Thursday, July 31, 2008

कुष्ठ रोगियों के प्रति नज़रिया नहीं बदला समाज का न डॉक्टरों का

कुष्ठ रोग को जड़ से मिटाना है। कुष्ठ छूत की बीमारी नहीं है। कुष्ठ रोग मुक्ति के लिए सरकार ऐसे विज्ञापनों पर करोड़ों रूपए खर्च करती है मगर स्थिति ठीक उल्टी है। ज़िला अस्पताल में कुष्ठ रोगी वृध्दा को बाहर बिठाकर रखा गया। ये नज़रिया डॉक्टरों का है तो आम जनता से क्या उम्मीद की जा सकती है ?

गंगा कुष्ठ सेवा समिति के थनवारिन बाई तेज़ बुखार से पीड़ित थी। उसकी हालत बिगड़ती देख समिति का ही अशोक उसे लेकर ज़िला अस्पताल गया। वहाँ थनवारिन बाई को लेकर अशोक लाइन में नंबर लगाने खड़ा रहा। नंबर आने पर जब वह थनवारिनबाई को लेकर डॉक्टर के पास पहुँचा तो उसे बाहर बैठने के लिए कहा गया। काफी देर इंतज़ार के बाद भी जब वृध्दा की जाँच नहीं हुई और उसकी हालत बिगड़ने लगी तो अशोक बिफर पड़ा। इस बीच ख़बर लगते ही मीडिया वहाँ पहुँच गया और तब जाकर वृध्दा का ईलाज शुरू हुआ।

वृध्दा को अस्पताल लाने वाला भी कुष्ठ रोगी ही था। उसके साथ अस्पताल गया अशोक भी कुष्ठ रोगी है और एक पैर से लाचार है। व्हील चेयर पर बिठाकर दोनों वृध्दा को लेकर काफी दूर स्थित कुष्ठ रोगी बस्ती से अस्पताल पहुँचे थे। डॉक्टरों का ये रवैया दिल दहला देने वाला था। रोगों को अच्छी तरह से समझने वाले और उसका ईलाज करने वाले ही अगर रोगी से दूर भागे तो आम जनता का डर अपने आप समझ आता है।

ऐसा नहीं है कि कुष्ठ का संक्रमण नहीं होता लेकिन वो होता है, एक खास स्टेज में। शुरूआती दौर में ये बीमारी छूत से नहीं फैलती, लेकिन तमाम सरकारी प्रचारों के बावजूद आम जनता में ये धारणा नहीं बन पाई है। आज भी कुष्ठ रोगी समाज से अलग-थलक अपनी एक बस्ती अपनी एक दुनिया बसाकर रहते हैं। ऐसे में याद आते हैं राजधानी रायपुर के पूर्व महापौर स्व। बलबीर जुनेजा। वे हमेशा जाते थे कुष्ठ बस्ती में और जितना हो सकता था उतना प्यार बांटते थे उन लोगों के साथ। बलबीर जुनेजा उनके लिए नेता नहीं परिवार के मुखिया के समान थे और उनके जाने के बाद ऐसा लगता है कुष्ठ रोगी समाज से परित्यक्त होने के साथ-साथ अनाथ भी हो गए हैं। बलबीर जुनेजा मस्त-मौला इंसान थे सदा हंसते-हंसाते रहते थे और कैंसर का दर्द उन्हें हंसते-हंसते ही झेला। ज़िला अस्पताल में कुष्ठ रोगी वृध्दा के साथ अनदेखी नहीं होती अगर बलबीर जुनेजा ज़िन्दा होते। प्रणाम करता हूँ उस नेता को जिसके दिल में समाज से उपेक्षित, तिरस्कृत कुष्ठ रोगियों के लिए बेपनाह मोहब्बत थी।

5 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

सही कह रहे हैं आप कुष्ट रोग के बारे में। यही दशा एड्स के रोगियों को ले कर है। डाक्टरों में भी इन रोगियों के प्रति घोर उपेक्षा, नफरत और अज्ञान है। और समझ नहीं आता कि पैराडाइम शिफ्ट कैसे होगा?!

राज भाटिय़ा said...

इन्ही लोगो को बहुत प्यार ओर संतावना चाहिये, यह रोग तो किसी को भी हो सकते हे, मन्दिर मस्जिद मे जा कर अपने इष्ट को याद करने के वजाये इन की सेवा दिल से करो, लेकिन आज भारत मे खास तोर पर उलट हो रहा हे,वाह री दुनिया....
बहुत अच्छा लेख लिखा हे आप ने हम सब को सोचना ओर करना चहिये यही पुजा हे, धन्यवाद

Nitish Raj said...

डॉक्टर को तो अच्छे तरीके से पता होता है कि कब और कौन सा रोग छूत फैला सकता है यदि डॉक्टर भी हमारे नेताओं की तरह व्यवहार करने लगेंगे तो फिर कौन दूर करेगा इन रोगों को। लेकिन अफसोस इस बात का है कि डॉक्टर भी स्वार्थी होते जा रहे हैं।
हमारी सोसाइटी में भी कुछ चुंनिंदा डॉक्टरों ने ऐसा ही किया। कुछ डॉक्टर पार्टी मना रहे थे और उनके नीचे वाले फ्लोर में एक बुजुर्ग को अटैक आया और जब उन डॉक्टरों को बुलाया गया तो उन्होंने कहा कि पार्टी इज ऑन। बुजुर्ग की मौत हो गई। पूरी सोसाइटी अंदर से हिल गई। आज इस पोस्ट ने उस बात की याद दिला दी। इस लिए आप के साथ बांट रहा हूं। कई बार तो विश्वास उठ सा जाता है।

Anil Pusadkar said...

Dhanyawaad Pandeyjee,Bhatiasaab, Rajsaab ye sach me afsos ki baat hai ki docter aisa kar rahe hain.Ye pehla mauka nahi hai,aaye din yahan aisa hota rehta hai.mai jo kehna chahta tha use aap logo ne achhi tarah samjha.aage bhi yehi pyar chahunga

L.Goswami said...

yhan ke sadar asptal me to karmchariyon ne marijo ko(AIDS ke) chhune se bhi inkar kar diya tha