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Monday, February 27, 2012

क्या आपने देखा है कभी रूदालियों को गोधरा-गुजरात के अलावा देश के किसी और हिस्से मे होने वाले अन्याय पर?

गोधरा-गोधरा-गोधरा.गुजरात-मोदी-दंगे-अल्पसंख्यक,अन्याय-न्याय.सुनसुन कर कान पक गये.एक ही गोधरा-गुजरात राग आलापता कथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया किसी न किसी बहाने गोधरा रेल काण्ड के बाद फैले दंगो के ज़ख्मों पर मरहम लगाने के बहाने उसे कुरेदता आ रहा है और शायद इसी कारण उसके ज़ख्म हरे के हरे हैं.अच्छा है पीडितों को न्याय दिलाने की मुहिम चलाना अच्छा है,मगर क्या दंगे सिर्फ गुजरात में ही हुये हैं?क्या अल्पसंख्यको के साथ सिर्फ गुजरात मे ही अन्याय हुआ है?क्या कश्मीर के पण्डितो के साथ वो सब नही हुआ?क्या कश्मीरी पण्डितों की तरह इस देश में अपनी ज़मीन छोडने पर और कोई कौम मज़बूर हुई है?क्या उत्तर पूर्व में हिंदी भाषियों के साथ वो सब नही हो रहा है?क्या गुजरात के दंगों के अलावा सिक्खों के नरसंहार पर ऎसी रिपोर्ट किसी ने देखी है कभी मीडिया में?क्या कभी कभार कश्मीर के दंगा पीडितों पर भी इस तरह की बहस दिखेगी टीवी पर?क्या मानवाधिकार कार्यकर्ता कभी कश्मीरियों को न्याय दिलाने के लिये अपने कानूनी दांव पेंच का इस्तेमाल करेंगे?क्या गोधरा-गुजरात की तरह दिल्ली-कश्मीर और उत्तर पूर्व पर समय-समय पर ऎसे कार्यक्रम दिखा पायेगा?क्या अल्पसंख्यक याने सिर्फ मुसलमान या ईसाई ही होते है?क्या दिल्ली के सिक्ख,कश्मीर के पण्डित अल्पसंख्यक नही हैं?क्या धर्मनिरपेक्षता का मतलब सिर्फ मुसलमानो के हितो की बात करना है?फिर हिंदूओं के हितों की बात करना साम्प्रदायिकता क्यों?क्या आपने देखा है कभी रूदालियों को गोधरा-गुजरात के अलावा देश के किसी और हिस्से मे होने वाले अन्याय पर?मैंने तो नही देखा आज तक़.

Sunday, September 18, 2011

क्या सिर्फ़ गुज़रात मे ही दगे गुये है?कोई तो बोलो,पंजाब नही तो दिल्ली या आसपास हुये दगों पर ही बोल दो

गुजरात माने दंगे!मोदी यानी नरसंहार!गोधरा रेल कांड का कोई माने नही,बेस्ट बेकरी कांड इंसानियत पर बदनुमा दाग!मोदी का उपवास नाटक!कांग्रेस का अनशन नाटक नही नाटक की पोल खोलने वाला!मोदी यानी राजनैतिक अछूत!और कभी दिल्ली से शुरु हुये राष्ट्रव्यापी दंगे!वो क्या नरसंहार नही थे!उन पर खामोशी के क्या मायने!उन दंगो पर कोई बहस नही!कोई कोर्ट-कचहरी नही!आखिर क्यों?क्या सिर्फ़ गुज़रात मे ही दगे गुये है?कोई तो बोलो,पंजाब नही तो दिल्ली या आसपास हुये दगों पर ही बोल दो।

Wednesday, September 14, 2011

लगता है कि इस देश में बेरोज़गारी, भुखमरी ,भ्रष्टाचार, राजनीति का अपराधिकरण,मूलभूत सुविधा,विकास वैगेराह-वैगेराह से ज्यादा बड़ी समस्या नरेन्द्र मोदी है?

अक्सर नरेन्द्र मोदी पर बह्स होते देख ऐसा लगता है कि इस देश में बेरोज़गारी, भुखमरी ,भ्रष्टाचार, राजनीति का अपराधिकरण,मूलभूत सुविधा,विकास वैगेराह-वैगेराह से ज्यादा बड़ी समस्या नरेन्द्र मोदी है?सभी राजनैतिक चश्माधारियों से क्षमासहित निवेदन कि कृपया मुझे कांग्रेसी या आरएसएस का सद्स्य या एजेन्ट करार ना दे।मैंने ये सवाल सिर्फ़ इसलिये उठाया है क्योंकि जब भी कोई चर्चा होती है सिर्फ़ और सिर्फ़ मोदी ही केन्द्रबिंदु होते हैं।ना अफ़ज़ल,न कसाब,ना बम-ब्लास्ट बस मोदी और मोदी,क्या और कुछ नही है बहस के लिये इस देश में।

Tuesday, July 19, 2011

अरे कंहा हो मोमबत्तीवालों,कंहा हो रिट-पिटीशन वालों?मुम्बई में बम ब्लास्ट का एक संदिग्ध पूछताछ के बाद मर गया?क्या इस पर शोर नही मचाओगे?क्या सिर्फ़ गुजरात में ही चिल्लाओगे?

मैं सोच रहा था कि गई मुम्बई पुलिस।कलउसकी पूछताछ के बाद एक संदिग्ध की मौत हो गई थी।मुझे लगा कि बम ब्लास्ट में मरे लोगों से ज्यादा संदिग्ध की मौत पर रोना-धोना होगा।जैसा कि गुजरात में होता आया है।मगर अफ़सोस कोई नही रोया उस गरीब की मौत पर्।न कोई मोम बत्तीवाला,ना कोई सस्ता टेस्टीवाला, ना कोई सोशलाईट्स,न कोई कानून-विशेषज्ञ,ना कोई रिट-पिटीशन का थोक दुकानदार।एक भी आगे नही आया।और तो और मुसलमानों के नये मसीहा अर्जुन सिंह के उत्तराधिकारी दिग्विजय सिंह को भी उस गरीब की मौत नज़र नही आई।दिल्ली के बाटला हाऊस में शहीद मोहन चंद शर्मा की शहादत पर तक सवाल उठा चुके दिग्विजय सिंह की खामोशी भी समझ से परे है।हर मामले में उन्हे आरएसएस नज़र आ जाता है इसमे उन्हे कुछ भी नज़र क्यों नही आया,समझ ही नही आया।खैर नरेन्द्र मोदी जरूर खुश हो रहे होंगे,चलो अहमदाबाद के बम ब्लास्ट के आरोपी का भाई मुम्बई पुलिस के हत्थे चढा था।अगर गुजरात पुलिस से पूछताछ के दौरान मरा रहता तो हो गया रहता अभी तक़ मोदी का जीना हराम।नोदी ह्त्यारा है,मोदी की पुलिस हत्यारी है,मोदी के राज में अल्पसंखुअक सुरक्षित नही हैं,पुलिस वालों को गिरफ़्तार करो,मोदी के कहने पर मार डाला पुलिस वालो ने,उस पर मुकदमा चलाओ,फ़िर कोई सस्ता टेस्टीवाला आ जाता,कोई याचिका एक्स्पर्ट आ जाता,फ़ाईव स्टार रुदालियां आ जाती,मोमबत्ती ब्रांड श्रद्धांजलि एक्स्पर्ट आ जाते।सब हो जाता।मगर वो मामला मुम्बई मे नही गुजरात में हुआ होता तो।गुजरात ही नही,छत्तीसगढ भी चल जाता।यंहा तो भूख से 6 आदिवासी मर गये हैं,कह कर अदालत का दरवाज़ा खट्खटा दिया था भाई लोगों ने।जब आब्ज़र्वर आये तो हैरान रह गये,पांच को ज़िंदा सामने देश कर,एक मरा भी था तो बीमारी से बहुत पहले।ये तो हाल है।छत्तीसगढ दिखेगा,गुजरात दिखेगा,और आजकल उत्तरप्रदेश भी दिख रहा है।कर्नाटक में गीता का पाठ दिख गया।बस नही दिखा तो मुम्बई पुलिस की पूछताछ के बाद हुई एक संदिग्ध की मौत।कश्मीर में पण्डितों की दुर्दशा नही दिखती,उनका भाग जाना नही दिखता,उनके साथ हुआ अन्याय,अत्याचार नही दिखता,दिखता है तो कभी-कभी हुआ कोई एनकाऊण्टर्।छत्तीसगढ में भी सोते हुये निर्दोष बच्चों की ह्त्या नही दिखती,नक्सलियों की लूट-खसोट,अपराध नही दिखते,सामूहिक नरसंहार नही दिखते,बारूदी विस्फ़ोट नज़र नही आते,हां पुलिस का रात को स्कूलों मे रूक जाना नज़र आ जाता है,राज्य सरकार का आदिवासियों को आत्मरक्षार्थ दिये गये हथियात दिख जाते हैं,उनको एसपीओ बनाना नज़र आ जाता है और भी बहुत कुछ नज़र आता है उन लोगों को मगर मुम्बई का मामला नज़र नही आता।क्यों चव्हाण और मोदी में फ़र्क़ है या गुजरात के संदिग्ध और मुम्बई के संदिग्ध में फ़र्क़ है,या फ़िर भाजपा और कांग्रेस की सरकार होने का फ़र्क़ है।खैर जनता भी अब समझने लगी है विदेशी रुपल्ली के इशारों पर रोने-गाने और शोर मचाने वालों को।