त्रिवेणी संगम के बीच सदियों से अक्षत खड़ा आठवीं सदी का कुलेश्वर महादेव मंदिर बहुत से लोगों के लिए ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं है, और जो ईश्वर पर आस्था नहीं रखते उनके लिए भी कम से कम इंजीनियरिंग की मिसाल तो है ही। इसी नदी पर बना पुल 40 साल भी नहीं टिक पाया है और ये खड़ा है सदियों से जस का तस।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 कि.मी. दूर है पवित्र नगरी राजिम। यहाँ पैरी,सोंढूर और महानदी का त्रिवेणी संगम है। नदी के एक किनारे भगवान राजीवलोचन का मंदिर है और नदी के बीच में कुलेश्वर महादेव का। नदी के ठीक किनारे एक और महादेव का मंदिर जिसे मामा का मंदिर भी कहा जाता है और कुलेश्वर महादेव को भाँजे का मंदिर कहते है। ऐसी मान्यता है कि बाढ़ में जब कुलेश्वर महादेव का मंदिर डूबता था तो वहाँ से आवाज़ आती थी मामा बचाओ। इसीलिए यहाँ नाव पर मामा-भाँजे को एक साथ सवार होने नहीं दिया जाता।
खैर ये तो है आस्था और कहावतों की बात। लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि सातवीं-आठवीं शताब्दी का ये मंदिर आज भी खड़ा है मौसम को चुनौतियाँ देता हुआ। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इसी नदी पर मंदिर से कुछ ही दूरी पर नयापारा और राजिम दोनों बस्तियों को जोड़ने वाला पुल है। सन् 1971 में यातायात के लिए खोला गया ये नेहरू पुल आज खस्ताहाल होकर खतरनाक स्थिति में पहुँच गया है। आधुनिक इंजीनियरिंग का नमूना 40 साल भी नहीं टिक पाया है और उसी जलधारा के बीचों-बीच खड़ा कुलेश्वर मंदिर उस काल की स्ट्रक्चरल, जियोलॉजिकल और इंजीनियरिंग के ज्ञान का प्रमाण दे रहा है।
बरसात के दिनों में बाढ़ का पानी कई-कई दिनों मंदिर को डुबाए रखता है। हाल में तो नदी का गुस्सा कम नज़र आता है लेकिन कुछ सालों पहले जब उसे बांधों से नहीं बांधा गया था तो उसकी उफनती जलधारा क़हर बरपाती जाती थी। इसके बावजूद बाढ़ लाखों क्यूसेक पानी का दबाव अपने बेहतरीन अष्टकोणीय ढाँचे पर आसानी से झेलता आ रहा है कुलेश्वर महादेव। मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊँचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से उनकी जोड़ाई हुई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढ़ियाँ बनी हुई है। नदी की गहराई निरंतर रेत के जमाव से कम हो चुकी है इसलिए मंदिर का चबूतरा लगभग डेढ़ मीटर गहराई तक रेत में ढका हुआ माना जाता है। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है।
चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। यहाँ उस काल के भवन निर्माताओं के भू-गर्भ विज्ञान के कौशल का पता चलता है। उन्होंने लगभग 2 कि.मी. चौड़ी नदी के बीच और जहाँ देखो वहाँ तक फैले रेत के समुंदर के बीच इस मंदिर की नींव के लिए ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था। एकदम बारीक बालू से भरी नदी के बीच एक इमारत को खड़ा करना और उसे सदियों तक टिका रहने लायक बनाने के लिए की गई साइट सिलेक्शन आज के पढ़े-लिखे अत्याधुनिक निर्माण कर्ताओं के लिए आदर्श प्रस्तुत करती है।
तमाम धारणाओं-अवधारणाओं के बावजूद कुलेश्वर महादेव की संरचना जल प्रवाह से होने वाले परिणाम जैसे क्षरण, भू-स्खलन, आर्द्रता और ताप प्रतिरोध से आजतक सुरक्षित है। संरचना स्थानीय भूरा बलुवा और काले पत्थरों से बनी हुई है। नदी की धारा इस अष्टकोणीय संरचना से टकराकर विकेन्द्रित और अभिसरित हो जाती है। प्रवाह के साथ बहने वाले रेत के घर्षण से भी ये अप्रभावित ही है। इंजीनियरिंग की ये शानदार मिसाल आस्था और धर्म को छोड़कर भी अपनी उत्कृष्टता का कायल कर देती है।
हाँ अगर मान्यताओं की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है। सावन के इस पवित्र महीने में तो श्रध्दालुओं का वहाँ तांता लगा रहता है, वैसे साल भर लोग यहाँ भगवान शंकर के दर्शन के लिए आते रहते हैं। इसके निर्माण के काल पर विवाद हो सकता है लेकिन राजिम के अन्य मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी के हैं इसलिए इसे भी उसी काल का माना जाता है। ये राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है और ये प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में मरीन इंजीनियरिंग, जियोलॉजी और कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग के अत्यंत विकसित होने का सबूत देता है। भगवान शंकर का दर्शन आपको कैसा लगा अपनी राय ज़रूर दीजिएगा। अगली बार आपको बताएँगे छठवीं शताब्दी के ईंटों से बने लक्ष्मण मंदिर के बारे में।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 कि.मी. दूर है पवित्र नगरी राजिम। यहाँ पैरी,सोंढूर और महानदी का त्रिवेणी संगम है। नदी के एक किनारे भगवान राजीवलोचन का मंदिर है और नदी के बीच में कुलेश्वर महादेव का। नदी के ठीक किनारे एक और महादेव का मंदिर जिसे मामा का मंदिर भी कहा जाता है और कुलेश्वर महादेव को भाँजे का मंदिर कहते है। ऐसी मान्यता है कि बाढ़ में जब कुलेश्वर महादेव का मंदिर डूबता था तो वहाँ से आवाज़ आती थी मामा बचाओ। इसीलिए यहाँ नाव पर मामा-भाँजे को एक साथ सवार होने नहीं दिया जाता।
खैर ये तो है आस्था और कहावतों की बात। लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि सातवीं-आठवीं शताब्दी का ये मंदिर आज भी खड़ा है मौसम को चुनौतियाँ देता हुआ। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इसी नदी पर मंदिर से कुछ ही दूरी पर नयापारा और राजिम दोनों बस्तियों को जोड़ने वाला पुल है। सन् 1971 में यातायात के लिए खोला गया ये नेहरू पुल आज खस्ताहाल होकर खतरनाक स्थिति में पहुँच गया है। आधुनिक इंजीनियरिंग का नमूना 40 साल भी नहीं टिक पाया है और उसी जलधारा के बीचों-बीच खड़ा कुलेश्वर मंदिर उस काल की स्ट्रक्चरल, जियोलॉजिकल और इंजीनियरिंग के ज्ञान का प्रमाण दे रहा है।
बरसात के दिनों में बाढ़ का पानी कई-कई दिनों मंदिर को डुबाए रखता है। हाल में तो नदी का गुस्सा कम नज़र आता है लेकिन कुछ सालों पहले जब उसे बांधों से नहीं बांधा गया था तो उसकी उफनती जलधारा क़हर बरपाती जाती थी। इसके बावजूद बाढ़ लाखों क्यूसेक पानी का दबाव अपने बेहतरीन अष्टकोणीय ढाँचे पर आसानी से झेलता आ रहा है कुलेश्वर महादेव। मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊँचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से उनकी जोड़ाई हुई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढ़ियाँ बनी हुई है। नदी की गहराई निरंतर रेत के जमाव से कम हो चुकी है इसलिए मंदिर का चबूतरा लगभग डेढ़ मीटर गहराई तक रेत में ढका हुआ माना जाता है। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है।
चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। यहाँ उस काल के भवन निर्माताओं के भू-गर्भ विज्ञान के कौशल का पता चलता है। उन्होंने लगभग 2 कि.मी. चौड़ी नदी के बीच और जहाँ देखो वहाँ तक फैले रेत के समुंदर के बीच इस मंदिर की नींव के लिए ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था। एकदम बारीक बालू से भरी नदी के बीच एक इमारत को खड़ा करना और उसे सदियों तक टिका रहने लायक बनाने के लिए की गई साइट सिलेक्शन आज के पढ़े-लिखे अत्याधुनिक निर्माण कर्ताओं के लिए आदर्श प्रस्तुत करती है।
तमाम धारणाओं-अवधारणाओं के बावजूद कुलेश्वर महादेव की संरचना जल प्रवाह से होने वाले परिणाम जैसे क्षरण, भू-स्खलन, आर्द्रता और ताप प्रतिरोध से आजतक सुरक्षित है। संरचना स्थानीय भूरा बलुवा और काले पत्थरों से बनी हुई है। नदी की धारा इस अष्टकोणीय संरचना से टकराकर विकेन्द्रित और अभिसरित हो जाती है। प्रवाह के साथ बहने वाले रेत के घर्षण से भी ये अप्रभावित ही है। इंजीनियरिंग की ये शानदार मिसाल आस्था और धर्म को छोड़कर भी अपनी उत्कृष्टता का कायल कर देती है।
हाँ अगर मान्यताओं की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है। सावन के इस पवित्र महीने में तो श्रध्दालुओं का वहाँ तांता लगा रहता है, वैसे साल भर लोग यहाँ भगवान शंकर के दर्शन के लिए आते रहते हैं। इसके निर्माण के काल पर विवाद हो सकता है लेकिन राजिम के अन्य मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी के हैं इसलिए इसे भी उसी काल का माना जाता है। ये राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है और ये प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में मरीन इंजीनियरिंग, जियोलॉजी और कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग के अत्यंत विकसित होने का सबूत देता है। भगवान शंकर का दर्शन आपको कैसा लगा अपनी राय ज़रूर दीजिएगा। अगली बार आपको बताएँगे छठवीं शताब्दी के ईंटों से बने लक्ष्मण मंदिर के बारे में।
14 comments:
वाकई इंजिनियरिंग की मिसाल है यह मंदिर। ऐसे ही अनेक मंदिर देश की विभिन्न नदियों के बीच खड़े हैं।
प्रभु का कमाल है.
वो समझने वालों के लिए इशारे करता है.
उसकी सत्ता को स्वीकारना ही होगा.
जय भोलेनाथ.
सही कहा आपने.
बालकिशन जी से सहमत हूँ.
ईश्वरीय चमत्कार न सही इंजीनियरिंग की मिसाल तो है ***आप ने सही कहा यह ईश्वरीय चमत्कार का चमत्कार नही हमारे देश की इंजीनियरिंग की मिसाल हे, जिस से पता चलता हे भारत ने अग्रेजी के सर पर तरक्की नही की, वह पहले से ही इन सब बातो मे आगे था,ऎसी मिशाले भारत मे बहुत सी हे, मुझे मान हे अपने लोगो पर हम ने पश्चिम से ज्यादा तरक्की की थी ,आप का धन्यवाद,
खैर है तो इंजिनियरिंग की मिसाल ही पर किसी ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं।
भोलेबाबा की जय।
वैसे ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं--भोलेबाबा की जय।
ऐसी मिशालें भरी पड़ी है.उन कारीगरों के हाथो को हमारा सलाम
nataaon ka bhalaa uperwala nahin neeche ke daanav kiya karte hain.
khair shraavan maah men shiv stuti aur mama bhanje ke kathanak ko punarjivit karne ke liye "god bless you" ki chahat.
" wah, its not less than a miracle"
Regards
अनिल जी, आप मेरे ब्लाग पर पधारे, इस के लिए धन्यवाद. आपके जन्म दिन पर मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें. ईश्वर आपको और आपके परिवार को वह सब कुछ दे जिस के आप अधिकारी हैं.
Gupta jee aapka aashirwaad mil gaya bus itna hi kafi hai,baki jo milna hai wo to milta rahega
Excellent article.
kamaal ki jaankaari
vishvas evm utsahvardhak
wah
hamaare Chhatis Gargh ke jitne saare Mandir aur Punya Khsetra hain unhein bhi aap ki lekhani ki jarurat hai...krupa kar aap is par dhyaan dein...Danteswari aur anek saari...Maaon ke mandir jo famous hain aur nahin bhi hain unhein jaroor aap detail ke saath post karein taaki hamein unki details aur krupa praapta ho...
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