मुस्लिम अलगाववादियों या आतंकवादियों ने जिस तरह दिल्ली के बम फूटने से पहले मीडिया को सूचना देकर कहा जो करना है करलो उससे ये नहीं लगा कि मुस्लिम आंतकवादी बहादूर है बल्कि ये लगा कि हिन्दू .... ू है या डरपोक है।
अब अगर हिन्दूओं को ..... ू कहा जाये या डरपोक या फट्टू तो बहूत से लोगों को नाराजगी हो जायेगी। लेकिन कोई हमें हमारे ही घर में मारे, मारने से पहले कहे कि मारूंगा, और मारने के बाद कहा कि मार दिया जो करना है कर ले तो क्या इसे सहनशीलता कहना उचित होगा ? क्या सांप्रदायिक सौहाद्र बनाये रखने के बहाने अपने लोगों को मारने वालों के खिलाफ कुछ भी न कहना ही धर्म निरपेक्षता होगी? क्या अपने धर्म के लोगों पर कहर बरपाने वालों को मुॅह तोड़ जवाब देने का आव्हान करना सांप्रदायिाकता होगी।
बहुत से जलते हुए सवालों में झूलस कर खाक हो गया है हिन्दुओं के भीतर का साहस। अन्याय से लड़ने का साहस, अधर्म से लड़ने का साहस, धर्म से लड़ने का साहस या मानवता की रक्षा के लड़ने का साहस। सब कुछ एक फर्जी और छद्म शब्द धर्मनिरपेक्षता के जाल में फंस कर रह गया है। इस जाल को बुनने वाले है कथित बुध्दजीवी, अल्पसंख्यकों की रक्षा का ठेका लेने वाले नेता, विदेशी सहायता पर गुलछर्रे लड़ाने वाले एनजीओ, कुछ कथित मानवाधिकारवादी और कुछ हमारे भाई बंधू पत्रकार। इन लोगों के बुने जाल में हिन्दू बुरी तरह उलझ कर रह गया है क्योंकि ये जाल उसी को टारगेट कर बुना गया है।
इस जाल में से निकल भागने के लिये कई सूरक्षा द्वार बनाये गये है अल्पसंख्यकों के लिये। इतने कि वे सैकड़ों हिन्दुओं को मार दे तो भी उनके खिलाफ बोलने वाले हिन्दुओं की आवाज उसके गले से बाहर निकलने के पहले ही अल्पसंख्यक सूरक्षा द्वार से निकलकर जाल के पीछे सुरक्षित हो जाते है। और हिन्दू जब तक जागता है, इकट्ठा हो पाता है उसके भीतर का साहस जोर मारता है, वो जैसे को तैसा पॉलिसी एडाप्ट करने की सोचता है, तब तक छद्म धर्मनिरपेक्षता का जाल बुनने वाली जहरीली मकड़ियां हिन्दूओं के दिमाग को अपने सवालों के जाल में जकड़ देती है। फिर कुछ नजर नहीं आता हिन्दू को और वो खामोश बैठ जाता है। उसके सामने मीडिया, कथित कुछ मानवाधिकारवादी, फर्जी एनजीओ और अल्पसंख्यकों के लठैत नेता हिन्दू धर्म की सहिष्णुता का सालों पुराना काई लगा फर्श बिछा देते है। उसपर हिन्दू रपटता ही चला जाता है । कभी धर्म की व्याख्या तो कभी अगले जन्म की कल्पना, कभी इस जन्म के पाप का फल, और पाप के फल का प्रकोप का डर उसे उठने ही नहीं देता।
और जब फिर कभी धमाके होते है तो हड़बड़ाकर उठने वाले हिन्दूओं के पैर के नीचे परंपराओं और धर्मनिरपेक्षता के कंचे फैला दिये जाते है। और हिन्दू खड़ा ही नहीं हो पाता है। बार-बार इस भ्रमजाल, मायाजाल में फंसकर गिरने वाला हिन्दू इतना चोटील हो चुका है कि वो अब गिरने के डर से खड़ा होने में भी डरने लगा है। दूसरें शब्दाें में कहा जाये तो वो ..... ू हो गया है। कोई भी आता है और उसे मंदिर के घंटे के जैसे बजाकर चला जाता है। यही वाक्या किसी दूसरे कौम के साथ हो जाये तो आसमान फट जाता है, धर्म खतरे में आ जाता है और तो और रोम के भी घंटे बज जाते है। उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणनानंद की हत्या हुई तो कुछ नहीं, सब चलता है। वो अपराध है और जब दूसरे धर्म के कुछ स्वामियों पर हमले हुए तो सारे देश में हंगामा मच गया है, हिन्दू सांप्रदायिक हो गए। सबसे बड़े स्वामी ने अपने भारत में बैठे लोकल एजेंट से बात कर चिंता जाहिर कर दी। तो सेवा करने वाले मानवतावादी धर्म के उस सबसे बड़े घंटा बजाने वाले को हिन्दूओं के अकारण मारे जाने में पाप क्यों नजर नहीं आता। क्या हिंदू का मरना सामान्य अपराध है और अल्पसंख्यकों का मरना ही सांप्रदायिक हिंसा है।
दरअसल ये दो शब्द देश में दोहरे मापदंड पैदा करने के लिये इस्तेमाल किये जा रहे है। धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता शब्द हिन्दूओं को खस्सी करने वाला साधन बन गया है और इसी को अल्पसंख्यक और उनके हितैषी अपने लिये सुरक्षाकवच की तरह इस्तेमाल कर रहे है। लेकिन उन्हें सोचना चाहिये कि हिन्दूओं की सहनशक्ति की भी सीमा है। उसके सब्र का बांध जिस दिन टूटेगा वो सबको बहा ले जायेगा। इसलिये बार-बार उसे मारकर, उसे मारने की जिम्मेदारी कबूल करने की बहादूरी दिखाने वाले लोगों से और अपने कथित हितैषिओं से, अल्पसंख्यकों को खुद अलग कर लेना चाहिये ताकि धीरे-धीरे पनप रहे आक्रोश के ज्वालामुखी के फटते समय वे खुद को अलग थलग बताकर बच सके। समय आ गया है जब हिन्दू को .... ू समझने वाले लोगों को ये समझ लेना चाहिये कि हिन्दू का मतलब डरपोक ही नहीं होता।
23 comments:
aapki sbhi baaten sahi hain lekin swaal yeh hai ki in sabhi baato ko nitinirdhark bhi to jaane......
hinduo ke leader bhi to samjhen
अच्छा लगा पढ़ कर.
वैसे हम हैं तो च... वरना हजार साल न तो गुलाम रहते न ही उस पर गर्व करते. न ही अपनी भाषा का दिन मनाते.
यह तिलमिलाहट हमें भी हो रही है। :(
very true.
कड़वा सच तो यही है कि आजकल हिन्दू …… बनकर रह गया है, सेकुलरवादी और दिल्ली-मुम्बई में बैठे हुए बुद्धिजीवी हिन्दुओं को छक्का बनाने पर तुले हुए हैं, बची-खुची कसर टीवी ने पूरी कर दी है, जिसने आम इन्सान को समाज से काटकर रख दिया है, न कोई मेलजोल, न कोई सामाजिक क्रियाकलाप, कहाँ से आयेगी एकता और जागरूकता, फ़िर कांग्रेसी और वामपंथी तो हैं ही भारत की संस्कृति को मटियामेट करने को कटिबद्ध, क्या कहने… वैसे एक बात आपने सही कही कि "एक दिन सहनशक्ति का बाँध टूटेगा और सबको बहा ले जायेगा…" शायद उसी दिन का इन्तज़ार कर रहे हैं ये सेकुलर…
अनिल भाई
हम फट्टू थे, हम फट्टू हें और फट्टू ही रहेंगे........
बिल्कुल सही ....
आपका चिंतन सही है ! और बड़ी बैचैनी और तिलमिलाहट
महसूस हो रही है ! मुझे क्या लिखना चाहिए ? मैं अपने
आपको व्यक्त नही कर पा रहा हूँ !
Dear Anil,
First time reading your blog.. After a long time ( After Bhaskar )come across with such a wright Pen . .
Anil Jee NEED ONLY POLITICAL WILL rest can be taken care ..
अनिल जी, सही और खरी बात लिखी है आपने।
''उसके सामने मीडिया, कथित कुछ मानवाधिकारवादी, फर्जी एनजीओ और अल्पसंख्यकों के लठैत नेता हिन्दू धर्म की सहिष्णुता का सालों पुराना काई लगा फर्श बिछा देते है। उसपर हिन्दू रपटता ही चला जाता है । ''
पूरी तरह से सहमत। हिन्दू भले ही रपटते चले जाएं लेकिन बिछानेवालों के लिए बड़े फायदे का होता है यह फर्श।
अनिल जी बहुत अच्छा लिखा जब से बांध टुटेगां उस दिन इन के रक्षक भी उस बाड मे मारे जायेगे, ओर वो दिन ज्यादा दुर नही...
धन्यवाद
aapki baat sahi hai.
अनिल जी !!
बंदुक उठा कर लोगो को भुनने वाले और अपने को जिहादी कहने वाले ये तो मुर्ख है ही !!पर हम और आप मुर्ख नही इसिलिये यह मुद्दा हिंदु और मुस्लीम का नही है !! अब भारत मे सारे धर्म को मिटाकर एक धर्म होना चाहिये वह है भारतीयता !! जो भारत के पक्ष मे है वो यहा रहे जो विपक्ष मे जा रहा हो उसे लात मारो और बाहर निकाल फ़ेको !!
Beshak....
Sahi kaha aapne.....
फिलहाल सुन्न हूँ....कई बार सोचता हूँ जब इस धरती पर पहल पहल आदम ओर हव्वा आए वो किस मजहब के थे ?आदमी को धर्म की क्या जरुरत है ?उस नन्हे बच्चे को जो दिल्ली विस्फोट में मारा गया क्या मालूम था की आतंकवाद किसे कहते है ?
अब क्या कहूं मैं. सब कुछ तो आपने कह दिया. एक ब्लाग पर एक अल्पसंख्यक महोदया तो यहाँ तक कह रही हैं कि इंडियन मुजाहिदीन कुछ हिन्दुओ का संगठन है और ऐसी वारदाते करके वह इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम कर रहे हैं. सब कुछ कह डाला उन्होंने पर दिल्ली में मरने वालों के लिए सहानुभूति का एक भी शब्द भी उनकी कलम से नहीं निकला. ब्लाग पर मोडरेशन लगा रखा है. हमने जब यह कहा कि अमरनाथ यात्रा पर जरा सी जमीन भी नहीं दे पाये हिंदू यात्रियों को तो उन्होंने हमारी पोस्ट नहीं छापी. बदले में एक पोस्ट और ठोक दी कि कुछ हिंदू पानी पी-कर मुसलमानों को ही कोसते रहते हैं. हम हिंदू 'पूरी कौम को बदनाम मत करो' यही चिल्लाते रहते हैं. पर जरा सी बात पर पूरी हिंदू कौम को गाली देने वालों की लाइन लग जाती है. और इस गाली देने में हिन्दुओ की संख्या ज्यादा होती है.
बात तो सही लिखे हो साहेब
चिंतन में दम है ..बेगुनाह लोगों की जान लेने वाले दहशतगर्दो को बीच चौराहे पर खड़ी करके गोली मार देनी चाहिए।एक बात और ki आख़िर धमाके वहां क्योँ नही होते जहाँ
चिंतन में दम है ..बेगुनाह लोगों की जान लेने वाले दहशतगर्दो को बीच चौराहे पर खड़ी करके गोली मार देनी चाहिए।एक बात और ki आख़िर धमाके वहां क्योँ नही होते जहाँ
वीआईपी होते हैं ..?
चिंतन में दम है ..बेगुनाह लोगों की जान लेने वाले दहशतगर्दो को बीच चौराहे पर खड़ी करके गोली मार देनी चाहिए।एक बात और ki आख़िर धमाके वहां क्योँ नही होते जहाँ
वीआईपी होते हैं ..?
sawal hindu ya musalmaan ka nahin desh ka hai.
desh ke saath jo bhi khilwaad kare use ham hargiz nahin baksh sakte.
aapne ise sirf hindu k saath jodkar
gahre sadme daal diya.
desh me sirf hindu nahin hain aur marne waalon aur ghaylon mein bhi desh k sabhi samaj k log hain.
ye .....du ham deshvaasi hain aur vishesh kar hamare leaders
hamzabaan ki nayi post zaroor padhen.
बहुत बेबाक तरीके से आपने अपना पक्ष रखा है। मैं आपके इस बेबाक नजरिए को सलाम करता हूं।
हिन्दू का मतलब डरपोक ही नहीं होता।
"very very well said, these words are essence of this artical, great"
Regards
Post a Comment