Monday, July 28, 2008

मुखबिरी का ईनाम नक्सलियों की गोली

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में नक्सलियों ने एक पूर्व सरपंच को गोली मारकर हत्या का खाता खोल दिया। पूर्व सरपंच पर नक्सलियों को पुलिस का मुखबिर होने का शक था और पूर्व सरपंच निराम सिंह ध्रुव मई महीने से पुलिस को अपनी जान खतरे में होने की बात कहता आ रहा था। 4 मई को पुलिस ने हार्डकोर नक्सली गोपन्ना और उसके 2 साथियों निराम सिंह के घर भोजन करते पकड़ा था। तब से नक्सलियों को उस पर मुखबिर होने का शक था। अब ऐसे में कोई भला पुलिस को नक्सलियों की सूचना कैसे देगा ? भला कैसे मजबूत होगा राज्य सरकार का खुफिया और सूचनातंत्र ?
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हत्या करने का ये कोई पहली वारदात नहीं है, लेकिन रायपुर जिले के लिए ये पहली है। राजधानी रायपुर और उसके आसपास तक नक्सलियों के पहुँच जाने की ख़बरें पहले से ही थी। लेकिन जिले के गरियाबंद इलाकों में नक्सलियों ने पूर्व सरपंच को गोली मारकर लाल आतंक पसरा दिया है। नक्सलियों की उस इलाके में सक्रियता मई 2007 से गोपन्ना की गिरफ्तारी के बाद कम हो गई थी, और उसी के साथ कम हुई थी पुलिस की सक्रियता भी। उसी का नतीजा निराम सिंह ध्रुव की हत्या के रूप में सामने आ गया।
आखिर निराम सिंह की गलती क्या थी ? उसके घर नक्सली गोपन्ना और उसके 2 साथी 4 मई 2007 को पहुँचे और उन्होंने वहाँ भोजन किया। अगर निराम उनको भोजन नहीं कराता तो भी वो नक्सलियों के निशाने पर आ जाता। आखिर पुलिस को सूचना नहीं मिलती तो वो नक्सलियों की मदद के नाम पर पुलिस का निशाना बन जाता। ये मजबूरी अकेले निराम की नहीं है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र का हर आदमी इसी दोराहे पर खड़ा मिलता है वो पुलिस और नक्सली के बीच पिसकर मर रहा है, जैसे निराम सिंह।
निराम सिंह की हत्या के बाद उसका दामाद दिनेश ध्रुव लापता है। शनिवार की रात निराम सिंह आमागाँव के अपने घर में परिवार के साथ खाना खा रहा था तभी वर्दीधारी नक्सलियों ने घर को घेर लिया और परिवार के सारे सदस्यों को जान से मारने की धमकी देकर कमरे में बंद कर दिया। उसके बाद वे निराम सिंह को हाथ बाँधकर घर से बाहर ले गए और लाठियों से उसकी जमकर पिटाई की। उसके बाद उसे बिजली के खंभे से बाँधकर गोली मार दी गई।
पुलिस को रात डेढ़ बजे सूचना मृतक के पुत्र ने दी और उसके बाद पुलिस ने अपना रूटीन का काम शुरू कर दिया। एफआईआर दर्ज की, लाश का पंचनामा किया, पोस्टमार्टम करवाया और जंगलों में गश्त भी करवाई। लेकिन अब इन चीजों का कोई फायदा नज़र नहीं आता, क्योंकि निराम तो मर चुका है। मई महीने से जान बचाने की उसकी जद्दोजहद आखिर खत्म हो गई। पुलिस से वो बार-बार जान बचाने के लिए गुहार करता था। इस दौरान वो काफी समय गाँव से बाहर भी रहा।
निराम की हत्या के बाद नक्सलियों ने वहाँ पर्चे भी छोड़े हैं। पर्चे में उसके दामाद दिनेश को मृत्युदण्ड देने की घोषणा कर दी गई है, दिनेश भी अब लापता ही है। वारदात के बाद पूरे इलाके को जैसे लकवा मार गया है, सब खामोश हैं। सवाल सिर्फ एक हत्या का नहीं है, सवाल है इस बात का कि गोली खाकर कोई क्यों पुलिस की मुखबिरी या मदद करेगा ? ज़रूरत इस बात की है कि पुलिस अपने सोर्स को सुरक्षा दे। वैसे ये वारदात राजधानी के लिए भी खतरे का संकेत है। महज 100 किलोमीटर दूर रह गए हैं नक्सली राजधानी से। बस्तर और सरगुजा संभाग के बाद रायपुर संभाग के पहले जिले रायपुर के गरियाबंद इलाके में उनकी बढ़ती गतिविधियाँ पुलिस और सरकार के लिए चिंता का सबब तो होना ही चाहिये।

2 comments:

डॉ .अनुराग said...

दुर्भाग्य पूर्ण घटना है ,बेचारा आम आदमी क्या करे ?वाकई कुछ समस्याए हमारे देश को धीरे धीरे खा रही है......

राज भाटिय़ा said...

नक्सली ही कही इन पुलिस ओर नेताओ मे से तो नही ??