दुर्भाग्यजनक है लेकिन ये सच भी है कि छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ आईएएस अफसर को ईमानदार होने की सज़ा भुगतनी पड़ रही है। एक बार पहले भी वे मुख्य सचिव बनने से वंचित कर दिए गए और दूसरी बार भी आसार वैसे ही बन गए हैं। अगर दूसरी बार भी वो मुख्य सचिव नहीं बने, तो ये ईमानदारी के मुँह पर पहला नहीं दूसरा करार तमाचा होगा।
बीकेएस रे छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ आईएएस अफसर हैं और मुख्य सचिव पद के सबसे पहले और वरीयता के आधार पर प्रबल दावेदार हैं। उनसे काफी जूनियर आईएएस अफसर को उन्हें किनारे कर मुख्य सचिव बनाने के तमाम हथकंडे इस छोटे से विकासशील प्रदेश में अपनाए जा रहे हैं। नए मुख्यसचिव के दुसरे दावेदार भी ईमानदार है लेकिन उनसे काफी जूनियर है । पर उनको अफसरों की बड़ी लाबी का समर्थन प्राप्त है जो अभी खास खास पदों पर काबिज़ है। कुत्ते, बिल्लियों की तरह लड़ने वाले नेताओं को भी गोटी-बाजी में अफसरों ने मात दे दी है। मुख्य सचिव पद पर नियुक्ति के लिए षडयंत्र के हर तरीके अपनाए जा रहे हैं।
इस कड़ी में अफसरों की एक खास लॉबी ने एक अख़बार और एक पत्रकार को इस्तेमाल कर एक ऐसी ख़बर छपवा दी, जो बीकेएस रे की ईमानदारी को तो ग्रहण लगा ही रही थी उनके मुख्य सचिव पद की दावेदारी पर भी खतरा बन गई। बेहद ईमानदार और सीधे-सादे बीकेएस रे से ये बात बर्दाश्त नहीं हो पाई। उन्होंने अपने ही संघ में अपनी शिकायत दर्ज कराई और जिस आईएएस अफसर संघ के वे अध्यक्ष हैं उस संघ से पूरे मामले की जाँच कर राहत दिलाने की माँग की है। उन्होंने डायरेक्टर जनरल पुलिस को भी पत्र लिखकर पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई की माँग कर डाली।
साधारणतया: शांत और विनम्र स्वभाव के अफसर रे का नाराज होकर फट पड़ना अस्वाभाविक नहीं है। इसी सरकार ने पदोन्नित के मामले में पिछली बार भी उनके साथ अन्याय ही किया था। उनकी प्रबल दावेदारी और वरीयता को नज़रअंदाज कर उनसे जूनियर शिवराज सिंह को मुख्य सचिव बना दिया गया था। तब भी बीकेएस रे खामोश रह गए थे और जो जिम्मेदारी उन्हें दी गई उसका निर्वाहन वे करते रहे। एक बार फिर जब वही किस्सा दोहराया जा रहा है तो उनका दर्द फट पड़ना जायज ही माना जाएगा।
अब सवाल ये उठता है कि बीकेएस रे के खिलाफ अगर रिश्वत मांगने की कोई ख़बर थी तो वो उस समय क्यों सामने नहीं आई ? ऐसे समय में जब नया मुख्य सचिव बनाया जाना है तब उस कथित ख़बर का छपना एक सुनियोजित षडयंत्र रचे जाने का सबूत देता है। बहुत से ऐसे अफसर और नेता नहीं चाहते कि बीकेएस रे के हाथ में अफसरशाही की चाबी हो। उनके रहते बहुत सी वो कारनामें हो नहीं हो सकते जिनके लिए अफसरों की एक लॉबी अपनी पहचान बना चुकी है। ये छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य ही है जो यहाँ नेताओं के साथ-साथ अफसरों के भी अपने-अपने गुट हैं। गुटबाजी की चक्की में पिसकर जनता मर रही है। सरकारी फाइलों की भूलभुलैया में प्रदेश का विकास पता नहीं कहाँ गुम गया है। बस्तर में नक्सलियों की अपनी सत्ता कायम होती जा रही है। दक्षिण में बस्तर और उत्तर में सरगुजा संभाग दोनों ही ओर से नक्सली धीरे-धीरे प्रदेश के मैदानी इलाके में अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं। गरीबों के हिस्से का अनाज पता नहीं किन गोदामों में चला जा रहा है ? विकास कामों के अभाव में हजारों, लाखों गरीब मजदूरी के लिए दूसरे प्रदेश को पलायन करने के लिए मजबूर हैं। मामूली सी बीमारियों के ईलाज के लिए डॉक्टरों की कमी मरीजों को बेमौत मार रही है। और हमारे प्रदेश के नेताओं के साथ-साथ अफसर भी राजनीति की भट्ठी में अपनी-अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं। नेता लाल हो रहे हैं, अफसर लाल हो रहे हैं, और जनता हलाल हो रही है।
16 comments:
ईमान दार ओर सच बोलना हमेशा से मंहगा पडा हे. लेकिन यह भी एक शोक हे ओर लोग पालते हे इसे.
धन्यवाद
आपने बहुत सही लिखा है, मिडिया को अपना दायित्व निभाना ही chahiye ! रे साहब कर्ताब्य्निठ अधिकारी हैं, मुख्यमंत्री को सही निर्णय लेना चाहिए !
इस मामले का नहीं पता, पर ईमानदारी अपने आप में प्रसाद है। उसमें क्या मंहगा, क्या सस्ता।
अगर पद चाहिये तो विभागीय राजनीति खेलनी होगी। कोई और चारा नहीं।
अफसोसजनक!
ईमानदारी सजाने और खुद के खुश रहने भर वाली चीज ही रह गई है।
kyon KIRAN BEDI ko bhul gaye kyaa?
mera re saab se kabhi seedha sampark nahi raha magar main jaantu hun imaandaari ki saaza kahiye ya inaam ,ise main achhi tarah bhog chuka hun is liye afsos hua aap sabhi, main jantaa hun mere dukh mere gusse me sahbhaaagi hai,main aapka reeni hun.dhanyawad aapki pratikriyaa hi mere hausalaa hai
सब कुछ दुखद और क्षोभजनक तो है किन्तु प्रत्येक को अपने मूल्यों का दाम चुकाना ही पडता है - वन हेज टू पे फार हिज वेल्यूज । ऐसे लोगों की प्रशंसा हर कोई करता है लेकिन उसे अवसर कभी नहीं देता क्यों कि वह सुविधाजनक नहीं होता । रे साहब को सलाम ।
रे साहब के साथ मुझे सुहानभूति है.
ज्ञान भइया की बात से पूर्णतया सहमत हूँ.
रे साहब अपना ईमान बदल लें .सब ठीक हो जाएगा भगवान् की दया से .
आप सही कह रहे हैं। कमोबेश सभी जगह ईमानदार लोगों के साथ इसी तरह का व्यवहार हो रहा है। लेकिन प्रसन्नता का विषय यह है कि इतनी उपेक्षा के बाद भी वे अपनी ईमानदारी से डिग नहीं रहे।
Desh bhar me aisi hi durbhagyapoorn stithiyan hain Bhaijaan.......
"what to say, very sad, to be honest and true is some times like conducting a crime" really painful....
ये हमारे देश के इमानदार लोगों के साथ कुछ नया तो हो नहीं रहा?फ़िर भी सच्चाई और इमानदारी में भी एक खास किस्म का नशा होता है जो छूटता नही.अफ़सोस ये है कि अब इमानदार लोगों की नस्ल कम होती जा रही है.
aap sabhi ka shukriya mere vicharon ke samarthan ke liye
aap sabhi ka shukriya mere vicharon ke samarthan ke liye
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