहाहाहा।क्या करें बचपने से आज्ञाकारी श्रवण कुमार रहे हैं,और भगवान की दया से इमेज भी अच्छी ही थी।सभी गुरूजन आज भी याद आते हैं और छुट्टियों का वो दौर भी।पर अब तो जैसे छुट्टी के नाम पर उसका सेम्पल ही मिलता है।हाहाहाअहाहहा खैर जाने दिजीये अपने टाम और जैरी याने ओम और युती की खुशियों मे और उनकी शैतानियों में ही सही अपना बचपन ढूंढने से मिल तो जाता है।चलो मिलते हैं,दोनो तैयार हो गये है आज।बिना किसी के कुछ कहे वर्ना इस समय तो सोने से ही फ़ुरसत नही मिलती थी दोनो को।युती की मम्मी यानी मंझले भाई की श्रीमती को टेंशन है उसके होम-वर्क़ का और ओम की मम्मी को भी।युती अभी पांचवी की और ओम दूसरी क्लास का स्टूडेंट है।लेकिन टेंशन इतना तो हमारी आई ने मैट्रीक में भी नही लिया था।चलता हूं।मिलेंगें तीन-चार दिनो बाद।

4 comments:

Atul Shrivastava said...

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन.....
सच में न कोई चिंता न कोई तनाव....
अब तो नर्सरी से ही बच्‍चों को पढाई की चिंता होने लगती है....
शुभकामनाएं अवकाश की...

विवेक रस्तोगी said...

पुराने दिन बहुत याद आते हैं और खासकर तब जब थोड़ा दिमाग को आराम मिलता है। और पुराने दिन याद करके अपने आप ही हँसी आती है और किसी को बताने का मन करता है, अनिल भाई और भी बहुत कुछ लिखिये।

बात सही है, हमारे बेटेलाल भी दूसरी में हैं, परंतु बिना होमवर्क के ही इतना टेन्शन होता है और अगर होमवर्क होता तो बस टेन्शन ही टेन्शन ।

BS Pabla said...

शुभ यात्रा अनिल जी
मिलते हैं ब्रेक के बाद

Amit Sharma said...

पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"