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Wednesday, February 23, 2011

kise sach mane,akhbaar ko ya tv ko?

ek chhoti si post, media ki wishvasniyata par saval uthati!orrisa ke dm ki rihai ko lekar alag-alag khabren,aaj subah akhbaron ke pehle page ki khabar thi unki rihai aur star news abhi dophar taq bata raha hai ki we riha nahi kiye gaye, ab kise sach mane?aapko kya lagata    hai is tarah alag-alag khabren kya uski wishvasniyata par saval nahi khade kar rahe hain?

Thursday, September 16, 2010

अफसोस की बात है कि विदेशियों के हाथों बिके हुए लोग देशी पत्रकारों को बिकाऊ कह रहे है…

छत्तीसगढ़ की मीडिया पर इस बात को लेकर बहस होने लगी है कि वह विकाऊ है या ईमानदार। अब यह सर्टिफिकेट कौन देगा किकौन बिकाऊ है और कौन ईमानदार?दिल्ली में बैठे कुछ लोग अचानक सक्रिय हो जाते हैं और जमे-जमाए आंदोलन पर कब्जा करने के लिए कूद पड़ते हैं कि। उनकी यह प्रवृत्ति अपना अस्तित्व बनाए रखने तक सीमित  रहे तो  समझ में आता है लेकिन विदेशीपूंजी से देशी लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश का दिखावा करने वाले कथित समाजसेवी अपनी भूमिका की सफलता को लेकर आशंकित रहते हैं और वे इसका ठीकरा स्थानीय पत्रकारिता पर फोड़नेसे बाज नहीं आते। अब कोई ये बताए कि  बस्तर में होने वाली तमाम नक्सली घटनाओं को प्रमुखता से अखबारों की सुर्खियां सबसे पहले  कौन बनाता है? जन हथेली पर लेकर काम कर रहेपत्रकारों को बिकाऊ कहने से पहले मैं समझता हूं कि समझने वाले को आईने के सामने खड़े होकर खुद का चेहरा एक बार जरुर देख लेना चाहिए।\


छत्तीसगढ़ का मीडिया बिकाऊ है या नहीं, यह बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन पिछले दिनों यहां प्रवास पर आए स्वामी अग्निवेश के साहित्यिक पत्रिका हंस में छपे बयान ने छत्तीसगढ़ और खासकर नक्सल क्षेत्रों में काम कर रहे तमाम पत्रकारों की ईमानदारी व निष्पक्षता पर जो सवाल खड़े किए हैं। उसकी सिर्फ भर्त्सना करने से काम नहीं चलेगा। जरुरत है सच्चाई को सामने लाने की।इस बारे में जिसे भी लगता है कि छत्तीसगढ़ का मीडिया बिकाऊ है उससे यह अनुरोध है कि एक बार खुद आकर छत्तीसगढ़ के वनांचलों में पत्रकारिता कर रहे लोगों के घरों में झांक कर देखें, उनके जीवन स्तर की तुलना छत्तीसगढ़ की मीडिया को  बिकाऊ कहने वालों के हिसाब से ईमानदार लोगों से, उनके जीवन स्तर से कर लें।


यह पहली बार नहीं है जब छत्तीसगढ़ की मीडिया को बिकाऊ कहा गया हो, इससे पहले भी नक्सलियों के समर्थन में विदेशी पैसा लेकर रोने वाले "बिकाऊ रुदालियों'  ने कई बार बिकाऊ कहा है।  अपने साथ दिल्ली के कथित पत्रकारों को साथ लेकर घूमने वाले और अपनी आंखों से दिखाया गया और अपनी जुबान से कहा गया झूठा सच छापने वाले कथित ईमानदार पत्रकारों की फौज पर कभी छत्तीसगढ़ की मीडिया ने सवाल नहीं खड़े किए कि उनकी हवाई टिकट से लेकर एयरकंडीशन्ड गाड़ियों में दौरा करने का और उन्हीं रूदालियों को दिल्ली से लेकर वनांचलों तक कवर कर्ने का स्पांसर कौन है?


सब को पता है कि लोकतंत्र को  अपने ठेंगे पर रखने वाले और बैलेट काअ जवाब बुलेट से देने वालों के हिमायतियों  की फौज अब चेहरे बदल रही है लेकिन अफसोस की बात यह है कि बस्तर में विश्वास खो चुके पुराने लोगों की तरह नए लोग भी रटे-रटाए आरोप छत्तीसगढ़ की मीडिया पर लगा रहे हैं। नक्सलियों के पुराने कथित हिमायती बस्तर के लोगों के हाथों पिटने लगे, उस गलती से भी  लगता है कि दिल्ली में बैठकर बस्तर के दर्द पर घड़ियाली आंसू बहाने वालों ने सबक नहीं लिया है।

अफसोस की बात यह है कि छत्तीसगढ़ के मीडिया को बिकाऊ साबित करने के लिए स्वामी जी ने यहीं के एक नामीगिरामी पत्रकार का सहारा लिया है। उस पत्रकार का जो रायपुर में उनकी प्रेस कान्फ्रेंस में समय से पहले पहुंच गया था और उन्होंने नए पत्रकारों से स्वामी जी की पूरी टीम का परिचय करवाया था।  स्वामी जी और उनकी टीम का उस समय मैने खुद स्वागत किया था, तब उन्हें क्यों नहीं लगा कि छत्तीसगढ़ की मीडिया बिकाऊ है।


बेवजह शुरु हुई इस बहस पर छत्तीसगढ़ के जानेमाने पत्रकार व पत्रकारिता का स्कूल कहे जाने वाले देशबंधु पत्र समूह के प्रधान संपादक ललित सुरजन को बहुत दुख हुआ और उन्होंने अपनी वेदना आज 16 सितंबर के अंक में दैनिक देशबंधु के संपादकीय पेज पर लिखे अपने लेख में जाहिर कर दी। उनके दुख से सारे पत्रकार दुखी हैं और अब उनकी नजर छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर के जवाब पर टिकी हैं जिनसे ललित सुरजन जी ने अपने लेख में सवाल किए हैं।

पढ़िए ललित सुरजन जी का लेख और अपनी राय जरुर दीजिए।