Friday, June 21, 2013

सिरपुर मे़ उत्खनन में पूरी सभ्यता के अवशेष मिले पर एक भी शव नही मिला,ये किस बात का प्रमाण है


सिरपुर आज छोटा-सा गाँव है लेकिन छठीं शताब्दी में वहाँ 10 हजार बौध्दभिक्षु रहा करते थे। कभी महानदी के प्रलयंकारी बाढ़ ने सब कुछ नष्ट कर दिया था। आज़ादी के बाद उत्खनन से उस सभ्यता के अवशेष मिलने शुरू हुए। वहाँ उत्खनन के दौरान एक भी शव का नहीं मिलना इस बात का सबूत है कि उन्हें प्रलयंकारी बाढ़ की पूर्व सूचना थी और सब वहाँ से हट चुके थे। ये उस काल के लोगों की मौसम विज्ञान पर पकड़ का प्रमाण नहीं तो क्या है ?

सिरपुर राजधानी रायपुर से मात्र 85 कि.मी. दूर है। राष्ट्रीय राजमार्ग-6 से 17 कि.मी. अंदर बाईं ओर बसा है सिरपुर। घने जंगलों, खुबसूरत कमल से भरे तालाबों और धान के खेतों के बीच से जाने वाली सड़क मानो किसी दूसरी दुनिया में जाने के रास्ते का एहसास देती है। सिरपुर के बाद जंगल और घना हो जाता है जो आगे जाकर बारनवापारा अभ्यारण्य में बदल जाता है। एक तरफ लंबी-चौड़ी महानदी बलखाती हुई पसरी पड़ी है। अंगड़ाई लेती पहाड़ियाँ, अलसाए से जंगल और बेपरवाह नदी मानो हर आने वाले को दीवाना बना देती है। चलिए आपको बौध्द,वैष्णव और शैव ,धर्म, कला, और ज्ञान-विज्ञान के अपूर्व संगम की सैर करा लाते हैं।

यहां की ख्याति से परिचित थे चीन के महान् पर्यटक और विद्वान ह्वेनसांग। उन्होंने 7 वीं सदी में यहां की यात्रा की थी। सिरपुर लंबे समय तक ज्ञान-विज्ञान और कला का केन्द्र बना रहा। सोमवंशी शासकों के काल में इसे दक्षिण कौशल की राजधानी होने का गौरव हासिल था। कला के शाश्वत मूल्यों और मौलिक स्थापत्य कलाशैली के साथ-साथ धार्मिक सौहाद्र, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश से आलोकित सिरपुर भारतीय कला के इतिहास में विशिष्ट कला तीर्थ के रूप में प्रसिध्द है। यहाँ लक्ष्मण मंदिर, आनंद प्रभु कुटी विहार, तीवर देव विहार, बालेश्वर मंदिर समूह, राजप्रसाद देश-विदेश के पुराविदों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। सिरपुर के भग्नावशेषों में भागवत महेश्वर और तथागत के सध्दर्म का सामूहिक जयघोष गूँजता सुनाई पड़ता है। सिरपुर की समृध्दि के अधिकांश पुरा वैभव सबूत विलुप्त हो चुके हैं, फिर भी यहाँ मिल रहे अवशेष अतीत के स्वर्णिम गौरव की कहानी कहते हैं।

सिरपुर के पुरा वैभव पर सबसे पहले नज़र डाली थी ब्रिटीश विद्वान बेगलर(1873-74 ई.) और सर अलेक्जेंडर कनिंघम(1881-82 ई.) ने। उन्होंने आर्कियालॉजिकल सर्वे रिर्पोट ऑफ इंडिया खंड 7 तथा 17 में संबंधित प्रारंभिक तथ्य प्रकाशित किए। आज़ादी के बाद सिरपुर के गर्भ में छिपे पुरातात्विक रहस्यों को उजागर करने के लिए समय-समय पर उत्खनन किए गए। उससे वहाँ सांस्कृतिक इतिहास की गौरव गाथा सामने आई है। राज्य बनने के बाद यहाँ उत्खनन का काम तेज़ हुआ। संस्कृति और पुरातत्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इस मामले में खुद रूचि दिखाई और सरकार की ओर से प्रख्यात् पुरातत्वविद अरूण कुमार शर्मा के नेतृत्व में 2000 में काम शुरू हुआ। उसके बाद सिरपुर को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने और उपलब्ध सांस्कृतिक निधि को विश्व धरोहर के रूप में स्थापित करने की दिशा में पहल हुई है। हाल में यहाँ 5 बौध्द विहार, 6 शिवमंदिर और 7 आवासीय भवनों को टीलों के नीचे से खोदकर निकला गया।

यहाँ पहली बार विहार की संरचना में बौध्द देवी हारीति की उपलब्धि उल्लेखनीय है। महानदी के तट पर भव्य राजमहल के भग्नावशेष, भव्य तोरण द्वार शिव तथा विष्णु के मंदिर और आवासीय मठ भी प्रकाश में आए। सुरंग टीला से धारा लिंग के साथ अत्यंत दुर्लभ 16 कोणीय योनीपीठ मूल स्थिति में मिली है। आकार और विस्तार के हिसाब से सुरंग टीला पत्थरों से बना छत्तीसगढ़ का विशाल और विलक्षण स्मारक है। 1953 से 56 के बीच सागर विश्वविद्यालय और तब के मध्यप्रदेश शासन के पुरातत्व विभाग ने मिलकर डॉ. एम.जी. दीक्षित के नेतृत्व में उत्खनन कराया था। सबसे पहले टीले के नीचे दबे 2 बौध्दविहार खोदकर निकाले गए। वहाँ धातु प्रतिमा, प्रतिमा फलक, आभूषण्ा बनाने के विविध उपकरण, लोहे के अनेक प्रकार के बर्तन, दीपक, कील-तार, जंजीर, सिलबट्टा, पूजा के पात्र, घड़े, मिट्टी के मनके, चूड़ियाँ, मिट्टी की पक्की मुहरें, खिलौने और 3 महत्वपूर्ण सिक्के मिले थे। एक सिक्का शरभपुरीय शासक प्रसन्नमात्र का है, दूसरा कलचुरि शासक रत्नदेव के समय का है और तीसरा सिक्का विशेष उल्लेखनीय है। ये चीनी राजा काई युवान् (713-741 ई.) के समय का है।

2000-04 के बीच नागार्जुन बोधिसत्व संस्थान मनसर महाराष्ट्र के वरिष्ठ पुरातत्व विद अरूण कुमार शर्मा ने यहाँ उल्लेखनीय काम किया है। उन्होंने बौध्दविहार, शिवमंदिर और आवासीय भवन अनावृत्त किए। इन सबमें भव्यता कलात्मकता और अलंकरण के हिसाब से तीवरदेव महाविहार अद्वितीय है। इस विहार के प्रवेश द्वार शाखा पर छिद्रित लता वल्लरियाँ, नायिकाएँ, मिथुन युगल और लघुकाय द्वारपाल अंकित हैं। इनके बीच जातक और पंचतंत्र कथाओं की बंदर और मगर, केकड़ा और बगुला, पितृभक्त शुक, उल्लू का राजतिलक, मूर्ख मेंढक और साँप आदि विभिन्न कहानियाँ प्रतिकात्मक रूप से उकेरी गई है। तात्कालिक पारंपरिक आमोद-प्रमोद में मेढ़ों का युध्द मनोरंजक ढंग दर्शाया गया है। यहीं पर बालेश्वर मंदिर ताराकृति तल योजना पर बना है। यहाँ तप करती हुई गौरी, कार्तिकेय, दिग्पाल यम और अग्नि की दुर्लभ प्रतिमाएँ मिली है। यहाँ के विहारों के मुख्य कक्ष में भगवान बुध्द की भूमि स्पर्श मुद्रा में लगभग साढ़े 6 फीट ऊँची कलात्मक प्रतिमा स्थापित है। विहार में प्रमुख स्थविर और अन्य भिक्षुओं के ध्यान, अध्ययन-अध्यापन और निवास की सुविधा थी। मंडप के दोनों ओर कई कमरे हैं और उनमें दीपक रखने के लिए आले बने हैं। दरवाजे भी घूमकर खुलने वाले थे जिसका प्रमाण दरवाजों के स्थान पर खुदे गङ्ढे हैं।
आज पिछड़ा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ का एक छोटा-सा गांव कभी ज्ञान,धर्म और कला का महान केन्द्र था। पुरातत्वविद अरूण कुमार शर्मा के अनुसार वहाँ 100 संघाराम थे और महायान सम्प्रदाय के 10,000 भिक्षु निवास करते थे। राजनीतिक स्थिरता और सहिष्णुता का आदर्श उदाहरण रहा है सिरपुर। यहाँ शैव, वैष्णव और बौध्द संस्कृतियों का अभूतपूर्व त्रिवेणी संगम था। अरूण कुमार शर्मा के अनुसार यहाँ न केवल देश के कोने-कोने से बल्कि विदेशों से भी लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे। तो कैसा लगा पिछड़े राज्य का स्वर्णिम इतिहास। अच्छा या बुरा जैसा भी लगा हो, प्रतिक्रिया देने की कृपा ज़रूर करें। रायपुर के लिए दिल्ली-मुंबई-कोलकाता समेत बड़े शहरों से विमान सेवा उपलब्ध है। रायपुर मुंबई-हावड़ा रेल लाइन पर है और जबलपुर-नागपुर-उड़ीसा से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। रायपुर से सिरपुर के लिए टैक्सियाँ आसानी से उपलब्ध हैं।

7 comments:

Suneel Arjun said...

Great Anil Bhaiya. A lot of information and with that the pride that we have such places in our vicinity and people like who care to write about them. Thank you.

Bunty

Suneel Arjun said...

Great Anil Bhaiya. A lot of information and with that the pride that we have such places in our vicinity and people like who care to write about them. Thank you.

Bunty

dayanidhi said...

bahut achchha laga paddhkaar.

प्रवीण पाण्डेय said...

उनके संकेत सूत्र हमसे कहीं अच्छे थे।

pcpatnaik said...

Anil,Yeh Kadi Jaari Rehani Chahiye Hamesha....ITIHASA HI SAKSHI HAI....AAP KA PRAYASA BAHUT ACHHA ....CONGRATS...N THNX....

N.J.RAO said...

Great analysis of the then history of today's Chhattisgarh. Nicely covered in the script.

N.J.RAO said...

Briefly explained in the script of about the ancient cultural pilgrimage place Sirpur of Chhattisgarh