Tuesday, April 20, 2010

हिंसा से दुःखी बापू की पोती मिलना चाहती है नक्सलियों से!

बापू की पोती तारा देवी भट्टाचार्य छत्तीसगढ आई।वे यंहा बा के जीवन पर कस्तुरबा आश्रम मे लगी प्रदर्शनी का उद्घाटन करने आई थी।वे प्रेस क्लब भी आई और उन्होने समाज मे हो रहे बदलाव पर बेबाक राय व्यक्त की।उन्होने नक्सली हिंसा पर दुःख जताया और कहा कि वे उनसे मिलना चाहती है।नक्सली हिंसा के लिये उन्होने सरकार के साथ-साथ व्यवस्था और समाज को बराबर का ज़िम्मेदार ठहराया।उन्होने साफ़ कहा कि इस समस्या के लिये समाज मे व्याप्त विसंगतियां भी उतनी ही ज़िम्मेदार है जितनी सरकार।
बापू की पोती ने नक्स्ली हिंसा मे बेघर-बार हो रहे बच्चों को भी सहारा देने के लिये बा का घर,कस्तुरबा ट्रस्ट की ओर से पहल करने की बात कही।बापू पर भी खुल कर बोली तारा देवी।बापू की प्रासंगिकता पर पूछे गये सवाल पर उन्होने कहा कि बापू प्रासंगिक थे,हैं और रहेंगे।बापू के नाम पर राजनिती और कांग्रेस के उसपर एकाधिकार जताने पर उनका कहना था बापू सबके हैं और उनके नाम पर जितनी राजनिती हुई उसका अंशमात्र भी अगर समाज उनके विचारों पर अमल करता तो आज तस्वीर दूसरी होती।आज की युवा पीढी के सामने आदर्श का अभाव होने के सवाल पर उन्होने उलट सवाल किया कि तब बापू के सामने कौन आदर्श था।ये सब भटकाव को सही ठहराने के बहाने है।
उन्होने कहा कि हमने बापू को समझा लेकि जीवन मे उतारा ही नही।उन्होने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र मे हमसे चूक हुई विनोबा और जयप्रकाश के विचारों से हम अपने बच्चों को अवगत नही करा पाये।बापू को किताबो से बाहर लाकर विचारों मे शामिल करने की उन्होने ज़रूरत बताई।लगे रहो मुन्नाभाई फ़िल्म पर उन्होने कहा कि अच्छी फ़िल्म है और जिस भी माध्यम से लोग बापू को जाने-पहचाने,समझे तो बुरा क्या है।उन्होने फ़िल्मों को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बताया।उन्होने कहा कि हम अपने-अपने डर से सुरक्षा के लिये बंदूकधारी गार्ड रख रहें है जबकि आज ज़रूरत बंदूक की नही बंधु की है।

24 comments:

समयचक्र said...

बापूजी की पोती की भावना तो अच्छी है पर क्या माओवादी नक्सली उनकी बात मानेगें ?

Unknown said...

अनिल जी, गांधीवाद कभी भी मुझे प्रभावित नहीं कर पाया इसलिये कुछ विशेष टिप्पणी नहीं कर सकूँगा। हाँ इतना अवश्य कहूँगा नक्सलवाद एक बहुत बड़ा कलंक है और इसे समाप्त होना ही चाहिये।

अजित गुप्ता का कोना said...

ज्ञानवर्द्धक और प्रेरणादायक जानकारी। आपका आभार।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बिलकुल सही कहा भैया.... बन्दूक की नहीं ....बंधू... की ज़रूरत है....

बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट ...और मुलाक़ात....

सादर

महफूज़...

प्रवीण पाण्डेय said...

हमने बापू की टोपी रख ली, अन्दर का भेजा उड़ा दिया । खादी रख ली, हृदय तोड़ दिया ।
देखिये नक्सली क्या रखते हैं ?

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इस पोस्ट के माध्यम से गाँधी जी की पोती से परिचय मिला....अच्छा लगा...सच है की बन्दूक की नहीं बन्धुत्त्व की ज़रूरत है....

कविता रावत said...

Naksali sirf bandook ki bhasha samjhe yah jaruri nahi... akhir we bhi to insaan hai..... agar koi aam logon ke hit mein himat kar nek kaam kare to uska tahedil se swagat hai..... Aapko apne nek iraadon mein kamyaabi mile, yahi hamari shubhkamnayne hain
आपका आभार।

कविता रावत said...

Naksali sirf bandook ki bhasha samjhe yah jaruri nahi... akhir we bhi to insaan hai..... agar koi aam logon ke hit mein himat kar nek kaam kare to uska tahedil se swagat hai..... Aapko apne nek iraadon mein kamyaabi mile, yahi hamari shubhkamnayne hain
आपका आभार।

मनोज कुमार said...

मेरा भी वही कहना है जो संगीता जी ने कहा है यानी
इस पोस्ट के माध्यम से गाँधी जी की पोती से परिचय मिला....अच्छा लगा..।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

गांधी जी का नाम बस वोटों तक सीमित है... अब उसकी भी आवश्यकता खत्म हो रही है..

Arvind Mishra said...

ठीक कहं रही हैं वे ..

दिनेशराय द्विवेदी said...

बापू बहुत बड़ी शक्ति थे। उन्हों ने देश की जनता को अपने पीछे चलना सिखाया था।
लेकिन तारा जी की यह बात सही है कि नक्सली हिंसा के लिये सरकार के साथ-साथ व्यवस्था और समाज बराबर का ज़िम्मेदार है।

कडुवासच said...

...उन्होने कहा कि हम अपने-अपने डर से सुरक्षा के लिये बंदूकधारी गार्ड रख रहें है जबकि आज ज़रूरत बंदूक की नही बंधु की है।
.... satyvachan !!!

डॉ महेश सिन्हा said...

सब कहते हैं बात करो ! लेकिन किससे ?
बिचौलियों से .
और बात करके क्या स्थापित करेंगे की संगठित अपराध जायज है .

चिट्ठाचर्चा said...

आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आशा है हमारे चर्चा स्तम्भ से आपका हौसला बढेगा.

दीपक 'मशाल' said...

Aadarneeya Tara devi ji ke vichaar sunkar achchha laga. Aap saubhagyashali hain jo unse mile bhaia. aabhar unke vicharon se avgat karane ke liye.

राजकुमार ग्वालानी said...

ऐसी पोस्ट तो आप ही लिख सकते हैं, आपका अंदाज निराला है, तभी तो अमीर धरती में गरीबों का उजाला है

Udan Tashtari said...

कह तो ठीक रही हैं मगर दंतेवाड़ा की घटना के बात इनकी बात मानने का मन नहीं करता. वो ऐसे नहीं मानेंगे.

Smart Indian said...

आज की पोस्ट बहुत प्रेरणादायक रही. बापू हमेशा अपनी जान की परवाह किये बिना दंगाइयों के बीच भी पहुंचे और पुलिस के डंडों के बीच भी. उसी तरह विनोबा ने भी अपनी पदयात्रा में कितने डाकुओं और साम्यवादी आक्रामक दलों का ह्रदय परिवर्तन किया था.

देश को आज फिर वैसे ही समर्पित निस्वार्थ नेताओं की ज़रुरत है. बातचीत हो मगर हत्यारों द्वारा किये गए हर क़त्ल का न्याय भी हो और उन्हें बारम्बार जस्टिफाई करके उत्साहित करने वाले सफेदपोश अपराधियों का भी न्याय होना चाहिए.

P.N. Subramanian said...

बस्तर में नक्सलवाद आयातित है. वहां के आदिवासियों का कोई लेना देना नहीं था. तेलंगाना से घुसपैंठ हुई थी.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पुसदकर जी!
आपकी पोस्ट का आकर्षण ही ऐसा था कि इसका ही हैडिंग चर्चा मंच में लगाना पड़ा!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_21.html

Anil Pusadkar said...

सही कह रहे हैं सुब्रमणियम जी।बस्तर मे नक्सल्वाद तेंदूपत्ता ठेकेदारों के साथ आंध्र से आया और अब ये जम्गल माफ़िया बन गया है।हज़ारो करोड़ रुप्ये का अवैध कारोबार कर रह हैं और बात करते हैं शोषण की।

डॉ महेश सिन्हा said...

@ कविता रावत
जो लोग सीआरपीएफ़ के लोगों की हत्या करने के बाद jnu में जशन मानते हैं उनसे कौन सी इंसानियत की उम्मीद कर रही हैं आप

शरद कोकास said...

सुश्री तारादेवी की मुलाकात हम लोगों से करवाने के लिये धन्यवाद ।