Wednesday, November 2, 2011

सिर्फ़ ग्यारह सालों में ही सरप्लस एनर्जी स्टेट में माईनस हो गई है बिज़ली!ये हाल है तरक़्क़ी का।

कल राज्योत्सव की शुरूआत हुई।बड़ी धूम-धाम से उत्सव शुरू हुआ।तरक्की के आंकड़ो का जादू देखने के लिये सारा प्रदेश उमड़ पड़ा था।सरकारी जादूगरों ने भी आंकड़ो की बाज़ीगरी में किसी प्रकार की कोई कसर नही छोड़ी थी।साईंस कालेज मैदान झकाझक रौशनी से जगमगा रहा था।रात को दिन बना दिया गया था।मगर उजाले का ये जलवा सिर्फ़ शहर और वो भी राजधानी तक़ ही सीमित था।गांवों में अघोषित पावर कट का अंधेरा अपने पांव पसार चुका है।राज्य बनने के बाद इसे सरपल्स एनर्जी स्टेट घोषित कर दिया गया था।और तरक़्क़ी के तमाम दावों के बाद आज ग्यारह सालों मे ही इस सरप्लस एनर्जी स्टेट में बिज़ली माईनस हो गई है।तो ये है तरक़्क़ी का हाल और सरकारी दावों की हक़ीक़त।मध्यप्रदेश का जब हिस्सा थे तब भी पावर कट का अभिशाप झेलते थे और अब फ़िर से वही नौबत आ गई है।तब तो महाकोशल विंध्य और मालवा के नेताओं पर पक्षपात का आरोप लगा कर जी भर कर गालियां बकते थे,मगर अब तो हम मध्य प्रदेश का हिस्सा नही है।आज़ाद है,तो अब इस अंधेरे की वापसी के लिये किसे गाली बकें।इन ग्यारह सालों में अगर हम तरक़्क़ी नही भी करते तो भी चल जाता मगर इतने सारे पावर प्लांट,इतने सारा प्रदूषण,इतना भयंकर घोटाला,इतनी बडी चिमनी का गिर जाना,उत्पादन बढने के इतने सारे रेकार्ड तोड़ दावे और उसके बाद भी असली छत्तीसगढिया याने गांवों में रहने वाला भोला-भाला किसान बिज़ली की किल्लत झेल रहा है।शहरों में नही बसता है छत्तीसगढ।मैने बचपन में पढा था भारत गांवों में बसता है,और मैनें इसे छत्तीसगढ में देखा भी है।यंहा गिनती के शहर हैं और गांव ही गांव है।बस राजधानी समेत चार शहरों को भरपूर बिजली देकर सरकार शायद खुश है।मगर असली छत्तीसगढ यानी गांवों मे जाने के बाद उसकी तरक़्क़ी के दावों की पोल खुल जाती है।क्या इसी दिन के लिये बना था छत्तीसगढ?

5 comments:

हितेन्द्र said...

राज्य बनने से गरीब, आदिवासी, मजदूर, किसान या नौजवान किसी का भी सपना पूरा नहीं हुआ है| कुछ लोग जो कल तक छोटे-मोटे गुंडे या नेता थे वे अब सत्ताधारी अरबपति बन गए हैं| आधे से ज्यादा राज्य नक्सलियों के कब्जे में है|

सीधी बात यह है कि हमारे साथ धोखा हुआ है| जो कारखाने बने भी हैं वहाँ स्थानीय को रोजगार नहीं मिला है| ज़्यादातर लोग बिहार, आंध्र प्रदेश या अन्य राज्यों से आए हुए हैं| जबकि उन्हीं की ज़मीनें छीनकर ये कारखाने बनाए गए हैं| हाँ प्रदूषण मे जरूर हम अव्वल नंबर पर पहुँच गए हैं|

जातिवाद बढ़ गया है| नफरत फैल रही है| अपराध बढ़ रहा है| पलायन रूका नहीं| पहले केवल गरीब मजदूर बाहर जाते थे| अब पढे-लिखे भी पलायन कर रहे हैं| वे भी क्या करें नौकरियाँ कहाँ हैं? पीएससी मे पैसा लेकर सरकारी नौकरियाँ बेची जा रही हैं| शिक्षा व्यवस्था ऐसी कि सब कुछ बिक रहा है| पी.एम.टी. का पर्चा हो या मेडिकल की सीटें|

महापतन के ग्यारह साल रहे हैं यह|

विवेक रस्तोगी said...

जब छ्त्तीसगढ़ बना था तब सोचा था कि लो धरती का जो कमाऊ टुकड़ा था वो तो अलग राज्य बन गया, परंतु फ़िर भी म.प्र. पर इतना ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ा हाँ, हमें लगा था कि अब छ्ग सरकार अपने प्राकृतिक संसाधनों के दम पर इस राज्य को शायद भारत को अग्रणी राज्य बना देंगे, परंतु छग बनने के एक वर्ष में ही सब समझ में आने लगा था, जमकर लूटा गया ।

प्रवीण पाण्डेय said...

अधिकता से निर्धनता में उतर जाना, यह पहली बार सुन रहे हैं।

Unknown said...

ab isse zyada tarakki ki koshish athvaa maang na karen paleeeez

jai hind !

Atul Shrivastava said...

विकास हुआ है। काफी विकास हुआ है। विकास की जीती जागती तस्‍वीरें भाजपा के नेता हैं। उनको देख लें.... वे पहले क्‍या थें, ये याद करें... विकास चलता फिरता और मुस्‍कुराता नजर आएगा।
मैं फिर कहता हूं काफी विकास हुआ है, हर शहर में हर गांव में विकास के ये प्रतीक आम जनता को चिढाते नजर आ जाएंगे।