Thursday, August 28, 2008

4 सौ रूपए महीने तनख्वाह मिलती है बच्चों को पढ़ाने की


हो सकता है बहुतों को विश्वास भी न हो लेकिन ये सच है। छत्तीगसढ़ में राजीव गाँधी शिक्षा मिशन के तहत 8 ज़िलों में 15 सौ महिलाएँ शिशु शिक्षा केन्द्र काम कर रही हैं। 95-96 से शुरू हुए शिक्षा केन्द्रों में तब से शिक्षिकाओं को वेतन के नाम पर मानदेय 400 रूपए और सहायिकाओं का मानदेय 200 रूपए महीना तय किया गया था। तब से आज तक उसमें 1 रूपए की भी बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। महीने भर के काम के बदले दिए जाने वाले रकम को वेतन न कहकर मानदेय इसलिए कहा जा रहा है ताकि सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से बच सके। अफसोस की बात ये है कि इसी राज्य में न्यूनतम् मजदूरी 2971 रूपए महीना है। अब वेतन कहो या मानदेय शिक्षिकाओं को 400 और सहायिकाओं को 200 रूपए महीना ही मिलता है।

छत्तीसगढ़ सरकार के शिक्षा विभाग से शिशु शिक्षा केन्द्र की शिक्षिकाएँ कई बार मानदेय बढ़ाने की माँग कर चुकी है। अफसोस की बात ये है कि राज्य में न्यूनतम् मजदूरी से भी कम मजदूरी में आंगन बाड़ी या शिशु शिक्षा केन्द्र की शिक्षिकाएँ काम करने के लिए मजबूर हैं। बाल मंदिर से लेकर पहली तक 3 कक्षाओं को पढ़ाने का जिम्मा होता है, आंगनबाड़ी की शिक्षिका के पास। और सहायिका उसका तो हाल और भी बुरा है मात्र 200 रूपए महीना मानदेय मिलता है। क्या 200 रूपए मानदेय कहीं से भी न्यायोचित लगता है। हो सकता है मैं गलत हूँ लेकिन ये कहने से पीछे नहीं हटूँगा कि घरों में काम करने वाली महिला कर्मी भी कम से कम 500 रूपए महीना वेतन लेती है और वो सिर्फ 1 घर में काम नहीं करती, 4-5 घरों में काम करती है।

यानि छत्तीसगढ़ की आंगनबाड़ियों में बच्चों को पढ़ाने वाली शिक्षिकाएँ और उनकी सहायिकाओं की हालत घरेलू काम करने वाली कर्मियों से भी खराब है। कम से कम 6 घंटा रोज आंगनबाड़ी में बच्चों को पढ़ाने वालियों से तो बेरोजगार तकदीर वाले हैं जिन्हें बेरोजगारी के नाम पर 500 रूपए महीना मिल जाता है। तो सवाल ये उठता है कि क्यों वो बच्चों को पढ़ाए ? इससे अच्छा तो बेरोजगारों की कतार में खड़ा हो जाना है शायद।

वाकई विश्वास नहीं होता कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण और सम्मानित क्षेत्र में इतना अपमानित करने वाला मानदेय मिलता है। वेतन और मानदेय के तकनीकी अर्थों का बहाना लेकर सरकार आज तक बचती आ रही है। एक बार फिर शिक्षिकाएँ और सहायिकाएँ एकजुट हो रही हैं, अपना वेतन कहो या मानदेय बढ़ाने की माँग करने के लिए। उन्होंने सरकार को हड़ताल की चेतावनी भी दे रखी है।
अब इसे शिक्षिकाओं और सहायिकाओं के साथ कहिए या नारी के साथ कहिए अन्याय तो हो रहा है। सन् 95 से आज तक बिना बढ़ोत्तरी 400 और 200 रूपए में काम करने वाली इन महिलाओं के लिए राज्य की एक भी महिला नेता अभी तक सामने नहीं आई है। और न ही कोई राजनीतिक या सामाजिक संगठन सामने आ रहा है। मजदूरों और बेरोजगारों से भी कम रूपया पाने वाली इस हालत में बच्चों को कैसे पढ़ाती होंगी ? ये सोचने वाली बात है।

6 comments:

Udan Tashtari said...

विचारणीय मुद्दा!!

राज भाटिय़ा said...

बेहद शर्मनाक!!!

Anonymous said...

गम्भीर विषय है, सार्थक प्रयास होना चाहिये।

ताऊ रामपुरिया said...

शर्मनाक और घिनोना मुद्दा तो है ही ,
और यह बहुत बड़ी विसंगति भी है !
आकाओं को सोचना पडेगा ! पर बिना
नकेल डाले आका भी जागते नही हैं !
आपने हमेशा की तरह एक जवलंत विषय
उठाया है ! धन्यवाद !

दीपक said...

इतना ही नही जनाब आंगनबाडी कार्यकर्ताओ को सरपंच पंच के नखरे भी झेलने पडते है कभी-कभी किसी पत्रकार की कलम इस मुद्दे पर कुछ दिन बोलती है फ़िर हमेशा कि तरह एक दिन अचानक सारी खबरे बंद ॥ अनिल जी माफ़ किजियेगा मगर अपने इंडिया मे सब बिकने लगा है नेता अभिनेता तो पुराने हुये अब खबरे और पत्रकार भी बिक रहे है !

seema gupta said...

" AH! very painful issue to be considered sereiously, otherwise as u have mentioned in your article, no one will come forward for giving education to poor childs. of course it is nobal though and efforts, but require correction on the subject" wonderful article

Regards