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Monday, June 20, 2011

पीएमटी परीक्षा दूसरी बार रद्द,23000 बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले अफ़सरों को सिर्फ़ हटाना काफ़ी है क्या?उन्हे जेल क्यों नही होनी चाहिये?

एक सत्र मे दो बार पी एम टी यानी प्री मेडिकल टेस्ट कैंसल कर दी गई।कारण पेपर लीक होना था।इस बार तो बाकायदा धर्मशाला बुक कराकर पेपर बेचे गये।हमेशा देर से जागने वाली सरकार ने शोर मचते ही दो बड़े अफ़सरों को शंट करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली।अब ये सवाल उठता है कि जब पेपर बेचने वालों के खिलाफ़ आपराधिक प्रकरण दर्ज़ किया जा सकता है पेपर लिक होने के लिये ज़िम्मेदार ठेकेदार अफ़सरों के खिलाफ़ क्यों नहीं?क्या ये उनकी ज़िम्मेदारी नही है कि परीक्षा ठीक-ठाक निपटे?क्या पेपर की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनकी नही है?क्या सिर्फ़ उन्हे उस पद से हटाकर दूसरे पद पर बिठा देना काफ़ी है?क्या यंहा अयोग्य साबित हुआ अफ़सर दूसरे पद पर अपने आप को योग्य साबित कर पायेगा?क्या स्थानांतरण,स्थानांतरण भी नही,पद से हटाना मात्र उनके दोष के लिये या लापरवाही के लिये पर्याप्त सज़ा है?क्या ये 23000 छात्रों की मेहनत का मज़ाक उड़ाने वाले के लिये पर्याप्त है?                                                                                                                                                           आखिर क्यों नही दर्ज़ किया जाना चाहिये उन्के खिलाफ़ आपराधिक प्रकरण?जब किरायेदार के अपराध पर मकान मलिक से पूछ्ताछ हो सकती है,उनके खिलाफ़ मामला दर्ज़ हो सकता है तो इस मामले मे क्यों नही?आखिर उन्हे दण्डित क्यों नही किया जाता?हर बार ऐसा होता है कि किसी न किसी मामले के खुलासे के बाद अफ़सर को सरकार पद से हटा देती है या उसे निलंबित कर देती है?क्या ये सज़ा काफ़ी है?और फ़िर इस सरकारी कार्रवाई मे दोषी को सज़ा कंहा मिली?वो तो कुछ दिनों य महीनों बाद फ़िर किसी ज़िम्मेदार पद पर सुशोभित हो जाता है एक और लापवाही के लिये एक और अप्रत्यक्ष अपराध के लिये?                                         कब तक़ चलेगा ऐसा ही?क्यो नही दी जाती उन्हे अपनी लापरवाही या अपराध को अप्रत्यक्ष समर्थन देने के लिये सज़ा?बिना सज़ा दिये क्या सुधार संभव है?उस अफ़सर को भी मालूम है सरकार ज्यादा से ज्यादा क्या कर सकती है?पद से हटाने के बाद दूसरा पद उसे मिलना तय है ये भी उसे मालूम रहता है,तो फ़िर वो अफ़सर डरेगा ही क्यों,अपनी गलती पकडाने के बाद होने वाले अंजाम से?आखिर बच्चों को भी हम गलती करने पर डांटते है फ़टकारते है और ज़ररूत पड़ने पर पिटाई भी करते हैं?तो आखिर दोषी सरकारी अफ़सरों के साथ ऐसा क्यों नही क्या वे बच्चों से भी ज्यादा भोले-भाले हैं?क्या उन्हे सज़ा देने से आने वाले अफ़सर के लिये सबक नही होगा?क्या सज़ा का प्रावधान होने से कार्यप्रणाली में चुस्ती नही आयेगी?क्या सुधार चाह्ती ही नही है सरकार और उसका अभिन्न अंग अफ़सरशाही?क्या दण्ड प्रणाली सिर्फ़ आमआदमीयों के लिये ही है? अगर कुछ भी सुधारना ही नही है,सब कुछ वैसे ही चलते रहना है तो ठीक है।लेकिन मेरा ये मानना है कि अगर व्यव्स्था मे सुधार लाना है तो ज़िम्मेदारी तय करके द्ण्ड का प्रावधान किया जाना ज़रूरी है।दण्ड का प्रावधान वर्तमान मे भी है लेकिन लगता है वो निष्प्रभावी हो चुका है,इसलिये आपराधिक प्रकरण दर्ज़ करने की व्यवस्था होनी चाहिये?ऐसा मैं सोचता हूं।आप क्या सोचते हैं बताईयेगा ज़रूर्।

Sunday, June 19, 2011

ऐसे मे कैसे मिटेगा भ्रष्टाचार?अफ़वाह पर ही टूट पड़ते हैं पीएमटी का फ़र्ज़ी पर्चा खरीदने!क्या ऐसे ही डाक्टर बनाओगे?

छत्तीसगढ में जो ना हो वो कम ही है।कल ही यंहा के एक कस्बे में पीएमटी का पर्चा बिकने की खबर फ़ैली और वंहा की एक धर्मशाला में भीड़ लग गई डाक्टर बनने और बनाने वालों की।बात पुलिस तक़ पंहुची और वंहा जब छापा मारा गया तो 80 लोग पकड़ाये।खरीदने बेचने वाले ,दोनो शामील थे।उससे पहले ना जाने कितनों ने खरीद कर क्या-क्या सपने देख लिये होंगे?हो सकता है कई ने तो ख्वाब मे आपरेशन तक कर डाला होगा।एक पर्चा एक लाख रूपये से लेकर चार लाख रूपये तक़ में बिका।पुलिस के पंहुचते ही अफ़रातफ़री मची और वो गोरखधंधा बंद हुआ।   अब सवाल ये उठता है कि हाल ही में सारे देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिये आंदोलन की शुरूआत हुई।एक माहौल भी बना।हर कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बयानबाज़ी करता नज़र आया,बहस करता नज़र आया।ऐसा लगने लगा था कि शायद जनता जाग रही है?और कुछ दिन बीते नही है कि चल पड़े यंहा के लोग फ़र्ज़ी पर्चा खरीदने।वो भी पीएमटी का।क्या ऐसे ही बनना है डाक्टर?क्या अपने बच्चों को पेपर खरीद कर बनाओगे डाक्टर?क्या ये भ्रष्टाचार नही है?क्या इतनी ज़ल्दी भूल गये भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम को?                                                                          खैर जाने दिजीये।वैसे भी इस देश मे जिसके पास रुपया है,वो बड़े से बड़े कालेज मे डोनेशन देकर पढ ही सकता है और डाक्टर क्या जो चाहे बन सकता है?सिस्टम ही गड़बड़ है तो क्या किया जा सकता है?लेकिन इस घटना ने ये तो साबित कर ही दिया है,फ़ायदा नज़र आये तो अच्छे से अच्छे लोग सब अचार चटनी छोड़ कर दौड़ पड़ते है,मलाई खाने।क्यों गलत तो नही कहा मैनें।आपको क्या लगता है इस तरह का बर्ताव जब आम तक़ आक आदमी करता रहेगा,क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना संभव होगा?

Thursday, July 23, 2009

छोटी-मोटी नही डाक्टर बनाने वाली परीक्षा यानी पीएमटी का ये हाल है,परिक्षा दी नही और टाप पर चमक रहा नाम है!

यंहा छत्तीसगढ मे जो न हो वो कम है।अभी बोर्ड परीक्षा मे मेरिट मे आने वाली पोरा बाई के फ़र्ज़ीवाड़ा पर लिपापोती हो भी नही पाई थी कि पीएमटी के आरक्षित वर्ग की टाप लिस्ट मे दूसरे स्थान पर घोषित छात्र सुनिल के पिता ने शपथ पत्र देकर कहा कि उसका पुत्र तो परीक्षा मे शामिल ही नही हुआ है।इस सनसनीखेज खुलासे ने पुरी व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है।ये खुलासा करने वाले पिता-पुत्र दोनो घर छोड़ कर कंही जा चुके है और अपने पीछे छोड चुके है अनेको सवाल जो डाक्टर बनाने वाली सरकारी दुकान यानी पीएमटी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं।इससे पहले बोर्ड परीक्षा और स्टेट पीएससी की परिक्षाओं पर भी आरोप लगते रहे हैं।पता नही क्या होगा इस प्रदेश के छात्रों का।ज्यादा लिखने से कोई खास फ़र्क पडने वाला नही है,मै तो बस ये चमत्कार आप लोगो के सामने ला रहा हूं।