Wednesday, February 15, 2012
हाईकोर्ट का फैसला तक़ गलत दिखा रहे है और बेशर्मी इतनी कि खेद तक़ प्रकट नही करते!क्या यही पत्रकारिता है?
आज दो महत्वपूर्ण खबर देखी न्यूज़ चैनलों पर.एक राजधानी में आपदा प्रबंधन की माक ड्रिल की और दूसरी गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले पर.गुजरात हाई कोर्ट ने जकिया ज़ाफरी की याचिका को अमान्य कर दिया था और प्रतिस्पर्धा के मारे न्यूज़ चैनल वाले सबसे पहले के चक्कर में उसे एसआईटी की रिपोर्ट सौंपने का फैसला सुनाते रहे.इतना ही नही उन्होने इसे मोदी के लिये करारा झटका और जकिया ज़ाफरी से बात करके उसे पीडितों की जीत भी करार दे दिया.वो भी उस समय जब उत्तरप्रदेश में मह्त्वपूर्ण चुनाव हो रहे हैं.अल्पसंख्यकों के नाम पर बिना जाने बुझे फैसला पढे बैगेर मोदी को करारा झटका देने वालों को थोडी देर बाद खुद करारा झटका लगा जब उन्हे जकिया की याचिका अमान्य होने की खबर मिली.गनीमत है कि उन्हे ज़ल्द पता चल गया वर्ना मोदी को गाली बकने वाले भाडे के सेक्यूलर पैनलिस्टों को स्टुडियों मे बिठा कर बहस के बहाने हिडन एजेण्डा पर काम शुरु हो जाता.दूसरा माक ड्रिल की रिपोर्टिंग देखी तो लगा की अगर वाकई में कंही कुछ हो गया तो ये लोग आतंक फैला देंगे.नकली आपदा में इतना हांफ रहे थे कि लगा रिपोर्टिंग में पुरस्कार मिले ना मिले एक्टिंग में जरुर मिल जायेगा.रंगे-पुते चेहरों का हांफना और गलत खबर दिखाने के बाद खेद तक़ ना प्रकट करना,देख कर लगता है डेंड्रफ वाले तोते के विग्य़ापन के बहाने न्यूज़ चैनल वालों का पोपट बनाकर जो मज़ाक उडाया गया है,वो गलत नही है.
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2 comments:
पहले खबर कवर के चक्कर में कभी कभी मुंह की खानी पडती है....
सब निरपेक्ष बन रहे हैं, खबरों के प्रति भी... वैसे आनंद तो तभी आता जब एक दो डिस्कसन हो जाते...
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