Monday, August 18, 2008

क्यों नहीं जा रहें है पुलिस अफसर नक्सलियों के इलाके में

बस्तर में नक्सलियों का इतना आतंक है कि दर्जन भर से ज्यादा पुलिस अफसर वहां तबादला होने के बावजूद नहीं जा रहें है। महीने भर से वे गृह विभाग के तबादला आदेश के धज्जियां उड़ाने वाले अफसरों एसआई से लेकर एएसपी रैंक के अफसर शामिल है। कोई बीमार हो गया है तो कोई लंबी छुट्टी पर चला गया है, तो कुछ ने अदालत की शरण ले ली है।

सरकार चाहे जो भी दावा करे, इतना तो तय है कि बस्तर में नक्सलियों का अघोषित राज है। उनका आतंक कहें या दबदबा कि पुलिस भी उनके इलाके में जाने से घबराती है। ऐसा नहीं होता तो ट्रांसफर होने पर पुलिस अफसर तत्काल वहाँ ज्वॉइन करते। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, ट्रांसफर की पिछली लिस्ट निकले एक माह से ज्यादा समय हो रहा है, लेकिन अभी तक दर्जन भर से ज्यादा पुलिस अफसरों ने सरकार की परवाह न करते हुए वहाँ जाना ज़रूरी नहीं समझा। उन्होंने वहाँ जाने से ज्यादा अपना तबादला रूकवाना ज़रूरी समझा।

कुछ अफसर तो रिलीव होते ही अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गए हैं। कुछ मैदानी क्षेत्र से रिलीव कर दिए जाने के बावजूद बस्तर के जंगलों में जाने से अच्छा छुट्टी पर जाना ज्यादा अच्छा मानकर लंबी छुट्टी पर चले गए। पता नहीं मैदानी इलाके में अभी तक फिट रहे अफसर बस्तर का तबादला आदेश मिलते ही गंभीर रूप से बीमार कैसे हो गए ? अगर वे वाकई गंभीर रूप से बीमार हैं तो फिर उन्हें पुलिस की नौकरी में रखा ही क्यों जा रहा है ? इतना तो तय है कि वे तबादला आदेश रद्द होते ही तत्काल फिट हो जाएँगे।

सरकार के रहमो करम पर अब तक मैदानी इलाकों के बढ़िया मलाईदार थानों में पोस्टिंग का मज़ा लेने वाले कुछ अफसर बस्तर का तबादला आदेश मिलते ही सरकार के खिलाफ अदालत पहुँच गए। उन्होंने स्टे आर्डर लेकर सरकारी आदेश को ठेंगा दिखा दिया है।

इधर मैदानी इलाकों से ट्रांसफर पर बस्तर नहीं जाने वाले अफसरों के कारण उतने ही अफसर वहाँ अटक गए हैं। बस्तर से जब तक रिलीवर न आए किसी को भी रिलीव नहीं किया जाता, सो रिलीवर के इंतज़ार में वे अफसर बस्तर में अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं।
अब बताईए भला कि सरकार के आदेश की कोई सरकारी कर्मचारी उपेक्षा कर सकता है ? ऐसा करना सीधा सरकार का विरोध करना है और इतना बड़ा रिस्क सरकार के जाबाज, धाकड़, धांसू अफसर इसलिए ले रहे हैं क्योंकि जान है तो जहान है। वे मैदानी इलाकों में तो सालों जमे रह सकते हैं लेकिन नक्सल इलाके में 1 रात गुजारना भी उनके बस का नहीं है। अब बताईए भला ऐसे में जहाँ पुलिस अफसर नक्सल इलाके में नौकरी करने से डरते हों, वहाँ के नागरिकों का क्या हाल होगा ? कैसे नक्सल समस्या से मुक्ति मिलेगी ?

15 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

जिन्दा नहीं छोड़ते नक्सल
बची जान
तो लाखों पाए।
जब तक रहेगी तिकड़म
नौकरी बचाएंगे।
बस्तर क्यों जाएँगे?

सतीश पंचम said...

जान से ज्यादा कोई चीज प्यारी नहीं होती है।

Anil Kumar said...

मैदानी इलाकों में आम आदमी पुलिस को घूस देता है. बस्तर में पुलिस वाले नक्सलियों को घूस देते हैं. बस यही सब कुछ है जिसके चलते पुलिस वाले वहाँ नहीं जाना चाहते हैं. परेशानी यह है कि ऐसा करने से नक्सलवाद को बढ़ावा ही मिल रहा है. इन नक्सलियों को कौन मर भगायेगा?

बालकिशन said...

बड़ी भारी विडम्बना है.
ये सब बहुत ही दुर्भाग्यजनक और अफसोसजनक है.

36solutions said...

बडे आफीसरों में डीएसपी स्‍व.श्री भास्‍कर दीवान के शहादत के बाद किसी भी अफसर नें इतनी जांबाजी नहीं दिखाई सभी भागने व माल दबाने के चक्‍कर में मैदानी क्षेत्रों में रहकर अपराध को संरक्षण देनें व झोली भरने में लगे हैं और प्रशासक मंजीरा लेकर भजन गा रहे हैं या तत्‍व चिंतन कर रहे हैं ।

Anonymous said...

अगर वे वाकई गंभीर रूप से बीमार हैं तो फिर उन्हें पुलिस की नौकरी में रखा ही क्यों जा रहा है ?
बड़ा सही सवाल है। नौकरी मिलने से पहले तरह-तरह के वादे करने और शर्तें मानने के लिये तैयार लोग नौकरी मिलते ही, दूसरा चेहरा दिखाने लगते हैं। सच है जान किसको प्यारी नहीं होती, लेकिन उनको एक बात रखनी चाहिये कि उनको नौकरी ही अपनी जान हथेली पर रखकर दूसरों की जान बचाने के लिये दी गई है। फौज जैसा अनुशासन जिस दिन हमारी पुलिस में आ जायेगा इस देश के आधे टंटे ही खत्म हो जाएंगे।

राज भाटिय़ा said...

जान तो सब को प्यारी होती हे, लेकिन जान तो कही भी जा सकती हे, फ़िर डर केसा, ओर जो तुफ़ान से का रुख बदने की हिम्मत रखते हो , वो कही भी जाने से नही डरते, डरते वो हे जो पेसा बनाना चाहते हे, नेताओ की चम्म्चा गिरी करते हे,नक्सल वाद एक दिन मे खत्म हो सकता हे बस यह सुअर नेता बीच मे ना आये तो,
आप ने इस विषय पर लिख कर बहुत अच्छा किया, हमे भी थोडा पत्ता चला, धन्यवाद

Anonymous said...

sach to ye hai ki police ki jimmedari Law and Order handle karne ki hai. and Law and order part of indian constitution hai jo ki pura ka pura Great Britain ka mara hua hai. now jo legacy angrejon ne policewalon ki di hai means, indian citizens ko ghulamon ki tarah treat karo.. chal raha hai. Naxalites yehi draw back ko exploite kar apne pair pasar chooke hain. Mudda atyant gambhir hai. wahan unki man marjee nahi chalegi. media me aaya koi casefir dekho inki furt aanan fanan pakad laye kuchh badmash type ke aur kuchh shariff kism ke log jinka koi vasta nahi rahta case se, fir story ban jati hai media ko...DEKHIE KIS TARAH SIDHA SADHA INSAAN BAN GAYA HAIVAN,policewale bhi maidan me baith kar jan gaye hain ki kaise politicians ko khush rakhna sath hi Media ko bhee. Dono ka kam ho raha hai Janata gayi bhaad me aur apne bundle gin rahen hai.
Ab naya Sahab aaya usne kick mara pahunch gaye Bastar.
fir , pahunch gaye mantriji ki sharan me nahi jama to court se stay order lekar naye sahab ke khiskne ki raah dekhenge, ya fir ram ban hathiyar Medical Unfit Certificate jisko unka department bhee challengenahi kar sakta.
jab police recruitment me tribal quota hota hai unko triabl area me kyon nahi post karte? woh to by birth jankar rahten hai in situations ka, lekin woh bhi naukari milne ke baad apne ko apne samaaj se juda karleten hain.
APKA LIKHA HAQIQAT HAI.
yeh aisa chalte hi rahega.

ताऊ रामपुरिया said...

आप बहुत बेबाकी से समस्या उठा रहे हैं !
और ये पुरी समस्या ही दुर्भाग्यपूर्ण है ! और
अफसोसजनक भी ! आपके लेखन के लिए
आपको धन्यवाद और शुभकामनाएं भी !

राजीव रंजन प्रसाद said...

हकीकत को इतनी बेबाकी से प्रस्तुत करने के लिये आप बधाई के पात्र हैं।

admin said...

अरे भई, उन्हें भी अपनी जान प्यारी है।

seema gupta said...

अब बताईए भला ऐसे में जहाँ पुलिस अफसर नक्सल इलाके में नौकरी करने से डरते हों, वहाँ के नागरिकों का क्या हाल होगा ? कैसे नक्सल समस्या से मुक्ति मिलेगी ?
" ya really very critical issue which require a deep thought to be given"

Regards

Smart Indian said...

बेहद शर्मनाक स्थिति है यह. If these officers are so scared, how can they be trusted for saving the civilian lives from criminals?

L.Goswami said...

इस डर के साये में सालों गुजरे हैं हमने.पुलिस बेचारी क्या करे है वह भी इन्सान ही

डॉ .अनुराग said...

अब भैय्या जान है तो जहान है