इस सादगी पे कौन ना मर जाये ऎ खुदा!दिग्गी राजा का हिंदू सम्मेलन में खुद की तस्वीर पे ये कहना है कि वे पार्टी हाईकमान से पूछ कर वंहा गये थे.तो क्या पार्टी हाईकमान अब उनके इस दावे का खण्डन कर सकता है?तो क्या हाईकमान से पूछ कर किया गया गलत काम सही हो सकता है? तो क्या वे हर काम हाईकमान से पूछ कर करते है?क्या अन्ना पर व्यक्तिगत आरोपो की बौछार वे हाईकमान के ईशारे पर ही कर रहे हैं?अब अगर उनकी उस तस्वीर को कोई उन्के भाई के भाजपा प्रवेश और सांसद बनकर हाईकमान पर दबाव डालने का तरीका तो नही था?फिर अगर अन्ना का नानाजी देशमुख के साथ तस्वीर में नज़र आना उनका आरएसएस से जुडे होने का सबूत हो सकता है तो फिर उनकी तस्वीर क्यों नही?वैसे किसी पर भी एक उंगली उठाने पर बाकी की ऊंगलियां को खुद को ही निशाना बनाती है.जो दूसरो के लिये गड्ढा खोदता है वो उसी मे गिरता है,ऎसा मैने सुना था.वैसे दस साल पहले भाजपा ने उन्हे सत्ता से क्या बाहर किया है,लगता है वे आपे से बाहर हो गये हैं.होता है,इतना लम्बा राजनितिक वनवास अच्छे अच्छे को हिला कर रख द्ता है.
3 comments:
कौन न मर जाए इस सादगी पे ऐ दोस्त...
खिसके दिमाग़ों / फिसली ज़ुबानों की क्या बात की जाए
अगर गलती हमारी है , तो इसका कारण हमारी पार्टी हो सकती है | हम तो सिर्फ अपनी पार्टी को ही जानते है- गलत और सही का भेद क्या होता है ??
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