गुरूजी यानि शिबू सोरेन छत्ताीसगढ़ आए और आते ही उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का शोषण हो रहा है, अन्याय हो रहा है उनके साथ। और न्याय कैसे होगा ये भी बता दिया उन्होंने? साफ कहा कि छत्ताीसगढ़ का मुख्यमंत्री आदिवासी होना चाहिए। बस्तर तो गए नहीं और यहीं बैठे-बैठे फरमान जारी कर दिया सलवा जुडूम बंद कर दो।
पता नहीं किस विषय के गुरूजी हैं शिबू सोरेन ? जहां तक मेरी जानकारी है उन्हें तो रिश्वत खोरी और दल-बदल का स्कूल खोल लेना चाहिए तब कहलाएँगे वे असली गुरू। यहाँ आए और आते ही पहली नज़र सीधी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर। वो तो गनिमत है एक आदमी दो प्रदेश का एक साथ मुख्यमंत्री नहीं बन सकता वरना लगता है अपने गुरूजी छत्ताीसगढ़ के भी मुख्यमंत्री बनने की भी डिमांड अविश्वास प्रस्ताव बचाते समय रख देते।
गुरूजी छत्ताीसगढ़ का आदिवासी थोड़ा सीधा-सादा है। वो आज भी बस्तर के जंगलों में चिरौंजी के बदले नमक खरीदकर खुश हो जाता है। वो आप जैसा विद्वान और गुरू नहीं है जो समर्थन देकर पूरा राज्य माँग ले। उसे ये सब एक दिन में या एक ही सभा में नहीं समझ में आएगा। वैसे भी छत्ताीसगढ़ राज्य बनने के बाद उसका पहला मुख्यमंत्री आदिवासी अजीत जोगी ही बना था। अब ये अलग बात है कि कुछ लोग अजीत जोगी को आदिवासी नहीं मानते। माने न माने अलग बात है लेकिन उन्होंने बतौर आदिवासी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा किया।
गुरूजी को बहुत कष्ट हुआ आदिवासियों की ज़मीन लेकर टाटा और एस्सार जैसे कारखाने लगाने पर। अच्छा स्टेटमेंट है गुरूजी। 2-3 बार उस स्टेटमेंट को रिपीट करेंगे और दिल्ली से रिलीज करेंगे तो हो सकता है टाटा, एस्सार वालों से बात हो जाए। वैसे भी टाटा, ममता से परेशान है वो नई परेशानी यानि आपसे बचने के लिए बात कर सकता है और बाकि तो आपको अच्छी तरह आता है। क्या लेना है और क्या देना है ? आप तो समर्थन देकर राज ले सकते हैं तो यहाँ भी आश्वासन देकर बहुत कुछ ले सकते हैं।
मुझे लगा ही गुरूजी आप जैसा पारखी यहाँ बिना कारण तो आया नहीं होगा। बहुत स्कोप है इस प्रदेश में नेतागिरी से लेकर सौदेबाजी तक में। और इन सब बातों में महागुरू आप जैसा गुरू यहाँ आदिवासियों की सिर्फ सेवा करने तो आया नहीं होगा। और अगर उनकी सेवा ही करना होता तो गुरूजी खुद आपके प्रदेश में भी तो उनकी सेवा के लिए बहुत काम बाकी है। लेकिन गुरू ठहरे गुरू बिना लाभ हानि के दूसरे प्रदेश में भला उंगली क्यों करते ? वो भी सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी को। खैर गुरूजी आए और चले भी गए। लेकिन एक बात समझ नहीं आई वे बस्तर गए तक नहीं और राजधानी में बैठे-बैठे कह दिया सलवा जुडूम बंद कर दिया जाना चाहिए। यानि हज़ारों आदिवासियों का नक्सलियों की बंदूकों का सामना करने के लिए खड़ा किया गया ऑंदोलन बंद कर उन्हें वापस जंगलों में मरने के लिए भेज दिया जाए।
वाह! गुरूजी वाह! मान गए आपको। सलवा जुडूम बंद नहीं होगा तो आदिवासी कैंप में सुरक्षित रहेंगे। बंद होगा तो वापस जंगल जाएंगे फिर मुखबीर होने की आशंका में नक्सलियों का शिकार होंगे। मरेंगे तब तो आक्रोश फैलेगा और जितना ज्यादा आदिवासी मरेंगे आक्रोश उतना ज्यादा फैलेगा। तब तो मज़ा आएगा नेतागिरी का। छा गए गुरूजी! मुझ जैसे अज्ञानी को अब समझ में आ रहा है कि आप छत्ताीसगढ़ आए क्यों ? जय हो! समर्थन देकर राज लेने वाले गुरूजी की जय हो!
पता नहीं किस विषय के गुरूजी हैं शिबू सोरेन ? जहां तक मेरी जानकारी है उन्हें तो रिश्वत खोरी और दल-बदल का स्कूल खोल लेना चाहिए तब कहलाएँगे वे असली गुरू। यहाँ आए और आते ही पहली नज़र सीधी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर। वो तो गनिमत है एक आदमी दो प्रदेश का एक साथ मुख्यमंत्री नहीं बन सकता वरना लगता है अपने गुरूजी छत्ताीसगढ़ के भी मुख्यमंत्री बनने की भी डिमांड अविश्वास प्रस्ताव बचाते समय रख देते।
गुरूजी छत्ताीसगढ़ का आदिवासी थोड़ा सीधा-सादा है। वो आज भी बस्तर के जंगलों में चिरौंजी के बदले नमक खरीदकर खुश हो जाता है। वो आप जैसा विद्वान और गुरू नहीं है जो समर्थन देकर पूरा राज्य माँग ले। उसे ये सब एक दिन में या एक ही सभा में नहीं समझ में आएगा। वैसे भी छत्ताीसगढ़ राज्य बनने के बाद उसका पहला मुख्यमंत्री आदिवासी अजीत जोगी ही बना था। अब ये अलग बात है कि कुछ लोग अजीत जोगी को आदिवासी नहीं मानते। माने न माने अलग बात है लेकिन उन्होंने बतौर आदिवासी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा किया।
गुरूजी को बहुत कष्ट हुआ आदिवासियों की ज़मीन लेकर टाटा और एस्सार जैसे कारखाने लगाने पर। अच्छा स्टेटमेंट है गुरूजी। 2-3 बार उस स्टेटमेंट को रिपीट करेंगे और दिल्ली से रिलीज करेंगे तो हो सकता है टाटा, एस्सार वालों से बात हो जाए। वैसे भी टाटा, ममता से परेशान है वो नई परेशानी यानि आपसे बचने के लिए बात कर सकता है और बाकि तो आपको अच्छी तरह आता है। क्या लेना है और क्या देना है ? आप तो समर्थन देकर राज ले सकते हैं तो यहाँ भी आश्वासन देकर बहुत कुछ ले सकते हैं।
मुझे लगा ही गुरूजी आप जैसा पारखी यहाँ बिना कारण तो आया नहीं होगा। बहुत स्कोप है इस प्रदेश में नेतागिरी से लेकर सौदेबाजी तक में। और इन सब बातों में महागुरू आप जैसा गुरू यहाँ आदिवासियों की सिर्फ सेवा करने तो आया नहीं होगा। और अगर उनकी सेवा ही करना होता तो गुरूजी खुद आपके प्रदेश में भी तो उनकी सेवा के लिए बहुत काम बाकी है। लेकिन गुरू ठहरे गुरू बिना लाभ हानि के दूसरे प्रदेश में भला उंगली क्यों करते ? वो भी सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी को। खैर गुरूजी आए और चले भी गए। लेकिन एक बात समझ नहीं आई वे बस्तर गए तक नहीं और राजधानी में बैठे-बैठे कह दिया सलवा जुडूम बंद कर दिया जाना चाहिए। यानि हज़ारों आदिवासियों का नक्सलियों की बंदूकों का सामना करने के लिए खड़ा किया गया ऑंदोलन बंद कर उन्हें वापस जंगलों में मरने के लिए भेज दिया जाए।
वाह! गुरूजी वाह! मान गए आपको। सलवा जुडूम बंद नहीं होगा तो आदिवासी कैंप में सुरक्षित रहेंगे। बंद होगा तो वापस जंगल जाएंगे फिर मुखबीर होने की आशंका में नक्सलियों का शिकार होंगे। मरेंगे तब तो आक्रोश फैलेगा और जितना ज्यादा आदिवासी मरेंगे आक्रोश उतना ज्यादा फैलेगा। तब तो मज़ा आएगा नेतागिरी का। छा गए गुरूजी! मुझ जैसे अज्ञानी को अब समझ में आ रहा है कि आप छत्ताीसगढ़ आए क्यों ? जय हो! समर्थन देकर राज लेने वाले गुरूजी की जय हो!
14 comments:
झारखंड के लोगों का और भारत का दुर्भाग्य है कि जिस व्यक्ति को सलाखों के पीछे होना चाहिये वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमा हुआ है
सवा जुडूम कांग्रेसी और कमीनिस्टों के खटकता ही रहा है, सोरेन को भी दलाली मिलने की आशा होगी
शिव खेडा की उक्ति याद आती है, जिन लोगों को हम अपने बच्चों का अभिभावक बनाने के लिये राजी न हों उन्हें देश का अभिभावक बना डालते हैं
शिबू सोरेन तो एसा है कि इसे तो कोई अपने कुत्ते को भी टहलाने के लिये न भेजे
महा लम्पट है यह कलाकार।
अनिल जी , शीबू सौरेन के लिए मेरे विचार भाई चुनियाँ लाल जी
से सौ प्रतिशत मेल खाते हैं ! इसलिए मैं सिर्फ़ इतना कहूंगा की
अगर प्रजातंत्र में ये बुराइयां ना होती तो इससे बढिया दूसरा
कोई तंत्र ही नही होता ! यही दुर्भाग्य है ! इस आदमी की कार-
गुजारियों पर शर्म है !
Sahi kaha hai aapne.
क्या 'गुरु जी' को छत्तीसगढ़ का भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता? केंद्र सरकार पर फिर संकट आए तो शायद शिबू के लिए संविधान में संशोधन भी हो जाय।
Aise hi log guruji hote hain to bhagwan bachaye in gurujion se.Desh ki ijjat ka faluda karnewalon ka jab jab bhi nam liya jayega, in guruji ka naam sabse pahle liya jayega.
शिबू सोरेन यह वही तो नही जिस के उपर एक हत्या का केस चला था, ओर सिद्ध भी हो गया था, फ़िर पकिस्तानी एजेंट होने का, ओर हथियार रखने का भी इलजाम लगा था; वाह रे ईमान दार प्राधान मत्री केसे केसे लोगो का सहारा ले कर उस देश का सत्यानाश कर रहा हे जिस देश ने तुझे रहने की जगह दी.
धन्यवाद
काश! हम कुछ कर सकते।
जय जय छत्तीसगढ
शेष फ़िर कभी.....
छत्तीसगढ़ की राजनीति में इन्हें आमंत्रित करने वालों ने सबसे बड़ी भूल की है।
bhaiya har shaakh par ullu baitha hai
aur kya kahun.
ab ham log likhe bhi to kitna in badmashon ke kaan par jun tak nahin rengti.
समर्थन देकर राज लेने वाले गुरूजी की जय हो!
" ha ah very well said, janta ko akrsheet krne ke soo treeke"
Regards
कलयुग है गुरुवर.....
मैं क्या कहूँ राजनीती के बारे में बात करना ही बेकार समझती हूँ..अब तो "कोऊ नृप होय हमें का हानी " ..पर एक बात फ़िर भी कहूँगी ..इस आदमी ने ख़ुद को दिशोम (अवतार ) बना रखा है सोंच लीजिये क्या दिमाग लेके पैदा हुआ होगा
इस जैसे आदमी को हमने नेता बनाया है तो हम काठ के उल्लु,माटी के लोदे,कुए के मेंढक,और पिंजडे के गंगाराम नही है तो और क्या है।
आपसे एक शिकायत भी है आपके मार्गदर्शन की आवश्यक्ता रहती है पर हमारे दर पर आते ही नही
किसी ने सही कहा है..
तुम्हे गैरो से कब फ़ुरसत हम अपने गम से कब खाली ॥ चलो हो चुका मिलना ना तुम खाली ना हम खाली॥
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