Monday, September 1, 2008

चाटुकारिता में पत्रकारों को मात दे दी नेताओं ने


हैरान हैं न आप सब। लेकिन ये सच है और ऐसा हुआ इतवार को अंग्रेजी दैनिक हितवाद के नए भवन के लोकार्पण समारोह में। सारे अतिथि नेता जब बोले तो ऐसा लगा कि देश में हितवाद के अलावा सच्चाई की राह पर चलने वाला और कोई अख़बार है ही नहीं। जिस शिद्दत से नेता हितवाद की तारीफ कर रहे थे, ऐसा लग रहा था कि इतनी तारीफ तो पत्रकार भी नेताओं की नहीं करते।

अंग्रेजी दैनिक हितवाद छत्तीसगढ़ में 8 साल पूरे कर रहा है और इन 8 सालों में उसने अपना भवन और अपनी प्रिंटिंग युनिट लगा ली। उससे पहले वो किराए के भवन में चल रहा था और दूसरे अख़बार की मशीन पर छप रहा था। सो हितवाद ने अपने लिए ऐतिहासिक इस समारोह को भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ-साथ कई बार केन्द्रीय मंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल को भी बुलाया। वनमंत्री बृजमोहन अग्रवाल और लोक स्वास्थ्य मंत्री केदार कश्यप भी विशिष्ट अतिथि थे। कुछ मंत्री पहुँच नहीं पाए। वैसे अतिथियों की लिस्ट काफी लंबी थी।

अपने अख़बार हितवाद की तारीफ करने में बनवारी लाल पुरोहित ने कोई कसर नहीं छोड़ी। ये उनका कर्तव्य भी था और अधिकार भी। लेकिन उसके बाद जो हितवाद की तारीफ का सिलसिला शुरू हुआ वो मक्खन बाजी की प्रतियोगिता जीतने की होड़ भी नज़र आई। हालाकि वनमंत्री बृजमोहन अग्रवाल बोलते-बोलते अख़बार को सेवा नहीं व्यापार कहने से नहीं चुके, लेकिन उसके साथ ही तत्काल ये भी कह दिया कि हितवाद एक अपवाद है।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण षुक्ल के तो हितवाद के परिवार से नागपुर से ही संबंध रहे हैं। उनके पिता स्वर्गीय पंडित रविशंकर शुक्ल सीपी एण्ड बरार के मुख्यमंत्री रहे हैं। इस बात का उल्लेख पुरोहित जी ने किया, तो विद्याचरण शुक्ल अपने पुराने संबंधों की खातिर हितवाद को ईमानदारी की राह पर चलने वाला एकमात्र अख़बार बता दिया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों के खिलाफ जनता की आवाज़ उठाने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वो आज भी जारी है। धन्य हो शुक्ल जी। शुक्ल जी और तारीफ करते लेकिन उन्हें कहीं जाना था, सो मुख्यमंत्री से पहले बोलकर और इस बात के लिए क्षमा माँगकर अपने चेले-चपाटे के साथ निकल लिए।

लोक स्वास्थ्य मंत्री केदार कश्यप ने विद्याचरण शुक्ल को हितवाद की तारीफ करने में भरपूर टक्कर दी। उन्होंने तो यहाँ तक कह डाला कि वे अपनी अंग्रेजी सुधारने के लिए नियमित रूप से हितवाद पढ़ते हैं। वाह! ग़जब कर दिया गुरू। टाईम्स वाले हो सकता है अब हितवाद पढ़कर अंग्रेजी लिखें। तेज तर्रार वनमंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने जब बोलना शुरू किया, तो ऐसा ज़रूर लगा कि अब हितवाद पुराण खत्म हुआ। उन्होंने पत्रकार और पत्रकारिता पर सीधे वार किया। उन्होंने कहा निगेटिव ख़बरें छापकर अख़बार समाज में निराशा फैला रहा है। सिर्फ स्याह पक्ष ही नहीं होता छापने के लिए, उजला पक्ष भी छापा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाज़ार वाद के इस दौर में अख़बार अब सेवा का माध्यम नहीं रहे, बल्कि विशुध्द रूप से व्यावसाय में बदल गए हैं। यहाँ तक ठीक था मगर ये क्या ? बृजमोहन जी भी अचानक कल्टी मार गए। वो भी चल पड़े पूर्व वक्ताओं की राह पर। तत्काल कहा कि हितवाद इसका अपवाद है। हितवाद हमेशा ईमानदारी से सच्चाई की राह पर चलता रहा है। आयें! ये क्या हो गया भैय्या। पहले तो कानों पे विश्वास ही नहीं हुआ, फिर बृजमोहन जी को उसी स्पीड से हितवाद पुराण वाचते देखा तो समझ में आया कि वे मक्खनबाजी में अपने से जूनियर केदार कश्यप से पीछे नहीं रहना चाहते थे।

आखिर में बोले डॉ. साहब! यानि मुख्यमंत्री रमन सिंह। उनको बुलाने के लिए जब उद्धोषक ने बोलना शुरू किया तो ऐसा लगा कि उनकी पार्टी का, उन्हीं के गुट का और उन्हीं के परिवार का सदस्य बोल रहा हो। आ.. हा .. हा ! देश के सबसे सफल मुख्यमंत्री, यहाँ तक तो ठीक था देश के सबसे खुबसूरत मुख्यमंत्री ! अब बताईए भला, है न रिकॉर्ड तोड़ मक्खनबाजी। खैर मुख्यमंत्री भी भला कैसे हार मान लेते पत्रकारों से, और अपने से पहले मक्खनबाजी में रिकॉर्ड बना चुके वक्ताओं से। वे तो नेता ही नहीं डॉक्टर भी हैं और समय की नब्ज़ अच्छी तरह जानते हैं। सो उन्होंने भी हितवाद को देश का एकमात्र ईमानदार और सच्चा अख़बार साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
और क्या बताएँ आपको हितवाद पुराण। एक से बढ़कर एक महारथी, पूरी दमदारी और ईमानदारी से मक्खनबाजी में उन पत्रकारों को बीट कर गए, जो रोज उनको सरकार बढ़िया चल रही है कहकर मक्खन लगाने में वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके हैं। हालाकि कुछ असंतुष्ट टाईप के पत्रकारों ने, जिनके हाथ थोड़े छोटे हैं और जिनके पास मक्खन थोड़ा कम हैं, मुझसे प्रोटेस्ट ज़रूर किया। मैं भी क्या कर सकता था ? सुनना और वो भी झूठ सुनना, अब लगता है अपनी डयूटी में शामिल हो गया है। नहीं जाओ तो विरोधी ठहरा दिए जाते हैं और जाओ तो चुप रहा नहीं जाता। अब लिख मारा है ब्लॉग में अगर किसी ने पढ़ लिया तो वो हरिराम (शोले फिल्म के जेलर का ख़बरी) ज़रूर हितवाद वालों को बता देगा। थोड़ी बहुत गुंजाइश एमरजेंसी में नौकरी की बची होगी तो वो भी खत्म। अब तो सिर्फ यही कहा जा सकता है जाने भी दो यारों।

18 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

चाटुकारिता आज कल के कथित नेताओं का सर्वोपरि गुण है। और ये नेता भी नहीं हैं।

Arvind Mishra said...

हितवाद पुराण का अछा आख्यान !

आशीष कुमार 'अंशु' said...

चाटूकारिता का लक्ष्य महान

इससे सधते बहूत से काम

जय श्री राम जय जय श्री राम

ताऊ रामपुरिया said...

चाटुकारिता पुराण बहुत सुंदर बन पडा है और हरिराम की भी आपने अच्छी याद दिलाई ! बहुत बढिया अनिलजी !

महेन्द्र मिश्र said...

छोटा नेता पहले चाटुकारिता का भरपूर पाठ पढ़ते है फ़िर जब बड़े नेता बन जाते है तो पत्रकार तो क्या बड़े बडो को धूल चटाने लगते है . बिंदास सटीक पोस्ट के लिए आभार

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही अच्छा लगा आप का चाटुकारिता पुराण, ओर इसी चाटुकारिता ने देश का सत्यनाश कर दिया हे, धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey said...

खैर, यह चाटुकारिता जैसी भी हो; पुरोहित जी का अखबार मुझे कभी जमा नहीं।

Unknown said...

अरे दादा, चुनाव की बेला नज़दीक है अखबार को मक्खन लगाने का मौका कौन छोड़ेगा, पता नहीं कब काम आ जाये, किसी स्टिंग में या किसी "खास" विज्ञापन को "खास" हाथों में पहुँचाने में… चमचागिरी तो इस देश के लोगों के खून में रची-बसी है…

Anonymous said...

दो छुट्भईयों को गुरू बनने का शौक, दोनो ने कान में मंत्र फूँक लिया, नतीजा :- पहले के पास कोई आया तो दूसरा पहले को गुरू बोलने लगा, दूसरे के पास कोई आया तो पहला दूसरे को गुरू बोलने लगा, . . . फिर क्या दोनो गुरू और शुरू !

श्रीकांत पाराशर said...

akhbar industry aur rajniti aajkal bhai bhai hain. jahan aisa nahin hai vahan dono paresan hain.chamchagiri karenge to jyada chhapenge. jyada chhapenge to akhbar ko jyada advt milenge. aap to sab jante hi hain anilji, aapse kya chhipa hai.

PREETI BARTHWAL said...

नेताओं को एक तो बोलने की आदत होती चाहे उसके बारे में जानते हो या न, अजी बोलेंगे नही तो वोट कैसे मांगेगे,और दूसरी बात भई जिसने इत्ते सम्मान के साथ भाषण देने को बुलाया है तो उन्ही की तो तारीफ करेंगे, रहा सवाल जनता का तो वो तो भोली है सुनेगी,लड्डू खायेगी और घर चली जाएगी।

PREETI BARTHWAL said...
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Nitish Raj said...

वैसे तो अनिल जी ये बहुत ही पुरानी प्रथा है कि इस हाथ ले उस हाथ दे। अब पेपर की ताऱीफ की जा चुकी है एक काम तो हो चुका और दूसरा दिसंबर में ही तो चुनाव हैं ना छत्तीसगढ़ में, तो पेपर को मक्खन तो लगाना है ही।
पर बात तो सच है पत्रकारों से कोई इस मामले में कैसे आगे निकल सकता है। लिख रहा हूं इस पर जिस दिन पूरा होगा आपकी खिदमत में पेश करूंगा।

Anonymous said...

kal tha aaj hai aur kal bhi rahega

Anonymous said...

Anil Ji vaise to chamchagiri ka copyright netao.n ke pass hi hai, bat alag hai ki aaj-kal kuchh akhbar bhi is rah par hai.n

Bahut achchha lekh hai.

Mai bhi chhttisgadiya hu.n.., roji-roti ke khatir abhi Banglore me.n rahna ho raha hai

Arun Arora said...

निहायत गलत तरीके से आप एक अखबार की बेईज्जती खराब कर रहे है आपको शर्म आनी चाहिये , जब अगले ने उपर साफ़ साफ़ बडे बडे अक्षरो मे लिख रखा है " हितवाद " तो क्या ये आपके हित के लिये काम करेगे ? सीधी सी बात है ये अपने हित के लिये काम करेगे , अब अगर ये अपने हित के लिये ये दोनो सरकार और पत्रकार मिल कर काम कर रहे है तो आपको आपत्तॊ नही होनी चाहिये जी
आपने अभी जब सोनिया जी चीन गई थी , तब भारतीय आकाशवाणी से समाचार नही सुने थे ? उनमे साफ़ साफ़ कहा गया था दोनो देश के नेताओ ने आपसी हितो के बारे मे विचार विमर्श किया . अब अगर आप इसे देश के बारे मे की गई बात समझ बैठे तो गलती किस की ? :)

दीपक said...

बेबाक लेखन महोदय !! आज देल खुश क दिया आपने ।"ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर " की तर्ज पर लिखे इस लेख के लिये मेरा प्रणाम स्वीकार करे !

उमेश कुमार said...

एक पत्र अनिलपुसदकर जी के नाम
अनिल जी आप जब लिख रहे है तो कम से कम समझदारी भरा कुछ लिखे जिससे लोगो को बैचारिक स्तर पर आपको समझा जा सके की आप पत्रकार है।आप के दोनो बिचार किसी स्तर के नही है।आपके ब्लाग मे जितनी भी टिप्पणी आई है वे सब के सब तोगडिया जी के समर्थन मे है। बहुमत आपके खिलाफ़ है।आपने अपनी सफ़ाई मे लिखा है लोगो ने पूरा पढे बिना टिप्पणी कर दी है लेकिन मेरा मानना है की आप स्वयं अपना लिखा फ़िर से पढें जिससे आपको सोचने को मजबूर होना पढे।मनावता के लिय भी लोग बात करे तो आप जैसे उन्हे "खिसका" कह देते है।
दूसरा लेख भी आपका स्तरीय नही है जहां पर आपने पत्रकारो को नेताओ से ज्यादा चाटुकार बता रहे है। आप पूरे हिन्दुस्तान को देखे की आज पत्रकारो की भूमिका पर चर्चा की जा रही है।जनता पत्रकारो को सन्देह की दृष्टि से देख रही है।आखिर इसका जिम्मेदार कौन है।आप जैसे लोग या वो सेठ जो हर धन्धे के साथ -साथ अखबार के मालिक है।आज कौन पत्रकार है जो करोडपति है लेकिन आपका मालिक जरूर करोडपति है आप गर्व करते है की आप उनके नौकर है बहस मे यह बात सामने आरही है की अब मीडिया की भूमिका बदल गई है अब कोई मिशन नही है बाजारवाद हावी है।जब सभी बाजरवाद के चपेट मे है तब पत्रकार कैसे अछूते रह जाएगें।हर पत्रकार द्सरे पत्रकार को दोयम दर्जे का समझता है। जिसे मौका मिला वह सत्ता की दलाली करने से नही चूका ,मेरा मानना है की अगर आप पापी नही हो तभी दूसरे पर पत्थर उछालने का अधिकार रखते है।