आए दिन चौक-चौराहों से गुजरती लाल-पीली बत्ती वाली कारों में बैठे लोगों को मैं जबरिया रोके गए ट्रैफिक में फंसे लोगों के साथ खड़ा-खड़ा गालियाँ ही बकता रहा हूँ। ऐसा ट्रैफिक में फंसने वाले प्राय: सभी लोग करते हैं पर कल शाम एक पीली बत्ती वाले पर मुझे गुस्सा नहीं आया बल्कि वो मुझे अच्छा लगा। ऐसा नहीं कि उसने कोई अच्छा काम किया था बल्कि इसलिए कि उसके लिए साफ हुए रास्ते में घुसकर मैं निकल आया।
भला हो पीली बत्ती लगी नई चमचमाती काली स्कॉर्पियो में सवार बड़े साहब का। गर वो नहीं आते तो पता नहीं और कितने घंटे मुझे फंसा रहना पड़ता नेशनल हाईवे नं-6 में लगे जाम में। मैं 4 दिनों की छुट्टियाँ मनाकर दोपहर को खाना खाकर नागपुर से निकला था। अंदाज़ था कि अंधेरा होने से पहले महाराष्ट्र की सीमा पार कर छत्तीसगढ़ पहुँच जाऊँगा और रात 8 बजे तक रायपुर। सब कुछ समय से चल रहा था अचानक सौंदड़ गाँव से निकलते ही ट्रकों की लंबी कतार नज़र आई। मैं बिना रूके गाड़ी बढ़ाते जा रहा था आगे कुछ ट्रक वालों ने हाथ दिया और कहा पुल पर एक ट्रक एक्सल टूटने से फेल हो गया है। इसलिए पूरा जाम लगा हुआ है। मैंने गाड़ी किनारे की, तभी साथ में बैठे भांजे निलेश ने कहा मामा छोटी गाड़ियाँ निकल रही है, आप भी निकाल लो वर्ना फंस जाएँगे। मैंने उसे घूरा और कहा इतने सारे लोग लाइन में हैं क्या मूर्ख हैं ? और मैंने 2 ट्रकों के बीच खाली जगह में गाड़ी लगा दी।
तब तक उधर से ट्रक के बाजू से निकलकर एक ट्रक ने दूसरी तरफ वालों के लिए रास्ता खोल दिया। अब उस तरफ से गाड़ियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था। तभी इधर से भी किसी ने गाड़ी अड़ा दी। और रास्ता दोनों तरफ से बंद था। लाइन लंबी होती चली गई थी। मिनटों का इंतज़ार 1 घंटे से ज्यादा हो गया था। इस बीच मेरा भांजा नीचे उतरा और बोला आता हूँ देखकर, मैंने भी मना नहीं किया। थोड़ी देर बाद वो लौटा और बोला मामा गाड़ी आगे निकालो और जहाँ तक जा सकती है ले चलो ट्रैफिक खुल सकता है और अपन अपनी गाड़ी ट्रकों के बीच में घुसाके निकल सकते हैं। मैंने उसे फिर डांटा। उसने कहा हरीशचंद्र बनोगे मामा तो फंसे रह जाओगे घंटों। तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार 3 पुलिसवाले तेज़ी से आए और पुल की तरफ बढ़ गए। भांजे ने कहा मामा इनके पीछे लग लो तो निकल जाएँगे नहीं तो फंसे रह जाएँगे रात भर। पता नहीं क्या सोचकर मैंने भी गाड़ी बढ़ा दी मेरे पीछे और कुछ गाड़ियां चली आई और रास्ता पूरा पैक हो गया। किनारे-किनारे निकलते समय ट्रक वाले रूकने के लिए शोर मचाते रहे। आगे जाकर जाम कर देगा यही सोच रहे होंगे शायद। पुल के एकदम करीब रास्ते में रूकावट बनकर खड़ी एक ट्रक के पीछे मैंने गाड़ी लगा दी। तीनों पुलिस वालों के पीछे मेरा भांजा उतरकर भागा और उतनी ही तेज़ी से वापस आया। उसने कहा- मामा उधर कोई पीली बत्ती वाली कार फंसी है उसको निकालने का जुगाड़ कर रहे हैं पुलिसवाले। वो उस तरफ का ट्रैफिक रोककर कार निकालेंगे आप जैसे ये ट्रक घुसे आप भी गाड़ी घुसा देना तभी निकल पाएँगे। पुलिस वाले आए और ट्रक के पीछे लंबी कतार देखकर सबको पीछे हटने के लिए कहने लगे। मेरा भांजा भी उनके साथ शामिल हुआ और उसने भी उनके सुर में सुर मिलाकर मेरी कार के पीछे की गाड़ियों को थोड़ा-थोड़ा पीछे खसकने के लिए कहा। इस बीच जगह बनती देख सामने वाले ट्रक ने फेल खड़े ट्रक के किनारे से गाड़ी बढ़ा दी।
जैसे ही ट्रक पुल के उस ओर निकला पीली बत्ती वाली स्कॉपियो आगे खिसकी ही थी कि अचानक मेरी कार सामने आ गई। सामने वाला ट्रक धीरे-धीरे सरकते-सरकते आगे बढ़ रहा था और उसके पीछे-पीछे मैं। अचानक स्कॉर्पियो की पिछली खिड़की का काँच नीचे सरका। उसमें सफेद खरगोश जैसा खुबसूरत और मासूम युवक महंगा काला चश्मा ऑंखों पर चढ़ाए बैठा था। जाहिर था उसे अपने लिए साफ कराए गए ट्रैफिक में दूसरे का घुसना पसंद नहीं आया था और वो नाराज़ होकर घूरने की मुद्रा में आ गया था। चश्मा शायद इसलिए लगाया था कि खरगोश जैसा मुलायम और मासूम चेहरा किसी को घूरता भी तो उसे तरस ही आता। तकरीबन यही हाल मेरा भी था। खरगोश को अपने चेहरे को शेर जैसा खूंखार बनाने की कोशिश करते देख मुझे हंसी आ गई। मैंने उसके तरफ देखा और मुस्कुरा दिया। शायद वो समझ गया था कि मैं उसे चिढ़ा रहा हूँ।बड़ी मुश्किल से उसने अपने भीचे हुए होंठो को थोड़ा-सा फैलाया। तब तक मेरी गाड़ी आधी पार हो चुकी थी और उसकी गाड़ी आगे सरक रही थी। जाने क्या सूझी मुझको और मैने हाथ हिलाकर उससे विदा ली। गुस्से से लाल हो चुके उस अफसर ने मजबूरी में हाथ में हाथ हिलाया और काँच ऊपर उठा लिया।
मैंने रियर व्यू मिरर में देखा उसकी गाड़ी नहीं दिख रही थी। मैं समझ गया कि साहब निकल लिए और उनके पीछे फिर जाम होना तय था। कई किलोमीटर तक सड़क के किनारे ट्रकों की लाइन लगी हुई थी। कुछ ट्रक वालों ने हाथ हिलाकर ईशारे से पूछा क्या ट्रैफिक खुल गया ? इसका जवाब शायद मेरे पास नहीं था। मैं लगभग पौने 2 घंटा जाम में फंसकर लेट हो चुका था। गाड़ी अब फर्राटे भर रही थी। तभी भांजे ने कहा वो तो अच्छा हुआ मामा वो अफसर आ गया वरना फंसे रहते। पता नहीं क्यों मुझे उस पीली बत्ती वाले पर गुस्सा नहीं आया। उसके खरगोश जैसी मासूमियत पर जबरन लादे गए रौब से भी मैं नहीं चिढ़ा। मुझे वो अच्छा लगा शायद इसलिए कि मैं उसके कारण जाम से निकल आया था। छोड़ आया था पता नहीं कितने ट्रक वालों को फंसे हुए जिनकी मंजिल मुझसे बहुत ज्यादा दूर थी।
7 comments:
याद आया, जब भी छुट्टी पर घर जाते थे आधा समय इन्हीं जामों में झुंझलाते थे. ट्रक वाले सबसे अनुशासित होते थे और ट्राफिक को संभाल कर निकाम्मी पुलिस का अधिकाँश काम वही करते थे. कार चलाने वाले तो गैर-जिम्मेदार होते ही थे, सरकारी बसों के ड्राईवर उनसे कहीं आगे थे.
anil ji,
chhattisgarh ke kalamkaron me joonun nahin ke baraabar dikhta hai,har koi apni kalam aazaad nahin karaa sakta. aap luckky hai. aazaad kalam se likhte rahen, thanks.
वाह अनिल जी बढिया किस्सा सुनाया अपनी
यात्रा समाप्ति का ! हम तो सोचे बैठे थे आप
छुट्टियों से लौटकर शुरू से आख़िर तक का
अनुभव हम लोगो से साझा करेंगे ! पर आपने
समाप्ति से शुरू किया है ! शायद अब फ्लैश बैक
में बाक़ी कहानी चलेगी !:)
पर वाकई साहब आपने हकीकत बयान की है !
बताइये एक आम इंसान क्या करे ? यहाँ तो -
"अफ्सरम माई बापम देवा अफसरम माई बापम !
नही जी .....आप को अभी ओर ऐसे लोग मिलेगे इस वर्दी में .....इंसान अच्छे हर जगह होते है
बढिया किस्सा !!
अनिल जी, उस पीली बत्ती वाले को मारो गोली, भाई जिस आदमी ने आप को निकाला उसे कीसी ने भी बधाई नही दी असल मे इस सब बातो का हीरो तो आप का भानजा हे, भई मे उसे बधाई देत हू. ओर इस लेख का हीरो भी बही हे, धन्यवाद सुन्दर लेख के लिये
एक अच्छा वाक्या पढने को मिला। और राज जी ठीक कहा है। भांजे की पीठ थपथपानी चाहिए।
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